नई दिल्ली:  दिल्ली के चुनावी नतीजे आने में अब बस कुछ ही घंटे बचे हैं. सभी एक्ज़िट पोल अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी की जीत के दावे कर रहे हैं. अगर ऐसा हुआ तो फिर प्रशांत किशोर का बिहार वाला फ़ार्मूला हिट हो जाएगा. इसी फ़ार्मूले के दम पर लालू यादव और नीतीश कुमार की जोड़ी ने बीजेपी को धूल चटा दिया था. प्रशांत किशोर यानी के इस फ़ार्मूले के कारण सांप्रदायिक ध्रुवीकरण नहीं हो पाया. आरजेडी और जेडीयू के मुस्लिम नेताओं को प्रचार से दूर रखा गया था. बीजेपी के कई नेता भारत पाकिस्तान और हिंदू मुसलमान जैसे मुद्दों के गरमाते रहे. लेकिन महागठबंधन सामाजिक न्याय के एजेंडे से नहीं हटी.


दिल्ली के चुनाव में बीजेपी शाहीनबाग के इर्द गिर्द मंडराती रही. अमित शाह से लेकर पार्टी के सभी छोटे बड़े नेताओं ने राष्ट्रवाद का ढोल बजाया. सब इसी कोशिश में जुटे रहे दिल्ली का चुनाव हिंदू बनाम मुसलमान हो जाए. शुरूआत अमित शाह ने ईवीएम का बटन दबा कर शाहीनबाग में करंट लगाने की अपील से की. वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर ने देश के ग़द्दारों को गोली मरवाने के नारे लगवाए. पीएम नरेन्द्र मोदी ने शाहीनबाग को एक प्रयोग बता दिया. सांसद प्रवेश वर्मा शाहीनबाग के प्रदर्शनकारियों के नाम पर हिंदुओं को खूब डराया. लेकिन बीजेपी के इस गेम को केजरीवाल समझ गए.


बीजेपी ने अरविंद केजरीवाल के लिए जाल बिछाया. दाना डाला. लेकिन वे फंसे नहीं. फंसते भी कैसे ? केजरीवाल के पास प्रशांत किशोर भी थे. वहीं प्रशांत, जो बिहार में बीजेपी के इस ध्रुवीकरण जाल को तार तार कर चुके हैं. पीके ने दिल्ली के चुनाव में वही सब कुछ किया जो 5 साल पहले वे बिहार में कर चुके हैं. बीजेपी शाहीनबाग चिल्लाती रही. लेकिन आम आदमी पार्टी ने इस नाम से ही तौबा कर ली. तय हुआ कि सब शाहीनबाग से दूर रहेंगे. न कोई वहां जायेगा, न उस पर चर्चा करेगा. ऐसा ही हुआ. केजरीवाल की पार्टी के नेता अपने मुद्दों पर ही डटे रहे. फ़्री बिजली, पानी, मोहल्ला क्लिनिक और स्कूल की माला जपते रहे. एक बार तो लगा कि आम आदमी फंसने लगी है. ये बात तब की है जब डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने कहा कि मैं शाहीनबाग के साथ हूं. बीजेपी के नेता इस बयान को लेकर उड़ गए. ये कहा जाने लगा कि शाहीनबाग में केजरीवाल के लोग बिरयानी खिला रहे हैं.


बीजेपी की काट के लिए प्रशांत किशोर ने रणनीति बदल ली. चुनाव प्रचार में बजरंग बली की एंट्री हो गई. अरविंद केजरीवाल हनुमान चालीसा पढ़ने लगे. बजरंगबली के मंदिर जाने लगे. बीजेपी इस जुगाड़ में थी कि केजरीवाल को हिंदू विरोधी साबित कर दिया जाए. अजान के समय भाषण रोक देने वाले उनके पुराने वीडियो सोशल मीडिया में वायरल कराए गए. लेकिन पीके ने कुछ और ही तय कर रखा था. केजरीवाल उसी राह पर चलते रहे.


आम आदमी पार्टी के नेताओं ने बीजेपी के हिंदुत्व एजेंडे पर रिएक्ट ही नहीं किया. क्या इस बार आपने केजरीवाल या उनके किसी नेता को किसी मस्जिद या दरगाह जाते देखा ? ऐसा ही बिहार में भी हुआ था. जेडीयू और आरजेडी ने अपने सभी मुस्लिम नेताओं के बयान देने पर रोक लगा दी थी. अमानतुल्लाह और शोएब इक़बाल जैसे आप के नेता ख़ामोश रहे. लाइमलाइट से दूर रहे.


बिहार चुनाव में तो प्रशांत किशोर तो मंच पर मुस्लिम नेताओं को मंच पर भी नहीं बैठने देते थे. लालू ने ये कह कर एक मुस्लिम सासंद को नीचे उतार दिया था कि तुम्हारी बिरादरी का असली नेता मैं हूं. तुम मंच पर गए तो कई हिंदू वोट कट जायेंगे. ये रणनीति और आयडिया प्रशांत किशोर का था. वे बिहार में सफल रहे.


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