भोपाल: लंबी राजनीतिक खींचतान के बाद आखिरकार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने इस्तीफे का एलान किया. इसके बाद उन्होंने खुद राजभवन जाकर राज्यपाल से मुलाकात की और उन्हें अपना इस्तीफा सौंप दिया. इससे पहले एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कमलनाथ ने इस्तीफे का एलान किया. इसके साथ ही कमलनाथ बीजेपी पर सरकार गिराने की साजिश का आरोप लगाया.
कमलनाथ ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को निशाने पर लिया. उन्होंने ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम लिए बिना कहा कि एक महाराजा और 22 लालची लोगों ने सरकार अपदस्थ करने की साजिश की. बीजेपी सोचती है कि मेरे प्रदेश को हरा कर खुद जीत जाएगी. वे ऐसा नहीं कर सकते.
सीएम कमलनाथ ने कहा कि मैंने हमेशा विकास में विश्वास रखा. प्रदेश की जनता आज पूछ रही है कि कमलनाथ का क्या कसूर है. मुझे जनता ने पूरे पांच सालों के लिए बहुमत दिया था. प्रदेश के साथ धोखा करने वाले नेताओं के साथ जनता कभी न्याय नहीं करेगी. सीएम कमलनाथ एक बजे राज्यपाल लालजी टंडन से मिलेंगे और अपना इस्तीफा सौंप देंगे.
बीजेपी को प्रदेश का विकास रास नहीं आया- कमलनाथ
सीएम कमलनाथ ने कहा, ''बीजेपी ने लोकतंत्र की हत्या की है. मेरी सरकार ने किसानों का कर्जा माफ किया, लेकिन ये बीजेपी को रास नहीं आया.'' उन्होंने कहा, ''15 महीनों में मेरा प्रयास रहा कि हम प्रदेश को नई दिशा दें, प्रदेश की तस्वीर बदलें. मेरा क्या कसूर था? इन 15 महीनों में मेरी क्या गलती थी?'' कमलनाथ ने आगे कहा, ''15 महीने के कार्यकाल में मेरी सरकार पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं लगा. जनता समझ चुकी थी कि जनता की सरकार क्या होती है.''
स्पीकर ने मंजूर किए 23 विधायकों के इस्तीफे
बता दें कि इससे पहले मध्य प्रेदश के स्पीकर एनपी प्रजापति ने फ्लोर टेस्ट से पहले कई विधायकों का इस्तीफा स्वीकार कर लिया था. उन्होंने बताया कि उन्होंने अबतक कुल 23 विधायकों के इस्तीफे मंजूर कर लिए हैं. इसमें 22 कांग्रेस और एक बीजेपी का विधायक है.
दो दिन की मैराथन सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
मध्य प्रदेश में फ्लोर टेस्ट का मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा था. पिछले दो दिन चली मैराथन सुनवाई के बाद जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हेमंत गुप्ता की बेंच ने वही आदेश दिया जो सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसले के मद्देनजर तय नजर आ रहा था. जजों ने कहा, “राज्य में 10 दिन के लिए विधानसभा को स्थगित करने का फैसला सही नहीं था. सत्र को कल ही बुलाया जाए और उसमें एक ही एजेंडा हो- राज्य सरकार का बहुमत परीक्षण. विधायक हाथ उठाकर मतदान करें. पूरी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी हो. जजों ने यह भी साफ कर दिया कि जो विधायक बेंगलुरु में बैठे हैं, उन्हें भोपाल आने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता.''
फैसले में लिखा गया है, “अगर विधायक बेंगलुरु में रहना चाहते हैं, तो कर्नाटक के डीजीपी उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करें. अगर वह भोपाल आना चाहते हैं तो कर्नाटक के बीजेपी उनकी सुरक्षित रवानगी तय करें. मध्य प्रदेश के डीजीपी उन्हें सुरक्षित विधानसभा तक पहुंचाएं.''
कोर्ट ने यह बागी विधायकों के ऊपर ही छोड़ दिया है कि वह सदन की कार्यवाही में हिस्सा लेंगे या नहीं. विधायक पहले ही सरकार का साथ छोड़ चुके हैं. ऐसे में कमलनाथ सरकार पर संकट के बादल गहरे हो गए हैं. विधायकों के नामौजूद रहने से बहुमत का आंकड़ा कमलनाथ के खिलाफ जाता हुआ नजर आ रहा है. वहीं कांग्रेस के 22 बागी विधायक जो बेंगुलरु में रुके हुए है वो फ्लोर टेस्ट में हिस्सा नहीं लेंगें.