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Aero India 2023: रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता क्यों है भारत की सामरिक जरूरत

एयरो इंडिया शो बेंगलुरु में 13 से 17 फरवरी के बीच हो रहा है. ये भारत के लिए 80 देशों के प्रतिनिधियों के सामने नई पीढ़ी की रक्षा प्रणाली बनाने में अपनी तकनीकी कौशल दिखाने का एक अच्छा मौका है.

Aero India 2023: नरेंद्र मोदी सरकार भारत को रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में लगातार कदम उठा रही है. इसके लिए सरकार अपने 'मेक इन इंडिया'  के एजेंडा को सक्रिय रूप से बढ़ावा देने पर जोर दे रही.  इसके लिए 14वें एयरो इंडिया एयर शो से बेहतर मौका नहीं हो सकता है.

भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. ऐसे में देश महत्वपूर्ण रक्षा प्रणालियों और सामरिक हथियारों के लिए दूसरे देशों पर ज्यादा हद तक निर्भर नहीं रह सकता है.

13 से 17 फरवरी के बीच एयरो इंडिया 2023

कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु के येलहंका वायु सेना स्टेशन में इस बार 13 से 17 फरवरी के बीच एयरो इंडिया 2023 का आयोजन हो रहा है. एयरो इंडिया में 80 से अधिक देश भाग ले रहे हैं. करीब 30 देशों के मंत्री के साथ ही वैश्विक और भारतीय ओईएम (Original Equipment Manufacturer) के 65 सीईओ के भी एयरो इंडिया 2023 में हिस्सा लेने की संभावना है. ये भारत के लिए एक बेहतर मौका होगा कि वो नई पीढ़ी की रक्षा प्रणाली बनाने में अपनी तकनीकी कौशल का प्रदर्शन कर सके.मित्र राष्ट्रों की हथियार बनाने वाली कंपनियों के सहयोग से भारत अपने लिए तो आधुनिक रक्षा प्रणाली विकसित करने की इच्छा रखता ही है, साथ ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी खुद को स्थापित करना चाहता है.

रक्षा जरूरतों के लिए विदेशी निर्भरता कम हो

रूस-यूक्रेन के बीच जारी युद्ध से वैश्विक हथियार उद्योग में होड़ बढ़ गई है. इस बदलते वैश्विक राजनीतिक हालात में भारतीय रक्षा उद्योग पीछे नहीं रह सकता है. यूक्रेन युद्ध एक तरह से भारत के लिए संकेत है कि वो अपनी रक्षा जरूरतों के लिए दूसरे देशों पर निर्भरता को कम करे. यूक्रेन के साथ युद्ध से भारत के सामने के सामने ये संकट जरूर खड़ा हुआ था कि वो अमेरिका या रूस में से किसके तरफ अपनी वफादारी दिखाए. ऐसे हालात में भारत सरकार ने निष्पक्ष रुख अपनाते हुए रूस के साथ सौहार्दपूर्ण संबंधों को जारी रखा. भारत अगर रूस के खिलाफ किसी भी तरह का रुख अपनाता तो, दशकों पुराने आपसी रक्षा संबंधों पर असर पड़ सकता था. इस मजबूत रक्षा संबंधों की वजह से भारतीय सुरक्षा बल पाकिस्तान और चीन से मिलने वाली चुनौतियों से ज्यादा प्रभावी तरीके से निपटने में सक्षम हैं.

अंतरराष्ट्रीय मुद्दे पर सैद्धांतिक रुख अपनाने में मदद

रक्षा उत्पादों में पूरी तरह से आत्मनिर्भर हो जाने पर भारत के लिए द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावित किए बिना किसी अंतरराष्ट्रीय मुद्दे पर सैद्धांतिक रुख अपनाना ज्यादा आसान हो जाएगा. रक्षा जरूरतों को देखते हुए रूस भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. ऐसे में भारत  को हमेशा इस बात के लिए सतर्क रहना पड़ता है कि उसके व्यवहार से दशकों पुराना भरोसेमंद रक्षा भागीदार नाराज न  हो जाए. अमेरिका भारत का सामरिक साझेदार है और क्वाड के नाम से बने चतुर्भुज गठबंधन में सहयोगी भी है. इसके बावजूद घरेलू कानून CAATSA (काउंटरिंग अमेरिकन एडवर्सरीज थ्रू सैंक्शंस एक्ट) को लागू करने की धमकी देकर  अमेरिका, भारत के रक्षा नीति निर्माताओं के लिए चुनौती खड़ा करते रहता है. ये भी सही है कि हाल के वर्षों में अमेरिका भारतीय सशस्त्र बलों के लिए एक प्रमुख रक्षा आपूर्तिकर्ता के रूप में उभरा है और भारत की आर्थिक और कूटनीतिक ताकत के कारण ही CAATSA लागू करने से बचते रहा है. अमेरिका के घरेलू कानून का सम्मान करने के चक्कर में भारत का रूस के साथ रक्षा और राजनीतिक संबंधों पर असर पड़ सकता है. रूस से आधुनिक S-400 एंटी-मिसाइल सिस्टम की डिलीवरी से जुड़ी प्रक्रिया अभी भी पूरी नहीं हुई है. ये याद रखना चाहिए कि अमेरिकी प्रशासन रूस और तुर्की के बीच इसी तरह के एक समझौते को विफल करने में कामयाब हुआ था.

रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने की जरूरत

बदलते वैश्विक-राजनीतिक परिदृश्य में किसी भी तरह के बदलाव के चलते से आपसी हितों में टकराव हो सकता है.  इससे अमेरिका को मौका मिल सकता है कि रक्षा क्षेत्र में वो भारत के लिए मुश्किलें खड़ी कर दे. ऐसा पहले हो भी चुका है. 1970 के दशक में अमेरिका, भारत को तारापुर परमाणु ऊर्जा संयंत्र को स्थापित करने में तकनीकी सहयोग देने से पीछे हट गया था. अमेरिका के इस कदम ने भारतीय नेतृत्व को लंबे समय तक परेशान किया था. अमेरिका ने ड्यूल यूज टेक्नोलॉजी के ट्रांसफर पर भी रोक लगा दी थी. भविष्य में भी इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि अमेरिका भारत को तकनीक के हस्तांतरण पर भी प्रतिबंध न लगाए. हालांकि, वर्तमान वैश्विक माहौल में अमेरिकी प्रशासन भारत के साथ अपने बढ़ते रक्षा और रणनीतिक साझेदारी को बाधित नहीं करना चाहेगा.

डिफेंस प्रोडक्शन हब बनाने पर काम

हालांकि भारत को यह भी ध्यान में रखना होगा कि अगर वह रक्षा क्षेत्र से जुड़े हर जरूरत के लिए रूस पर ही निर्भर रहेगा तो अमेरिका के साथ उसके संबंधों में मजबूती नहीं आ पाएगी. इस नजरिए से ही भारत खुद को डिफेंस प्रोडक्शन हब बनाने की दिशा में लगातार कदम उठा रहा है, ताकि दुनिया की बड़ी हथियार कंपनियां उसकी ओर आकर्षित हो सकें. भारत की अब ये मंशा नहीं है कि वो दुनिया के शीर्ष हथियार आयातक देशों की श्रेणी में शामिल रहे. वर्तमान में सुखोई-30 एमकेआई लड़ाकू विमान समेत भारतीय वायु सेना के आधे के करीब बेड़े और पनडुब्बियों के फ्लीट में आधे रूस ऑरिजिन के हैं. हालांकि ज्यादातक युद्धपोत, मिसाइल सिस्टम भारत में बने रक्षा विकल्पों से बदले जा रहे हैं, लेकिन उसमें भी रूस का बड़ा योगदान है. भारत अचानक ही रूस की आलोलना कर अपने सामरिक हितों की अनदेखी नहीं कर सकता. लेकिन अमेरिकी प्रशासन ने रूस के साथ अपने रक्षा संबंधों को रद्द करने और सीएएटीएसए का पालन करने की अतार्किक मांग की है.

बाहरी दबाव से मिल जाएगी निजात

ऐसे हालात किसी भी देश के लिए दुविधाजनक बन जाते हैं, जब वो अपनी रक्षा जरूरतों के लिए आत्मनिर्भर नहीं हो. हालांकि 1990 के दशक से ही भारत सरकार ने रक्षा उत्पादों और प्रणालियों के स्वदेशीकरण की ओर द्यान देना शुरू कर दिया था. लेकिन वर्तमान सरकार रक्षा क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भर बनाने  के महत्वाकांक्षी लक्ष्य की दिशा में पुरजोर कोशिश कर रही है. इससे देश सामरिक तौर से ज्यादा मजबूत होगा और अंतरराष्ट्रीय संकट के दौरान ज्यादा मुखर होकर कोई भी स्टैंड ले सकता है. अगर भारत रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो जाता है, तो कोई भी देश उस पर रक्षा जरूरतों का हवाला देकर दबाव नहीं बना सकता.

निवेश को आकर्षित करने पर फोकस

भारत को रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए, बड़े पैमाने पर निवेश को आकर्षित करने की आवश्यकता है. इसके साथ-साथ रक्षा उद्योगों के लिए एक पारिस्थितिकी तंत्र और पर्याप्त बुनियादी ढांचे को खड़ा करने की भी जरूरत होगी. इसी लक्ष्य को हासिल करने के लिए भारतीय रक्षा मंत्रालय मेक इन इंडिया पहल की दिशा में आगे बढ़ा. इसके तहत उदार नीतियां बनाई गईं. भारत सरकार सशस्त्र बलों के लिए हथियारों की आवश्यकता को पूरा करने के लिए बहुराष्ट्रीय हथियार कंपनियों को देश में ही अपना उत्पादन इकाई लगाने और भारत को निर्यात का बड़ा केंद्र बनाने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है.

रक्षा क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण निर्यातक

पिछले कुछ वर्षों में रक्षा उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिए किए गए प्रयासों ने भारत को रक्षा क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण निर्यातक भी बना दिया है. विगत समय में भारत और फिलीपींस के बीच अत्यधिक उन्नत ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलों की आपूर्ति करने को लेकर हुए एक समझौते से भारतीय हथियार उद्योग को बल मिला है. आठ साल पहले भारत का रक्षा निर्यात महज 900 करोड़ रुपये का था, जो अब रिकॉर्ड 14,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है. अब भविष्य में भारत में बने रक्षा प्रणाली जैसे पनडुब्बियों या लड़ाकू विमानों के निर्यात को लेकर भी सौदे तय किए जा सकते हैं.आईसीईटी के तहत अमेरिका की ओर से GE-414 इंजन प्रौद्योगिकी के 100 प्रतिशत हस्तांतरित करने का निर्णय भारत के कूटनीतिक प्रयासों का एक उदाहरण है कि किस तरह से उच्च तकनीक को हासिल किया जा सके. इससे भारत को हथियार निर्माण के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने में मदद मिलेगी. इससे भारत को उन्नत पांचवीं पीढ़ी की लड़ाकू परियोजना AMCA को बढ़ावा मिलेगा.

सुरक्षा चुनौतियां के नजरिए से नीति

वर्तमान वैश्विक हालात में भारत के लिए सुरक्षा चुनौतियां बढ़ गई हैं. चीन के साथ लगी सीमा के साथ ही हिन्द महासागर के हाई सी से लेकर साउछ चाइना सी तक में भी चुनौतियां बरकरार हैं. ऐसे में भारत को अपने राष्ट्रीय, आर्थिक और सामरिक हितों की रक्षा के लिए खुद को तैयार करने की जरूरत है और ये तभी संभव हो सकता है जब भारत रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन जाए. इससे भारत बाहरी किसी भी सामरिक दबाव से भी बच जाएगा.

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