प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक एम एस स्वामीनाथन अब इस दुनिया में नहीं रहे, उनका गुरुवार को 98 साल की उम्र में निधन हो गया. देश की ‘हरित क्रांति’ में अहम योगदान देने वाले स्वामीनाथन के परिवार में तीन बेटियां हैं. उनकी एक बेटी डॉ. सौम्या स्वामीनाथन विश्व स्वास्थ्य संगठन की पूर्व मुख्य वैज्ञानिक हैं. खाद्य एवं पोषण सुरक्षा के कट्टर पैरोकार स्वामीनाथन के पथप्रवर्तक कार्य ने 1960 के दशक के दौरान अकाल के खतरे को रोक दिया था. भूख के खिलाफ आजीवन लड़ने वाले योद्धा स्वामीनाथन का कुछ वक्त से उम्र संबंधी बीमारियों के लिए इलाज चल रहा था. उनके निधन पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्र के प्रति सेवा के लिए स्वामीनाथन की प्रशंसा की. 


राष्ट्रपति मूर्मू ने कहा कि स्वामीनाथन ने अपने पीछे एक समृद्ध विरासत छोड़ी है जो दुनिया को मानवता के लिए एक सुरक्षित और भूख-मुक्त भविष्य की ओर ले जाने में मार्गदर्शक का काम करेगी. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वामीनाथन के निधन पर दुख जताया और कहा कि कृषि क्षेत्र में उनके अभूतपूर्व योगदान ने लाखों लोगों के जीवन को बदला और राष्ट्र के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की.


प्रधानमंत्री मोदी ने ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर सिलसिलेवार पोस्ट में कहा, ‘‘डॉ एम एस स्वामीनाथन के निधन से गहरा दुख हुआ. हमारे देश के इतिहास में एक बहुत ही नाजुक दौर में, कृषि में उनके अभूतपूर्व योगदान ने लाखों लोगों के जीवन को बदल दिया और हमारे राष्ट्र के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की.’’ पीएम मोदी ने कहा कि कृषि में अपने क्रांतिकारी योगदान से इतर, स्वामीनाथन नवाचार के ‘पावरहाउस’ और कई लोगों के लिए एक कुशल संरक्षक भी थे. उन्होंने कहा कि अनुसंधान और लोगों के लिए प्रतिपालक की अपनी भूमिका को लेकर उनकी अटूट प्रतिबद्धता ने अनगिनत वैज्ञानिकों और अन्वेषकों पर एक अमिट छाप छोड़ी . उन्होंने कहा, ‘‘मैं डॉ स्वामीनाथन के साथ अपनी बातचीत को हमेशा संजोकर रखूंगा. भारत को प्रगति करते देखने का उनका जुनून अनुकरणीय था। उनका जीवन और कार्य आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करेंगे. उनके परिवार और प्रशंसकों के प्रति संवेदना.’’



स्वामीनाथन ने दुनिया को किया अलविदा


समाचार एजेंसी भाषा के मुताबिक, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के निदेशक ए के सिंह ने कहा कि स्वामीनाथन के निधन से कृषि अनुसंधान, शिक्षा और विस्तार के एक ऐसे युग का अंत हो गया जो आसान नवाचार से भरा हुआ था. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि भारत के कृषि क्षेत्र में क्रांति लाने के लिए स्वामीनाथन की दृढ़ प्रतिबद्धता ने उसे ऐसे देश में तब्दील कर दिया जो अपनी जरूरत से अधिक खाद्यन्न का उत्पादन करता है।कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि स्वामीनाथन ने 70 के दशक के मध्य तक भारत को चावल और गेहूं में आत्मनिर्भर बना दिया था.


किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि भारत खेती और किसानों में लाए सकारात्मक बदलावों तथा खाद्य सुरक्षा में योगदान के लिए स्वामीनाथन को हमेशा याद रखेगा। स्वामीनाथन खाद्य सुरक्षा और कृषि से जुड़ी हर अहम पहल का हिस्सा थे और उन्होंने पोषण सुरक्षा के लिए मोटे अनाज पर ध्यान केंद्रित करने में भी अहम योगदान दिया. वह भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (1961-72) के निदेशक, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक और कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग में भारत सरकार के सचिव (1972-79) भी रहे।यहां एमएस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना करने वाले स्वामीनाथन को संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा हरित क्रांति में उनके नेतृत्व को रेखांकित करते हुए उन्हें ‘‘आर्थिक पारिस्थितिकी का जनक’’ बताया गया है.



ऐसे भुखमरी पर लगा था ब्रेक


1960 के दशक में जब भारत अकाल की ओर बढ़ रहा तब स्वामीनाथन गेहूं और चावल की अच्छी उपज देने वाली किस्मों को विकसित करने के लिए विश्व खाद्य पुरस्कार (1987) पाने वाले पहले व्यक्ति बने. ‘वर्ल्ड फूड प्राइज फाउंडेशन’ के अनुसार, गेहूं का उत्पादन कुछ ही वर्षों में दोगुना हो गया था जिससे देश आत्मनिर्भर बना और लाखों लोग भुखमरी से बच गए थे. उन्हें दुनियाभर के विश्वविद्यालयों से डॉक्टरेट की 84 मानद डिग्री प्राप्त हुई थीं. वह ‘रॉयल सोसायटी ऑफ लंदन’ और ‘यूएस नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज’ समेत कई प्रमुख वैज्ञानिक एकेडमी के फेलो रहे हैं. 


वह 2007 से 2013 तक राज्यसभा सदस्य भी रहे. वे कृषि मंत्रालय में प्रधान सचिव (1979-80), योजना आयोग (1980-82) में कार्यवाहक उपाध्यक्ष और बाद में सदस्य (विज्ञान और कृषि) और फिलीपीन के अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान में महानिदेशक (1982-88) पद पर भी अपनी सेवाएं दीं. उन्होंने 2010 से 2013 तक खाद्य सुरक्षा पर विश्व समिति के लिए उच्च स्तरीय विशेषज्ञ पैनल की अध्यक्षता भी की. स्वामीनाथन ने कृषि के क्षेत्र में अफगानिस्तान और म्यांमा में चलायी जा रही परियोजनाओं पर नजर रखने के लिए विदेश मंत्रालय द्वारा गठित कार्यबल की भी अध्यक्षता की. संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव जेवियर पेरेज डी सुइलर ने उन्हें ‘‘ऐसी किवदंती बताया जिनका नाम दुर्लभ विशिष्टता वाले विश्व विख्यात वैज्ञानिक के रूप में इतिहास में दर्ज होगा.’’