पिछले कुछ सालों में आधुनिक तकनीक ने हमारे जीवन जीने, काम करने से लेकर खेलने-कूदने तक के तरीके बदल दिए हैं. हमारे दैनिक गतिविधियों में तकनीक का कुछ-न-कुछ दखल जरूर है. कार्यस्थल पर भी तकनीक हावी है. एक तरफ जहां महानगरों में ऑनलाइन कैब सेवाओं ने परिवहन में क्रांति ला दी है तो वहीं "घर पर" ऑनलाइन बैंकिंग, होम डिलिवरी जैसी तमाम सेवाओं ने जिंदगी को आसान बना दिया है.
हालांकि, स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में तकनीक का प्रभाव अब भी उस स्तर पर नहीं पहुंच पाया जितना की अन्य सेक्टर में इसका इस्तेमाल किया जाता है. कोविड संक्रमण के दौरान ऑनलाइन डॉक्टर परामर्श और ऑनलाइन फार्मेसी को बड़ा बढ़ावा मिला है. लेकिन अब भी इस क्षेत्र में तकनीक का इस्तेमाल काफी सीमित है. पीडब्ल्यूसी इंडिया की एक रिपोर्ट की मानें तो कोविड-19 महामारी ने स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में डिजिटल तकनीक अपनाने की प्रक्रिया तेज कर दी है क्योंकि कंपनियां देखभाल और बीमारियों के बेहतर प्रबंधन की खातिर वैकल्पिक मॉडलों पर नजर डाल रही हैं.
कोरोना महामारी के दौरान तकनीक स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए बेहद मददगार रही है. महामारी के दौरान संक्रमण का जोखिम और सामाजिक दूरी जैसे कदम ने स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों व मरीजों के बीच फिजिकल इंटरेक्शन सीमित कर दिया. तब मरीजों व डॉक्टरों का संपर्क ऑनलाइन होने लगा और दवा कंपनियों ने भी ग्राहकों के लिए डिजिटल उपकरण तेजी से अपनाया. साथ ही डिलीवरी के अलग-अलग तरीके विकसित हुए.
हालांकि क्लिनिकल रिसर्च के क्षेत्र में इन तकनीकी प्रगति का प्रभाव अब भी बहुत कम रहा है. यही कारण क्लिनिकल रिसर्च इंडस्ट्री को आज भी बहुत चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. क्लिनिकल रिसर्च सेक्टर में टेक्नोलॉजिकल एप्लिकेशन के उदय के साथ कई चुनौतियों को दूर करने के लिए नए समाधान देखे गए हैं. जिन इनोवेशन से फर्क पड़ने की उम्मीद है उनमें वियरेबल्स, टेलीमेडिसिन, सिंथेटिक बायोलॉजी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, डाटा और प्रिडिक्टिव एनालिटिक्स शामिल हैं. ये समाधान एक रोगी भर्ती प्रक्रिया में योगदान करेगा, इसके अलावा ये टेक्नोलॉजी पेशेंट के बेहतर परीक्षणों की देखरेख और बेहतर डेटा कैप्चर सुनिश्चित करेंगे.
पेशेंट भर्ती में तकनीक का इस्तेमाल
रिसर्च के अनुसार तकनीक की मदद से एक ही बीमारी से पीड़ित रोगियों को एक साथ एक समुदाय की तरह जोड़ा जा सकता है. इससे रोगी के स्थिति को ज्यादा प्रभावी तरीके से नेविगेट करने में मदद मिलेगी. जैसे अल्जाइमर के रोगियों को गैर-लाभकारी फाउंडेशन और रोगियों की देखभाल करने वालों से जोड़ा जा सकता है. ऐसे करने से पेशेंट को तो मदद मिलेगी ही साथ ही डॉक्टर्स भी ज्यादा से ज्यागा रोगियों से जुड़ पाएंगे.
जब से सोशल मीडिया का इस्तेमाल बढ़ा है तब से इस तरह की कम्यूनिटी या गैर-लाभकारी फाउंडेशन की पहुंच का दायरा भी बढ़ गया है. अब यह सामुदायिक समूह एक भौतिक क्षेत्र तक सीमित नहीं हैं. सोशल मीडिया की मदद से कोई भी पेशेंट किसी भी कम्यूनिटी तक पहुंच सकता है.
क्लिनिकल रिसर्च में टेलीमेडिसिन
टेलीमेडिसिन यानी दूर चिकित्सा सेवा. यह टेक्नोलॉजी एक ऐसा माध्यम है जिस पर कोरोना के प्रोटोकॉल के साथ समाधान भी बताया गया है. यह ऐप पेशेंट को अलग अलग सर्विस के बारे में बताता है. इसे किसी भी दूर दराज के क्षेत्र से लैपटॉप या मोबाइल के जरिये इस्तेमाल कर सकते हैं. टेलीमेडिसिन सर्विस पर आप ऑनलाइन दवाएं खरीदने, प्लाज्मा डोनर खोजने, पास के अस्पतालों में बेड की उपलब्धता के बारे में सूचना पाने के साथ-साथ हॉस्पिटल्स के फोन नंबर भी पा सकते हैं
टेलीमेडिसिन विकल्प होने से कई तरह से नैदानिक परीक्षणों के बेहतर संचालन में मदद मिलती है. अगर किसी मरीज को हर विजिट के लिए साइट पर जाना पड़ता है, तो मरीज पर बोझ काफी ज्यादा हो सकता है. लेकिन वर्चुअल मीटिंग के कारण ज्यादा पेशेंट डॉक्टर तक पहुंच सकते हैं.
2020 में मिली थी मंजूरी
टेलीमेडिसिन को मंजूरी साल 2020 में कोरोना महामारी के कहर के बीच की गई थी. इसका मकसद था अस्पतालों की ओपीडी से सामान्य मरीजों की भीड़ को कम करना. ये सर्विस हॉस्पिटल में भर्ती न होकर आइसोलेशन में रहने वाले कोरोना मरीजों के लिए कारगर है.
टेलीमेडिसिन और पॉइंट-ऑफ-केयर डायग्नोस्टिक डिवाइस, डोर-स्टेप सैंपल कलेक्शन और विश्लेषण के समर्थन से वर्चुअल ट्रायल के उदय ने क्लिनिकल परीक्षणों की निरंतरता का समर्थन किया है. इसके अलावा अस्पतालों ने भी मरीजों के इलाज में सुधार, डॉक्टरों के लिए बेहतर तरीके की पहचान और दवा व उपकरण कंपनियों की बेहतर समझ के लिए इलेक्ट्रॉनिक मेडिकल रिकॉर्ड का इस्तेमाल शुरू कर दिया। अस्पताल ने होम हेल्थकेयर सेगमेंट में प्रवेश किया या उन्होंंने विशिष्ट होम हेल्थकेयर सेवा प्रदाताओं से गठजोड़ किया।
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