चीन के साथ अपने राजनयिक संबंधों में गिरावट आने के बाद लिथुआनिया अब अन्य एशियाई देशों के साथ अपने संबंधों का विस्तार देने की योजना पर काम कर रहा है. वह मुख्य रूप से भारत के साथ अपने संबंधों को और मजबूत बनाना चाहता है. लिथुआनिया के भारत में राजदूत डायना मिकेविसीन जोकि पहले चीन में राजदूत थे, उन्होंने कहा है कि वह भारत के क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का समर्थन करता है. वहीं, उन्होंने चीन के LAC उल्लंघनवादी की निंदा की है. राजदूत ने कहा कि "लिथुआनिया एशिया और प्रशांत क्षेत्र को प्राथमिकता दे रहा है और उसमें भारत की एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका देखता है.
हम एशिया से अपने संबंधों को स्थापित करने में काफी धीमे रहे हैं, इस बात को हमें स्वीकार करना होगा. उन्होंने कहा कि हमारा यूरोपीय संघ में शामिल होना अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए प्राथमिकताओं में था और तब NATO एक बहुत ही महत्वपूर्ण था. अब हम नाटो का सदस्य बनकर खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं.
भारत पहली बार लिथुआनिया में अपना दूतावास खोलने जा रहा है. भारतीय राजनयिक वहां पूर्ण राजनयिक मिशन को स्थापित करने के लिए विलनियस के लिए पहले ही रवाना हो चुके हैं. यह निर्णय अप्रैल 2022 में लिया गया था. लिथुआनियाई दूत के अनुसार, चीन बार-बार भारत की सीमाओं का उल्लंघन कर रहा है, जैसा कि रूस ने यूक्रेन के खिलाफ किया है. उन्होंने कहा कि भारत-चीन सीमा पर तनाव है. मिकेविसीन, जो एक इंडोलॉजिस्ट भी हैं, ने कहा कि हम भारत की क्षेत्रीय अखंडता का समर्थन करते हैं और हमें लगता है कि कोई भी एकतरफा कदम जो जोखिम उठाने की कोशिश करता है, क्षेत्रीय अखंडता को चैलेंज करने की कोशिश करता है तो 21वीं सदी में यह पूरी तरह से अस्वीकार्य है. मिकेविसीन ने जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा के हाल की भारत यात्रा के दौरान दिए गए भाषण का उल्लेख करते हुए कहा कि जहां भी कोई देश एकतरफा सीमाओं का उल्लंघन करता है, उसे अस्वीकार्य किया जाना चाहिए. क्योंकि अंततः एक अपराधी दूसरे अपराध से प्रेरित होता है. अगर कोई संघर्ष नहीं होता है तो प्रोत्साहन होता है, समर्थन होता है - कुछ ऐसा जो अब हम यूक्रेन के खिलाफ रूस के युद्ध में देख रहे हैं.
लिथुआनिया और चीन के संबंधों में आई गिरावट
पिछले साल, लिथुआनिया और चीन के बीच संबंधों में गिरावट आई थी, जब विलनियस चीन के नेतृत्व वाली 17+1 पहल से बाहर होने का फैसला किया था. इसने ताइवान को लिथुआनियाई राजधानी में एक प्रतिनिधि कार्यालय स्थापित करने की अनुमति भी दी थी, जिसके कारण राजनयिक संबंध बिगड़ गए और परिणामस्वरूप एक-दूसरे के देशों से राजदूतों को उसे वापस बुलाना पड़ा. उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य से हमें बीजिंग में अपने दूतावास के कामकाज को रोकना पड़ा और जो हुआ वह कोई आकस्मिक घटना नहीं थी. चीन की तरफ से हमें कई चीजों को लेकर दबाव का सामना करना पड़ रहा था. वे हमारे घरेलू मामलों में स्पष्ट रूप से दखल दे रहे थे. लिथुआनिया भी मानता है कि बीजिंग और मास्को के नजदीक आना चिंताजनक है. उन्होंने कहा कि जब रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने पिछले साल शीतकालीन ओलंपिक के लिए चीन का दौरा किया और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की थी. लिथुआनियाई राजदूत ने कहा कि हम भारत के साथ जुड़ना चाहते हैं. उनका देश अब भारत के साथ उच्च तकनीक क्षेत्रों में संलग्न होगा, विशेष रूप से लेजर प्रौद्योगिकी, अर्धचालक और जैव प्रौद्योगिकी पर ध्यान
केंद्रित करना चाहता है.
चीन की जगह अब भारत बन रहा निर्माण का हब
उन्होंने कहा कि लिथुआनिया में भारत को बहुत सकारात्मक रूप से देखा जाता है…ऐसे कई क्षेत्र हैं जहां हम भारत के साथ काम करना पसंद करेंगे. अभी भारत के साथ हमारा व्यापार क्षमता से बहुत कम है और नवीनतम भू-राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव का दौर चल रहा है. इसके साथ ही सप्लाई चेन के बढ़ाने या फिर एक नई सप्लाई चेन में जुड़ना अच्छा रहेगा. मिकेविसीन ने कहा कि भारत चीन से निर्माण के लिए बहुत सारे स्थानांतरण का केंद्र बनता जा रहा है. हम हाई-टेक मैन्युफैक्चरिंग में अच्छे हैं, जिसका मतलब है कि लिथुआनिया की फैक्ट्रियों से उपकरण भारत में असेंबली फैक्ट्रियों तक लाए जाएंगे. उन्होंने कहा कि लिथुआनिया को लेजर तकनीक में विशेषज्ञता हासिल है, विशेष रूप से हाई-प्रिसिजन वाले लेजर जिसके लिए उन्होंने एप्पल के आईफोन के साथ मिलकर काम किया है. हम चाहते हैं कि और भारतीय कंपनियां आगे आएं. अब जब लिथुआनिया में भारतीय दूतावास होगा तो हमें उम्मीद है कि ज्यादा से ज्यादा कंपनियां आएंगी. हम भारत के लिए यूरोपीय बाजार में एक प्रवेश द्वार भी बन सकते हैं.
भारत एक बहुत ही महत्वपूर्ण वैश्विक शक्ति
उन्होंने कहा कि भले ही लिथुआनिया ने भारत के साथ राजनयिक संबंध को स्थापित करने में काफी देर की है, फिर भी हम भारत पर अधिक ध्यान केंद्रित करेंगे. उन्होंने कहा कि अब पूर्व की ओर देखने का समय आ गया है. हमने पहले भी एशिया के साथ काम किया है लेकिन चीन सबसे बड़ी संभावना और सबसे बड़े अवसर के रूप में उभर रहा था. इसलिए मुझे लगता है कि चीन के साथ काम करके हमारे सारे संसाधन और ऊर्जा खत्म हो रहे हैं. हमारा व्यापार (चीन के साथ) उम्मीद के मुताबिक नहीं बढ़ा और कुछ अन्य समस्याएं शुरू हो गईं.' एशिया में अपने को विस्तार देने के लिए लिथुआनिया ने 2022 में जापान के साथ एक रणनीतिक साझेदारी पर भी हस्ताक्षर किए हैं, क्योंकि दोनों सुरक्षा के लिए समान दृष्टि साझा करते हैं और दक्षिण कोरिया और सिंगापुर में दूतावास भी खोले गए हैं. चूंकि भारत एक बहुत ही महत्वपूर्ण वैश्विक शक्ति के रूप में उभर रहा है और हमें लगता है कि भारत के साथ हमें साझेदारी बढ़ाने की आवश्यकता है. उन्होंने जोर देकर कहा, "यह एशिया का समय है ... हमें यह भी सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि जो अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के जो बुनियादी नियम हैं और हमें उसके आधार पर आगे बढ़ना है.