Antony Blinken to visit India: सामरिक संबंधों को मजबूत करने के लिए अमेरिका भारत को मिली जी-20 की अध्यक्षता को सफल बनाने में हरसंभव मदद करने को तैयार है. अमेरिका के आर्थिक और कारोबारी मामलों के सहायक विदेश मंत्री रामिन टोलौई ने ये बात कही है. उन्होंने जानकारी दी है कि अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन जी20 समूह के विदेश मंत्रियों की अगले हफ्ते नई दिल्ली में होने वाली अहम बैठक में हिस्सा लेंगे.


ब्लिंकन दिल्ली में क्वाड समूह के विदेश मंत्रियों की महत्वपूर्ण बैठक में भी हिस्सा लेंगे. इसके अलावा वे भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर से भी द्विपक्षीय वार्ता करेंगे. भारत ने पिछले साल एक दिसंबर को जी-20 समूह की अध्यक्षता संभाली अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन एक मार्च से तीन मार्च तक भारत की यात्रा पर रहेंगे.


रक्षा सहयोग बढ़ाने पर होगा ख़ास जोर


दक्षिण और मध्य एशिया के लिए अमेरिका के सहायक विदेश मंत्री डोनाल्ड लू ने कहा है कि एंटनी ब्लिंकन भारत के विदेश मंत्री के साथ द्विपक्षीय रणनीतिक सहयोग और साझेदारी पर बात करेंगे. दोनों ही नेता इस बात पर भी ध्यान केंद्रित करेंगे कि एशियाई क्वाड में दोनों देश कैसे काम कर रहे हैं. इसके अलावा दोनों नेताओं के बीत रक्षा सहयोग की प्रगति पर भी बातचीत होगी. साथ ही महत्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकियों को लेकर साझेदारी बढ़ाने से जुड़े पहल पर चर्चा होगी. तीन मार्च को अमेरिकी विदेश मंत्री एशियाई क्वाड देशों - अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया के विदेश मंत्रियों की बैठक में भी भाग लेंगे. क्वाड मंत्री-स्तरीय बैठक के बाद ब्लिंकन 'रायसीना वार्ता' में पैनल चर्चा में हिस्सा लेंगे. ब्लिंकन की यात्रा के बारे में जानकारी देते हुए अमेरिकी मंत्री डोनाल्ड लू ने भरोसा जताया कि यूक्रेन के साथ युद्ध को खत्म करने के लिए भारत, रूस के साथ अपने प्रभाव को उपयोग करेगा.


पेंटागन भी रक्षा साझेदारी बढ़ाने के पक्ष में


अमेरिका की ओर से एक बार फिर से ये बयान आया है कि वो भारत के साथ अपने रक्षा संबंधों को बढ़ाना चाहता है. इस बार ये बयान अमेरिकी रक्षा विभाग के मुख्यालय पेंटागन की तरफ से आया है. पेंटागन के प्रेस सचिव ब्रिगेडियर जनरल पैट राइडर ने कहा है कि भारत और अमेरिका के बीच बेहतर भागीदारी हैं. हम भारतीय सेना के साथ संबंध विकसित करने और उसे निरंतर बढ़ाने को लेकर आशान्वित हैं. उन्होंने ये बयान तब दिया जब वे रूस-यूक्रेन युद्ध के एक साल पूरे होने को लेकर मीडिया से रूबरू हो रहे थे.


भारत के बढ़ते रुतबे का असर


अमेरिकी रक्षा विभाग के मुख्यालय पेंटागन की ओर से आए इस बयान का महत्व रूस-यूक्रेन युद्ध पर भारत के रुख को देखते हुए और बढ़ जाता है. संयुक्त राष्ट्र  महासभा में रूस से यूक्रेन में युद्ध समाप्त करने और अपनी सेना को वापस बुलाने की मांग करने वाला गैर-बाध्यकारी प्रस्ताव 23 फरवरी को पारित होता है और भारत इस प्रस्ताव पर मतदान में हिस्सा नहीं लेता है. उसके ठीक एक दिन बाद पेंटागन की ओर से भारत के साथ रक्षा संबंधों को और मजबूत करने को लेकर बयान आता है. अमेरिका के इस रुख से साफ है कि भारत का रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर चाहे जो नजरिया रहे, वो कतई नहीं चाहता कि इसका असर भारत-अमेरिकी द्विपक्षीय संबंधों पर पड़े. अमेरिका का ये रुख एक तरह से वैश्विक पटल पर भारत के बढ़ते रुतबे को भी दर्शाता है.


भारत के नजरिए को महत्व दे रहा है अमेरिका


यूएन में भारत उन 32 देशों में शामिल रहा, जिन्होंने 193 सदस्यीय महासभा में रूस-यूक्रेन युद्ध से जुड़े प्रस्ताव पर मतदान नहीं किया. प्रस्ताव के पक्ष में 141 और विरोध में सात वोट पड़े.  प्रस्ताव में संयुक्त राष्ट्र चार्टर के सिद्धांतों के अनुरूप यूक्रेन में जल्द से जल्द, एक व्यापक, न्यायपूर्ण और स्थायी शांति तक पहुंचने की आवश्यकता को रेखांकित किया गया है. भारत को ये बात अच्छे से पता था कि उसके रुख से अमेरिका समेत कुछ देशों को नाराजगी हो सकती है, लेकिन उसके बावजूद भारत ने मतदान से खुद को दूर रखा. बाद में संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज ने कहा भी उस युद्ध को एक साल हो गए हैं और ऐसे में ये महत्वपूर्ण हो जाता है कि यूएन के सदस्य देश खुद से कुछ प्रासंगिक सवाल करें. रुचिरा कंबोज ने स्पष्ट तौर से कहा कि यूएन में कोई भी कदम विश्वसनीय और सार्थक समाधान की ओर ले जाती है, इस पर सोचने की जरूरत है. उन्होंने यूएन के देशों से ही सवाल किया कि क्या संयुक्त राष्ट्र प्रणाली और विशेष रूप से इसका प्रमुख अंग संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद वैश्विक शांति और सुरक्षा के लिए समकालीन चुनौतियों का समाधान करने में अप्रभावी नहीं हो गया है. ये अपने आप में भारत के वैश्विक नजरिए को साबित करने के लिए काफी है कि वो हर पक्ष को महत्व देने के नजरिए को लेकर ही आगे बढ़ रहा है.


भारत का हमेशा बातचीत से समाधान पर रहा है ज़ोर


रूस ने 24 फरवरी, 2022 को यूक्रेन पर आक्रमण किया था. उसके बाद से पिछले एक साल में इस मुद्दे पर आपातकालीन विशेष सत्र में संयुक्त राष्ट्र महासभा छह बार बैठक कर चुकी है. भारत का रूस के साथ अच्छे संबंध हैं और इसी वजह से वो यूक्रेन पर संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों से दूर रहा है. इसके बावजूद उसका हमेशा से कहना रहा है कि बातचीत और कूटनीति के जरिए ही इस मसले का हल निकाला जाना चाहिए जिसमें दोनों पक्षों की सहभागिता को सुनिश्चित किया जाए. 


25 साल में रक्षा संबंध बेहद मजबूत हुए


ये हम सभी जानते हैं कि अमेरिका इस युद्ध में बढ़-चढ़कर यूक्रेन का पक्ष लेते रहा है. उसे आर्थिक और सैन्य मदद भी करते रहा है.  यूएन में इस मुद्दे पर नई दिल्ली के लगातार तटस्थ रहने के बावजूद अमेरिका भारत से रक्षा संबंध और बेहतर करने को लेकर उत्सुक है. आज से 25 साल पहले भारत-अमेरिका कारोबार करीब-करीब शून्य था. लेकिन आज हालात बिल्कुल बदल चुके हैं. आज भारत और अमेरिका के बीच रक्षा कारोबार 20 अरब अमेरिकी डॉलर से भी ज्यादा का हो गया है. पिछले महीने भी पेंटागन की ओर से कहा गया था कि जब सुरक्षा सहयोग, रक्षा सहयोग की बात आती है तो यह संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत के बीच एक बहुत ही महत्वपूर्ण संबंध है, इसलिए अमेरिका हमेशा ही इस मसले पर भारतीय नेतृत्व के साथ बातचीत जारी रखना चाहता है. अमेरिका लगाताब दबाव बनाते रह गया, उसके बावजूद भारत ने अक्टूबर 2018 में रूस से 5 अरब डॉलर की लागत वाले एस-400 मिसाइल प्रणाली की खरीद से जुड़ा सौदा किया था.


रणनीतिक और रक्षा क्षेत्र में सहयोग


पिछले कुछ वर्षों में भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक और रक्षा क्षेत्र में सहयोग में काफी वृद्धि हुई है. दोनों देशों ने बेका, लेमोवा और COMCASA नामक समझौते पर हस्ताक्षर किये थे, इसके बाद भारतीय सेनाओं को अमेरिका से मिलिट्री-ग्रेड संचार उपकरण प्राप्त करने का रास्ता साफ हुआ. वहीं डिफेंस ट्रेड में भारत और अमेरिका अहम साझेदार के तौर पर काम कर रहे हैं. जुलाई, 2018 में अमेरिका ने भारत को STA-1 (Strategic Trade Authorisation-1) देश का स्टेटस प्रदान करने की घोषणा की थी. भारत यह स्टेटस पाने वाला दक्षिण एशिया का पहला देश है. यह स्टेटस दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और जापान जैसे देशों को मिला हुआ है. इस स्टेटस से भारत को अमेरिका से महत्वपूर्ण रक्षा टेक्नोलॉजी प्राप्त करने में आसानी होती है. क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजीज पहल से भारत और अमेरिका की दोस्ती नए मुकाम पर जाने वाली है. दोनों ही देश तकनीक, रक्षा और स्पेस समेत हर क्षेत्र में करीबी सहयोगी बनने के लिए तैयार हैं.


रक्षा क्षेत्र में मिलकर उत्पादन करने का मौका


अमेरिका के एक थिंक टैंक ने भी माना है कि दोनों देशों के बीच रक्षा क्षेत्र में मिलकर उत्पादन करने का इस समय अभूतपूर्व अवसर है और दोनों देशों की कंपनियों के बीच अधिक रक्षा उद्योग साझेदारी वाणिज्यिक और नियामक कारकों पर निर्भर है. 'ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन' (अमेरिका) ने  'सटीक लक्ष्य: अमेरिका-भारत रक्षा उद्योग साझेदारी को तेज करना' इस नाम से एक रिपोर्ट जारी किया है. इसमें कहा गया है कि अमेरिका-भारत रक्षा उद्योग साझेदारी में कई कारकों को देखते हुए तेजी लाई जा सकती है, इसमें यूक्रेन में युद्ध की वजह से पैदा हुई तत्काल परिस्थितियों समेत सहायक घरेलू नीतियां और अनुकूल भू-राजनीतिक स्थिति शामिल हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि 2023 की शुरुआत में अहम और उभरती प्रौद्योगिकियों पर अमेरिका-भारत पहल (ICET) शुरू होने से द्विपक्षीय रक्षा उद्योग सहयोग को बड़ी गति मिली है. इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि परिस्थितियों का लाभ उठाने के लिए दोनों देशों की सरकारों के बीच तालमेल और बढ़ाने के साथ ही व्यापारिक साझेदारी को मजबूती देनी होगी.