AI Potential In India: भारत जिस तरह से आने वाले 25 सालों में विकसित राष्ट्र बनने का लक्ष्य लेकर चल रहा है, उस नजरिए से टेक्नोलॉजी की भूमिका काफी बढ़ जाती है. ये हम सब जानते हैं कि दुनिया में जिस तरह का टेक इकोसिस्टम तैयार हो रहा है, उसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की बेहद महत्वपूर्ण भूमिका रहने वाली है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस बात को स्वीकार किया है. पीएम मोदी का मानना है कि भारत के टेक-इकोसिस्टम का विस्तार करने में AI की क्षमता अपार है. भारत युवा आबादी वाला देश है और 21वीं सदी डिजिटल क्रांति की सदी है.
प्रधानमंत्री मोदी से मिले सैम ऑल्टमैन
दुनिया के तमाम देशों की तरह भारत के युवाओं में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को लेकर उत्साह निरंतर बढ़ रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी कहना है कि युवाओं के बीच एआई की क्षमता वास्तव में भरपूर है. ChatGPT बनाने वाली कंपनी ओपनएआई के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सैम ऑल्टमैन (Sam Altman)ने 8 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 9 जून को ओपनएआई के सीईओ सैम ऑल्टमैन के एक ट्वीट का जवाब देते हुए ट्वीट किया. इसमें उन्होंने सैम ऑल्टमैन को सार्थक बातचीत के लिए धन्यवाद देते हुए लिखा कि हम उन सभी सहयोगों का स्वागत करते हैं, जो हमारे नागरिकों को सशक्त बनाने के लिए हमारे डिजिटल बदलाव को गति दे सकते हैं.
टेक इकोसिस्टम के विस्तार में AI की भूमिका
भारत अब दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश है. उसके साथ भारत की अर्थव्यवस्था पूरी दुनिया में सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था है. फिलहाल हम दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं और अगले कुछ सालों में तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भी बन जाएंगे, ऐसी उम्मीद है. इसके लिए हमें बेहतर तकनीकी पारिस्थितिकी तंत्र की जरूरत है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का उसी की ओर संकेत है. वे मानते हैं कि इस दिशा में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की क्षमता वास्तव में विशाल है.
AI से जुड़े नियमन को लेकर भी बहस तेज़
एक तरफ तो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को मानव विकास के लिहाज से मील का पत्थर बताया जा रहा है, तो दूसरी तरफ इसके नियमन को लेकर भी बहस तेज़ हो गई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सैम ऑल्टमैन के बीच AI के नियमन से जुड़े बिन्दुओं पर भी विस्तार से बातचीत हुई. दोनों के बीच इस बात पर भी चर्चा हुई कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से भारत को कैसे फायदा पहुंच सकता है.
इससे पहले ओपनएआई के सीईओ सैम ऑल्टमैन 8 जून को आईआईटी दिल्ली में एक कार्यक्रम के दौरान कहा था कि वे भारत में एआई को बढ़ावा देने के लिए इससे जुड़े इंडियन स्टार्टअप को वित्तीय सहायता मुहैया कराएंगे. उनका मानना है कि भारत के पास मजबूत आईटी उद्योग है और इसको देखते हुए एआई आधारित यूटिलिटीज और सेवाओं की बड़ी क्षमता का भारत लाभ उठा सकता है.
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का नाम हम भले ही पिछले कुछ सालों से सुन रहे हैं, लेकिन अभी भी ये अपने विकास के शुरुआती चरण में है. हर तकनीक का मानव जीवन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है और उसके साथ इसके दुरुपयोग की संभावना भी बनी रहती है. उसी तरह से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के साथ भी है. इसके साथ सबसे बड़ी समस्या एआई की सुरक्षा और नियमन की है.
भारत यूजर्स को नुकसान नहीं पहुंचने देगा
एआई से जुड़ा सुरक्षा का मुद्दा और नियमन पर भारत का क्या नजरिया रहने वाला है, इसको लेकर भी केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना तकनीक राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने देश का रुख स्पष्ट किया है. दिल्ली में 9 जून को मीडिया से रूबरू होते हुए उन्होंने कहा कि किसी भी नागरिक को नुकसान न पहुंचे, ये सुनिश्चित करने के लिए देश में एआई को विनियमित किया जाएगा.
एआई का नियमन सुनिश्चित किया जाएगा
केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर का कहना है कि भारत सरकार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उसी तरह से नियमन करेगी, जिस तरह से किसी दूसरी उभरती हुई टेक्नोलॉजी के साथ किया जाता है. केंद्र सरकार ने साफ कर दिया है कि यूजर्स के नुकसान के हर पहलू पर गौर करते हुए एआई का नियमन सुनिश्चित किया जाएगा. केंद्रीय आईटी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के किसी भी नियमन के लिए केंद्र का दृष्टिकोण यूजर्स के नुकसान को ध्यान में रखकर ही किया जाएगा. उनका कहना है कि या तो एआई और संबंधित कार्यक्रम और प्लेटफॉर्म उपयोगकर्ता के नुकसान को कम करेंगे या उन्हें भारत में काम करने की अनुमति नहीं दी जाएगी.
डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल जल्द
केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने जानकारी दी कि डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल जल्द ही संसद में पेश किया जाएगा. डिजिटल इंडिया बिल पर संबंधित स्टेकहोल्डर से इसी महीने रायशुमारी शुरू हो जाएगी. उन्होंने ये भी स्पष्ट किया कि एआई का जो मौजूदा स्वरूप है उससे भारत में नौकरी जाने का खतरा नहीं है. उनका कहना है कि नौकरी में लॉजिक और रीजनिंग की जरूरत होती है और फिलहाल एआई इस मामले में उतना सटीक नहीं है.
राजीव चंद्रशेखर का कहना है कि एआई के बारे में कुछ मेलोड्रामा है. वास्तव में, एआई ने पिछले कुछ वर्षों में 1 करोड़ से अधिक नौकरियां पैदा की हैं. इस बात की बहुत कम संभावना है कि एआई 5 वर्षों के बाद कुछ क्षेत्रों में मानव कार्यबल की जगह लेने के लिए पर्याप्त बुद्धिमान हो जाएगा. हालांकि उन्होंने माना कि इस बात की संभावना है कि यह आने वाले वर्षों में ज्यादा दोहराव वाली और नियमित नौकरियों की जगह ले लेगा.
AI से जुड़े खतरे और चुनौतियां
तकनीक की बदौलत आज हम उस दौर में पहुंच गए हैं, जहां बिना ऐप और ऑटोमेडेट मशीन के जीवन की कल्पना करना काफी मुश्किल है. इसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी AI का दखल लगातार बढ़ते जा रहा है. एक तरफ तो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से हम विकास की नई इबारत लिखने को तैयार है, तो दूसरी ओर AI से जुड़े खतरे और चुनौतियां भी सामने आ रहे हैं. पिछले कुछ महीनों से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से जुड़े खतरों को लेकर जोर-शोर से चर्चा हो रही है.
AI को लेकर एक्सपर्ट कर रहे हैं आगाह
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को लेकर जो भी संशय या खतरा भविष्य में पैदा हो सकता है, उसको लेकर आम लोगों ने नहीं बल्कि AI के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले वैज्ञानिकों, उद्योगपतियों और शोधकर्ताओं ने ही पिछले कुछ महीनों में आवाज बुलंद की है. पिछले महीने के आखिर में ही सेंटर फॉर एआई सेफ्टी के वेबपेज पर एक पंक्ति के बयान में कहा गया था कि "महामारियों और परमाणु युद्ध जैसे अन्य सामाजिक-स्तर के खतरों के साथ-साथ AI के कारण विलुप्ति के खतरे को कम करना एक वैश्विक प्राथमिकता होनी चाहिए".
ऑल्टमैन भी आगाह करने वालों में शामिल
इस बयान पर 350 से ज्यादा अधिकारियों, शोधकर्ताओं और इंजीनियरों ने हस्ताक्षर किए थे. पीएम मोदी से मिलने वाले चैटजीपीटी निर्माता ओपनएआई के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सैम ऑल्टमैन ने भी इस बयान का समर्थन किया था. उनके अलावा गूगल डीपमाइंड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डेमिस हासाबिस और एंथ्रोपिक के डारियो अमोदेई भी इस सूची में शामिल थे. सुपर इंटेलिजेंट एआई के जोखिमों के बारे में पहले भी चेतावनी जारी कर चुके डॉ. जेफ्री हिंटन और मॉन्ट्रियल विश्वविद्यालय में कंप्यूटर विज्ञान के प्रोफेसर योशुआ बेंगियो ने भी इस मुहिम का समर्थन किया है. AI के क्षेत्र में शानदार काम के लिए डॉ. जेफ्री हिंटन, प्रोफेसर बेंगियो और न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर यान को दुनिया में एआई के गॉडफादर के रूप में जाना जाता है.
समाज और मानवता के लिए गहरा जोखिम
इस साल मार्च-अप्रैल में भी दुनिया के कई जाने माने बिजनेसमैन और टेक्नोक्रैट ने कहा था कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस समाज और मानवता के लिए गहरा जोखिम पैदा कर सकता है. एआई समाज के लिए खतरनाक हो सकता है. टेस्ला और ट्विटर के मालिक एलन मस्क और एप्पल के को-फाउंडर स्टीव वोजनियाक जैसे लोग एआई को लेकर शंका जाहिर चुके हैं. इनका कहना है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को लेकर वैश्विक स्तर पर सरकारी नियंत्रण की जरूरत है. मार्च के आखिर में 'फ्यूचर ऑफ लाइफ इंस्टीट्यूट' की वेबसाइट पर AI से भविष्य में होने वाले खतरे को लेकर ओपन लेटर डाला गया था. उस लेटर पर मस्क के अलावा, स्काइप के को-फाउंडर Jaan Tallinn, पिनटेरेस्ट के को-फाउंडर के साथ-साथ कई यूनिवर्सिटियों के प्रोफेसरों ने भी दस्तखत किए थे.
चैटजीपीटी के नए वर्जन GPT-4 के बाद दुनिया के जाने माने टेक्नोक्रैट तेजी से विकसित हो रहे इस तरह के मॉड्यूल्स को इंसानी अस्तित्व के लिए खतरा मानने लगे हैं. ओपन लेटर के जरिए मार्च में सभी एआई प्रयोगशालाओं से अपील की गई है कि GPT-4 से अधिक शक्तिशाली एआई सिस्टम के प्रशिक्षण को कम से कम 6 महीने के लिए तुरंत रोक दी जाए.
नियमन के लिए वैश्विक स्तर पर बने रणनीति
इन खतरों को देखते हुए ये बेहद प्रासंगिक हो गया है कि इस दिशा में वैश्विक स्तर पर कोई रणनीति बननी चाहिए. एआई को विकसित करने की जिम्मेदारी ऐसे लोगों पर पूरी तरह से नहीं छोड़ा जा सकता है, जो लोकतांत्रिक व्यवस्था में अनिर्वाचित हों, और जिनकी कोई जवाबदेही तय न हो. इसका साफ मतलब है कि AI के खतरों से निपटने के लिए सरकारी स्तर पर सामूहिक प्रयास को बढ़ावा देने की जरूरत है. एआई के विकास और इस्तेमाल पर नज़र रखने के साथ ही सोचने की भी जरूरत है और इसमें भारत की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण होने वाली है.
ब्रिटेन में साल के आखिर में होगा सम्मेलन
इस बीच अमेरिकी दौरे पर गए ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने इस साल के अंत तक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर पहली बार वैश्विक शिखर सम्मेलन करने की योजना को लेकर घोषणा की है. इस सम्मेलन में दुनिया के प्रमुख देशों, बड़ी-बड़ी तकनीकी कंपनियों और रिसर्चर AI से जुड़े बड़े खतरों के मूल्यांकन और निगरानी के लिए अपनाए जाने वाले सुरक्षा उपायों पर सहमति बनाने की कोशिश की जाएगा. हालांकि इस सम्मेलन में कौन-कौन देश हिस्सा लेंगे, इसे अभी ब्रिटेन ने स्पष्ट नहीं किया है. इतना तय है कि भारत इसमें जरूर रहेगा क्योंकि ऋषि सुनक चाहते हैं कि सुरक्षित और भरोसेमंद तरीके से एआई का उपयोग सुनिश्चित किया जाए, वो चाहते हैं कि इसके लिए बनने वाले अंतरराष्ट्रीय ढांचा को विकसित करने के लिए समान विचारधारा वाले सहयोगियों और कंपनियों के साथ मिलकर ब्रिटेन काम करें.
वैश्विक रणनीति बनाने में भारत करे पहल
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस भविष्य में कितना बड़ा खतरा साबित हो सकता है ये इसी बात से समझा जा सकता है कि जिन लोगों ने इसके विकास में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, अब वही लोग इसके खतरे को लेकर दुनिया को आगाह कर रहे हैं. इस बात को देखते हुए भारत भी इस दिशा में ठोस कदम उठा सकता है. भविष्य में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को लेकर कोई ठोस अंतरराष्ट्रीय ढांचा बने, जिससे इसके विकास और इस्तेमाल पर सरकारी जवाबदेही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तय हो सके. ये मुद्दा वैश्विक स्तर पर सरकारी जवाबदेही तय करने से भी जुड़ा है.
फिलहाल भारत दुनिया के सबसे ताकतवर आर्थिक समूह G20 की अध्यक्षता कर रहा है. इसमें दुनिया के करीब-करीब सभी अग्रणी देश शामिल हैं, जिनका वैश्विक व्यवस्था निर्धारित करने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका होती है. इसका सालाना शिखर सम्मेलन 9-10 सितंबर को नई दिल्ली में होना है. ऐसे में ब्रिटेन से पहले भारत के लिए ये मौका होगा कि वो विश्व बिरादरी को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के दूरगामी खतरों को लेकर वैश्विक रणनीति बनाने की दिशा आम सहमति बनाने के बारे में सोचने के लिए कहे.
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