भारत में ट्रेनों की लेटलतीफी अब होगी पुरानी बात, लगाए जा सकते हैं ऑटोमैटिक सिग्नल
रेलवे की ओर से ऑटोमेटिक सिग्नल लगाए जाएंगे. सबसे पहले बेंगलुरु शहर को 2028 तक ऑटोमेटिक सिग्नलिंग प्रणाली मिलने की संभावना है
भारतीय रेलवे यातायात के लिए अभी भी देश के बहसंख्यक यात्रियों के लिए भरोसेमंद और एकमात्र विकल्प है. यात्री इसको काफी बेहतर और सस्ता भी मानते हैं. आज भी रेलवे के माध्यम से ही सबसे अधिक और सबसे सहज तरीके से यात्रा हो पाती है. हालांकि, अक्सर सिग्नल ना होने के कारण ट्रेन आउटर में खड़ी रहती है. इससे यात्रियों को परेशानी होती है.
आज के समय में यकीनन भारतीय रेलवे अपने स्वर्णिम काल में है, अगर हम इंफ्रास्ट्रक्चर और बाकी सुधारों की बात करें, लेकिन अभी भी लेट लतीफी वाली यात्रा से जन सामान्य काफी परेशान होते हैं. इसके अलावा मालगाड़ी भी सिग्नल के कारण कई बार स्टेशनों तो कई बार आउटर पर खड़ी होती है. अब लेट लतीफी से बचने के लिए रेलवे जल्द ही एक सुधारात्मक कदम उठाने वाला है. इस क्रम में रेलवे की ओर से ऑटोमेटिक सिग्नल लगाए जाएंगे. इसके लिए सबसे पहले बेंगलुरु शहर को 2028 तक ऑटोमेटिक सिग्नलिंग प्रणाली मिलने की संभावना है.
बेंगलुरू से होगी शुरुआत
प्रस्तावित परियोजना के अनुसार,दक्षिण पश्चिम रेलवे (एसडब्ल्यूआर) ने केएसआर बेंगलुरु-यशवंतपुर-येलहंका खंड में स्वचालित सिग्नलिंग शुरू करने के लिए तैयारी शुरू कर दी है और निविदाएं जारी की हैं. अन्य मार्गों के लिए विस्तृत अनुमान तैयार किए जा रहे हैं. इससे हर 90 से 120 सेकंड के अंतराल में ट्रेनें चल सकेंगी, जो भारतीय रेलवे के यातायात को अधिक सुगम और अनुकूल बनाएगा. इस प्रस्ताव के अंतर्गत, बेंगलुरु मेट्रो रेलवे सिस्टम में एक नई तकनीकी अद्यतन की योजना बनाई गई है, जो शहर के यातायात को मजबूत करेगा.
ये नई प्रणाली अधिक उच्चतम दक्षता और सुरक्षा सुनिश्चित करेगी, साथ ही यात्रीगण को अधिक सहज और आरामदायक यात्रा का अनुभव प्रदान करेगी. ऑटोमेटेड सिग्नल सिस्टम के लागू होने से यात्रीगण को लंबे इंतजार का सामना नहीं करना होगा और यातायात का अनुभव बेहतर होगा. रेलवे बोर्ड ने पिछले साल बेंगलुरु और उसके आसपास स्वचालित सिग्नलिंग शुरू करने के लिए 874 करोड़ रुपये की परियोजना को मंजूरी दी थी. यह परियोजना 639.05 किमी तक फैले पांच मार्गों को कवर करेगी. अगर ये सफल रहा तो आने वाले समय में पूरे देश में इस सिस्टम को लागू किया जाएगा. हालांकि, सिलिकॉन सिटी के नाम से मशहूर बेंगलुरू में ही ऑटोमेटिक सिग्नल को आने में करीब 2028 तक का समय लगेगा. इसे पूरे देश में लागू होने में थोड़ा वक्त लग सकता है.
ऑटोमेटिक सिग्नल की प्रणाली
भारतीय रेलवे में सुधार के लिए ऑटोमेटिक सिग्नल प्रणाली काफी कारगर कदम साबित होगा. इससे रेलवे की लेटलतीफी के अलावा देर तक आउटर पर खड़े रहने से मुक्ति मिलेगी. इसके विपरीत, स्वचालित सिग्नलिंग एक समय में एक ब्लॉक में कई ट्रेनों को चलने की अनुमति देती है. ट्रेन की गतिविधियों को सिग्नलों द्वारा नियंत्रित किया जाता है, जो ट्रेन के उनके पास से गुजरते ही स्वचालित रूप से काम करने लगते हैं. इसमें मानवीय हस्तक्षेप बहुत कम या कोई नहीं के बराबर होगा.अगर ऑटोमेटिक रेलवे सिग्नल पर काम होने लगे तो ट्रेन को लेट में होने से मुक्ति मिलेगी. पहले ट्रेन के गुजरने के बाद करीब डेढ़ से दो मिनट के बाद दूसरी ट्रेन को ऑटोमेटिक सिग्नल हो जाएगा.
रेलवे में हुआ है अभूतपूर्व सुधार
भारतीय रेलवे में यकीनन अभूतपूर्व विकास हुआ है. भारत सरकार ने भी रेलवे को विकास को पटरी पर लाने के लिए अच्छा प्रयास किया है. पिछले दस सालों में भी रेलवे और कई छोटे स्टेशनों को बड़े स्टेशन में तब्दील किया गया है. कई बड़े शहरों से नए ट्रेन भी चलाए जा रहे हैं ताकि यात्रियों को परेशानी ना हो. देश के कई रेलवे स्टेशनों से वंदे भारत ट्रेन खुलती है. वंदे भारत ट्रेन के आने से यात्रा और भी सुगम हुई है. आने वाले कुछ सालों में बुलेट ट्रेन आने की भी उम्मीद लगाई जा रही है.कई स्टेशनों के अलावा ट्रेनों के कायाकल्प भी हो चुके हैं. बेहतर यात्रा कराने के कारण रेलवे विभाग में राजस्व भी बढ़ा है.
वित्तीय वर्ष 2022-23 में 2.23 लाख करोड़ रूपये और वित्तीय वर्ष 2.40 लाख करोड़ रूपये का राजस्व आया है. इससे जाहिर होता है कि आने वाले समय भारतीय रेलवे स्वर्णिम काल रहने वाला है. भारत ने अभी तक कुल 90 प्रतिशत रेलवे ट्रैक का विद्युतीकरण का कार्य भी पूरा कर लिया है. भारत 100 प्रतिशत रेलवे के विद्युतीकरण होने के साथ ग्रीन एनर्जी के साथ यात्रा करने वाला दुनिया का पहला देश बन जाएगा. भारत में भारत 68,043 किलोमीटर में से 61,508 किलोमीटर यानी की करीब 90 प्रतिशत के आसपास विद्युतीकरण का कार्य पूरा हुआ है.