India Pacific Islands Cooperation: इंडो-पैसिफिक रीजन में में भारत फिलहाल उस स्थिति में है, जिसमें उसकी अहमियत पूरी दुनिया के लिए बढ़ जाती है. भारत की भी लगातार कोशिश है कि इन क्षेत्रों में एक ऐसा माहौल बना रहे, जिससे कोई भी देश अपने आक्रामक रवैये के जरिए विस्तारवादी मंशा को पूरा नहीं कर पाए.
इन द्वीपीय देशों पर अमेरिका और चीन का अच्छा खासा प्रभाव रहा है. हालांकि धीरे-धीरे ये सारे देश अमेरिका और चीन के मंसूबों को समझने लगे और अब भारत के साथ संबंधों को प्रगाढ़ करना चाहते हैं. इस लिहाज से प्रशांत या पैसिफिक द्वीपीय देशों का महत्व काफी बढ़ जाता है. इस रीजन में आने वाले 14 छोटे-छोटे देश सामरिक लिहाज से काफी अहमियत रखते हैं.
हिंद-प्रशांत द्वीपीय सहयोग मंच की बैठक
प्रशांत द्वीपीय देशों के सामरिक महत्व को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पापुआ न्यू गिनी की यात्रा की. ये पहला मौका था जब किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने इस देश की यात्रा की थी. प्रधानमंत्री मोदी 21 मई को यहां पहुंचे थे. उन्होंने 22 मई को हिंद-प्रशांत द्वीपीय सहयोग मंच (FIPIC) के तीसरे शिखर सम्मेलन में हिस्सा लिया. भारतीय प्रधानमंत्री की ओर से ये कदम इंडो-पैसिफिक रीजन में भारत की उपस्थिति को बढ़ाने और प्रभावी बनाने के लिए लिहाज से एक बड़ा कूटनीतिक कदम है.
भारत को बताया भरोसेमंद साझेदार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन छोटे-छोटे प्रशांत द्वीपीय राष्ट्रों को भरोसा दिलाया कि भारत इनका भरोसेमंद साझेदार है. चीन का बिना नाम लिए उन्होंने ये भी जता दिया कि आप पहले जिनको भरोसेमंद मानते थे, जरूरत पड़ने पर वे आपके साथ कभी नहीं खड़े थे. भारत को विश्वसनीय साझेदार के तौर पर पेश करते हुए पीएम मोदी नेये भी भरोसा दिया कि नई दिल्ली बिना किसी संकोच के हर प्रकार से उन देशों के साथ न सिर्फ साथ देगा, बल्कि भारत अलग-अलग क्षेत्रों में अपनी महारत को उनके साथ साझा भी करने के लिए तैयार है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने FIPIC शिखर सम्मेलन में इस रीजन के लिए 12-बिंदु विकास कार्यक्रम का भी अनावरण किया, जिसमें स्वास्थ्य सेवा, साइबर स्पेस, स्वच्छ ऊर्जा, जल और छोटे-मझोले उद्योगों पर फोकस किया गया है.
हमेशा भारत करते आया है मदद
कोविड महामारी के वक्त भारत ने इन प्रशांत द्विपीय देशों की खुले मन खूब मदद की थी. कोविड महामारी के वक्त भारत ने इन देशों को वैक्सीन, दवाईयां, गेहूं से लेकर चीनी जैसी छोटी से लेकर बड़ी जरूरतों को पूरा करने में खूब मदद की थी. इस बात का जिक्र करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि भारत छोटे-छोटे देशों की प्राथमिकताओं को भी उतनी अहमियत देता है और सहयोग के लिए निजी स्वार्थ से ज्यादा मानवीय मूल्यों को ज्यादा महत्व देता है.
चीन इन देशों पर बढ़ाना चाहता है प्रभाव
भारत के साथ-साथ पूरी दुनिया के लिए स्वतंत्र और मुक्त इंडो-पैसिफिक रीजन बेहद जरूरी है, जहां हर देश अंतरराष्ट्रीय कानूनों का सम्मान करे और बेरोकटोक आवाजाही सुनिश्चित हो सके. इस मायने से भी प्रशांत द्वीपीय देशों की भौगोलिक स्थिति चीन और अमेरिका की तरह ही भारत के लिए भी सामरिक महत्व रखता है. साथ ही साथ ये प्रशांत द्वीपीय देशों की संप्रभुता और अखंडता को बनाए रखने के लिए जरूरी है. चीन इन इलाकों में लगातार आक्रामक रवैया अपना रहा है. चीन इसके लिए कर्ज देने के साथ ही कई और तरीकों से प्रशांत द्वीपीय देशों पर अपना प्रभाव बढ़ा रहा है.
भारत का संबंधों को बढ़ाने पर ज़ोर
भारत चाहता है कि ये सारे देश चीन के प्रभाव या फिर कहें झांसे में न आएं क्योंकि इसके जरिए चीन पैसिफिक रीजन में अपना सैन्य दबदबा बढ़ाने की मंशा को पूरा कर सकता है. यहीं वजह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन देशों से कहा है कि भारत के लिए आप छोटे द्वीपीय राष्ट्र नहीं है, बल्कि बड़े महासागरीय देश हैं. पैसिफिक ओशन ही भारत को इन देशों से जोड़ता है. संबंधों को प्रगाढ़ करने के लिए भारत की ओर से आश्वस्त करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट कर दिया कि भारत पूरे विश्व को एक परिवार के तौर पर देखता है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस दौरे पर भारत की ओर से 14 प्रशांत द्वीपीय देशों के लिए कुछ घोषणाएं की गई, जो इस प्रकार हैं:
- स्वास्थ्य सेवा, साइबर स्पेस, स्वच्छ ऊर्जा, जल और छोटे-मझोले उद्योगों के लिए 12 बिन्दु विकास कार्यक्रम
- फिजी में एक सुपर-स्पेशलिटी कार्डियोलॉजी अस्पताल की स्थापना, भारत सरकार इसका पूरा खर्च उठाएगी
- सभी 14 प्रशांत द्वीपीय देशों में डायलिसिस यूनिट लगाने में मदद
- सभी देशों के लिए समुद्री एम्बुलेंस सेवा
- साइबर स्पेस में भारत की ओर से नयी विकास पहलों की श्रृंखला
- किफायती दाम पर दवाएं मिल सके, इसके लिए प्रशांत द्वीपीय राष्ट्रों में जन औषधि केंद्र खोलने की घोषणा
- सभी 14 प्रशांत द्वीपीय देशों में योग केंद्र खोले जाने का प्रस्ताव
- हर प्रशांत द्वीपीय देश में छोटे और मध्यम उपक्रम क्षेत्र के विकास के लिए परियोजना
- पानी की कमी की समस्या को हल करने के लिए हर प्रशांत द्वीपीय देश को विलवणीकरण (Desalination) इकाइयां मुहैया कराने की घोषणा
- पापुआ न्यू गिनी में 'सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फोर आईटी' को उन्नत किया जाएगा
- प्रशांत द्वीपीय देशों की कम से कम एक सरकारी इमारत को सोलर ऊर्जा युक्त इमारत में बदला जाएगा
प्रशांत द्वीपीय देशों को मदद जारी रखने का भरोसा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि जब भी दुनिया में कोई आपदा आता है तो, उसका सबसे ज्यादा प्रभाव अल्पविकसित देशों को झेलना पड़ता है. द्वीपीय देश पहले से ही जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक आपदा, भुखमरी, गरीबी और स्वास्थ्य से जुड़ी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. इन देशों को अब खाद्य, ईंधन, उर्वरक और औषधि की आपूर्ति को लेकर भी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. भारत ने इन चुनौतियों से निपटने में सभी प्रशांत द्वीपीय देशों को मदद जारी रखने का भरोसा दिया है.
ग्लोबल साउथ की आवाज़ बनकर उभरा है भारत
छोटे-छोटे देशों की चिंताओं और उनकी आवाज को संयुक्त राष्ट्र जैसे वैश्विक संस्थानों में तवज्जो नहीं दिया जाता है. भारत का हमेशा से ये मानना रहा है कि ग्लोबल साउथ की आवाज़ को भी उतना ही महत्व मिलना चाहिए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन देशों को भरोसा यूएन जैसी संस्थाओं में सुधार भारत और द्वीपीय देशों की साझा प्राथमिकता होगी. उन्होंने द्वीपीय देशों को इस बात से भी अवगत कराया कि क्वाड की हिरोशिमा में हुई बैठक में पलाऊ में रेडियो एक्सेस नेटवर्क (RAN) स्थापित करने का फैसला किया गया है.
भारत लगातार अल्प विकसित देशों की बुलंद आवाज बनकर उभरा है. जी 20 अध्यक्ष के तौर पर भी भारत इस मुद्दे को लगातार उठा रहा है. इस साल जनवरी में भारत में वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ समिट का आयोजन भी किया गया था, जिसमें बाकी गरीब और कम विकसित देशों के अलावा प्रशांत द्वीपीय देशों के प्रतिनिधियों ने भी हिस्सा लिया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा है कि भारत जी 20 के जरिए 'ग्लोबल साउथ' की चिंताओं, अपेक्षाओं और आकांक्षाओं से दुनिया को रूबरू करना अपना कर्तव्य समझता है.बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर पापुआ न्यू गिनी की यात्रा को ऐतिहासिक बताया.
2014 में FIPIC की हुई थी शुरुआत
भारत 'एक्ट ईस्ट' नीति के तहत 14 प्रशांत द्वीपीय देशों (PIC) के साथ जुड़ाव और सहयोग को बढ़ा रहा है. इन देशों में कुक आइलैंड्स, फिजी, किरिबाती, मार्शल आइलैंड्स, माइक्रोनेशिया, नाउरू, नीयू, पलाऊ, पापुआ न्यू गिनी, समोआ, सोलोमन आइलैंड्स, टोंगा, तुवालु और वानुअतु. इन देशों के साथ भारत के संबंधों को मजबूत करने के लिए Forum for India–Pacific Islands Cooperation (FIPIC) की शुरुआत 2014 में की गई थी. इसकी पहली बैठक नवंबर 2014 में फिजी की राजधानी सुवा में हुई थी, जिसमें शामिल होने के लिए उस वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फिजी की यात्रा की थी. वहीं इसका दूसरा शिखर सम्मेलन 21 अगस्त 2015 को जयपुर में हुआ था, जिसमें ये सभी 14 प्रशांत द्वीपीय देश शामिल हुए थे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा को लेकर इन देशों का उत्साह देखते ही बना. जहां पापुआ न्यू गिनी के प्रधानमंत्री जेम्स मरापे ने प्रधानमंत्री मोदी का पैर छूकर आशीर्वाद लिया. पापुआ न्यू गिनी और फिजी ने अपने देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सम्मानित किया. वहीं पलाऊ ने पीएम मोदी को सम्मानित किया. पापुआ न्यू गिनी के प्रधानमंत्री जेम्स मरापे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ग्लोबल साउथ का लीडर बताया और वैश्विक मंचों पर भारत का समर्थन करने का भरोसा दिया. ग्लोबल साउथ में दुनिया के करीब 100 देश आते हैं. ये शब्द वैसे देशों के लिए इस्तेमाल होता है, जो अल्प विकसित या फिर कहें गरीब देश हैं.
चीन के दबदबे की काट हैं प्रशांत द्वीपीय देश
जिस तरह से इन देशों का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा को लेकर प्रतिक्रिया और उत्साह दिखा, उससे जाहिर है कि आने वाले दिनों में इन देशों पर चीन का प्रभाव धीरे-धीरे कम होते जाएगा और भारत पर भरोसा बढ़ते जाएगा. ये इंडो पैसिफिक रीजन में शांति और समृद्धि के लिए खतरा चीन के वर्चस्व वाली रणनीति की एक वैश्विक काट है. साथ ही इससे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की रणनीतिक मौजूदगी भी मजबूत होगी.
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