Bhutan King India Visit: भारत का अपने पड़ोसी देश भूटान के साथ हमेशा से बहुत ही सौहार्दपूर्ण संबंध रहा है. हालांकि चीन लगातार भूटान पर कूटनीतिक दबाव बनाने की कोशिश करते रहा है. इस नीति के तहत ही चीन डोकलाम के मुद्दे पर भूटान को जरिया बनाकर भारत पर बढ़त बनाने की कवायद में रहता है.
इस बीच भूटान के राजा जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक (Jigme Khesar Namgyel Wangchuck) के भारत दौरे से द्विपक्षीय संबंधों में और प्रगाढ़ता आएगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 4 अप्रैल को दिल्ली में भूटान नरेश जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक के साथ वार्ता की. इस दौरान दोनों के बीच आपसी हितों से जुड़े मुद्दों पर विस्तार से चर्चा हुई. दोनों ने उन आयामों पर भी बातचीत की जिसके जरिए द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत किया जा सकता है. इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भूटान के आर्थिक और सामाजिक विकास में भारतीय सहायता को जारी रखने की प्रतिबद्धता को फिर से दोहराया.
भूटान नरेश की यात्रा का रणनीतिक महत्व
मुलाकात के बाद खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर जानकारी दी. उन्होंने कहा कि हम दोनों के बीच काफी गर्मजोशी से सार्थक बातचीत हुई. इस ट्वीट में प्रधानमंत्री मोदी ने द्रुक ग्यालपो (Druk Gyalpos) का भी जिक्र किया. उन्होंने कहा कि हम भारत-भूटान संबंधों को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए अपनी घनिष्ठ मित्रता और द्रूक ग्यालपो के विजन को अत्यधिक महत्व देते हैं. दरअसल द्रूक ग्यालपो भूटान साम्राज्य के हेड ऑफ स्टेट को कहते हैं, जो वहां के नरेश को ये उपाधि हासिल होता है.
भूटान के विकास में भारत है भरोसेमंद साथी
भूटान नरेश जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक ने 4 अप्रैल को ही राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से भी मुलाकात की. इस दौरान राष्ट्रपति ने कहा कि भारत अपने घनिष्ठ मित्र और पड़ोसी भूटान को मजबूती के साथ समर्थन देते रहेगा. साथ ही राष्ट्रपति ने ये भी कहा कि भारत, भूटान की सरकार और लोगों की प्राथमिकताओं के अनुरूप आपसी साझेदारी को और मजबूत बनाएगा. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि इस साल भूटान सबसे कम विकसित देश (LDC) की कैटेगरी से आगे बढ़ने के लिए तैयार है और एक उच्च आय वाली अर्थव्यवस्था बनने की राह पर चल पड़ा है. उन्होंने कहा कि भारत इस यात्रा में भूटान का विश्वसनीय भागीदार बना रहेगा.
द्विपक्षीय संबंधों में प्रगति का जायजा
भारत ने माना है कि भूटान नरेश का ये दौरा दोस्ती और सहयोग के अनोखे रिश्ते को आगे बढ़ाने का परिचायक है. भारतीय विदेश मंत्रालय ने इसे द्विपक्षीय संबंधों में प्रगति का जायजा लेने का अवसर बताया है. पीएम मोदी और भूटान नरेश के बीच बातचीत का ब्यौरा विदेश सचिव विनय क्वात्रा ने दिया. उन्होंने कहा कि ये यात्रा अलग-अलग क्षेत्रों में भारत और भूटान के सहयोग के दायरे को और बढ़ाने का खाका तैयार करती है. विदेश मंत्रालय ने बयान में कहा था कि भूटान नरेश की यात्रा दोनों देशों के बीच लंबे समय से उच्च स्तरीय आदान-प्रदान की परंपरा के तहत हो रही है.
डोकलाम के मुद्दे पर भी है नज़र
क्या पीएम मोदी और भूटान नरेश के बीच बातचीत में डोकलाम का भी मुद्दा उठा था, इस सवाल के जवाब में विदेश सचिव विनय क्वात्रा ने कहा कि भारत और भूटान सुरक्षा से जुड़े हर मुद्दे पर करीबी संपर्क में बने हुए हैं. चीन भूटान पर लगातार प्रभाव बढ़ाने का प्रयास कर रहा है. भारत पूर्वी सीमा से जुड़े जगहों को लेकर चिंतित भी है. हाल ही में ऐसी खबरें भी आई थी कि भूटान के प्रधानमंत्री लोटे शेरिंग ने कहा था कि डोकलाम विवाद के समाधान में चीन की भी भूमिका है. लोटे शेरिंग के बयानों को कुछ जानकार इस तौर से देख रहे थे कि भूटान का झुकाव चीन के प्रति बढ़ रहा है. हालांकि इन बातों पर विराम लगाते हुए भूटान की ओर से प्रतिक्रिया आई थी कि सीमा विवाद पर उसके रुख में कोई बदलाव नहीं आया है. ऐसे हालात में भूटान नरेश की नई दिल्ली की यात्रा बेहद महत्वपूर्ण है.
भूटान नरेश राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के न्योते पर 3 अप्रैल को दिल्ली पहुंचे थे. खुद विदेश मंत्री एस जयशंकर ने दिल्ली हवाई अड्डे पर भूटान नरेश की अगवानी की थी. ये दिखाता है कि भूटान नरेश की ये यात्रा भारत के लिए कितना महत्वपूर्ण है. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने तीन अप्रैल को शाम में भूटान नरेश से मुलाकात की थी. उन्होंने कहा था कि भूटान के भविष्य और भारत के साथ अनूठी साझेदारी को मजबूत करने के लिए नरेश जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक के दृष्टिकोण की हमेशा सराहना की जाती है.
सामरिक नजरिए से भूटान है महत्वपूर्ण
ये हम सब जानते हैं कि भारत के लिए हिमालयी देश भूटान सामरिक तौर से बेहद महत्वपूर्ण देश है. दोनों देशों के बीच रक्षा और सुरक्षा संबंध लगातार मजबूत ही हुए हैं. पूर्वी क्षेत्र में चीन के साथ सीमा विवाद के नजरिए से भूटान की अहमियत और बढ़ जाती है. डोकलाम पठार भारत के सामरिक हित के लिहाज से एक महत्वपूर्ण इलाका है. 2017 में डोकलाम में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच 73 दिनों तक टकराव की स्थिति बनी रही थी. डोकलाम ट्राई-जंक्शन पर 2017 में भारत-चीन के बीच तनातनी तब शुरू हुआ था जब चीन उस इलाके में सड़क विस्तार करने का प्रयास कर रहा था, जिसके बारे में भूटान ने दावा किया था कि वो इलाका उसके सीमा में आता है. उस वक्त भारत ने चीन के इस प्रयास का सख्त विरोध किया था. इस घटना के बाद भारत और भूटान के बीच सामरिक संबंधों को और मजबूत करने पर ज़ोर रहा है.
चीन लगातार बना रहा है भूटान पर दबाव
हालांकि भारत के लिए चिंता उस वक्त बढ़ गई थी, जब अक्टूबर 2021 में भूटान और चीन ने अपने सीमा विवाद को हल करने के लिए बातचीत में तेजी लाने का फैसला किया था और इसके लिए 'तीन चरणीय कार्ययोजना' से जुड़े करार पर समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. भूटान चीन के साथ 400 किलोमीटर से अधिक लंबी सीमा साझा करता है और दोनों देशों ने विवाद को हल करने के लिए सीमा वार्ता के 24 से अधिक दौर आयोजित किए हैं. भारत चाहता है कि भूटान और चीन के बीच सीमा विवाद का जो भी समाधान निकले, उससे भारतीय हितों पर कोई आंच नहीं आनी चाहिए. चीन अगर इस तरह की कोई भी कोशिश करता है, तो ये भारत के लिहाज से सही नहीं होगा. यही वजह है कि भारत लगातार भूटान से अपनी चिंताओं को अवगत कराते रहा है. इससे पहले विदेश सचिव विनय क्वात्रा ने इस साल जनवरी में भूटान की यात्रा की थी. इस दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री से मुलाकात कर डोकलाम से जुड़े खतरों से भूटान को अवगत कराया था.
भूटान-चीन वार्ता पर भारत की नज़र
हिमालयी देश भूटान, भारत और चीन के बीच अवस्थित है. भारत के लिए ये जरूरी है कि वो भूटान-चीन के बीच सीमा विवाद को सुलझाने के लिए हो रही वार्ता पर बारीकी से नज़र रखे. दरअसल आपसी समझ के मुताबिक चीन उत्तर में अपने क्षेत्र का कुछ हिस्सा भूटान को दे सकता है और उसके एवज में भूटान अपने पश्चिम क्षेत्र से कुछ हिस्सा चीन को दे सकता है. भूटान के इसी इलाके में डोकलाम का हिस्सा भी आता है. ऐसे में अगर चीन किसी भी तरह से डोकलाम पर नियंत्रण हासिल करने में कामयाब हो जाता है, इससे चीन की पहुंच उत्तर-पूर्वी हिस्से तक आसान हो जाएगी. ये इलाका चिकन नेक (Chicken’s Neck) वाले क्षेत्र में आता है, जिसे हम सब सिलीगुड़ी कॉरिडोर के नाम से भी जानते हैं. भारत कतई नहीं चाहेगा कि भूटान सीमा विवाद के समाधान में डोकलाम के इलाकों पर चीन के नियंत्रण को स्वीकार कर ले. अगर ऐसा हो जाता है तो फिर बीजिंग को भारत पर कूटनीतिक लाभ मिल सकता है.
जलविद्युत सहयोग द्विपक्षीय संबंधों की आधारशिला
ये भी वास्तविकता है कि भूटान के लिए भारत की अहमियत बाकी किसी किसी भी देश की तुलना में काफी ज्यादा है. भारत भूटान का लंबे वक्त से सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार रहा है. भूटान में भारत का बड़े पैमाने पर निवेश भी है. दोनों देशों के बीच आपसी रिश्तों की मजबूती में जलविद्युत सहयोग एक अहम कड़ी है. हम कह सकते हैं कि पनबिजली परियोजनाएं भारत-भूटान संबंधों की आधारशिला हैं. भारत और भूटान 600 मेगावाट की खोलोंगछु हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट लिमिटेड ( KHEL)पर तेजी से काम करने पर पिछले ही साल राजी हुए हैं. इस परियोजना के 2025 तक पूरा होने की उम्मीद है.
भूटान के विकास में सबसे बड़ा सहयोगी
भारत न सिर्फ भूटान का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, बल्कि भूटान के विकास में सहयोग देने वाला भी सबसे बड़ा सहयोगी है. भारत ने ग्यालसुंग इंफ्रा परियोजना (Gyalsung Infra Project) के लिए 2 अरब रुपये की आर्थिक मदद दी है. इसके तहत फरवरी के आखिर में भूटान में भारत के राजदूत सुधाकर दलेला (Sudhakar Dalela) ने परियोजना निदेशक को 1 अरब रुपये की अनुदान सहायता की पहली किस्त भेंट की थी. ग्यालसुंग परियोजना भूटान के नरेश की ओर से एक पहल है, जिससे भूटान के भविष्य के लिए एक मजबूत नींव तैयार किया जा सके और इसमें भारत बढ़-चढ़कर मदद कर रहा है.
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