बांग्लादेश में फिलहाल विपक्षी दल भारत के बहिष्कार की अपील कर रहे हैं. वहां की विपक्षी पार्टी बीएनपी के संयुक्त सचिव फारूकी ने अपना कश्मीरी शॉल फेंक दिया है, लेकिन वहां की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने कहा है कि विपक्ष के नेता फिलहाल अपने कार्यालय के बाहर अपनी पत्नियों की साड़ियां जलाकर शुरुआत करें, जो भारत की हैं, वहां से खरीदी गयी हैं. बांग्लादेश के विपक्षी नेताओं का यह बयान मजहबी कट्टरता और अव्यावहारिकता से उपजा है. उनको भारत पर बांग्लादेश की निर्भरता को समझना चाहिए और उसी अनुरूप बरतना चाहिए. 


भारत-बांग्लादेश की जड़ें एक


भारत और बांग्लादेश एक ही पारिस्थितिकीय-तंत्र के उत्पाद हैं. हमारी आपस में जटिल किस्म की पारस्परिक निर्भरता है. हमारे सभ्यतागत, सांस्कृतिक, खानपान संबंधी बातें हों या ओढ़ना-बिछाना सब कुछ मिलता है. चाहे वह हमारा बंगाल हो या बांग्लादेश. यह ठीक है कि भारत का पश्चिम बंगाल हिंदू बहुल है और बांग्लादेश मुस्लिम बहुल. जहां तक भारत के पक्ष और विरोध की बात है, उसे इस दृष्टिकोण से देखना चाहिए कि बांग्लादेश का जो सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य है, वह क्षैतिज तौर पर दो तरह से विभाजित है, दो वर्गों में है, दो ताकतें हैं. एक वर्ग है जो नस्ली और सभ्यतागत समानता के आधार पर भारत को समान मानता है और वह एक सकारात्मक और प्रशंसात्मक रुख रखता है. उसको हम सेकुलर-डेमोक्रेटिक ताकत कह सकते हैं. वे बंगाली राष्ट्रवाद की बात करते हैं और इसको अवामी लीग का साथ मिलता है. दूसरी जो ताकत है, वह मजहब के आधार पर राजनीतिक करते हैं और पाकिस्तान के साथ खुद को सहज मानते हैं. इसको बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) और खालिदा जिया का नेतृत्व मिला हुआ है. ये कट्टरपंथी राजनीति करते हैं और उसका राजनीतिक फायदा भी उठाते हैं. ये ही समय-समय पर एक जुमले के तौर पर भारत विरोध को गढ़ते हैं. ये 1947 से ही साफ-साफ दिखता है. बंगाल में एक वर्ग संस्कृति की बात करता है, तो दूसरी मजहब की. 1975 में दोबारा वहां सैन्य शासन आ गया और वह पाकिस्तान की राह पर ही चलने लगा. 


अवामी लीग चमका रही राजनीति


अभी जो ये मसला उठा है, उसे इसी परिदृश्य में देखना चाहिए कि जो विपक्ष है बांग्लादेश में, बीएनपी की खालिदा जिया और उनका बेटा तारिक रहमान लंदन में बैठकर चला रहा है, वे राजनीतिक रूप से क्षीण हो चुके हैं. वे अपनी सत्ता के लिए इस तरह के वाहियात जुमले दे रहे हैं. वे बस नकल कर रहे हैं. अभी जैसे मालदीव ने 'इंडिया आउट' का नारा दिया, तो बांग्लादेश में भी लगा कि वे भी कुछ ऐसा कर सकते हैं. दक्षिण एशिया में ये चलता रहा है. श्रीलंका में राजपक्षे बंधु हों, नेपाल में केपी ओली हों, उन्होंने यही कार्ड खेला. वे चीन को करीब लाए और भारत से दूरी बरतने की कोशिश की. ये शुद्ध राजनीतिक मोलभाव का कदम था. उसी तरह के जुमले अब खालिदा जिया दे रही हैं. हकीकत अलग है. 


बांग्लादेश के लिए भारत अपरिहार्य


जो बांग्लादेश में मूल्य है, खासकर रोजाना उपभोग की वस्तुओं का, वह आसमान छूने लगेगा, अगर भारत विरोध को अमली जामा पहनाया जाए. प्याज, लहसुन से लेकर दाल और मसालों तक पर बांग्लादेश इसलिए मूल्य नियंत्रण कर पाता है, क्योंकि भारत उसको ये मुहैया कराता है. वह बंद होते ही मुद्रास्फीति आसमान छूने लगेगी. वह 30 फीसदी तक बढ़ जाएगी. फिर, उनका हाल वही होगा जो श्रीलंका  का हुआ था और वहां खाद्यान्न संकट उठ खड़ा हुआ. उसी तरह की परिस्थिति पाकिस्तान में भी हुई है. इसके अलावा, बांगलादेश जो अभी विकास का दम भर रहा है, मजबूत अर्थव्यवस्था की जो बात कर रहा है, उसमें जो भी विकास की परियोजनाएं हैं, चाहे वह चीन-जापान या भारत से समर्थित हो, उसका सारा कच्चा माल भारत से ही जाता है. वह बंद होते ही बांग्लादेश की सारी कहानी हवाई बन जाएगी. इसके अलावा जो कपड़ों का उद्योग है, जो जूट है, उसमें भी बहुत सारा कच्चा माल भारत से ही जाता है. विदेशी मुद्रा का 70 फीसदी भंडार इसी रेडिमेड-एक्सपोर्ट से बांग्लादेश बनाता है और इस पर भी बुरा प्रभाव पड़ेगा. अंतिम बात यह कि बांग्लादेश के जो उद्योग-धंधे हैं, वे जिस बिजली पर आश्रित हैं, भारत उसमें से 1400-1500 मेगावाट बिजली की आपूर्ति करता है. इसको बढ़ाकर 2200 मेगावाट करने की बात है. भारत का अगर बहिष्कार करेंगे तो बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था पेंदे में चली जाएगी, पाकिस्तान से बुरा हाल हो जाएगा. यह बात प्रधानमंत्री शेख हसीना जानती हैं. 


राजनैतिक जुमलेबाजी और सच्चाई में अंतर


अभी की विपक्षी नेता खालिदा जिया जब 2001 से 2006 तक बांग्लादेश की प्रधानमंत्री थीं, तो भारत और बांग्लादेश के व्यापार में जोरदार वृद्धि हुई थी. इसी को जटिल-परस्पर निर्भरता कहते हैं. भारत को भी बांग्लादेश की जरूरत है, लेकिन बांग्लादेश को भारत की अधिक जरूरत है. भारत अपने उत्तर-पूर्व का विकास करना चाहता है और वह बांग्लादेश से सटा हुआ है, तो जब तक बांग्लादेश का विकास नहीं होगा, हमारा उत्तर-पूर्व भी विकसित नहीं होगा. हमने उसको अपने विकास के साझीदार के तौर पर देखा है. भारत एक्ट ईस्ट पॉलिसी पर काम कर रहा है, तो अगर बांग्लादेश से हमारे संबंध ठीक हुए तो म्यांमार सहित दक्षिण एशिया में भी हमारी ताकत बढ़ेगी. 


जो राजनैतिक फायदे के लिए कुछ देश अपनी जनता को यह जरूर बताते हैं कि भारत एक क्षेत्रीय ताकत है और हमलोगों की ताकत उसके समानुपातिक नहीं है, इसलिए चीन को दक्षिण एशिया में लाया जाए, ताकि वह भारत को काउंटर कर सके. यही काम राजपक्षे ने किया, मालदीव ने मोइज्जु ने किया, नेपाल में केपी ओली ने किया. वे यह सोचते हैं कि चीन निवेश करेगा, उसके बीआरआई प्रोजेक्ट के सहारे इन देशों में धन आएगा, लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि चीन का विस्तारवाद किसी अजगर की तरह देशों को लील जाने को तैयार बैठा है. श्रीलंका का हाल सबने देखा है, पाकिस्तान का हम देख रहे हैं. यह बात शेख हसीना की सरकार भी जानती है औऱ वे फूंक-फूंक कर कदम उठा रहे हैं. बांग्लादेश ने अपने पोर्ट को देने से चीन को मना कर दिया, वे संवेदनशील क्षेत्रों में भी चीन हो या जापान किसी को भी प्रतिकूल प्रभाव नहीं पैदा करने देती. भारत के साथ वे जानते हैं कि रणनीतिक साझेदारी हो, विकास की बात हो या दोस्ती का मामला हो, भरोसा तो भारत पर ही किया जा सकता है, चीन पर नहीं.