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इंडो-पैसिफिक रीजन में भारत के लिए चुनौती और वियतनाम को INS कृपाण देना, डिप्लोमैटिक महत्व को समझें

INS KIRPAN TO Vietnam: वियतनाम इंडो-पैसिफिक रीजन में भारत का पसंदीदा रक्षा साझेदार है. इस रीजन में चीन के आक्रामक रवैये के लिहाज से भारत-वियतनाम की दोस्ती काफी महत्वपूर्ण हो जाती है.

India Vietnam Relations: चीन के साथ भारत का संबंध जून 2020 में गलवान घाटी में संघर्ष के बाद काफी बिगड़ गया है. इसके साथ ही इंडो पैसिफिक रीजन में चीन के आक्रामक रुख से भी इस क्षेत्र में भारत के लिए सुरक्षा चुनौतियां बढ़ी हैं. ऐसे में भारत इस रीजन में मित्र देशों के साथ रक्षा साझेदारी को मजबूत करने में जुटा है. इनमें से एक देश वियतनाम है. वियतनाम की इंडो-पैसिफिक रीजन में भौगोलिक स्थिति भारत के लिए उसके सामरिक महत्व को काफी बढ़ा देता है.

वियतनाम को उपहार 'आईएनएस कृपाण'

वियतनाम से संबंधों को मजबूत करते हुए भारत ने 22 जुलाई को मिसाइल से लैस युद्धक पोत 'आईएनएस कृपाण' को वियतनाम को सौगात के तौर पर दिया है. इसके लिए वियतनाम के कैम रॉन में समारोह का आयोजन किया गया. इस समारोह की अध्यक्षता वियतनाम की यात्रा पर गए नौसेना प्रमुख एडमिरल आर हरि कुमार ने की. भारत ने इस युद्धक पोत को पूरी हथियार प्रणाली के साथ वियतनाम की नौसेना (VPN) को सौंपा है. एडमिरल आर हरि कुमार ने इस पहल को भारत और वियतनाम के बीच गहरी दोस्ती और सामरिक साझेदारी का प्रतीक बताया.

पहली बार किसी मित्र देश के साथ ऐसी पहल

आईएनएस कृपाण को वियतनाम को उपहार स्वरूप दिया जाना ऐतिहासिक भी है. ये पहला मौका है जब भारत ने किसी मित्र देश को पूरी तरह से परिचालनरत यानी काम करता हुआ युद्धक पोत दिया है. जब से भारत जी 20  अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभाल रहा है, तब से जी 20 का नजरिया 'वसुधैव कुटुंबकम-एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य' रहा है. वियतनाम को आईएनएस कृपाण देना उसी नजरिया का एक उदाहरण है. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने जून में घोषणा की थी कि आईएनएस कृपाण को उपहार स्वरूप वियतनाम को दिया जाएगा. ये पोत 28 जून को भारत से वियतनाम के लिए रवाना हुआ था. ये युद्धक पोत  8 जुलाई को वियतनाम के कैम रॉन पहुंचा था.

वियतनाम का चीन के साथ क्षेत्रीय विवाद

चीन के साथ वियतनाम का क्षेत्रीय विवाद है. दोनों देशों के बीच ये विवाद साउथ चाइना सी के क्षेत्र में है. साउथ चाइना सी, वेस्टर्न पैसिफिक ओशन का हिस्सा है. इस हिस्से में चीन लगातार अपना वर्चस्व बढ़ा रहा है. इससे वियतनाम की सुरक्षा चिंताएं भी बढ़ रही है. वियतनाम की भौगोलिक स्थिति साउथ चाइना सी में ही है, वियतनाम के पूर्व में साउथ चाइना सी ही है. वियतनाम और चीन के बीच साउथ चाइना सी के द्वीप, रीफ, फिशिंग बैंक जैसे इलाकों को लेकर विवाद है. इनमें  स्प्रैटली द्वीप समूह (Spratly Islands), पैरासेल द्वीप समूह Paracel Islands), और टोंकिन की खाड़ी (Gulf of Tonkin) से जुड़े कई इलाके शामिल हैं.

चीन की कंबोडिया से बढ़ती दोस्ती पर नज़र

वियतनाम के पड़ोसी देश कंबोडिया के साथ चीन का काफी अच्छा संबंध है. कंबोडिया की भौगोलिक स्थिति, उसे गल्फ ऑफ थाईलैंड में सामरिक तौर से बेहद अहम बना देता है. कंबोडिया के साथ दोस्ती बढ़ाकर चीन इस पूरे इलाके में अपना दबदबा और बढ़ाना चाहता है. कंबोडिया उन देशों में शामिल है, जहां चीन अपने नेवी, एयरफोर्स और आर्मी की सहायता के लिए ज्यादा से ज्यादा मिलिट्री लॉजिस्टिक सेंटर बनाने की योजना पर लगातार आगे बढ़ रहा है. अतीत से ही चीन का कंबोडिया के साथ काफी बेहतर संबंध रहा है. कंबोडिया की भौगोलिक स्थिति का लाभ उठाकर चीन साउथ चाइना सी और गल्फ ऑफ थाईलैंड में अपना प्रभाव बढ़ना चाह रहा है. गल्फ ऑफ थाईलैंड में मौजूद कंबोडिया के रियम नौसैनिक ठिकाने को (Ream naval base) चीन के सैन्य अड्डे में बदले जाने की खबरें आते रही हैं. अमेरिका के रक्षा विभाग ने इसकी पुष्टि भी की थी.

वियतनाम की सुरक्षा चिंता होगी कम

जिस तरह से गल्फ ऑफ थाईलैंड चीन का प्रभाव बढ़ रहा है, उससे वियतनाम के लिए सुरक्षा चिंता लगातार बढ़ रही हैं. भारत के साथ दोस्ती और रक्षा सहयोग बढ़ने से वियतनाम के लिए चीन से जुड़ी सुरक्षा चिंता  कम होंगी. आईएनएस कृपाण के मिलने से वियतनाम की ताकत साउथ चाइना सी और गल्फ ऑफ थाईलैंड दोनों में बढ़ेगी. इससे रीजन में मुक्त और खुला समुद्री मार्ग बनाए रखने में भी मदद मिलेगी. सबसे जरूरी ये है कि दक्षिण चीन सागर और गल्फ ऑफ थाईलैंड में चीन की बढ़ती सैन्य ताकत से जुड़ी सुरक्षा चिंताओं को दूर करने में वियतनाम को इससे लाभ होगा.

वहीं भारत हमेशा से चाहता है कि इंडो-पैसिफिक रीजन में अंतरराष्ट्रीय कानूनों का पालन हो और समुद्री व्यापार में किसी भी देश को कोई अड़न न आए. हालांकि चीन का जो रवैया है, वो स्वतंत्रता, न्याय और नियम-आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के सिद्धांतों के खिलाफ है.  चीन लगातार दक्षिणी चीन सागर, वेस्टर्न पैसिफिर ओशन और इंडियन ओशन  में अपनी मौजूदगी बढ़ा रहा है. इस नजरिए से इन क्षेत्रों में आने वाले मित्र देशों के साथ भारत का सहयोग बढ़ाना डिप्लोमेटिक जरूरत भी है. वियतनाम के साथ द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने से इस रीजन में चीन से जुड़ी चिंता को कम करने में भारत को मदद मिलेगी.

भारत-आसियान जुड़ाव में वियतनाम की भूमिका

भारत का आसियान देशों के साथ संबंध पिछले कुछ सालों में काफी मजबूत हुए हैं. इसमें वियतनाम के साथ भारत की दोस्ती की भी भूमिका रही है. वियतनाम दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संगठन आसियान का एक महत्वपूर्ण सदस्य है. आईएनएस कृपाण को लेकर भारत की पहल दोनों देशों की नौसेना के बीच हाई लेवल की द्विपक्षीय रक्षा साझेदारी को दिखाता है. साथ ही ये इस बात का भी प्रमाण है कि भारत की विदेश नीति में आसियान में शामिल मित्र देशों के हितों को भी प्राथमिकता दी जा रही है. इस पहल से भारत के 'एक्ट ईस्ट' नीति और इस रीजन में सभी के लिए सुरक्षा और विकास (सागर) की नीतियों को वास्तविक आयाम मिला है.

भारत-वियतनाम साझेदारी में बढ़ रही है प्रगाढ़ता

वियतनाम, भारत की एक्ट ईस्ट नीति और इंडो-पैसिफिक विजन में बहुत ही ज्यादा महत्व रखने वाला साझेदार है. दोनों देश 2,000 वर्षों से ज्यादा पुरानी सभ्यता और सांस्कृतिक संबंधों का एक समृद्ध इतिहास साझा करते हैं. वियतनाम भी भारत को सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था के तौर पर दुनिया की बड़ी ताकत वाला देश मानता है. साथ ही घनिष्ठ पारंपरिक मित्र के तौर पर भी देखता है.

वियतनाम के लिए भारत की दोस्ती इसलिए भी ख़ास है कि वियतनाम में पीस प्रोसेस के लिए जेनेवा समझौते के तहत 1954 में गठित अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षण और नियंत्रण आयोग (ICSC) का अध्यक्ष भारत ही था. शुरुआत में भारत ने तत्कालीन उत्तरी वियतनाम और दक्षिण वियतनाम के साथ वाणिज्य दूतावास स्तर के संबंध बनाए रखे. बाद में भारत का जनवरी 1972 में एकीकृत वियतनाम के साथ पूर्ण राजनयिक संबंध स्थापित हुआ. एकीकृत वियतनाम के साथ पूर्ण राजनयिक संबंध के 50 वर्ष जनवरी 2022 में पूरे हो गए थे.

दोनों देशों ने जुलाई 2007 में द्विपक्षीय संबंधों को रणनीतिक साझेदारी में तब्दील कर दिया. ये फैसला वियतनाम के तत्कालीन प्रधानमंत्री Nguyen Tan Dung की भारत यात्रा के दौरान किया गया था. पिछले 7 सालों से दोनों देशों की दोस्ती में तेजी से प्रगाढ़ता आई है. भारत और वियतनाम सितंबर 2016 से व्यापक रणनीतिक साझेदार हैं. उस वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वियतनाम की यात्रा की थी. तभी दोनों देशों ने रणनीतिक साझेदारी को व्यापक रणनीतिक साझेदारी में अपग्रेड करने का फैसला किया था. इस साझेदारी के तहत रक्षा और आर्थिक सहयोग प्रमुख स्तंभ है.

भारत-वियतनाम हैं महत्वपूर्ण आर्थिक साझेदार

दोनों ही देश रक्षा साझेदार के साथ ही महत्वपूर्ण आर्थिक साझेदार भी हैं और द्विपक्षीय व्यापार में औसतन 20 फीसदी का इजाफा भी देखा जा रहा है. वित्त वर्ष 2021-22 में आपसी व्यापार में 27% की वृद्धि दर्ज की गई थी. इस दौरान द्विपक्षीय व्यापार का आंकड़ा 14 अरब डॉलर पार कर गया था. भारत से व्यापार वियतनाम के लिए काफी फायदेमंद है. वियतनाम आयात से ज्यादा भारत को निर्यात करता है. दोनों देशों के बीच अभी भी आर्थिक सहयोग को बढ़ाने के लिहाज से अपार संभावनाएं हैं.

रक्षा साझेदारी बढ़ने का कूटनीतिक महत्व

आईएनएस कृपाण को उपहार देकर भारत ने ये बता दिया है कि वो वियतनाम के साथ रणनीतिक साझेदारी को और आगे ले जा रहा है. ये इंडो-पैसिफिक रीजन ख़ासकर साउथ चाइना सी में चीन के बढ़ते आक्रामक कदम को लेकर चिंताओं के लिहाज से अहम है. साउथ चाइना सी के समुद्री जल क्षेत्र में तेल अन्वेषण प्रोजेक्ट में भारत, वियतनाम की मदद करता आ रहा है. इस रीजन में साझा हितों की वजह से पिछले कुछ सालों से भारत और वियतनाम के बीच समुद्री सुरक्षा सहयोग भी बढ़ रहा है.

'भारत-वियतनाम रक्षा साझेदारी 2030' के लिए साझा विजन

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने पिछले साल जून में वियतनाम की यात्रा की थी. उस दौरान दोनों देशों के रक्षा मंत्रियों ने 'भारत-वियतनाम रक्षा साझेदारी 2030' के लिए संयुक्त विजन दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए थे. ये कदम द्विपक्षीय रक्षा सहयोग को व्यापक करने के मकसद से उठाया गया था. उसी समय रक्षा बलों के बीच लॉजिस्टिक सहयोग बढ़ाने के लिए प्रक्रियाओं को आगे ले जाने के समझौता ज्ञापन पर भी दोनों देशों ने हस्ताक्षर किए थे.

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के इस यात्रा के दौरान ही वियतनाम को दी गई 500 मिलियन डॉलर की रक्षा ऋण सहायता को जल्द ही अंतिम रूप देने पर भी सहमति बनी थी. इससे वियतनाम की रक्षा क्षमताओं में काफी इजाफा होने की उम्मीद है. वियतनाम के राष्ट्रीय रक्षा मंत्री जनरल फान वान गियांग पिछले महीने जून में भारत के दौरे पर आए थे. इस दौरान दोनों देशों ने रक्षा सहयोग के वर्तमान क्षेत्रों विशेष रूप से उद्योग संबंधी सहयोग, समुद्री सुरक्षा और बहुराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ाने के साधनों की पहचान की थी.

आईएनएस कृपाण स्वदेश निर्मित खुखरी श्रेणी की मिसाइल से लैस युद्धपोत है. आईएनएस कृपाण करीब 12 अधिकारियों और 100 नाविकों से संचालित होने वाला युद्धपोत है, जो 90 मीटर लंबा और 10.45 मीटर चौड़ा है. आईएनएस कृपाण को 1991 में भारतीय नौसेना के बेड़े में शामिल किया गया था. ये भारतीय नौसेना के पूर्वी बेड़े का एक महत्वपूर्ण अंग रहा. युद्धपोत आईएनएस कृपाण ने राष्ट्र के लिए 32 साल की शानदार सेवा पूरी की. उसके बाद इंडियन नेवी ने उसे सेवामुक्त करने का फैसला किया. आईएनएस कृपाण ने पिछले 32 वर्षों में कई ऑपरेशन में हिस्सा लिया.

स्वदेश निर्मित इन-सर्विस मिसाइल कार्वेट आईएनएस कृपाण को वियतनाम को देना, ये दिखाता है कि भारत समान विचारधारा वाले साझेदारों को उनकी सैन्य क्षमता को बढ़ाने में सहायता करने में कभी भी पीछे नहीं रहेगा.

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