भारत और चीन के बीच तनाव कोई छिपी बात नहीं है और यह पिछले कुछ साल से बढ़ा ही है. चीन से लगते बॉर्डर पर तनाव के हालात हैं. अप्रैल-मई 2020 में जो लद्दाख में भारत-चीन सीमा पर संकट हुआ था, उसके बाद कई मौकों पर दोनों देशों के सैनिकों के बीच झड़प भी हो चुकी है. ठंड का मौसम शुरू होनेवाला है और हालात को देखते हुए चीन और भारतीय सेना के वरिष्ठ अधिकारियों के बीच बातचीत शुरू हो गई है. बता दें कि 2020 में 15 जून लद्दाख के गलवान में दोनों देशों के सैनिकों के बीच खूनी संघर्ष हुआ था. इसमें दर्जन भर से अधिक भारतीय सैनिकों ने बलिदान दिया था. चीन की तरफ से आधिकारिक तौर पर कभी कोई आंकड़ा नहीं दिया गया, लेकिन खबरों के मुताबिक उसके 40 से 50 सैनिक मारे गए थे. एलएसी यानी वास्तविक नियंत्रण रेखा पर हुए इस संघर्ष के बाद से यह चौथी सर्दी है.


चीनी-भारतीय अधिकारियों में हो रही है बातचीत


भारत और चीन के कमांडरों के शीर्ष स्तर पर एक बार फिर बातचीत चल रही है, ताकि वैसी घटना का दोहराव न हो. फिलहाल, भारत ने वहां सैनिकों की तैनाती बढ़ाई है. हालांकि, पूर्व सीआईए अधिकारी लिजा कर्टिस की मानें तो चीन की मंशा यही है कि अप्रैल-मई 2020 वाली स्थिति को ही लंबे समय तक जारी रखा जाए, क्योंकि यह उसके लिए फायदेमंद है अगर सीमाएं अस्थायी और अनिर्णीत रहें. भारत भी अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ अपनी दोस्ती और सक्रियता बढ़ा रहा है, ताकि वह चीन पर दबाव बना सके.



वहीं चीन सीमा के तनाव को बनाए रखना चाहता है, ताकि वह इसका फायदा उठाकर भारत के ऊपर दबाव बना सके. कर्टिस के मुताबिक चीन हाल-फिलहाल गंभीरता से सीमा-विवाद सुलझाने के लिए नहीं बैठेगा. चीन अभी तक मई 2020 के पहले वाली स्थिति बनाने से हिचक रहाहै. पांच इलाकों में से तीन पर ही उन्होंने अपनी मौजूदगी हटाई है, लेकिन अभी भी डेमचोक और देपसांग में दो ठिकाने ऐसे हैं, जहां वह जमे बैठे हैं. स्थानीय कमांडरों के बीच लगभग 10 दिनों से एलएसी के कई बिंदुओं पर विभिन्न मसलों को लेकर बातचीत हो रही है ताकि छोटे-मोटे मुद्दों को सुलझाया जा सके. इससे ठंड के दिनों में किसी भी तरह के संघर्ष को रोका जा सकेगा. ये बातचीत ठंड गिरने के पहले अगले कई हफ्तों तक कई चक्रों में हो सकती है. 


भारत ने बढ़ाया है सीमाई इंफ्रास्ट्रकचर


भारत चीन से लगते बॉर्डर पर अपना सीमाई इंफ्रास्ट्रक्चर तेजी से बढ़ा रहा है और 2014 के बाद अब तक 400 गुणा तक का इजाफा वहां खर्च में किया गया है. जब से सीमा पर इंफ्रास्ट्रक्चर बेहतरी का काम शुरू किया गया तो चुनौती भी बढ़ी है. अब अगर चीन के गश्ती पेट्रोल आते हैं तो उनका सामना भारतीय पेट्रोल पार्टी से होता है, 2014 के बाद से सीमा पर सेना और वायुसेना की तैनाती तेज हुई है और उसकी रफ्तार में यकीनन तेजी आई है.सीमा पर इंफ्रास्ट्रक्चर को अधिक तेजी से बढाया गया है. सीमा पर इंफ्रास्ट्रक्चर का बजट 2008 में 3200 करोड़ था, आज वह बढ़कर 14387 करोड़ का बजट हो गया है. 2014 से 2022 तक 6800 किमी सड़क बनाई गयी है. 2008 से 2014 तक 3600 किमी सड़क बनाई गई थी.



बूमलिंगला में देमचौक के करीब दुनिया की सबसे ऊंची सड़क 19 हजार फुट की ऊंचाई पर बनाई गई है, जोजीला पास को भी चालू किया गया है. अति महत्वपूर्ण 16 पास आज कहीं अधिक बेहतर स्थिति में हैं जो लद्दाख इलाके में कनेक्टिविटी के लिए बेहद जरूरी हैं, 1800 किमी सड़क 30 हजार करोड़ की लागत से अरुणाचल प्रदेश में इंटर वैली कनेक्टिविटी के लिए तैयार कर रहे हैं, चुशुल से देमचौक की सड़कों पर भी काम शुरू किया गया है और इस पर काम तेजी से चल रहा है. चीन सीमा के मामले पर भारत मजबूती से इस मुद्दे को उठा रहा है. यह अहमियत रखता है कि आप कितनी दृढ़ता से अपनी बात रखते हैं. यह मायने रखता है कि जमीन पर स्थिति कैसे बनाई गई है, कितना इंफ्रास्ट्रक्चर बनाया गया और उसके लिए कितना धन दिया गया? 


आगे की राह


पिछले महीने भारत और चीन के बीच हुई 20वें दौर की सैन्य वार्ता में जमीन पर कोई ठोस प्रगति नहीं हुई थी, लेकिन दोनों पक्ष शांति बनाए रखने के लिए सहमत थे. दोनों ही पक्षों ने विभिन्न सैन्य और राजनयिक तंत्रों के माध्यम से बातचीत और बातचीत को बनाए रखने पर सहमति जताई थी. ऐसे में अब दोनों देशों के बीच कुछ सहमति बनना अच्छी खबर है. भारत इसके साथ ही हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका के साथ अपनी गतिविधि बढ़ा कर और बाकी देशों के साथ राजनयिक और कूटनीतिक समझौते कर चीन के ऊपर दबाव भी बना रहा है.


हाल ही में भारत ने अमेरिका के साथ 2+2 बातचीत की, जिसमें रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अपने अमेरिकी समकक्ष के साथ वार्ता की. उन्होंने यह भी कहा कि भारत और अमेरिका के द्विपक्षीय संबंधों में रक्षा सबसे मजबूत स्तंभ है और दोनों देशों के बीच साझीदारी ही वह कुंजी है, जिससे भारत-प्रशांत क्षेत्र में मुक्त, खुला और नियम आधारित वातावरण कायम रहेगा. चीन की यहां पर गतिविधियां किसी से छिपी नहीं है और वह इस इलाके पर अपना कब्जा चाहता है क्योंकि वैश्विक व्यापार का बड़ा हिस्सा इसी इलाके से होकर गुजरता है. भारत भी चीन के लिए कई मोरचे खोलना चाहता है, ताकि चीन भी कई मोरचों पर एक साथ उलझा रहे औऱ भारत की सीमा पर गंभीरता से बातचीत को राजी हो.