सोमवार यानी 1 अप्रैल को चीन ने एक बार फिर से अरुणाचल प्रदेश पर अपना पुराना और बीमार राग आलापा है. उसने अरुणाचल को दक्षिणी तिब्बत बताते हुए इसका नया नाम भी रख दिया है और इसके साथ ही छह और जगहों के नए नाम दुनिया को बताए हैं. चीन की सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक अरुणाचल दरअसल ‘जंगनान’ है और उसने यहां भौगोलिक नामों की चौथी सूची आज जारी की. यह बीमारी साल 2023 में भी चीन को लगी थी, जब उसने 11 स्थानों के नाम बदल दिए थे. पहली बार यह बीमारी चीन को 2017 में हुई थी और तब उसने अरुणाचल के छह क्षेत्रों की उसके हिसाब से बनाए गए नामों की सूचना जारी की थी. भारत ने इसको तत्काल प्रभाव से खारिज कर दिया है. 


विदेश मंत्री का करारा जवाब


भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने चीन की इस बेजां हरकत पर हल्के हास्य और बाकी कड़ाई के साथ तीखा जवाब दिया है. उन्होंने कहा है कि अगर कोई व्यक्ति किसी दूसरे के घर का नाम बदल दे, तो क्या वह घर उसका हो जाएगा? विदेश मंत्री सूरत शहर में अपना संबोधन दे रहे थे, जब उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा, 'नाम बदल देने से कुछ नहीं होता है. अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न अंग था, है और रहेगा. हमारी सेनाएं वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तैनात हैं और वे जानती हैं कि उनको क्या करना है.' जयशंकर के तल्ख जवाब से चीन को इतना तो पता चल गया है कि भारत अब आंखें झुकाकर नहीं, बल्कि आंखों में आंखें डालकर बातें करता है, लेकिन चीन भारत की बढ़ती हैसियत और ताकत से परेशान होकर लगातार ऐसी छोटी हरकतें करता रहता है. दरअसल, कोरोना के बाद पूरी दुनिया में चीन की जैसी थू-थू हुई और भारत का वैक्सीन-डिप्लोमैसी से जो कद बढ़ा, उससे चीन और भी अधिक बौखला गया है. चीन के विस्तारवादी रवैए से भी उसके सारे पड़ोसी मुल्क परेशान हैं, जिस किसी भी देश के साथ उसकी सीमा लगती है, उसके साथ चीन का सीमा-विवाद चल रहा है. जमीन से लेकर समंदर तक जबरन और अवैध कब्जे की उसकी भूख बढ़ती ही जा रही है. उसी तरह उसकी डेट-डिप्लोमैसी (यानी कर्ज देकर किसी देश को फंसाना) से भी श्रीलंका, पाकिस्तान सहित कई देश तबाह हो चुके हैं और यह सब कुछ किसी से छिपा नहीं है. भारत एशिया में उसको चुनौती देने वाली ताकत बन कर उभर रहा है और यही उसकी दिक्कत है.



एक चीन ही नहीं तनहा


हालांकि, भारत को समय-समय पर जांचने वाले देशों में चीन अकेला नहीं है. दरअसल, दुनिया की बड़ी ताकतें भारत के उभार को देख कर सशंकित भी हैं और चिंतित भी. इसके पीछे यूरोपीय देशों की या अमेरिका की वह ग्रंथि भी है, जो 'होलियर दैन दाउ' की है, या फिर जिसे कठोर शब्दों में 'ह्वाइट मेन्स बर्डेन सिंड्रोम' कहा जाता है. इसके मुताबिक पूरी दुनिया को ठीक करने का ठेका उनके पास ही है. इसलिए, वे कभी लोकतंत्र पर तो कभी मानवाधिकार पर तो कभी पर्यावरण पर तो कभी कार्बन-उत्सर्जन पर भारत जैसे देशों को ज्ञान देने की कोशिश करते हैं, तो कभी तुर्की-ब-तुर्की जवाब सुनकर चौंक जाते हैं. हालांकि, वे अपना दामन नहीं देखते, अपना रिकॉर्ड नहीं चेक करते और इसी वजह से हाल-फिलहाल के दिनों में जब भारत उनको आईना दिखाता है, तो वे दिल ही दिल में नाराज हो जाते हैं. यहां याद करना ठीक होगा कि इन्हीं जयशंकर ने यूरोपीय देशों को रूस से तेल खरीदने के मुद्दे पर करारा जवाब दिया था और उनको उस मानसिकता से निकलने की भी सलाह दी थी कि 'यूरोप की समस्या ही दरअसल दुनिया की भी समस्या है.' भारत की छोड़ें तो हाल ही में गयाना के राष्ट्राध्यक्ष ने ब्रिटेन के एक मीडिया हाउस से बात करते हुए उनको सलाह दी थी कि पर्यावरण के मसले पर पहले उनको खुद का रिकॉर्ड देखना चाहिए और गयाना ने जो जंगल बचाए हैं, उसका शुक्रिया अदा करना चाहिए. 


अमेरिका हो या चीन, भारत झुकेगा नहीं


इसी तरह, हाल ही में जर्मनी और अमेरिका ने दिल्ली के मुख्मयंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी और कांग्रेस पार्टी के बैंक अकाउंट फ्रीज करने के मुद्दे पर बयानबाजी की. यह निहायत ही अवांछनीय और आपत्तिजनक मसला था. भारत ने दोनों ही देशों के संबंधित अधिकारियों को बुलाकर अच्छा-खासा डोज दिया और यह भी कहा कि भारत अपने आंतरिक मामलों में किसी भी देश की दखलंदाजी बर्दाश्त नहीं करेगा. इससे पहले खालिस्तानी आतंकी पन्नू की हत्या से संबंधित आरोप भी अमेरिकी जस्टिस डिपार्टमेंट ने भारत पर नत्थी करने की कोशिश की थी, लेकिन भारत ने उसमें पूरा सहयोग करने का वादा करते हुए यह भी कहा कि अमेरिका पहले अपने दामन को देख ले, क्योंकि वह कहीं इसलिए तो पन्नू को नहीं बचा रहा कि वह अमेरिकी खुफिया विभाग का कारिंदा है. उससे पहले कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भारत के लिए बेतुकी बयानबाजी की थी और भारत ने उसका पुरजोर विरोध किया था. 


सीधी रीढ़ चुभती है


दरअसल, भारतीय विदेश नीति पिछले एक दशक में बहुत बदल गयी है और यह बदलाव पूरी दुनिया देख रही है. भू-राजनैतिक मामलों में भारत अब 'अनुयायी' की भूमिका से निकलकर 'प्लेयर' और 'एक्टर' की भूमिका में आ गया है. यानी, पहले भारत केवल प्रतिक्रिया देता था और संसार की बड़ी ताकतों में से किसी एक गोल, एक पक्ष के पीछे खड़ा रहता था. भारत अब बहुमुखी, बहुकोणीय रिश्ते बना रहा है, 'वन टू वन' रिश्ते निर्मित कर रहा है और बहुदेशीय मंचों जैसे जी-20 में भी अपनी भूमिका नए तरीके से गढ़ रहा है. यह बात बड़ी ताकतों को पचाने में थोड़ी देर लगेगी. भारत अब प्रधानमंत्री मोदी के शब्दों में न आंख झुकाकर, न आंख दिखाकर, बल्कि आंखों में आंखें डालकर बात करता है औऱ यही कई देशों की परेशानी का सबब है. भारत अब उनसे निर्देशित नहीं होता और यह हमने रूस-यूक्रेन युद्ध में भी देखा, हमास-इजरायल के बीच संघर्ष में भी देखा. 


यह संतुलन और बाजीगरी ही कई देशों की आंख में चुभ रही है, लेकिन भारत अब इस राह पर आगे निकल चुका है और यह झुकेगा नहीं!