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हाइड्रोग्राफी सर्वेक्षण के नाम पर चीन द्वारा कई देशों की जासूसी की आशंका, पर भारत है पूर्णतः तैयार

चीन समुद्र के अंदर की भौगोलिक स्थिति का पता कर भविष्य में पनडुब्बी या किसी अन्य जहाज की तैनाती के बारे में फिलहाल तैयारी कर रहा है.

चीन की दोहरी नीति से पूरी दुनिया परेशान है. चीन ना केवल जमीन पर बल्कि समुद्री क्षेत्रों में भी पड़ोसी देशों को परेशान करता रहा है. भारत और चीन के बीच हमेशा से तनातनी रही है. हर माह चीन की ओर से उकसाने की कोशिश की जाती है. हाल में ही चीन ने अरूणाचल प्रदेश का नाम बदलकर एक मानचित्र प्रकाशित किया था. फिलहाल शोध के नाम पर चीन के तीन जहाज हिंद महासागर में खड़े है. चीन एक ऐसा देश है जहां पर आधिकारिक रूप से काफी कम सूचनाएं आती है. अगर कोई सूचना आती है तो कम्युनिस्ट पार्टी की ओर से या फिर वहां की मीडिया के हवाले से जानकारी मिल पाती है.

इन जहाजों पर है संदेह

जिस तरह की जानकारी आ रही है या जो विदेश की मीडिया एजेंसियां है उसके अनुसार जिस तरह के हाइड्रोग्राफी सर्वेक्षण के लिए जहाज का इस्तेमाल होता है उस तरह से ये जहाज थोड़ा संदेह के घेरे में आते हैं. इसे वृहद परिदृश्य में देखने की जरूरत है. इंडो-पैसिफिक क्षेत्र प्रशांत महासागर के अफ्रीकी तट से लेकर अमेरिका के पश्चिमी तट तक फैला है. उसमें तमाम गतिविधियां संचालित होती है. सुरक्षा और व्यापार दोनों ही दृष्टि से ये क्षेत्र काफी संवेदनशील है. ये वो इलाके हैं जहां पर चीन की कई चीजें है और कई जगहों पर आधारभूत संरचना उसने बना रखी है. भारत के पास अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह के पास म्यांमार के कोको आइलैंड पर भी सर्वेक्षण के उपकरण लगा रखे है. जिबूती में अपना एक नौसेना का अड्डा भी चीन का है. दक्षिण चीन सागर में जिस तरह से संघर्ष चलते रहते हैं, वह बहुत दिक्कत की बात है. चीन का कई देशों के साथ सीमा को लेकर ओवरक्लैपिंग क्लेम है.

सर्वेक्षण के नाम पर दूसरा खेल 

 हिंद महासागर का क्षेत्र वृहद है. चीन समुद्र के अंदर की भौगोलिक स्थिति के बारे में पता कर रहा है. ऐसी सूचनाएं प्राप्त हुई है. भविष्य में अगर पनडुब्बी या ऐसे किसी अन्य यंत्र को तैनात करना हो, जो पानी के अंदर रहकर काम करते हैं तो ऐसी संरचना के बारे में चीन फिलहाल तैयारी कर रहा है. हिंद प्रशांत महासागर में देखा जाए तो कई जगहों पर चीन अपना दावा पहले से ही करता रहा है. इसमें चीन अपनी उपस्थिति बढ़ाना चाहता है, ताकि आने वाले समय में इसको बेहतर से जानकर वहां पर अपनी उपलब्धता को अच्छे से सुनिश्चित करवा सके. देखा जाए तो चीन के पास ऐसे कई उपकरण हैं जो पानी की तलहटी में जाकर सर्वेक्षण का काम कर सकते हैं. इसके लिए एक खास दूरी तक की जानकारी  पाई जा सकती है. इससे जमीन के अंदर तक की जानकारी मिलती है. ये मानव रहित उपकरण होते है. इस तरह की हाइड्रोग्राफिक सर्वे का क्या रणनीतिक महत्व होता है, यह कहने की बात नहीं है. क्या भारत जैसे देश के आसपास नौसेना के अड्डों और बंदरगाहों पर जिस तरह से चीन का प्रभाव बढ़ता जा रहा है, ये एक आशंका वाली बात है. मोटे तौर पर इसे देखा जाए तो क्या भारतीय नौ सेना के बारे में चीन निगरानी रख रहा है.

भारत पर निगरानी 

भारत ने लाल सागर से लेकर हौती विद्रोहियों तक, हमास इजरायल के संघर्ष के अलावा पायरेट्स की समस्याओं को लेकर जो मुखर रूप अपनाया है. भारत ने इस दौरान ना केवल खुद की जहाजों की रक्षा की है बल्कि दूसरे देशों के मालवाहक जहाजों की रक्षा कर के मैत्री का संबंध निभाया है. जिस तरह से भारत फ्रंटफुट पर आकर खेल रहा है, देश की सुरक्षा के साथ विदेशी जहाजों को बचा रहा है तो क्या ऐसे में उस पर चीन की ओर से निगरानी की जा रही है. आने वाले समय में इसका क्या कुछ रणनीतिक प्रतिफल हो सकता है. इस पर भी एक आशंका रहती है, लेकिन फिलहाल ये जानकारी आ रही है कि हिंद प्रशांत महासागर में चीन हाइड्रोग्राफी सर्वेक्षण पर काफी ध्यान दे रहा है. आशियान देश की बात है तो नाईन डैश लाइन या दक्षिण चीन सागर में जो सीमा को लेकर एक तरह का संघर्ष है, भारत उसके लिए तैयार है.

चीन का अधिकतर सीमा विवाद ज्यादातर फिलीपींस को लेकर है. कुछ वियतनाम और मैलेशिया को लेकर विवाद है. मुखर रूप से फिलीपींस के साथ विवाद है. कई बार फिलीपींस और चीन के बीच झड़प की भी खबर आई है. दूसरे के जहाजों को वापस भेजने की धमकी देना, वाटर जेट का इस्तेमाल करने की घटना लगातार देखने को मिली है. इस बीच भारत ने ब्रह्मोस की एक खेप फिलीपींस को भेज दी है. अंतराष्ट्रीय कोर्ट में  भी ये मामला गया था तब 2016 में जो फैसला आया था वो फैसला फिलीपींस के पक्ष में आया था.

लेकिन उस फैसले को चीन ने नहीं माना. चीन को लेकर सभी देश सतर्क रहते हैं. चीन की रणनीति वन टू वन की रही है जहां वो अपने हितों की बात करता है. एक समुह के साथ ना उलझकर द्विपक्षीय रूप से समस्याओं को हल किया जाए, यही उसकी नीति रही है. पूर्वी एशिया में भी चीन के साथ ताइवान की तनातनी की स्थिति है. वहां भी अमेरिका एक बड़े प्लेयर की तरह है. अमेरिका पूरी तरह से ताइवान का समर्थन करता है. इसके अलावा मलेशिया, फिलिपिंस और वियतनाम के तैयारियों को भी अमेरिका समर्थन करता है. जितनी भी महाशक्तियां है उनकी भी इस पर नजर है. 

भारत इन सबको देखते हुए पूरी तरह से सतर्क है और अपनी तैयारियों पर मुस्तैद भी. भारत की महासागर मे हो रही हरेक गतिविधि पर नजर है और वह पूरी तरह से चीनी गतिविधियों पर भी मुस्तैदी से नजर रख रहा है, ताकि चीन के किसी भी षडयंत्र को विफल किया जा सके. 

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