इस साल अप्रैल 2024 में भारत का कोयला उत्पादन 78.69 मीट्रिक टन (अंतिम आंकड़ा नहीं) तक पहुंच गया है, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 7.41 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ 73.26 मीट्रिक टन रहा था. अप्रैल 2024 के दौरान, कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) ने 61.78 मीट्रिक टन (अनंतिम) का कोयला उत्पादन किया है , जो पिछले वर्ष की इस अवधि की तुलना में 7.31 प्रतिशत की वृद्धि को बताता है. यह 57.57 मीट्रिक टन था. इसके अतिरिक्त, अप्रैल 2024 में कैप्टिव या अन्य द्वारा कोयला उत्पादन 11.43 मीट्रिक टन (अनंतिम) था, जो पिछले वर्ष से 12.99 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है और यह 10.12 मीट्रिक टन था.
जबकि अप्रैल 2024 में भारत का कोयला प्रेषण 85.10 मीट्रिक टन (अनंतिम) तक पहुंच गया, जो पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में 6.07 प्रतिशत अधिक है, जब यह 80.23 मीट्रिक टन दर्ज किया गया था. इस साल अप्रैल 2024 के दौरान कोल इंडिया लिमिटेड ने 64.26 मीट्रिक टन (अनंतिम) कोयला भेजा है, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 3.18 प्रतिशत की वृद्धि है और यह 62.28 मीट्रिक टन रहा था. अप्रैल में कैप्टिव और अन्य द्वारा कोयला प्रेषण 15.16 मीट्रिक टन दर्ज किया गया है, जो पिछले वर्ष से 26.90 प्रतिशत की वृद्धि बताता है. यह 11.95 मीट्रिक टन रहा था.
विश्व में दूसरे नंबर पर भारत
पूरे विश्व में चीन के बाद भारत दुनिया में कोयले का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है. भारत के कुल कोयला भंडार में 26.4% हिस्सेदारी के साथ झारखंड शीर्ष स्थान पर है. पहाड़ियों और हरे-भरे जंगलों के बीच स्थित इसके विशाल कोयला क्षेत्र देश की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करते हैं. भारत में सबसे बड़ा कोयला क्षेत्र में रानीगंज कोयला क्षेत्र , बोकारो कोयला क्षेत्र, झरिया कोयला क्षेत्र ,करणपुरा कोयला क्षेत्र आदि क्षेत्र है. भारत में अधिकांश कोयला-क्षेत्र पूर्वी भाग में पाए जाते हैं. भारत के प्रायद्वीपीय पठार के उत्तर-पूर्वी भाग में कोयला क्षेत्र की अधिकतम सघनता है, जिसमें झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा और पूर्वी मध्य प्रदेश के कुछ हिस्से और झारखंड से सटे पश्चिम बंगाल का पश्चिमी भाग शामिल है. कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) भारत सरकार के कोयला मंत्रालय के स्वामित्व में एक भारतीय केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है, जिसका मुख्यालय कोलकाता में है. यह दुनिया में सबसे बड़ा सरकारी स्वामित्व वाला कोयला उत्पादक है.
उत्पादन में वृद्धि के हो सकते हैं कई कारण
पिछले वर्ष की तुलना में, अप्रैल माह में कोयला उत्पादन में 7.41 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है. यह वृद्धि एक प्रमुख उत्पादक और उपभोक्ता देश के रूप में भारत के कोयला उत्पादन में वृद्धि के संकेत हो सकते हैं. कोयला उत्पादन के वृद्धि में कई कारक शामिल हो सकते हैं, जैसे कि उत्पादन का तकनीकी सुधार, उत्पादन क्षमता में वृद्धि, और उत्पादक देशों के बीच व्यापार में बदलाव आदि हो सकते हैं. इस वृद्धि के माध्यम से, कोयला उत्पादकों और उपभोक्ताओं के बीच संबंध को सुदृढ़ करने के लिए अवसर पैदा हो सकते हैं, जो कि आर्थिक स्थिति में सुधार ला सकता है.
पिछले वर्ष की तुलना में, अप्रैल महीने में कोयला उत्पादन में वृद्धि का संदर्भ व्यापारिक और आर्थिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है. यह वृद्धि उत्पादक देशों के कोयला उत्पादन के मानकों और आवश्यकताओं के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण विकल्प प्रस्तुत करती है. कोयला, एक महत्वपूर्ण ऊर्जा स्रोत, विभिन्न उद्योगों और गृहों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है. इसका उपयोग बिजली उत्पादन, इंडस्ट्रियल उत्पादन, और गृहों के उपयोग के लिए किया जाता है. इसलिए, कोयला उत्पादन के स्तर में वृद्धि उत्पादक और उपभोक्ता देशों के लिए आर्थिक और राजनीतिक प्रभाव बना सकती है.
उत्पादन प्रक्रिया में इस तरह का सुधार वृद्धि की संभावनाओं को बढ़ाता है और उत्पादकों को अधिक कोयला उत्पादन की अनुमति देता है. इसके साथ ही, कोयला की मांग में वृद्धि भी इस वृद्धि के पीछे एक महत्वपूर्ण कारक हो सकती है. उत्पादक देशों के उत्पादन क्षमता में वृद्धि और अधिक उपभोक्ता देशों की मांग के बीच संतुलन बनाने में मदद करती है. कोयला उत्पादन के अलावा हम विकल्प ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करने से हम अपने वातावरण को सुरक्षित रख सकते हैं और भविष्य की पीढ़ियों के लिए सस्ती, साफ, और अधिक सुरक्षित ऊर्जा संसाधनों का उपयोग कर सकते हैं.
संभव है, ये हो पूर्व-तैयारी
अप्रैल माह में कोयले की उत्पादन को इस तरह भी देखा जा सकता है क्योंकि पिछले दो साल पूर्व भारी बारिश के कारण कोयले के खादानों में पानी भर गया था. पानी भर जाने से कोयले का उत्पादन नहीं हो पा रहा था. जिस कारण बिजली के उत्पादन में दिक्कत आ रही थी. उसको ध्यान में रखकर ही कोयले का उत्पादन इस समय किया जा रहा है. गर्मी के समय में पर्याप्त मात्रा में अगर कोयले का उत्पादन हो जाता है तो बरसात के समय होने वाले दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ेगा. माना जाता है कि जून से जुलाई माह में मानसून के आगमन के साथ बारिश होने लगती है उसके बाद खाद्दान में पानी भरने का आशंका रहता है. ये बारिश का मौसम करीब अक्टूूबर से नवंबर के बीच तक रहने की उम्मीद रहती है. ऐसे में बारिश की स्थिति को ध्यान में रखकर कोयले के उत्पादन में काफी वृद्धि हुई है.