भारत ने चीन के विस्तारवादी और उपनिवेशवादी इरादों को देखते हुए उसकी बढ़त को काउंटर करने के लिए उससे लगी सीमाओं पर इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण तेज कर दिया है. 12 सितंबर को इसी क्रम में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने पूर्वी लद्दाख के न्योमा में न्योमा एयरबेस की आधारशिला रखी. सीमा सड़क संगठन यानी बीआरओ ने इस पर काम शुरू कर दिया है. इसके साथ ही दुनिया के सबसे ऊंचे हवाई क्षेत्रों में से एक अब भारत में होगा. यह इस इलाके में रणनीतिक संतुलन को भारत के पक्ष में करनेवाला गेम चेंजर होगा.


सीमावर्ती इलाके में 90 परियोजनाएं


सीमावर्ती क्षेत्रों में कनेक्टिविटी में सुधार और वहां रहनेवाले लोगों के जीवन को आसान बनाने के लिए रक्षा मंत्री ने 12 सितंबर को 90 नई परियोजनाएं राष्ट्र को समर्पित कीं. इनमें से 26 परियोजनाएं लद्दाख में और 36 अरुणाचल में हैं और इनकी कुल लागत लगभग 6,000 करोड़ रुपये होगी. इसमें 22 सड़कें, 63 पुल और अरुणाचल प्रदेश में एक सुरंग भी शामिल है. इससे पता चलता है कि भारत चीन की तरफ से पेश की जा रही चुनौती को पूरी गंभीरता से ले रहा है और उसके अनुरूप अपनी तैयारी कर रहा है. इसी के साथ न्योमा एयरफील्ड पर भी काम शुरू हुआ, जो लद्दाख में अग्रिम चौकियों पर तैनात सैनिकों के लिए स्टेजिंग ग्राउंड होगा. यह दुनिया के सर्वाधिक ऊंचे हवाई क्षेत्रों में है. रक्षामंत्री ने जानकारी दी कि बीआरओ ने पिछले 900 दिनों में लगभग 100 इंफ्रा-प्रोजेक्ट्स देश को समर्पित किए हैं. 



न्योमा का है रणनीतिक महत्व 


हममें से अधिकांश भारतीयों को 2020 में चीन के साथ गलवान घाटी में हुआ गतिरोध याद ही होगा. उस समय हमने चीन को पीटने में सफलता इसीलिए पाई क्योंकि यह सैनिकों और रसद की आवाजाही के लिए बेहद महत्वपूर्ण साबित हुआ. फिलहाल यह एएलजी या उन्नत लैंडिंग ग्राउंड है और इसका रनवे मिट्टी से बना हुआ है, यानी मतलब यह कि इस पर केवल विशेष मालवाहक विमान या हेलिकॉप्टर ही उतारे जा सकते हैं. फिलहाल इस पर चिनूक हेलिकॉप्टर और सी-130 जे विमान उतारे जा रहे हैं. 218 करोड़ रुपए की लागत वाला नया रनवे जब बनकर तैयार हो जाएगा, तो बड़े-बड़े परिवहन और मालवाहक विमान भी न्योमा से ही संचालित हो सकेंगे. इससे भारतीय सेना को बड़ा रणनीतिक लाभ होगा और उनका मनोबल भी बढ़ेगा. इस साल के अंत तक ही इसके तैयार हो जाने की उम्मीद है. 13 हजार फुट की ऊंचाई वाला न्योमा बेल्ट 1962 में चीन के साथ युद्ध के बाद बंद था, लेकिन 2010 में यह फिर शुरू हुआ.



यह वास्तविक नियंत्रण रेखा का सबसे नजदीकी एयरबेस है और चीन से इसकी दूरी महज 50 किलोमीटर है. भारत को पता है कि चीन अपनी कारस्तानी से बाज नहीं आएगा और न्योमा किसी भी गतिरोध की स्थिति में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है, इसलिए वह तेजी से इसका विकास कर रहा है. इतनी ऊंचाई पर होने के कारण यहां से ही सीमा पार चीन क्या कर रहा है, उस पर भी नजर रखी जा सकती है. इससे लद्दाख में इंफ्रास्ट्रक्चर को भी मजबूती और नया आयाम मिलेगा. भारतीय एयरफोर्स की भी क्षमता बढ़ेगी.


चीन को पछाड़ने का है भारत में दम 


हमारा देश लगातार अपने सीमावर्ती इलाकों में इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास कर रहा है. ऐसे में यह दूर की कौड़ी नहीं लगती कि आनेवाले दो-तीन वर्षों में भारत अगर चीन को पछाड़ेगा नहीं, तो इंफ्रास्ट्रक्चर के मामले में उसके बराबर सीमाई इलाकों में तो आ ही जाएगा. चीन की हरकतों को देखते हुए खास तौर से उससे लगी हुई सीमा में, सीमावर्ती इलाकों में भारत इंफ्रास्ट्रक्चर दिन दूनी, रात चौगुनी रफ्तार से बढ़ा और विकसित कर रहा है. न्योमा एयरपोर्ट चीन की नजरों से दूर, लेकिन दुनिया का सबसे ऊंचा हवाई क्षेत्र भी होगा. चीन से सटे होने की वजह से इस एयरबेस का रणनीतिक, सामरिक और राजनीतिक महत्व भी है. 12 सितंबर को रक्षामंत्री ने जिन 90 परियोजनाओं की शुरुआत की है, उसमें बागडोगरा और बैरकपुर जैसे दो रणनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण हवाई क्षेत्र भी हैं, इसके अलावा लद्दाख मे एक हैलीपैड ससोमा-सासेर ला के बीच और एक हेलीपैड राजस्थान में भी बनेगी. इसके साथ ही दुनिया की सबसे लंबी दो लेन वाली सेला सुरंग भी अगले महीने तक पूरी हो जाएगी. अरुणाचल के पश्चिम कामेंग जिले की यह सुरंग तवागे को हरेक मौसम में कनेक्टिविटी देगी.जांस्कर और लाहौल स्पीति को जोड़नेवाली यह सुरंग लगभग 16 हजार की फीट पर होगी और यह दुनिया की सबसे ऊंची सुरंग होगी.


वास्तविक नियंत्रण रेखा पर हो रहा चौतरफा काम


फिलहाल, केंद्र सरकार एलएसी यानी वास्तविक नियंत्रण रेखा के लगभग 3500 किलोमीटर के इलाके को विकसित करने के लिए बेहद तेजी से काम कर रही है. पिछले दो-तीन साल में ही लगभग 300 परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं, जिनकी लागत 11 हजार करोड़ रुपए की है. केंद्र सरकार एलएसी के 3,488 किमी. इलाके को विकसित करने के लिए तेजी से काम कर रही है। पिछले 2-3 वर्षों में 11,000 करोड़ रुपये की 295 परियोजनाएं पूरी की गई हैं। इनके माध्यम से हम लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में बहुत तेजी से आगे बढ़ रहे हैं. पहले हम एलएसी के इतने करीब नहीं थे, लेकिन पिछले तीन वर्षों में हम अपनी गति बढ़ा रहे हैं. इससे हमें अधिकांश अग्रिम चौकियों के आखिरी छोर तक कनेक्टिविटी मिलेगी और चीन हो या पाकिस्तान, उनके दुस्साहस को मुंहतोड़ जवाब भी हम दे सकेंगे.