भारत में तेजी के साथ लगातार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है. मोदी सरकार की तरफ से डिजिटल इंडिया को लेकर मिशन मोड में काम किया जा रहा है. यही वजह है कि 2021 की तुलना में डिजिटल इंडिया मिशन पर वित्तीय वर्ष 2022-23 के दौरान सार्वजनिक खर्च 67 फीसदी बढ़ा और कुल 10 हजार 676 करोड़ रुपये खर्च किए गए. डिजिटल मिशन का प्लान यह बताता है कि कैसे AI का इस्तेमाल फाइनेंशियल इन्क्लूजन, शहरी क्षेत्रों के बुनियादी बदलाव और एजुकेशन सेक्टर के लिए किया जाए.

  


तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना और पंजाब जैसे राज्य पहले से ही कानून-व्यवस्था को बनाए रखने में मदद के लिए AI तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं. इसके अलावा, कृषि उत्पाद बढ़ाने और स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए AI पर आधारित तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है.


AI का बढ़ता बाजार


भारत में AI का बाजार 2025 तक 7.8 बिलियन डॉलर तक बढ़ने की उम्मीद है. सरकार के प्रयासों के अलावा स्टार्टअप्स का भी भारत की जीडीपी में अहम योगदान है. जानकारों का यह मानना है कि 2025 तक भारत की जीडीपी में स्टार्टअप का योगदान करीब 400 से 500 बिलियन डॉलर तक हो जाएगा, जो देश की अनुमानित 5 ट्रिलियन जीडीपी का करीब 10 फीसदी होगा. साल 2023 का आगाज हो चुका है और दुनिया अब बड़े लक्ष्य की तरफ देख रही है. सबसे पहले आइये जानते है साल 2022 के दौरान भारत के प्राइमरी सेक्टर- एजुकेशन, हेल्थ और एग्रीकल्चर में AI का कैसा योगदान रहा.




एग्रीकल्चर


मार्च 2022 तक यह अनुमान था कि भारत में करीब 1,000 एग्रीकल्चर स्टार्टअप्स सरकार के साथ मिलकर एगटेक में काम करेंगे. सरकार की मदद और प्रयासों की वजह से नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट और eNAM (पैन इंडिया इलेक्ट्रोनिक ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म) समेत कृषि व्यवस्था में सुधार देखने को मिला है. राष्ट्रीय सतत कृषि विकास मिशन का लक्ष्य प्रौद्योगिकियों का इस्तेमाल कर कृषि उत्पाद को बढ़ावा देना है.


एग्रीकल्चर का नेशनल ई-गवर्नेंस प्लान रहा है, जिसमें प्राथमिकता आधुनिक प्रौद्योगिकियों को फंडिंग करने जैसे- ब्लॉकचेन, मशीन लर्निंग, ड्रोन और AI है. किसान GPS, GIS और सैटेलाइट तस्वीरों का इस्तेमाल कर फायदा उठाते है. उदाहरण के तौर पर जीपीएस लगे डिवाइस का इस्तेमाल ड्रोन  को दिशा दिखाने और बेहतर सिंचाई के लिए किया जा सकता है. 


भारतीय बीमा और एग्रीकल्चर फर्म जैसे महिन्द्रा एग्री और मैक्स भूपा सरकारी फसल बीमा योजना के लिए फसल और सूखे की मॉनिटरिंग में AI का इस्तेमाल किया जा रहा है. इंडियन काउंसिल ऑन ग्लोबल रिलेशंस की रिपोर्ट के मुताबिक, एग्रीकल्चर में लगातार AI के इस्तेमाल से किसानों की आय में काफी बढ़ोतरी हो सकती है.




एजुकेशन


AI का इस्तेमाल शिक्षा के क्षेत्र में भी काफी मददगार साबित हो रहा है. सीबीएसई ने एनईपी  (नेशनल एजुकेशन पॉलिसी) 2020 के हिसाब से 2020-21 की शुरुआत साल में ग्यारहवीं और बाहरवीं  कक्षा में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को एक विषय के तौर पर शुरू किया था. 


लोकसभा में चर्चा के दौरान अगस्त 2022 में केन्द्रीय शिक्षा राज्य मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने एआई प्रोग्राम्स जैसे दीक्षा पोर्टल पर जोर दिया था. इस पोर्टल में एआई टूल का इस्तेमाल किया गया है और ओपन सोर्स टेक्नोलॉजी पर तैयार किया गया है ताकि केन्द्र शासित और राज्यों में स्कूली शिक्षा के लिए सभी तरह के कंटेंट मुहैया कराया जाए. इसके साथ ही, सभी ग्रेड के लिए क्यूआर कोड आधारित टेक्स्ट बुक्स दी गई है. लेकिन, एक हकीकत ये भी है कि 2021 में आयी यूनेस्को स्टेट एजुकेशन रिपोर्ट में यह बताया गया था कि स्कूलों में 11.16 लाख शिक्षों की जगह खाली है.


दीक्षा प्लेटफॉर्म को लेकर शिक्षा मंत्रालय की तरफ से जारी हालिया आंकड़ों के मुताबिक, अलग-अलग कोर्स में 150 लाख छात्रों का नामांकन किया गया है. कोर्स शुरू होने के बाद से करीब 47 लाख शिक्षकों सीधे NISHTA (National Initiative for School Heads' and Teachers' Holistic Advancement) और सीपीडी (Continuous Professional Development) कोर्स से फायदा पहुंचा है, जो दीक्षा प्लेटफॉर्म के जरिए दिया गया.


दीक्षा पर 14 जुलाई 2022 तक 2 लाख 91 हजार 168 ई-कंटेंट्स है, जबकि 6477  क्यूआर कोड आधारित टेक्स बुक मौजूद है. एआई आधारित यह प्लेटफॉर्म बेशक शिक्षक और छात्रों के बीच खाई को भरने का काम करेगा. रिसर्च कहता है कि भारत में क्लाउड डिप्लायमेंट मॉडल साल 2022 में करीब 60 फीसदी तक बढ़ा है. 


यह क्लाउस एक्सपेरियंस के बढ़ने और साल 2023 और आने वाले सालों में एजुकेशन में इसके और बढ़ने की उम्मीद है. भारत में साल 2022 में AI एजुकेशन स्टार्टअप में इजाफा देखा गया, जैसे- HackerRank, iNurture Square Panda. साल 2023 में कई स्टार्टअप्स के आने की उम्मीद है.




स्वास्थ्य


गूगल फॉर इंडिया 2022 के एक कार्यक्रम के दौरान गूगल ने अपोलो अस्पताल के साथ मिलकर  भारत में एक्स-रे के डिप लर्निंग मॉडल्स के इस्तेमाल पर काम करने का हाल ही में एलान किया है. वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम के आंकड़े के मुताबिक, भारत में प्रति 1 लाख लोगों पर करीब 64 डॉक्टर्स उपलब्ध हैं. जबकि वैश्विक औसत आवश्यकता 1 लाख पर 150 की है.


रिपोर्ट के मुताबिक, बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं की वजह से खासकर ग्रामीण भारत में करीब 16 लाख भारतीय बेमौत मारे जाते हैं. देश की करीब 70 फीसदी आबादी अभी भी गांवों में बसती है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या  भारत ने इन आबादी को बचाने के लिए हाल में कोई कदम उठाया? आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से तैयार मेडिकल उपकरण बेहद मददगार हो सकते हैं, खासकर उन क्षेत्रों में जहां पर सीमित हेल्थ केयर सुविधाएं है और बीमारियों की पहचान में देरी होती है. स्वास्थ्य सेवाओं में एआई तकनीक के बढ़ते बाजार को देखते हुए कंपनियां जैसे- गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, मेटा और एप्पल ने संयुक्त रूप से  साल 2021 में 3 बिलियन डॉलर खर्च किए. जबकि Pharmeasy, HealthifyMe, Healthplix,  DocTalk जैसे स्टार्टअप्स के ग्रोथ को देखते हुए 2022 में AI में यह निवेश करीब दोगुना रहा.


आंकड़ों के मुताबिक, साल 2025 तक AI पर खर्च बढ़कर 11.78 बिलियन डॉलर हो जाएगा.  जिस वक्त भारत में महामारी के वक्त पूरी तरह से लॉकडाउन हुआ था, उस समय AI आधारित  स्टार्टअप्स जैसे माइहेल्थकेयर लोगों को बचाने में सामने आया था. AI का इस्तेमाल पहले से ही कैंसल, डायबेटिक रेटिनोपैथी से लेकर कार्डियोवैस्कुलर बीमारी तक की स्क्रीनिंग में किया जा रहा है. 2023 में ऐसी उम्मीद है कि इस तरह के कई और स्टार्ट अप्स और एक दूसरे की साझेदारी देखने को मिलेगी.


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