संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों से मंगलवार को भारत ने आतंकवाद, चरमपंथ और हिंसा पर अपनी प्रतिक्रिया तय करने में ‘राजनीतिक सहूलियत’ को आड़े नहीं आने देने का आह्वान किया. ये बयान एक खालिस्तानी अलगाववादी की हत्या को लेकर जारी कूटनीतिक गतिरोध के बीच कनाडा पर अप्रत्यक्ष प्रहार प्रतीत होता है. 


विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) के 78वें सत्र की आम बहस को संबोधित करते हुए ये भी कहा कि क्षेत्रीय अखंडता के प्रति सम्मान और अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप की कवायद चुनिंदा तरीके से नहीं की जा सकती. उन्होंने कहा कि वे दिन बीत गए, जब कुछ राष्ट्र एजेंडा तय करते थे और उम्मीद करते थे कि दूसरे भी उनकी बातें मान लें. 


जयशंकर ने कहा, ‘‘हमें टीका भेदभाव जैसा अन्याय फिर नहीं होने देना चाहिए. जलवायु कार्रवाई भी ऐतिहासिक जिम्मेदारियों से मुंह फेरकर जारी नहीं रह सकती है. खाद्य एवं ऊर्जा को जरूरतमंदों के हाथों से निकालकर धनवान लोगों तक पहुंचाने के लिए बाजार की ताकत का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए.’’


राजनीतिक सहूलियत तय न करे हिंसा पर प्रतिक्रिया


समाचार एजेंसी भाषा के मुताबिक, विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा, ‘‘न ही हमें ऐसा करना चाहिए कि राजनीतिक सहूलियत आतंकवाद, चरमपंथ और हिंसा पर प्रतिक्रया तय करे. क्षेत्रीय अखंडता के प्रति सम्मान और अंदरूनी मामलों में गैर-हस्तक्षेप की कवायद चुनिंदा तरीके से नहीं की जा सकती.’’ उनका का इशारा परोक्ष रूप से अमेरिका की तरफ था, जिसने सिख अलगाववादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बाद कथित रूप से कनाडा को खुफिया सूचना उपलब्ध कराई थी. 



राजनीतिक सहूलियत संबंधी जयशंकर की टिप्पणी कनाडा के संदर्भ में प्रतीत होती है, जिसके प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने हाल में अपने देश में एक खालिस्तानी चरमपंथी नेता की हत्या में भारतीय एजेंटों की ‘संभावित’ संलिप्तता का आरोप लगाया था. भारत ने उनके बयान को ‘बकवास’ और ‘राजनीति से प्रेरित’ करार दिया. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदर बागची ने पिछले सप्ताह कहा था, ‘‘उन्होंने (कनाडा सरकार ने) आरोप लगाए हैं. हमारे लिए ऐसा जान पड़ता है कि कनाडा सरकार के ये आरोप प्राथमिक तौर पर राजनीति से प्रेरित हैं.’’



कनाडा की कुल जनसंख्या का 2 प्रतिशत सिखों की आबादी


कनाडा में सिखों की आबादी 7 लाख 70 हजार है, जो देश की कुल जनसंख्या का 2% है. वहां सिख एक अहम वोट बैंक समझे जाते हैं. विदेश मंत्री ने अपने संबोधन में कहा, ‘‘हमारी चर्चाओं में, हम अक्सर नियम आधारित व्यवस्था को बढ़ावा देने की वकालत करते हैं. समय-समय पर संयुक्त राष्ट्र चार्टर के प्रति सम्मान की भी बात भी उठाई जाती है. लेकिन इन सभी चर्चाओं के लिए, अब भी कुछ देश हैं, जो एजेंडा तय करते हैं और नियमों को परिभाषित करते हैं. ये अनिश्चितकाल तक नहीं चल सकता. ऐसा भी नहीं है कि इसे चुनौती नहीं दी जा सकती है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘एक बार हम सभी अपना दिमाग इस पर लगाएं, तो निश्चित ही निष्पक्ष, समान एवं लोकतांत्रिक व्यवस्था उभरकर सामने आएगी.’’       


जयशंकर ने कहा, ‘‘जब हम सामूहिक प्रयास को प्रोत्साहित करते हैं, तब भारत विविध साझेदारों के साथ सहयोग को बढ़ावा देने का प्रयास करता है. गुटनिरपेक्ष के दौर से आगे बढ़कर हमने विश्वमित्र की अवधारणा विकसित की है. ये विविध प्रकार के देशों के साथ संवाद और साझेदारी करने के हमारे सामर्थ्य एवं इच्छा में झलकती है.’’ विदेश मंत्री ने क्वाड और ब्रिक्स जैसे समूहों के तेजी से विकास का जिक्र करते हुए ये बात कही. 


उन्होंने कहा, ‘‘सभी देश अपने राष्ट्रहित को आगे बढ़ाते हैं. भारत में हमें ये वैश्विक भलाई के खिलाफ नजर नहीं आता. जब हम अग्रणी ताकत बनने की आकांक्षा लेकर बढ़ते हैं, तो यह आत्म-अभ्युदय नहीं, बल्कि अधिक जिम्मेदारी लेना और योगदान करना होता है.’’ जयशंकर ने आगे कहा कि दुनिया असाधारण उथल-पुथल के दौर से गुजर रही है. यही असाधारण जिम्मेदारी का भाव है कि भारत ने जी20 की अध्यक्षता संभाली. 


विदेश मंत्री ने कहा कि 'एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य' का भारत का दृष्टिकोण महज कुछ देशों के संकीर्ण हितों पर नहीं, बल्कि कई राष्ट्रों की प्रमुख चिंताओं पर ध्यान केंद्रित करने का प्रयास करता है. उन्होंने कहा, ‘‘संरचनात्मक असमानताओं और असमान विकास ने ‘ग्लोबल साउथ’ पर बोझ डाल दिया है. लेकिन कोविड-19 महामारी के प्रभाव और मौजूदा संघर्षों, तनावों और विवादों के नतीजों से तनाव बढ़ गया है. इसका नतीजा ये हुआ कि हाल के वर्षों के सामाजिक-आर्थिक लाभ उलट गए हैं.’’ जयशंकर ने कहा, ‘‘जब पूर्व-पश्चिम ध्रुवीकरण इतना तेजी से हो रहा है और उत्तर-दक्षिण विभाजन इतना गहरा है, ऐसे में नई दिल्ली में जी-20 शिखर सम्मेलन ने इस बात को दोहराया कि कूटनीति और संवाद ही एकमात्र प्रभावी समाधान है.’’