भारत की अध्यक्षता में G20 मीटिंग की सेंचुरी पूरी, नई दिल्ली की अध्यक्षता क्यों है पूरी दुनिया के लिए अहम
G20 India: दुनिया की सभी बड़ी आर्थिक शक्तियां G20 के सदस्य हैं. वैश्विक जीडीपी में G20 का हिस्सा करीब 85 प्रतिशत है. वैश्विक व्यापार में इस समूह का योगदान 75 फीसदी से भी ज्यादा है.
G20 India Presidency: दुनिया का सबसे ताकतवर आर्थिक समूह G20 है. फिलहाल इस महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय समूह के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी भारत निभा रहा है. भारत एक दिसंबर 2022 से G20 की अध्यक्षता संभाल रहा है.
बतौर G20 अध्यक्ष भारत ने 17 अप्रैल (सोमवार) को एक अहम पड़ाव पार कर लिया है. ये हम सब जानते हैं जब से भारत ने ये जिम्मेदारी संभाली है, वो लगातार इस समूह के तले अलग-अलग क्षेत्रों और मुद्दों पर बैठकों का आयोजन कर रहा है. इस क्रम में भारत ने G20 समूह की अपनी अध्यक्षता में मीटिंग की सेंचुरी (शतक) पूरी कर ली है.
भारत की अध्यक्षता में G20 बैठकों का शतक पूरा
जी 20 के बैनर तले 17 अप्रैल को वाराणसी में सदस्य देशों के मुख्य कृषि वैज्ञानिकों की बैठक आयोजित हुई. इसके साथ ही भारत ने जी 20 की अपनी अध्यक्षता में बेहद महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल कर लिया. यह भारत की अध्यक्षता में समूह की 100वीं बैठक थी. इस उपलब्धि के बारे में बकायदा भारतीय विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर जानकारी. इसके मुताबिक 100वीं बैठक तक 28 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के 41 शहरों में जी 20 की 100 बैठकें आयोजित की जा चुकी हैं. विदेश मंत्रालय ने जानकारी दी कि 17 अप्रैल को ही गोवा में दूसरे स्वास्थ्य कार्य समूह की बैठक, हैदराबाद में डिजिटल अर्थव्यवस्था पर दूसरे कार्य समूह की बैठक और शिलांग में अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था पर नेताओं की बैठक आयोजित की गई. इस तरह से 17 अप्रैल तक भारत 103 बैठकों का आयोजन कर चुका है.
नई दिल्ली में 9-10 सितंबर को G20 शिखर सम्मेलन
जी20 बाली शिखर सम्मेलन में 16 नवंबर, 2022 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जी 20 की अध्यक्षता सौंपी गई थी. अध्यक्षता सौंपे जाने के बाद, भारत की साल भर चलने वाली जी 20 अध्यक्षता 1 दिसंबर, 2022 को शुरू हुई. भारत इस साल 30 नवंबर तक जी 20 का अध्यक्ष है. जी 20 समूह की सबसे बड़ी बैठक सालाना शिखर सम्मेलन है. भारत की अध्यक्षता में जी 20 का शिखर सम्मेलन 9 और 10 सितंबर को नई दिल्ली में आयोजित होगा. शिखर सम्मेलन में सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्ष शामिल होते है. ये वो मौका होगा जब दुनिया के तमाम विकसित देशों के राष्ट्र प्रमुख एक साथ भारत में जुटेंगे. दरअसल इस बैठक से पहले अलग-अलग मुद्दों पर सदस्य देशों के एक्सपर्ट और मंत्री स्तरीय बैठकें होती हैं, जिसके जरिए सालाना शिखर सम्मेलन के एजेंडे को अंतिम रूप दिया जा सके. विदेश मंत्रालय का कहना है कि शिखर सम्मेलन से पहले की तैयारियों को लेकर भारत जो भी बैठक कर रहा है और उसके जरिए समावेशी, महत्वाकांक्षी, कार्य-उन्मुख और निर्णायक एजेंडे के लिए जी 20 सदस्यों और अतिथि देशों से भरपूर समर्थन मिल रहा है.
जी 20 अध्यक्षता में 200 से ज्यादा मीटिंग होनी है
भारत की अध्यक्षता के दौरान एक साल के दौरान कुल 200 से ज्यादा मीटिंग होनी हैं, ये बैठकें करीब 60 शहरों में निर्धारित है. आप समझ सकते हैं कि भारत पहली बार कितने बड़े पैमाने पर 200 से ज्यादा बैठकों के लिए विदेशी प्रतिनिधियों की मेजबानी कर रहा है. विदेश मंत्रालय के मुताबिक ये किसी भी जी20 अध्यक्षता में सबसे व्यापक भौगोलिक विस्तार है. सभी 13 शेरपा ट्रैक वर्किंग ग्रुप, 8 फाइनेंस ट्रैक वर्कस्ट्रीम, 11 इंगेजमेंट ग्रुप और 4 इनिशिएटिव्स ने ठोस बातचीत शुरू की है. अब तक 110 से ज्यादा राष्ट्रीयता वाले 12,300 से अधिक प्रतिनिधियों ने जी20 से जुड़े बैठकों में हिस्सा लिया है. इसमें G20 सदस्यों, 9 आमंत्रित देशों और 14 अंतरराष्ट्रीय संगठनों की भागीदारी शामिल है.
भारत क्या नया कर रहा है?
भारत की जी 20 अध्यक्षता के दौरान आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR) पर एक नया वर्किंग ग्रुप, एक नया इंगेजमेंट ग्रुप "स्टार्टअप 20" और एक नई पहल के रूप में मुख्य विज्ञान सलाहकार गोलमेज सम्मेलन (CSAR) का संचालन किया गया है. अब तक तीन मंत्रिस्तरीय बैठक हो चुकी हैं. वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक के गवर्नरों की पहली बैठक 24-25 फरवरी को बेंगलुरु में, वहीं जी20 विदेश मंत्रियों की बैठक 1-2 को नई दिल्ली में आयोजित की गई. वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक के गवर्नरों की दूसरी बैठक 12-13 अप्रैल 2023 को वाशिंगटन डीसी में आयोजित की गई. दो शेरपा बैठक 4 से 7 दिसंबर 2022 के बीच उदयपुर और 30 मार्च से 2 अप्रैल के बीच कुमारकोम में हुईं. 28 विदेश मंत्रियों और 2 उप विदेश मंत्रियों ने जी 20 विदेश मंत्रियों की बैठक में हिस्सा लिया था.
साझा प्राथमिकताओं पर सहमति
इस सभी बैठक से ठोस नतीजे निकले हैं, जिनसे जी 20 की साझा प्राथमिकताओं पर आम सहमति को बढ़ावा मिला है. साझा प्राथमिकताओं में Multilateral Development Bank सुधारों और ऋण उपायों पर एक विशेषज्ञ समूह की स्थापना शामिल है. इसके अलावा विदेश मंत्रियों की बैठक में बहुपक्षीय सुधारों, विकास सहयोग, खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा, आतंकवाद का मुकाबला, नए और उभरते खतरों, वैश्विक कौशल मैपिंग और आपदा जोखिम में कमी लाने पर सहमति बनी है.
गरीब देशों की आवाज बना भारत
जब से G20 का अध्यक्ष बना है, भारत लगातार ग्लोबल साउथ और विकासशील देशों की आवाज बना है. उनकी चिंताओं को भी दुनिया के सामने मजबूती से रख रहा है. प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में जनवरी में 'वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ' शिखर सम्मेलन हुआ. इसमें 125 देशों ने भाग लिया, जिनमें 18 देश या सरकार के प्रमुख थे और बाकी मंत्री स्तर के प्रतिनिधि शामिल थे. भारत की अध्यक्षता के दौरान अफ्रीका से अब तक की सबसे ज्यादा भागीदारी हुई है, जिसमें दक्षिण अफ्रीका, मॉरीशस, मिस्र, नाइजीरिया, अफ्रीकन यूनियन के अध्यक्ष कोमोरोस और एयूडीए-एनईपीएडी शामिल हैं. दक्षिण अफ्रीका खुद भी जी 20 सदस्य है. भारत का मानना है कि छोटे-छोटे गरीब और अल्पविकसित देशों की बातें अक्सर अनसुनी कर दी जाती हैं. भारत G20 की प्राथमिकताओं को तय करने में कम विकसित देशों की राय और हितों को भी जगह देगा...इस बात को लेकर दुनिया के कई देश भारत को अध्यक्षता मिलने के वक्त से आशान्वित हैं.
जी 20 की अध्यक्षता के जरिए भारत दुनिया का नया सिरमौर बनने की राह पर है. दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भारत हाल के वर्षों में बड़ी वैश्विक शक्ति के रूप में उभरा है. वो बिना किसी लाग-लपेट के वैश्विक जिम्मेदारियों को निभाने के लिए भी पूरी तरह से तैयार है. भारत में हर बड़े मुद्दे पर वैश्विक बिखराव को सामूहिक सहयोग में बदलने की क्षमता है. G20 समूह की अध्यक्षता संभालते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरी दुनिया के लिए स्पष्ट संदेश दे दिया था कि भारत दुनिया में एकता की सार्वभौमिक भावना को बढ़ावा देने के लिए काम करेगा. भारत ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ के मंत्र के साथ आगे बढ़ेगा. इस मंत्र के साथ ही भारत ने अपने इरादे जता दिए हैं कि वो दुनिया की अगुवाई करने के लिए पूरी तरह से तैयार है.
भारत विकसित देशों से तो मजबूत रिश्ते रखता ही है, विकासशील देशों के हितों को भी अच्छी तरह से समझता है. भारत अपने ग्लोबल साउथ के सभी दोस्तों के दु:ख-दर्द को समझते हुए उनकी मदद के लिए हमेशा आगे रहता है. ग्लोबल साउथ का इस्तेमाल विकासशील और कम विकसित लैटिन अमेरिकी, एशियाई, अफ्रीकी और ओशियानिया क्षेत्र के देशों के लिए किया जाता है. भारत हमेशा इस बात को उठाते रहा है कि दुनिया की बड़ी आर्थिक शक्तियों ने अपने हितों के लिए इन देशों की अनदेखी की है. 'एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ के मंत्र के जरिए भारत इन देशों को भी समानता के धरातल पर लेकर चलने की बात करता है.
G20 समूह में मानवीय पहलू पर भी हो ज़ोर
भारत ने हमेशा ही G20 को एक मजबूत संगठन बनाने और सदस्य देशों के बीच आर्थिक के साथ ही मानवीय सहयोग बढ़ाने पर जोर दिया है. 2018 में अर्जेंटीना की राजधानी ब्यूनस आयर्स में हुए G20 के 13वें सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पुरजोर तरीके से कहा था कि पूरी दुनिया के हित में है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था, टिकाऊ विकास, जलवायु परिवर्तन और भगोड़ा आर्थिक अपराधियों जैसे मुद्दों पर सदस्य देशों के बीच सहयोग बढ़े. भारत का हमेशा से मानना रहा है कि दुनिया के शीर्ष ताकतों को सिर्फ अपने बारे में नहीं सोचना चाहिए. आर्थिक रूप से संपन्न देशों को छोटे-छोटे देशों के हितों का भी उतना ही ख्याल रखना होगा. प्रधानमंत्री के एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य का मंत्र इस बात की ओर ही संकेत है. भारत में वैश्विक विकास को फिर से पटरी पर लाने, खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा, पर्यावरण, स्वास्थ्य और डिजिटल परिवर्तन जैसे वैश्विक चिंता के प्रमुख मुद्दों पर दुनिया की अगुवाई करने की क्षमता है. इस पहलू को अब दुनिया की तमाम बड़ी शक्तियां भी स्वीकार करने लगी हैं.
क्या हो G20 के भविष्य की दिशा ?
अध्यक्षता ग्रहण करने के बाद ही भारत ने G20 के भविष्य की दिशा भी स्पष्ट कर दी थी. उस वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि क्या जी20 अब भी और आगे बढ़ सकता है? क्या हम समूची मानवता के कल्याण के लिए मानसिकता में मूलभूत बदलाव ला सकते हैं. भारत की ये सोच ही बताती है कि वो सिर्फ चुनिंदा देशों को लेकर चलने वाला नहीं है. उसके लिए पूरी मानवता महत्वपूर्ण है. भारत का ये हमेशा से नजरिया रहा है कि G20 शिखर सम्मेलन सिर्फ राजनयिक बैठक नहीं है. बतौर अध्यक्ष भारत इसे एक नई जिम्मेदारी और दुनिया के भरोसे के तौर पर लेकर आगे बढ़ रहा है.
रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर भारत पर निगाह
रूस-यूक्रेन के बीच जारी युद्ध को अब कुछ दिनों में 13 महीने हो जाएंगे. इन दोनों ही देशों की ओर से पीछे हटने के कोई संकेत नहीं मिल रहे हैं. इस युद्ध से कच्चे तेल और गैस की कीमतों में तेजी से इजाफा हो रहा है. इस वजह से दुनिया पर आर्थिक मंदी का खतरा भी बढ़ते जा रहा है. रूस, अमेरिका समेत कई पश्चिमी देशों की सख्त चेतावनी और पाबंदी के बावजूद अपने रुख पर अड़ा है. इस संदर्भ में भी भारत की जी 20 अध्यक्षता का दुनियाभर के देशों के लिए से ज्यादा मायने हैं. अगर इसी तरह ये युद्ध जी20 शिखर सम्मेलन यानी सितंबर तक जारी रहता है, तो कई देशों की इस पर नज़र रहेगी कि इस युद्ध को खत्म कराने में भारत जी 20 शिखर सम्मेलन के जरिए सकारात्मक भूमिका निभाए. युद्ध को खत्म कराने के नजरिए से दुनिया की नजर भारत पर टिकी है. भारत की अनूठी जियो-पॉलिटिकल स्थिति की वजह से ये उम्मीद और बढ़ गई है. भारत ऐसा देश है जो पश्चिम और रूस दोनों के करीब है. जी 20 की अध्यक्षता मिलने के बाद इस मसले पर भारत दुनिया के सामने ज्यादा प्रभावी भूमिका निभाने की स्थिति में है. आर्थिक महाशक्तियों के साथ ही विदेश मामलों के ज्यादातर जानकारों का भी मानना है कि रूस और पश्चिमी देशों के बीच खाई पाटने की क्षमता सिर्फ भारत में ही है.
वैश्विक एजेंडे को तय करेगा भारत
भारत रूस और पश्चिमी देशों के साथ अपने संबंधों में बेहद ही कूटनीतिक तरीके से संतुलन बनाकर चल रहा है. भारत की विदेश नीति वैश्विक मंच पर नेतृत्व की भूमिका निभाने के लिए विकसित हो रही है. G20 की अध्यक्षता भारत के लिए वैश्विक एजेंडा तय करने के नजरिए से अगुवा बनने का एक अनूठा मौका है. दुनिया में ज़बरदस्त उथल-पुथल मची है, ऐसे दौर में भारत G20 की अध्यक्षता की जिम्मेदारी निभा रहा है. भारत के पास बड़ी सोच और बेहतर नतीजे देने की कला है. लंबे वक्त से दुनिया के अधिकांश देश भारत से वैश्विक चुनौतियों से निपटने में पहल की आस में हैं.
भारत के नेतृत्व में वैश्विक चुनौतियों का सामूहिक हल
भारत की जी 20 की अध्यक्षता का ध्येय वाक्य - 'वसुधैव कुटुम्बकम' है. जी 20 LOGO को भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रंगों में डिजाइन किया गया. भारत में आयोजित हो रही बैठकों में जी 20 सदस्य देशों और आमंत्रित देशों का एक साथ आकर व्यापक, बड़े पैमाने पर और उत्साहपूर्ण भागीदारी दुनियाभर के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. ये दिखाता है कि समकालीन वैश्विक चुनौतियों को सामूहिक रूप से हल करने के लिए दुनिया के तमाम देश भारत की अगुवाई स्वीकार कर रहे हैं. या फिर ये कहें कि उन चुनौतियों के समाधान को लेकर भारत पर दुनिया की निगाहें टिकी हैं.
क्या है G20 और क्यों पड़ी जरूरत ?
G20 दुनिया का सबसे ताकतवर आर्थिक समूह है. यह यूरोपीय संघ और दुनिया की 19 बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का समूह है. यह समूह अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक मुद्दों पर वैश्विक सोच को आकार देने और मजबूत बनाने का काम करता है. एशियाई वित्तीय संकट के बाद 1999 में G20 की स्थापना की गई थी. शुरुआत में ये वैश्विक आर्थिक और वित्तीय मुद्दों पर चर्चा करने के लिए वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक के गवर्नरों के लिए एक मंच था. इसकी पहली बैठक दिसंबर, 1999 में बर्लिन में हुई.
2008 में G20 का हुआ अपग्रेडेशन
2007 के वैश्विक आर्थिक और वित्तीय संकट को ध्यान में रख कर इस मंच को अपग्रेड किया गया. 2008 से इस समूह का वार्षिक शिखर वार्ता आयोजित होने लगा जिसमें सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्ष या सरकारी प्रमुख शामिल होने लगे. नवंबर 2008 में अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डीसी में G20 देशों के राष्ट्राध्यक्षों की पहली शिखर वार्ता हुई. उसके बाद से अब तक बाली को मिलाकर 17 शिखर वार्ता का आयोजन हो चुका है. G20 का 18वां शिखर वार्ता अगले साल सितंबर में दिल्ली में होना है.
क्यों इतना महत्वपूर्ण है G20 का मंच ?
दुनिया की सभी बड़ी आर्थिक शक्तियां G20 के सदस्य हैं. वैश्विक जीडीपी में जी 20 का हिस्सा करीब 85 प्रतिशत है. वैश्विक व्यापार में इस समूह का योगदान 75 फीसदी से भी ज्यादा है. मानव संसाधन के नजरिए से भी ये बेहद महत्वपूर्ण है. इस समूह के सदस्य देशों में विश्व की कुल आबादी का 67 प्रतिशत हिस्सा रहता है. यही सारे देश वैश्विक अर्थव्यवस्था की दिशा और दशा तय करते हैं. हम कह सकते हैं कि The Group of Twenty यानी G20 अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग का सबसे महत्वपूर्ण और ताकतवर मंच है. इसमें विकसित देश भी हैं और विकासशील देश भी. अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संरचना में सुधार के साथ ही ये समूह वैश्विक वित्तीय संकट को टालने के उपाय खोजता है.
कौन-कौन देश हैं G20 के सदस्य ?
जी 20 समूह में यूरोपीय संघ के साथ ही 19 देश शामिल हैं. G-20 में उत्तर अमेरिका से कनाडा, मेक्सिको और संयुक्त राज्य अमेरिका है. दक्षिण अमेरिका अर्जेंटीना और ब्राज़ील शामिल हैं. अफ्रीका महाद्वीप से दक्षिण अफ्रीका है. पूर्व एशिया से तीन देश चीन, जापान और दक्षिण कोरिया शामिल हैं. दक्षिण एशिया से भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया से इंडोनेशिया शामिल हैं. वहीं मध्य-पूर्व एशिया से सऊदी अरब शामिल हैं. यूरेशिया से रूस और तुर्की के अलावा यूरोप से फ्रांस, जर्मनी, इटली और यूनाइटेड किंगडम इसके सदस्य हैं. ओशियानिया से ऑस्ट्रेलिया G20 का सदस्य है. इनके अलावा यूरोपीय संघ भी इसका सदस्य है.
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