राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन द्वारा 4 नवम्बर को डॉ अंबेडकर इंटरनेशन सेंटर में गंगा उत्सव- नदी महोत्सव 2023 का भव्य आयोजन किया गया. गंगा उत्सव 2023 संगीत, नृत्य, ज्ञान, संस्कृति और संवाद का एक ऐसा कोलाज था जिसने लोगों और नदियों के बीच गहरे संबंध को दिखाया और नदी कायाकल्प के बारे में जागरूकता बढ़ाई. विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से जनता को अपनी विरासत और नदियों के महत्व के बारे में जागरूक किया गया. नमामि गंगे गान, बांसुरी वादन, "यमुना गीत" और पारंपरिक लोक नृत्य के माध्यम से नदियों के जीवन और नदियों पर हमारे जीवन के आश्रित होने को बखूबी चित्रित किया गया. कार्यक्रम में एनबीटी के सहयोग से नमामि गंगे पत्रिका के 33वें संस्करण, नई चाचा चौधरी श्रृंखला और गंगा पुस्तक परिक्रमा पर आधारित वॉयस ऑफ गंगा बुकलेट का विमोचन भी किया गया. गंगा पुस्तक परिक्रमा के दूसरे संस्करण को भी रवाना किया गया जो 7 नवंबर 2023 को गंगोत्री से अपनी 3 महीने लंबी यात्रा शुरू करेगी और गंगा नदी के तट पर स्थित सभी शहरों और कस्बों - उत्तरकाशी, ऋषिकेश, हरिद्वार, बिजनोर, मेरठ, अलीगढ, फर्रुखाबाद, कानपुर, प्रयागराज, मिर्ज़ापुर, वाराणसी, छपरा, पटना, बेगुसराय, सुल्तानगंज, भागलपुर, साहिबगंज, बहरामपुर, कोलकाता , और हल्दिया से गुजरते हुए  11 जनवरी 2024 को गंगासागर पर अपनी यात्रा ख़त्म करेगी.


गंगा एक नदी मात्र नहीं, भावना है


गंगा केवल एक नदी नहीं है, बल्कि एक गहरी भावना है जो हम सभी के साथ जुड़ी हुई है. नई पीढ़ी के सहयोग से इसके कायाकल्प के प्रयासों में उल्लेखनीय प्रगति संतोष की बात है, लेकिन अभी बहुत काम करना बाकी है. हमारी नदियों के गहरे सांस्कृतिक महत्व और आयाम हैं. मशहूर शायर गालिब और यमुना के बीच खूबसूरत संबंध थे, यमुना को कालिंदी भी कहा जाता है और उसके तट पर श्रीकृष्ण की लीलाएं हिंदू समाज के घर-घर में कही और सुनी जाती हैं. नदियों का संरक्षण न केवल सरकार की बल्कि हम सभी की एक साझा जिम्मेदारी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमारे देश के सतत विकास में जल की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया है.



जल निकायों को दूषित करने वाले ठोस अपशिष्ट के निष्तारण  की तत्काल आवश्यकता है और हममें से प्रत्येक को आगे आकर अपनी नदियों के संरक्षण में योगदान देना चाहिए. जल निकायों में सीवेज के प्रवाह और प्लास्टिक अपशिष्ट का नियंत्रण अगर जल्द नहीं किया गया, तो हालात बदतर हो जाएंगे. नदियों की सफाई और पुनर्जीवन सामूहिक सहयोग से ही संभव है. जल संरक्षण से ही नदियों के पुनर्जीवन को पाया जा सकता है. इसमें सामूहिक कार्रवाई और सहयोग की जरूरत है. जल संरक्षण और नदी का पुनर्जीवन मौलिक जिम्मेदारियां हैं जिन्हें हम सभी साझा करते हैं. नदी-पुनर्जीवन के नेक काम में जन आंदोलन (लोगों का आंदोलन) की महत्वपूर्ण भूमिका है. 


भारत में गंगा का महत्व बेहद अधिक


भारत में गंगा नदी के महत्व को इसी से समझा जा सकता है कि वर्ष 2008 में भारत की राष्ट्रीय नदी इसे  घोषित किया गया. इसी क्रम में हर वर्ष 4 नवंबर को  गंगा उत्सव का आयोजन किया जाता है. हर वर्ष यह शुभ दिन बच्चों सहित विभिन्न स्टेकहोल्डर्स को उत्सवों और गतिविधियों में एकजुट रखता है. डॉ. अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में ही "कैच द रेन" अभियान शुरू हुआ है, जिससे गंगा नदी को, हमारे भूजल स्तर को और अन्य जलाशयों को भी दुरुस्त करने की दिशा में, जागरूकता फैलाने की दिशा में काफी काम किया जा रहा है. प्रधानमंत्री ने देश के कोने-कोने से आए सरपंचों को संबोधित करते हुए हमारी साझा विरासत में गंगा की महत्वपूर्ण भूमिका बताई थी और उनसे अपील की थी कि वह अपनी पंचायतों में जलाशयों को संरक्षित करने का काम शुरू करें. 


कनाडा के मॉन्ट्रियल में 13 दिसंबर 2022 को संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता सम्मेलन (सीओपी15) में ‘नमामि गंगे’ को दुनिया की शीर्ष-10 पारिस्थितिकी तंत्र कायाकल्प पहलों में से एक के रूप में मान्यता मिलना पूरे देश के लिए गर्व की बात है. भारत का यह प्रयास दुनिया भर में इसी तरह के अन्य हस्तक्षेपों के लिए एक रोडमैप प्रदान करेगा. गंगा बेसिन में विभिन्न जिला गंगा समितियों द्वारा भी गंगा उत्सव 2023 मनाया गया है और नमामि गंगे ने जिला गंगा समितियों के साथ नियमित बैठकें आयोजित करके गंगा से संबंधित गतिविधियों के विकेंद्रीकरण की वकालत की है, जो एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है. ये बैठकें लोगों के साथ मजबूत संबंध बनाने, गंगा प्रहरियों, जिला परियोजना अधिकारियों, गंगा दूतों आदि के माध्यम से लोगों की भागीदारी में सकारात्मक कदम उठाने का रास्ता दिखाती हैं.


नमामि गंगे दिवस के लिए जनसमर्थन 


अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस में गंगा घाटों पर 5 लाख लोगों की भागीदारी देखी गई, जो लोगों द्वारा नमामि गंगे मिशन के लिए जबरदस्त समर्थन दिखाता है. हमारे प्रयास इंजीनियरिंग-उन्मुख मिशन से विकसित हुए हैं, जो सीवेज उपचार संयंत्रों के निर्माण से लेकर अर्थ गंगा मॉडल तक पर केंद्रित है, जिसमें सामुदायिक भागीदारी, शैक्षिक गतिविधियों और स्थानीय लोगों के लिए आजीविका सृजन पर जोर दिया गया है. यह बदलाव अत्यधिक इंजीनियरिंग-उन्मुख कार्यक्रम की ओर से ऐसे झुकाव का प्रतीक है जो रोजगार सृजन के अवसरों वाले लोगों के साथ नदी के संबंध को प्राथमिकता देता है. गंगा और उसकी सहायक नदियों में डॉल्फ़िन की आबादी में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है. गंगा नदी के लिए एक जीवंत पारिस्थितिकी तंत्र बनाने का सहयोगी प्रयास जोरशोर से किया जा रहा है. नदी के किनारे समर्पित महिला स्वयंसेवकों का एक समूह स्वच्छ गंगा का संदेश फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. दिल्ली हाट-जलज परियोजना गंगा बेसिन में रहने वाली इन महिलाओं द्वारा तैयार किए गए उत्पादों को प्रदर्शित करती है, जो आर्थिक स्थिरता में योगदान देती हैं.


अब आगे की राह यही है कि इस तरह के उत्सवों और विचार-मंथनों से जो उपाय निकलते हैं, उनको पूरे देश में फैलाया जाए और गंगा-यमुना सहित बाकी सभी नदियों को भी पुनर्जीवन दिया जाए, उनके स्वास्थ्य को कचरे औऱ सीवेज से घोंटा न जाए, मुक्त किया जाए.