India Germany: जर्मन चांसलर ओलाफ शोल्ज शनिवार (25 फरवरी) को अपने पहले भारत दौरे पर नई दिल्ली आ रहे हैं. इस दौरान वे भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ कई द्विपक्षीय मुद्दों समेत अंतरराष्ट्रीय मसलों पर भी विस्तार से चर्चा करेंगे. इनमें   रूस- यूक्रेन युद्ध का हल, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते दबदबे और जर्मनी की कंपनियों का चीन से हटाकर भारत पर फोकस करने जैसे मुद्दे प्रमुख हैं.


जर्मनी के चांसलर की यात्रा को लेकर भारत में जर्मन राजदूत फिलिप एकरमैन ने ख़ास बातचीत की. उन्होंने कहा कि ओलाफ शोल्ज की भारत यात्रा का एक प्रमुख मकसद भारत सरकार के साथ नियमित तौर से बातचीत के जरिए व्यापार से लेकर सामरिक मामलों में द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत बनाना है.


25 फरवरी को भारत आएंगे जर्मन चांसलर


जर्मनी के चांसलर ओलाफ शोल्ज 25 फरवरी को दो दिवसीय राजकीय यात्रा पर भारत आएंगे. ये उनके इस पद पर आसीन होने के एक साल से भी अधिक समय बाद भारत की पहली यात्रा है. शोल्ज के साथ वरिष्ठ अधिकारी और कारोबारी प्रतिनिधिमंडल भी होगा. उम्मीद है कि ओलाफ शोल्ज जी 20 के सालाना शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए सितंबर में फिर से दिल्ली आएंगे. भारत फिलहाल जी 20 की अध्यक्षता कर रहा है.


जर्मनी बढ़ाना चाहता है व्यापारिक संबंध


एकरमैन ने एबीपी लाइव से कहा कि मुझे उम्मीद है कि दोनों नेता दुनिया में अभी क्या चल रहा है, उस पर भी बात करेंगे और मौजूदा चुनौतियों से निपटने के लिए अपने-अपने अनुभवों को साझा करेंगे. उन्होंने चीन के साथ बर्लिन के बढ़ते तनाव का हवाला देते हुए ये भी कहा कि जर्मनी भारत से व्यापारिक रिश्ते और मजबूत करना चाहता है. जर्मन कारोबारियों ने अपने दायरे को बढ़ाने का फैसला किया है. वे चाहते हैं कि चीन से फोकस हटाकर दूसरे देशों के विकल्प पर ध्यान लगाया जाए और इस नजरिए से भारत एक अच्छा विकल्प साबित होगा. फिलिप एकरमैन ने कहा कि जर्मनी यूरोप के अंदर भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार रहा है. कोविड के बावजूद दोनों देशों के बीच 30 बिलियन यूरो का व्यापार हुआ है. यह दोनों देशों के बीच 15 बिलियन यूरो के साथ एक संतुलित व्यापार है.


चीन का विकल्प बन सकता है भारत


जर्मनी के राजदूत ने कहा कि जर्मन उद्योग प्रस्तावित भारत-यूरोपीय संघ मुक्त व्यापार समझौते पर अमल करने को लेकर बेहद उत्सुक है. जर्मनी चीन की तुलना में बड़ बाजार की तलाश में है और इस नजरिए भारत में निवेश बढ़ाएगा. चीन के साथ तनाव के बीच व्यापार जारी है. ऐसी कोई समस्या नहीं है, लेकिन हमें लगता है कि जर्मनी को सिर्फ एक ही विकल्प पर ध्यान नहीं देना चाहिए. आकार और बाजार के लिहाज से चीन की तुलना में भारत ही एकमात्र देश है, जो हमारे लिए बेहद महत्वपूर्ण है. जर्मनी के चांसलर ओलाफ शोल्ज ने नवंबर 2022 में चीन का दौरा किया था. उस दौरान उन्होंने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ मुलाकात की थी. ये यात्रा जर्मनी-चीन के राजनयिक संबंधों की 50वीं वर्षगांठ को देखते हुए हुई थी. वे पिछले तीन साल चीन की यात्रा करने वाले पहले यूरोपीय नेता थे.


हिंद-प्रशांत में चीन के बढ़ते दबदबे से चिंता


जर्मनी के राजदूत फिलिप एकरमैन ने कहा कि फिलहाल बर्लिन और बीजिंग के साथ व्यापारिक संबंध बिना किसी बाधा के जारी है., लेकिन जर्मनी हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते सैन्य दखलंदाजी से चिंतित है. उन्होंने माना कि व्यापारिक साझेदार के तौर पर तो चीन के साथ कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन कूटनीतिक रिश्तों में प्रतिस्पर्धा और प्रतिद्वंद्विता को लेकर भी हमेशा सचेत रहना चाहिए. उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि हम निश्चित रूप से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती गतिविधियों को लेकर चिंतित हैं. इसलिए मुझे लगता है कि भारत और जर्मनी को अन्य देशों के साथ मिलकर चीन को रोकने के लिए काम करना चाहिए. इस दिशा में काम हो भी रहा है और आने वाले वक्त में इस नजरिए से भारत-जर्मनी के संबंधों को और मजबूत किए जाने की जरूरत है.


रक्षा और सामरिक संबंध बढ़ाने पर ज़ोर


जर्मनी सितंबर 2020 में नियम-आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था पर ध्यान केंद्रित करते हुए इंडो-पैसेफिक पॉलिसी लेकर आया था. इस नीति के तहत ही जर्मनी, भारत के साथ रक्षा और सामरिक संबंधों को बढ़ा रहा है.  समुद्री सुरक्षा सहयोग को बढ़ाने के नजरिए से जर्मनी ने जनवरी 2022 में अपने जंगीजहाज बायर्न (Bayern) को मुंबई भेजा था.  पिछले हफ्ते जर्मनी के विदेश और सुरक्षा नीति सलाहकार जेन्स प्लॉटनर ने भारत का दौरा किया था. इस दौरान उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर से मुलाकात की थी. उन्होंने अपनी भारत यात्रा के दौरान कहा था कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर भारत और चीन के सैन्य तनाव को लेकर जर्मनी चिंतित है.


रूस-यूक्रेन युद्ध का हल निकालने में भारत की भूमिका


जर्मनी के राजदूत ने कहा कि रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध का एक साल होने जा रहा है और इसका समाधान निकालने में नई दिल्ली महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. अंतरराष्ट्रीय पटल पर भारत महत्वपूर्ण स्थान रखता है. एकरमैन ने कहा कि भारत न तो रूस और न ही पश्चिमी देशों के किसी गुट का हिस्सा है. भारत का रूस के साथ काफी पुराना और मजबूत संबंध रहा है. ऐसे में मेरा मानना है कि भारत को इस दिशा में आगे आकर समाधान निकालने की कोशिश करनी चाहिए. समाधान के लिए दोनों पक्षों की ओर से पहल की जरूरत होती है और मुझे लगता लगता है कि रूस इसको लेकर तत्पर नहीं दिख रहा है.


जर्मन राजदूत एकरमैन ने माना कि रूस ने कभी नहीं सोचा होगा कि ये युद्ध इतने लंबे वक्त तक चल जाएगा. रूस को लगता था कि वो जल्द ही इस युद्ध को जीत लेगा, जबकि इसके विपरीत हुआ. उन्होंने कहा कि रूस इस युद्ध को किसी प्रकार का निर्णय निकलने तक जारी रखने के पक्ष में दिख रहा है. भारत इन हालातों पर जरूर नज़र रख रहा होगा. जर्मनी के राजदूत ने भरोसा जताया कि भारत वक्त के हिसाब से जरूर इस दिशा में पहल करेगा और हम उसके किसी भी कदम का स्वागत करेंगे.