बदल रहा भारत का डिजिटल लैंडस्केप, DPI के जरिए सरकार कर रही है वंचित-शोषित तबके का भी डिजिटल इनक्लूजन
वर्ल्ड बैंक के मुताबिक आधार ने फाइनांशियल इनक्लूजन को बढ़ाया. जनधन, आधार और मोबाइल, ये तीनों एक तरफ से जुड़ गए हैं और इससे किसानों को, महिलाओं को, गरीबों को कल्याणकारी योजनाओं का सीधा लाभ मिला है.

भारत बदल रहा है. रूपांतरित हो रहा है. इस रूपांतरण में भारत का डिजिटल लैंडस्केप भी पूरी तरह बदल गया है. यह संभव हुआ है डीपीआई यानी डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर से. भौतिक इंफ्रास्ट्रक्चर की नकल पर बने ये डीपीआई ही दरअसल वो रास्ता है, जो अनिवार्य सेवाओं को बेलागलपेट मुहैया कर समाज को सुविधा पहुंचा रहे हैं. भारतीय डीपीआई इकोसिस्टम की वजह से पहचान, भुगतान और डाटा साझा करने की असीम संभावनाएं खुली हैं, जिनकी वजह से आर्थिक विकास तेज हुआ है और एक समग्र डिजिटल अर्थव्यवस्था तैयार हो रही है. इसकी रूपांतरित करनेवाली योग्यता इस वजह से है कि यह बहुत तरह से उपयोग किया जा सकता है और यह नवोन्मेष और प्रतियोगिता को बढ़ावा देता है.
भारत डिजिटल दौड़ में आगे
भारत ने अब तक जो डीपीआई निर्मित किए हैं, उन्हें काफी सराहना और पहचान मिली है. वर्ल्ड बैंक के मुताबिक आधार ने वित्तीय सम्मिलन (फाइनांशियल इनक्लूजन) को बढ़ावा दिया है. जन धन, आधार और मोबाइल, ये तीनों एक तरफ से जुड़ गए हैं औऱ इसकी वजह से किसानों को, महिलाओं को, गरीबों को कल्याणकारी योजनाओं का सीधा लाभ (डायरेक्ट बेनेफिट) मिला है. यूपीआई ने तो भारत की तस्वीर ही बदल दी है. इसकी वजह से रीयल-टाइम में एक बैंक से दूसरे बैंक भी पैसा ट्रांसफर किया जा रहा है. जून के दूसरे सप्ताह में भारत ने सार्वजनिक डिजिटल ढांचे को लेकर दो दिनों का ग्लोबल समिट भी किया था. भारत सहति आर्मीनिया, सिएरा लियोन, सूरीनाम, एंटीगुआ और बारबुडा ने भारत स्टैक साझा करने पर समझौता किया.
यह जनसंख्या के पैमाने पर लागू सफल डिजिटल समाधान है. इसमें 50 देशों के 150 विदेशी प्रतिनिधियों ने भी हिस्सा लिया था. इसका लाइव सेशन भी था, जिसमें दो हजार से अधिक लोगों ने लाइव हिस्सा लिया. प्रधानमंत्री मोदी अक्सर ही कहते हैं कि डीपीआई प्रारूप भारत समेत दुनियाभर के लिए डिजिटल गवर्नेंस का भविष्य है. हम डीपीआई की ताकत का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि पिछले पांच साल में भारत सरकार ने अपने नागरिकों को 400 अरब डॉलर से अधिक रकम हस्तांतरित की है और इसमें कोई भी गलती नहीं हुई है. इस तरह भारत ने अपनी ताकत दर्शाई है. डीपीआई के इर्दगिर्द जिस तरह की भागीदारी का प्रस्ताव भारत रख रहा है, वह दुनिया के सभी देशों के लिए है, जो डिजिटलीकरण के मामले में पीछे रह गए हैं.
बड़े मौके चाहिए, डीपीआई करें मजबूत
डिजिटल अर्थव्यवस्था एक बड़ा और सशक्त अवसर है. इस बड़े मौके का फायदा उठाने के लिए किसी भी देश के पास डीपीआई का मजबूत आधार होना जरूरी है. डीपीआई में सार्वजनिक डिजिटल संरचनाओं और प्रौद्योगिकियों का अहम स्थान है. भारत अब चूंकि वैश्विक रंगमंच पर भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराना चाहता है, इसलिए वह ग्लोबल साउथ के देशों के लिए भी सभी सुविधाएं मुहैया कराना चाहता है, उनके साथ चलना चाहता है. जून में जो वैश्विक सम्मलेन हुआ, उसके समझौते इसी की गवाही देते हैं. वित्तीय और डिजिटल भागीदारी को शोषितों, वंचितों और कमजोर आर्थिक-सामाजिक पृष्ठभूमि वाले लोगों तक ले जाने में भारतीय डीपीआई की अहम भूमिका है. धन की जो खाई हमारे समाज में चौतरफा मौजूद है, उसे घटाकर भारत में डीपीआई एक प्रभावी और चौकस डिजिटल अर्थव्यवस्था बनाना चाहता है जो नागरिकों और व्यापारियों, एमएनसी को भी समर्थन दे.
अगले कुछ दशकों में भारत की डीपीआई यात्रा क्षेत्र विशेष में भी बढ़ेगी. जैसे आयुष्मान भारत, एग्रिस्टैक, डिजिटल कॉमर्स का ओपन नेटवर्क वगैरह भी हमें देखने को मिलेगा. जनसंख्या के बड़े हिस्से को उनका लाभ मिले, असंख्य अवसर खुलें, उसके लिए जरूरी है कि जनता भी उनको अपनाए और प्रयोग करे, इसमें एक समग्र रवैए की जरूरत है जो विभिन्न जरूरतों औऱ स्थितियों को समझे, अनुभव के मुताबिक ही काम करे. जी20 में भारत डीपीआई और डिजिटल रूपांतरण पर बातचीत की अगुआई कर रहा है. यह वैश्विक और देशीय दोनों ही स्तरों पर है. ज्ञान और संसाधनों के बंटवारे से ही यह सुनिश्चित होगा कि कोई भी पीछे न छूट जाए. भूतकाल के अनुभवों से सीख कर, वर्तमान को समृद्ध करते हुए, अंतरराष्ट्रीय विकास से सीख लेकर भारत भी अपने मार्ग को तय कर रहा है.
भारत की जितनी जनसंख्या है, उसमें समझदारी से किसी भी डीपीआई को मशहूर करने के लिए डीपीआई को जन-जन के मन में उतारना, उसे इंगेज करना जरूरी है. भारत में डिजिटल डिवाइड और निरक्षरता बड़ी बाधाओं में से एक है. भारत को इन चुनौतियों से पार पाना ही होगा. भरोसा और जागरूकता के साथ इन बाधाओं का अंत किया जा सकता है. इसके लिए ऑफलाइन चैनल्स पर भी विचार करना होगा. यह न केवल पंक्ति के अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति को सेवा प्रदान करने में सफल होगा, बल्कि संवेदनशील उपभोक्ताओं को डिजिटल कंफर्ट भी देगा, उनको सशक्त बनाएगा ताकि वे अपने फायदे के लिए इसका इस्तेमाल कर सकें. मानवीय स्पर्श वाले जितने भी काम हैं, उनको अगर डिजिटल तौर पर रूपांतरित नहीं किया गया, तो हम कई सारे फायदे नहीं उठा सकेंगे और हमारा देश आगे भी नहीं बढ़ेगा.
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