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जीएसटी से लगातार भर रहा खजाना, जानिए कैसे गुड्स एंड सर्विस टैक्स ने बदला इकोनॉमी का आकार

यह पहले कई स्वरूपों में लागू होता था, इसमें बहुत अधिक विरोधाभास था और कई तरह के टैक्स थे. इन सब को सरकार ने एक कर दिया और कहा कि केंद्र और राज्य इसे आपस में बांट लेंगे.

जीएसटी (GST) यानी माल एवं सेवा कर (गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स) को लागू हुए छह साल पूरे हो गए हैं. वित्त मंत्रालय ने शनिवार यानी 1 जुलाई को जून 2023 महीने के जीएसटी आंकड़ों  की घोषणा की. जीएसटी से सरकार को जून महीने में 1.61 लाख करोड़ रुपये मिले. यह साल भर पहले की तुलना में 12 फीसदी अधिक है. मई महीने में भी जीएसटी कलेक्शन में 12 फीसदी की बढ़ोतरी देखने को मिली थी. सरकार ने छह साल पहले जीएसटी की व्यवस्था लागू की थी. हालांकि, इसकी आलोचना अब भी होती है, लेकिन इन वर्षों में जीएसटी न केवल सरकारी खजाने को भर रही है, बल्कि स्थिर भी हो गयी है.

अप्रैल महीने में जीएसटी ने अब तक का सबसे शानदार प्रदर्शन दिखलाया था और सरकार को इससे 1.87 लाख करोड़ रुपयों की प्राप्ति हुई थी, मई में यह आंकड़ा घटकर 1.57 लाख करोड़ रुपए हुआ और इस महीने यह बढ़कर 1.61 लाख करोड़ रुपए हो गया है. जीएसटी के 6 वर्षों के आंकड़ों पर नजर डालें तो ऐसे मौके अब तक 6 बार आए हैं, जब जीएसटी का आंकड़ा 1.5 लाख करोड़ रुपए से अधिक रहा है. चार महीने ऐसे रहे हैं, जब जीएसटी का कलेक्शन 1.60 लाख करोड़ रुपए से अधिक रहा है. वैसे, जून ऐसा लगातार पंद्रहवां महीना है, जब जीएसटी ने 1.40 लाख करोड़ का आंकड़ा पार किया है. 

जीएसटी क्यों है अलग और क्या हैं लाभ

इसके बारे में बात करने से पहले टैक्स की फिलॉसफी यानी दर्शन समझना चाहिए. टैक्स तो किसी भी वेलफेयर स्टेट में बेहद जरूरी है, क्योंकि कई चीजें ऐसी हैं जो निजी तौर पर मुहैया नहीं करायी जा सकती, तो हरेक नागरिक टैक्स देता है और उसके बदले सरकार सुरक्षा, लॉ एंड ऑर्डर और पूरा सिस्टम यानी जुडिशियरी, लेजिस्लेचर वगैरह काम करता है. यानी, हमारा पूरा सिस्टम जैसे चलता है. टैक्स का कलेक्शन सामान्य तौर पर तो नागरिकों की आय पर होता है, जो डायरेक्ट टैक्स है और यह इंडिविजुअल होता है. उसी तरह पूरी इकोनॉमी में किसी का इनकम आता है, तो किसी का खर्च भी होता है. यह गुड्स और इनकम टैक्स के दायरे में आया.

यह पहले कई स्वरूपों में लागू होता था, इसमें बहुत अधिक विरोधाभास था और कई तरह के टैक्स थे. इन सब को सरकार ने एक कर दिया और कहा कि केंद्र और राज्य इसे आपस में बांट लेंगे. इसी बात को साफ करते हुए डीएमआई पटना में प्रोफेसर सूर्यभूषण कहते हैं, "पहले डिस्टॉर्शन टैक्स में काफी था. लोगों को रीयल प्राइस नहीं पता चलता था. कंज्यूमर अंधेरे में रहता था. पहले स्थानीय स्तर पर सरकारें अलग टैक्स भी लगा देती थीं, जिससे दाम भी बढ़ जाते थे. अब भी यह कुछ चीजों पर है. जीएसटी की तरफ जाने का मुख्य कारण था कि अधिकांश विकसित देश इसी का इस्तेमाल करते हैं और चूंकि हम यूनियन ऑफ स्टेट्स हैं, तो इसलिए फिफ्टी-फिफ्टी का शेयर राज्य और केंद्र की सरकार बांट लेती है." 

जीएसटी ने दिए फायदे ही फायदे

जीएसटी के फायदे जानने हों तो एक छोटा सा उदाहरण लेना काफी होगा. जैसे, साबुन खरीदने हम जाते हैं, तो उसका एक अधिकतम खुदरा मूल्य यानी एमआरपी होता है. इसमें हमें यह नहीं पता होता था कि हम टैक्स कितना दे रहे हैं, वह इनक्लूडेड होता था और फिर स्टेट का सेल्स टैक्स होता था, सेंट्रल गवर्नमेंट का जो प्रोडक्शन पर टैक्स था, वह भी लगता था. यह भी हो सकता था कि उतना टैक्स नहीं भी लगता था, कुछ कम भी होता था, लेकिन स्पष्टता नहीं था. अभी अगर हम 10 रुपए का साबुन खरीदते हैं, तो स्पष्टता होती है कि उसमें कितना रुपया टैक्स का है और उसमें भी सेंटर का कितना है और स्टेट का कितना है? जीएसटी के विरोध की एक वजह यह थी कि स्पष्टता कानून में नहीं थी, टैक्स-स्लैब बहुत उल्टा सीधा था. अनिवार्य वस्तुओं पर जीएसटी अधिक था, जबकि विलासिता के वस्तुओं पर बहुत कम टैक्स था, यही वजह थी कि जीएसटी का जब लॉ बना तो सरकार ने इसके ड्राफ्ट में सैकड़ों संशोधन किए. उसके बाद भी सीख-सीख कर कई सारे बदलावों के बाद मौजूदा दौर में जीएसटी है, जो हमारे आर्थिक तंत्र का आज मजबूत हिस्सा है. 

अभी हाल ही में राजस्व सचिव संजय मल्होत्रा ने एक अखबार में अपने आलेख में जीएसटी को सरकारी तंत्र में अप्रत्यक्ष कर-संग्रह का ऐतिहासिक रूपांतरण बताया है. उन्होंने कहा है कि इसके तीनों साझीदारों यानी सरकार, उद्योग और करदाता की ही जिंदगी में जीएसटी से महत्वपूर्ण बदलाव आया है और अब लोग इस बात को स्वीकार भी रहे हैं.  वह बताते हैं कि उपभोक्ता आखिरी पैमाना है किसी भी कार्यक्रम की सफलता का और इस पैमाने पर जीएसटी पूरी तरह सफल है. यह सार्वभौमिक है और सभी स्टेकहोल्डर्स के लिए है. जीएसटी के पारदर्शी और एक जैसे टैक्स ढांचे की वजह से उपभोक्ता अब पूरी तरह सूचित हो गया है. पहले वह कई तरह के करों के जाल में फंसता था, अब ऐसा नहीं है.

एक सर्वे के मुताबिक ये तीनों ही स्टेकहोल्डर्स जीएसटी से बहुमत में खुश हैं और यह जीएसटी कलेक्शन के आंकड़ों से साफ है. इस बार भी जून महीने के आंकड़े को देखें तो उसमें सेंट्रल जीएसटी (CGST) से 31,013 करोड़ रुपये, स्टेट जीएसटी (SGST) से 38,292 करोड़ रुपये और इंटीग्रेटेड जीएसटी (IGST) से 80,292 करोड़ रुपये हासिल हुए हैं. इसमें आयात पर वसूले गए 39,095 करोड़ रुपए भी शामिल हैं. सेस से भी सरकार को 11,900 करोड़ रुपये मिले हैं. जीएसटी की छप्परफाड़ सफलता के बाद जब देश इसके सातवें वर्ष में प्रवेश कर रहा है, तो सरकार का काम बस इतना है कि इन लाभों का फायदा उठाए और एक आधुनिक, विश्वस्तरीय, तकनीक से लैस अप्रत्यक्ष कर-व्यवस्था को बनाए रखें, जो समानता और सुविधा दे और प्रभावी भी हो.

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