India At 2047: भारत कैसे नई विश्व व्यवस्था में अहम भूमिका निभाने के लिए तैयार है, जानिए यहां
Looking Ahead: India at 2047: भारत अपने राष्ट्रीय हितों को पूरी तरह से ध्यान में रखते हुए दुनिया भर में शांति, समृद्धि और सुरक्षा सुनिश्चित करने में केंद्रीय भूमिका निभाने की काबिलियत रखता हैं.
The New World Order: दुनिया भर में कोविड महामारी (Covid Pandemic), जंग से खंडहर में तब्दील होते यूक्रेन (Ukraine) के साथ ही ताइवान (Taiwan) में परेशानी और मुश्किल भरे वक्त के बीच एक नई विश्व व्यवस्था (The New World Order) उभर रही है और इन सबके केंद्र में भारत (India) ने खुद को इस नई विश्व व्यवस्था में बड़ी ही खूबसूरती, संजीदगी और अहम तरीके से पेश किया है. इसका सबूत ब्रिक्स (BRICS), एससीओ (SCO) से लेकर क्वॉड (QUAD) जैसे सभी बहु-राष्ट्र समूहों (Multi-Nation Groupings) में भारत की भागीदारी है. भले ही ये बहु-राष्ट्र समूह अलग-अलग और कभी-कभी परस्पर विरोधी उद्देश्यों के साथ गठित किए गए हों, लेकिन सभी में भारत की भागीदारी को अहम माना गया है.
भारत ने राष्ट्रीय हितों पर बदली वैश्विक रणनीति
इस सहस्राब्दी (Millennium) के पहले दशक के शुरुआती वर्षों में रूस, चीन, भारत, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका ने ब्रिक्स (BRICS) की स्थापना की थी. इसका मकसद अमेरिका (America) और पश्चिम के नेतृत्व वाले वित्तीय संस्थानों और आर्थिक व्यवस्था का मुकाबला करना था. हालांकि, ब्रिक्स के साथ होने के दौरान ही एक दशक से अधिक वक्त के बाद भारत ने बड़े आराम से चार देशों के क्वॉड में खुद को स्थापित कर लिया. क्वॉड में शामिल होने की अहम वजह भारत के राष्ट्रीय हित (National Interest) रहें.
भारत से लगते अलग-अलग इलाकों में चीनी आक्रमण की वजह से भारत की कूटनीतिक रणनीति बदलाव की मांग कर रही थी और भारत ने क्वॉड में शामिल होकर इसे बखूबी अंजाम दिया. चीन का क्वॉड से कोई लेना-देना नहीं है. लेकिन शीत युद्ध (Cold War-Era) दौर की गुटनिरपेक्षता (Non-Alignment) से नई विश्व व्यवस्था में भू-राजनीतिक समीकरण (Geopolitical Equations) नए कलेवर में उभर रहे हैं. यह कहना गलत नहीं होगा कि नई विश्व व्यवस्था में भू-राजनीतिक समीकरण (Geopolitical Equations) पुरानी वफादारी या वैचारिक भावनात्मक परेशानियों के बोझ तले कम दबे होंगे.नई वैश्विक व्यवस्था में भू-राजनीतिक समीकरण अधिक से अधिक लेन-देन (Transactional) और राष्ट्रीय प्राथमिकताओं से प्रेरित होंगे.
सामरिक साझेदारी के लिए गुटनिरपेक्षता
शीत युद्ध के खत्म होने से भारत के लिए नए अवसरों के दरवाजे खुले. इससे भारत के लिए प्रतिद्वंद्वी देशों के समूहों के साथ अपने संबंधों में विविधता लाने और उसे गहरे करने के रास्ते बन गए. नतीजन 10-सदस्यीय आसियान (ASEAN) देशों के समूह से लेकर, 28-सदस्यीय यूरोपीय संघ (European Union), मध्य एशिया (Central Asia) से लेकर खाड़ी देशों, अफ्रीका और यहां तक कि लैटिन अमेरिकी (Latin American) आर्थिक ब्लॉक मर्कोसुर (MERCOSUR ) तक के देशों से भारत के रिश्तों को नया आयाम मिला. इसके अलावा भारत ने एकमात्र शेष बची महाशक्ति संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) सहित रूस (Russia) के साथ भी वक्त के साथ परखे जाने वाले रणनीतिक संबंधों को बनाए रखा.
अमेरिका ने आंक ली भारत की क्षमता
संयुक्त राज्य अमेरिका (United States of America-USA) ने समय रहते भारत की आर्थिक क्षमता को भांप लिया था. उसे ये भी पता था कि भारत पश्चिमी प्रौद्योगिकी (Western Technology) के उपकरणों और उत्पादों के लिए उभरता हुआ एक विशाल बाजार है, जो आज दुनिया की छठी सबसे बड़ी लगभग 3 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के रूप में विकसित हो गया है. इसी के चलते यूएसए ने भारत के साथ रणनीतिक जुड़ाव शुरू करने के लिए एक शानदार कदम उठाया.
नतीजन नब्बे के दशक की शुरुआत में यूएसए ने अपने शीत युद्ध के प्रतिद्वंद्वी रहे सोवियत संघ ( Soviet Union) से मैत्रीपूर्ण संबंध रखने वाले भारत की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया. इसके जरिए उसने सामरिक सहयोग के एक नए युग की नींव रखने के लिए आगे एक कदम बढ़ाया. यूएस भारत के साथ संबंध बढ़ाने के लिए इतना उत्सुक था कि उसने ने शीत- युद्ध के दौर में भारत और रूस के पुराने मैत्रीपूर्ण संबंधों को भी नजरअंदाज कर दिया था. इसका नतीजा साल 1992 में अमेरिका के भारत के साथ मालाबार (MALABAR) नाम के ऐतिहासिक संयुक्त नौसैनिक अभ्यास के तौर पर सामने आया.
साल 1992 की मालाबार पर समुद्र तट पर की गई ये समुद्री पहल (Malabar Maritime Initiative) अब चार देशों के इंडो-पैसिफिक क्वाड्रिलेटरल (Indo-Pacific Quadrilateral) ग्रुपिंग यानी क्वॉड बन कर उभरी हैं. क्वॉड में भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान शामिल हैं. इसका उद्देश्य अनौपचारिक तौर पर चीन की आक्रामकता और विस्तारवादी नीतियों को रोकना है. इसके साथ ही ड्रैगन यानी चीन को दुनिया में सबसे शक्तिशाली राष्ट्र के तौर पर अनुमानित बढ़त बनाने से रोकना और साल 2049 तक चीन के सबसे शक्तिशाली राष्ट्र बनने की ये जगह संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए सुरक्षित करना है.
चतुराई से बनाई भारत ने कूटनीतिक रणनीति
भारत ने गुटनिरपेक्षता (Non-Alignment) के युग से लेकर द्विपक्षीय रणनीतिक साझेदारी (Bilateral Strategic Partnerships) और बहुपक्षीय समूहों (Multilateral Groupings) सदस्यता तक की भारतीय कूटनीति (Indian Diplomacy) बड़ी समझदारी और चतुराई से तैयार की हैं. इसे तैयार करने में भारत ने अपने राष्ट्रीय आर्थिक और रणनीतिक उद्देश्यों को हासिल करने का पूरा ध्यान रखा है. यही वजह रही कि भारत एससीओ, ब्रिक्स, आई2यू2 ( I2U2) जैसे बहुपक्षीय समूहों का सदस्य बना है.
कोविड के बाद की दुनिया और रूस-यूक्रेन संघर्ष ने वैश्विक पुनर्निर्माण (पुनर्निर्माण करना) की प्रक्रिया को तेज कर दिया है और इस तेजी से बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य (Geopolitical Scenario) में भारत एक तरफ रूस-चीन (Russia- China) खेमे के प्रतिद्वंद्वी समूहों के पंसदीदा के तौर पर उभरा तो दूसरी तरफ अमेरिका-जापान-यूरोप-ऑस्ट्रेलिया खेमे का भी प्रिय बना.
21वीं सदी के पहले दशक के दौरान, भारत ने विश्व मंच पर रूस और चीन को संजीदगी से नहीं लिया और साथ ही साथ संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) के साथ अपने रणनीतिक संबंधों को गहरा किया. नतीजतन अमेरिका ने 2008 में भारत-अमेरिका परमाणु समझौते (Indo-US Nuclear Deal) पर हस्ताक्षर करके भारत को अपने परमाणु अलगाव को खत्म करने में मदद की. यह भारत के लिए एक प्रमुख रणनीतिक उपलब्धि रही, जिसने भारत को परमाणु दुनिया (Nuclear World) के उच्च तबके में जगह दिलाई.
गौरतलब है कि ब्रिक्स का इरादा अमेरिका और पश्चिम के नेतृत्व वाले वित्तीय संस्थानों के आर्थिक प्रभुत्व को चुनौती देना था, लेकिन भारत इस समूह का प्रमुख सदस्य होने के बावजूद भी अमेरिका, यूरोप, जापान (Japan) और ऑस्ट्रेलिया (Australia) जैसी आर्थिक शक्तियों के साथ अपने रणनीतिक संबंधों को आगे बढ़ाता रहा.
हालांकि दक्षिण चीन सागर (South China Sea) और भारत-चीन सीमाओं पर चीन के आक्रामक व्यवहार ने भारत को ब्रिक्स के बहुत करीब आने के प्रति पहले ही आगाह कर डाला था. नतीजा भारत-चीन प्रतिद्वंद्विता ने इस महत्वाकांक्षी समूह में दरार पैदा कर दी. हालांकि भारत ने 21वीं सदी के शुरुआती वर्षों में ब्रिक्स में सक्रिय तौर पर शिरकत तो की, लेकिन इस एक ही वक्त में संयुक्त राज्य अमेरिका, इसराइल (Israel), यूरोप (Europe) और आसियान के साथ अपनी रक्षा और रणनीतिक भागीदारी को गहरा किया.
इस दौरान भारत ने न केवल संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ बल्कि यूरोप में इसके फ्रांस और यूके जैसे सहयोगियों के साथ भी रणनीतिक साझेदारी के लिए समझौतों पर हस्ताक्षर किए. इसी तरह के समझौते भारत ने पूर्वी एशियाई (East Asian) आर्थिक शक्तियों जापान और दक्षिण कोरिया (South Korea) के साथ भी किए.
उधर दूसरी तरफ दुनिया में एक- दूसरे के प्रतिद्वंद्वी राष्ट्र समूहों ने अपने-अपने खेमों के लिए भारत को सक्रिय भागीदार बनाने की पुरजोर कोशिशें जारी रखी, लेकिन इस सबके बावजूद भारत ने बड़ी चतुराई और कुशलता से विरोधी देशों के साथ अपने संबंधों को संतुलित बनाए रखा है.
राष्ट्रीय हित में तटस्थता का रूख
भारत की सबसे बड़ी परीक्षा तब हुई जब रूस ने फरवरी 2022 में एक संप्रभु राष्ट्र यूक्रेन पर आक्रमण किया. इस दौरान क्वॉड जैसे समूहों में अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने भारत से रूस को उसके कृत्य के लिए निंदा करने की अपेक्षा की थी. इस दौरान भारत ने चतुराई से तटस्थ रुख अपनाए रखा. तब भारत ने साफ तौर पर कहा कि वह यूक्रेन की संप्रभुता (Sovereignty) का समर्थन करता है, लेकिन वह रूस के साथ अपने संबंधों का त्याग नहीं कर सकता. भारत ने तब उस नाजुक दौर का हवाला दिया जब रूस ने उसका था दिया था. भारत ने ये भी कहा कि चीन-पाकिस्तान से मिल रही चुनौतियां का सामना करने के लिए वह हथियारों की आवक के लिए पूरी तरह से रूस पर निर्भर था और तब रूस ने उसका पूरा साथ दिया था.
गौरतलब है कि रूस के साथ 5.4 अरब डॉलर के एस-400 मिसाइल सौदे को रद्द करने की अमेरिका की मांग के भारत के सफल प्रतिरोध के बावजूद भी अमेरिका ने भारत को आई2यू2 समूह में शामिल करने में अहम भूमिका निभाई. इस समूह में भारत, इसराइल, संयुक्त अरब अमीरात (United Arab Emirates) और यूएसए शामिल हैं. इससे भारत को पश्चिम एशियाई क्षेत्र में अहम भूमिका निभाने में सहूलियत होगी. आई2यू2 समूह से इस्लामिक राष्ट्रों के मामलों में चीन की अत्यधिक भागीदारी को रोकने की उम्मीद की जा रही है.
जैसा कि विश्व व्यवस्था को नया रूप दिया जा रहा है तब भारत ने क्वॉड और आई2यू2 के सदस्य के तौर अपने लिए एक आरामदायक और फायदेमंद स्थिति खोजने की कोशिश की है. यह स्थिति भारत को दोहरी चुनौतियों यानी पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद और दक्षिण चीन सागर और हिंद महासागर (Indian Ocean) में चीन के आक्रामक व्यवहार से निपटने में मदद करेगा. इसके अलावा 3488 किलोमीटर अपरिभाषित (Undefined) भूमि की सीमाओं के मामले में भी भारत को इस समूह में शामिल होने से मदद हासिल होगी.
अमेरिकी को मिल रही बड़ी चुनौती में इस वक्त चीन है. चीन ताइवान (Taiwan) परअपने नियंत्रण को आगे बढ़ाने के लिए उतावला हो रहा है तो वह इस काम में बाधा डालने वालों को गंभीर परिणाम भुगतने की खोखली धमकियां देने से भी बाज नहीं आ रहा है. ऐसी स्थितियों में क्वॉड जैसे चीन विरोधी समूहों को और मजबूत किए जाने की संभावनों से इंकार नहीं किया जा सकता है और इसमे सबसे फायदे की बात ये है कि इस समूह में भारत एक अहम खिलाड़ी (Key Player) के तौर पर उभर रहा है.
भारत में दुनिया के अगवा बनने की काबिलियत
इस प्रकार यह नई विश्व व्यवस्था (New World Order) शीत युद्ध के दौर की शक्ति गतिकी (Power Dynamics) का अनुकरण करती हुई दिखाई दे रही है, लेकिन यह उन दिनों की विचारधारा आधारित समीकरणों से काफी अलग है.भारत को अपने राष्ट्रीय हित को आगे बढ़ाने के लिए अनिश्चितताओं और उतार-चढ़ाव वाले रणनीतिक संतुलन के इस बढ़ते समुद्र में सावधानी से नेविगेट करना होगा.
अन्तरराष्ट्रीय संबंधों में न तो कोई स्थायी मित्र होता है और न ही कोई स्थायी शत्रु इसलिए राष्ट्रहित ही स्थायी है और भारत ये अच्छे से समझ रहा है. भारत में अपने राष्ट्रीय हितों को बेहद अच्छे से समझते हुए अपनी बढ़ती अर्थव्यवस्था, सैन्य शक्ति और एक आकर्षक विशाल मध्यम वर्ग के बाजार के बल पर दुनिया भर में शांति, समृद्धि और सुरक्षा सुनिश्चित करने में केंद्रीय भूमिका (Central Role) निभाने की बेहतरीन क्षमता है.
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