विकास के रास्ते को कैसे आसान बना रही हैं सड़कें, नेशनल हाइवे और एक्सप्रेसवे के लिए कहां से आता है पैसा
भारतीय सड़कों का जाल दुनिया में सबसे विस्तृत है. यह जाल लगभग 55 लाख किलोमीटर क्षेत्र कवर करता है.
किसी भी देश की अर्थव्यस्था को आगे बढ़ाने में वहां की सड़कों का बड़ा योगदान रहता है. अमेरिका में अच्छी सड़कें विकास का पहला पैमान है. भारत में बीते कुछ दशकों में इस सरकारों ने इस दिशा में गंभीर काम किया है. वाजपेयी सरकार में सड़कों का खासा जाल बिछा. पीएम नरेंद्र मोदी ने साल 2018 के अप्रैल महीने में कहा था कि उनकी सरकार में जितनी सड़कें बन रही हैं उतनी पहले किसी सरकार में नहीं बनीं.
उन्होंने कहा था कि आज भारत में हर रोज़ जिस रफ्तार में से काम हो रहा है वो पहले हुए कामों से तीन गुना ज़्यादा है. भारतीय सड़कों का जाल दुनिया में सबसे विस्तृत है. यह जाल लगभग 55 लाख किलोमीटर क्षेत्र कवर करता है.
केंद्र सरकार हर साल सड़क और राष्ट्रीय राजमार्ग (राष्ट्रीय राजमार्ग) बनाने में लगभग लाखों करोड़ रुपये खर्च करती है. इससे देश में इंफ्रास्ट्रक्चर में विकास के साथ ही बड़े पैमाने पर लोगों को रोजगार मिल रहा है.
इसी क्रम में रेटिंग एजेंसी क्रिसिल की एक रिपोर्ट के अनुसार सड़क बनाने में खर्च होने वाला रुपया वित्त वर्ष 2015-16 के मुकाबले अब दोगुना हो चुका है. हालांकि सड़क निर्माण के लिए फंडिंग जुटाना एक चुनौती पूर्ण काम बनकर उभरा है.
रिपोर्ट के अनुसार इन सालों में सड़क बनाने के लिए सरकारी निवेश से ज्यादा प्राइवेट निवेश किए गए हैं. सड़क पर होने वाले खर्च में सरकारी निवेश का हिस्सा 15 फीसदी से भी कम है.
रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के द्वारा इकट्ठा किए गए आंकड़ों का विश्लेषण करने से पता चलता है कि प्राइवेट निवेश बढ़ने के बाद भी उसका सड़क निर्माण पर बहुत ही सीमित असर रहा है और वित्त वर्ष 2022 में खर्च किए गए पैसे का सिर्फ पांचवा हिस्सा ही है.जो कि बिलकुल वित्त वर्ष 2016 इतना ही है.
रेटिंग एजेंसी क्रिसिल इस डाटा में राष्ट्रीय राजमार्ग, राज्य और ग्रामीण सड़कों को शामिल किया गया है. सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने हाल ही में भारत के बुनियादी ढांचे के विकास को बढ़ावा देने के लिए नवीन तरीकों की आवश्यकता की बात कही थी. नेशनल हाइवे को बनाने में होने वाला जो खर्च है वो पिछले साल को छोड़ दें तो लगातार बढ़ रहा है. बस पिछले साल ही यानी 2021 में खर्च होने वाले रकम में कमी देखी गई है. वहीं प्राइवेट सेक्टर का शेयर वित्र वर्ष 2022 में 17 फीसदी है.
भारत में सड़क व्यवस्था को तीन हिस्सों में बांटा गया है. पहला राष्ट्रीय राजमार्ग, दूसरा राष्ट्रीय द्रुतमार्ग या एक्सप्रेसवे और तीसरा राज्य राजमार्ग.
क्या है राष्ट्रीय राजमार्ग
देश के राष्ट्रीय मार्ग को केंद्र सरकार की तरफ से फंड किया जाता है. इसकी इसकी अथॉरिटी का नाम है नेशनल हाइवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया. राष्ट्रीय मार्ग मुख्य रूप से वह सड़कें हैं जिसकी लंबी दूरी हो और ये सड़क दो पंक्तियों में होती हैं. हर दिशा में जाने के लिए एक पंक्ति. हालांकि कुछ राज्यों ऐसे भी हैं जहैं 4 से 6 लेन की सड़कों को बनाया गया है. भारत के राजमार्गों की कुल दूरी 4754000 किमी है. राजमार्गों की लंबाई कुल सड़कों का मात्र 2 फीसद हिस्सा है लेकिन यह कुल ट्रैफिक का 40 फीसद भार उठाते हैं.
हमारे देश का सबसे बड़ा राजमार्ग राष्ट्रीय राजमार्ग 7 है, यह जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर शहर को भारत के दक्षिणी हिस्से तमिलनाडु के कन्याकुमारी शहर के साथ जोड़ता है. इस सड़क की लंबाई 3745 किमी है. वहीं सबसे छोटा राजमार्ग 44A है और यह कोचीन से वेलिंगटन तक है और इसकी लंबाई 6 किलोमीटर है.
क्या है राजकीय राजमार्ग
राजकीय राजमार्ग किसी राज्य के कस्बों, जिला मुख्यालयों, महत्वपूर्ण स्थलों और राष्ट्रीय राजमार्ग से जुड़े स्थानों को जोड़ते हैं. राजकीय या राज्य राजमार्ग की लंबाई 1,48,256 किमी है. जिस तरह से राष्ट्रीय राजमार्ग के देखरेख का जिम्मा राज्य सरकार के उपर है, वैसे ही राजकीय राजमार्ग की जिम्मेदारी प्रदेश सरकार के जिम्मे होती है. अगर किसी राजकीय राजमार्ग को या एक्सप्रेसवे को राष्ट्रीय राजमार्ग का दर्जा देना होता है तो इसके लिए प्रदेश सरकार केंद्र से अनुमति मांगती है. हालांकि केंद्र सरकार के पास अधिकार है कि वह किसी सड़क को राष्ट्रीय राजमार्ग में तब्दील कर सकते हैं. राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम, 1956 की धारा 2 के तहत केंद्र सरकार किसी सड़क को एनएच घोषित करती है.
निर्माण की गति में तेज़ी
सरकारी आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक साल 2014 के बाद से हर साल बनने वाले हाइवे की कुल लंबाई बढ़ी है. साल 2013-14 में यानी पिछली सरकार की सत्ता के आखिरी साल में 4,260 किलोमीटर हाइवे का निर्माण हुआ. वहीं साल 2017-18 में आखिरी 9,829 किलोमीटर हाइवे का निर्माण हुआ.
वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर चार मिनट में एक व्यक्ति की सड़क दुर्घटना में मौत हो जाती है. इतना ही नहीं, दुनियाभर में भी भारत सड़क दुर्घटनाओं के मामले में पहले स्थान पर है. अब सरकार सड़क दुर्घटनाओं से होने वाली मौतों को कम करने के काम कर रही है और लक्ष्य है कि 2024 तक मौत से होने वाले आंकड़े 50 फीसदी तक कम हो जाएंगे.
कितने एक्सीडेंट होते हैं हर साल?
भारत में हर साल 5 लाख एक्सीडेंट होते हैं और इन एक्सीडेंट में करीब डेढ़ लाख लोगों की मौत हो जाती है. इसके अलावा 3 लाख लोग घायल हो जाते हैं. दुनियाभर के 11 फीसदी एक्सीडेंट भारत में ही होते हैं और इस लिस्ट में भारत पहले स्थान पर है. इतना ही नहीं, इन एक्सीडेंट का असर अर्थव्यवस्था में भी पड़ता है.
किस ने रखा है ये लक्ष्य?
यह लक्ष्य केंद्र सरकार की ओर से रखा गया है. केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी कई बार पब्लिक प्लेटफॉर्म पर यह दोहरा चुके हैं. उन्होंने बताया है कि साल 2024 के पहले देश में सड़क दुर्घटना और उनसे होने वाली मौत को 50 फीसदी तक कम करने का लक्ष्य तय किया गया है. साथ ही सरकार ने इसे लेकर काम भी कर रही है.
कैसे होगा पॉसिबल?
दरअसल, सरकार सड़क दुर्घटनाओं को कम करने के लिए कड़े कदम उठा रही है और इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए काफी पैसा भी खर्च किया गया है. जैसे अब जिन हाइवे का निर्माण किया जा रहा है, उनके प्लान में भी सड़क दुर्घटना को लेकर खास ध्यान रखा गया है और उन संभावनाओं के साथ चला जा रहा है कि कम से कम एक्सीडेंट हो.