भारतीय बुनकरों को कैसे मिलेगा दुनिया का सबसे बड़ा बाजार, हैंडलूम सेक्टर में चाहिए तेज विकास
Handloom Sector: भारत में हैंडलूम सेक्टर की तस्वीर बदलने के लिए बुनकरों के कौशल को विश्व स्तरीय मानकों और तकनीक के साथ जोड़ने की जरूरत है. घरेलू और वैश्विक बाजार तक पहुंच को बढ़ाने की भी दरकार है.
Indian Weavers: भारत प्राचीन काल से हैंडलूम कारीगरी को लेकर दुनियाभर में जाना जाता है. हालांकि ब्रिटिश राज में भारत के हथकरघा क्षेत्र को काफी नुकसान पहुंचा था. औद्योगिकीकरण और तकनीक के विकास से भी भारतीय बुनकरों की स्थिति लगातार कमजोर हुई है. आजादी के बाद भी इस क्षेत्र पर उतनी तत्परता और गंभीरता से ध्यान नहीं दिया गया, जिसकी जरूरत थी.
अब भारत सरकार हैंडलूम सेक्टर को विश्वस्तरीय बनाने में तेजी से कदम उठा रही है. इस दिशा में बुनकरों को प्रोत्साहन के साथ ही नीतिगत समर्थन देने के लिए पहल की गई. राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाने की शुरुआत और 'लोकल फॉर वोकल' जैसे अभियान से हैंडलूम सेक्टर को एक नया आयाम देने की कोशिश की जा रही है.
भारतीय वस्त्र एवं शिल्प कोष का ई-पोर्टल
हैंडलूम सेक्टर का तेजी से विकास हो, इसके लिए जरूरी है कि भारतीय बुनकरों को वैश्विक स्तर पर एक बड़ा बाजार मिल सके. इसमें ई-पोर्टल 'भारतीय वस्त्र एवं शिल्प कोष-कपड़ा और शिल्प का भंडार' बेहद कारगर साबित होने वाला है. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी (NIFT) की ओर से विकसित इस ई-पोर्टल का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के मौके पर नई दिल्ली के प्रगति मैदान स्थित भारत मंडपम में हुए समारोह में किया. ये ई-पोर्टल कपड़ा और शिल्प का एक भंडार है.
ई-पोर्टल होगा अनूठा ज्ञान भंडार
भारतीय वस्त्र एवं शिल्प कोष एक अनूठे ज्ञान भंडार के तौर पर काम करेगा. ये भविष्य के विकास पर ध्यान देने के साथ वस्त्र, परिधान और संबंधित शिल्प की अतीत और वर्तमान स्थिति के संबंध में एक रूपरेखा तैयार करेगा. ये ई-पोर्टल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सोच का नतीजा है. प्रधानमंत्री ने 2017 में वस्त्र मंत्रालय को हर क्षेत्र की विशेषताओं को दर्शाते हुए भारतीय वस्त्रों की विविधता को सूचीबद्ध करने के लिए कहा था.
इस डिजिटल पोर्टल के जरिए वस्त्र, परिधान और वस्त्र निर्माण शिल्प से संबंधित क्षेत्रों पर शोध पत्र, केस स्टडी, शोध प्रबंध और डॉक्टरेट के लेख समेत विशाल डेटाबेस तक पहुंच मुमकिन हो पाएगा. ये एक तरह से एक ही जगह पर उपलब्ध संसाधन है. इससे कपड़ा और शिल्प से जुड़े नए विकास कार्यों की जानकारी मिल सकेगी.
भारतीय बुनकरों को वैश्विक मंच मिले, इसके लिए ये जरूरी है कि हथकरघा उद्योग आधुनिक तकनीकों के साथ सामंजस्य बनाकर आगे बढ़े. साथ ही बुनकरों को वो जरिया मालूम हो जिससे देश से बाजार में भी उनके उत्पाद आसानी से पहुंच सके.
बुनकरों तक दुनिया का बड़ा बाजार
भारत के बुनकरों को दुनिया का सबसे बड़ा बाजार उपलब्ध हो, इसके लिए सरकार ठोस और स्पष्ट रणनीति पर काम कर रही है. इस दिशा में दुनिया की बड़ी-बड़ी कंपनियों की रुचि भी बढ़ रही है. ये कंपनियां दुनिया भारत के सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्योग, बुनकरों, कारीगरों और किसानों के उत्पादों को दुनिया भर के बाजारों तक पहुंचाने के लिए आगे आ रही हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी भरोसा दिलाया है कि बड़ी अंतरराष्ट्रीय कंपनियां हथकरघा उत्पादों को दुनिया भर के बाजारों में ले जाएंगी.
सप्लाई चेन और मार्केटिंग पर फोकस
मुद्रा योजना के जरिए बुनकर बिना गारंटी के कर्ज हासिल कर पा रहे हैं. हथकरघा बुनकरों की एक बड़ी समस्या धागे जैसे कच्चे माल की उपलब्धता और परिवहन की है. सरकार ने इस ओर ध्यान देते हुए बुनकरों को रियायती दरों पर कच्चा माल मुहैया कराने के लिए योजनाएं शुरू की है. इसके साथ ही कच्चे माल के परिवहन की लागत भी सरकार ही उठा रही है.
बुनकरों को अपने उत्पाद को बेचने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है. सप्लाई चेन और विपणन (मार्केटिंग) की समस्याओं से जूझना पड़ता है. इसके लिए प्रगति मैदान के भारत मंडपम की तर्ज पर अब केंद्र सरकार का पूरे देश में प्रदर्शनियों के जरिए हाथों से बने उत्पादों के मार्केटिंग पर ख़ास ध्यान है. इस तरह की प्रदर्शनी में सरकार की ओर से निशुल्क स्टॉल के साथ दैनिक भत्ता भी उपलब्ध कराया जाता है.
एकता मॉल से बुनकरों की बदलेगी तस्वीर
हैंडलूम सेक्टर के कायाकल्प के नजरिए से एकता मॉल का निर्माण किया जा रहा है. सरकार सभी राज्यों की राजधानियों में एकता मॉल बनाने जा रही है. इसका मकसद हर राज्य और जिले के हस्तशिल्प और हथकरघा उत्पादों को एक छत के नीचे लाना है. इससे हथकरघा क्षेत्र से जुड़े लोगों को काफी लाभ होगा. हर जिले के, हर राज्य के हस्तशिल्प, हथकरघे से बनी चीज़ों को बढ़ावा मिलेगा. एकता मॉल में उस राज्य के हस्तकला उत्पाद एक छत के नीचे होंगे.
'एक जिला एक उत्पाद' योजना
'एक जिला एक उत्पाद' योजना के जरिए सरकार हर जिले की खासियत वाले उत्पादों को बढ़ावा दे रही है. अब इन उत्पादों की बिक्री के लिए रेलवे स्टेशनों पर विशेष स्टॉल भी बनाए जा रहे हैं.
जैम पोर्टल या सरकारी ई-मार्केटप्लेस
जैम पोर्टल या सरकारी ई-मार्केटप्लेस बुनकरों के लिए काफी फायदेमंद हैं. इनके जरिए देश का सबसे छोटा बुनकर, शिल्पकार और कारीगर भी अपना उत्पाद सीधे सरकार को बेच सकते हैं. सबसे ख़ास बात ये है कि हथकरघा और हस्तशिल्प से संबंधित करीब 1.75 लाख संगठन जैम से जुड़े हुए हैं. डिजिटल इंडिया मुहिम का लाभ हथकरघा क्षेत्र के लोगों को भी मिल सकते, इस लिहाज से जैम पोर्टल या सरकारी ई-मार्केटप्लेस बेहद महत्वपूर्ण हैं.
हथकरघा उद्योग में विविधताओं से भरा देश
भारत में हथकरघा उद्योग में काफी विविधता है. कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी और पश्चिम से लेकर पूर्वोत्तर के अलग-अलग राज्यों में हथकरघा की विविधता का ही असर है कि देश के पास कपड़ों का सुंदर इंद्रधनुष मौजूद है. बस जरूरत है कि इन परिधानों और कपड़ो को सूचीबद्ध किया जा सके, उन्हें संकलित करके उन तक बड़े बाजार की पहुंच सुनिश्चित किया जाए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी हैंडलूम सेक्टर के विकास और भारतीय बुनकरों की बेहतरी के लिए इस पर बल दिया है. ई-पोर्टल 'भारतीय वस्त्र एवं शिल्प कोष-कपड़ा और शिल्प का भंडार' से इस दिशा में काफी मदद मिलेगी.
हथकरघा उद्योग को प्रोत्साहन के लिए कदम
आजादी की लड़ाई में भारतीय हथकरघा उद्योग ने भी काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. देश का बच्चा-बच्चा जानता है कि कैसे उस वक्त खादी आजादी की लड़ाई का पर्याय बन गया था. हालांकि आजादी के बाद इसका दायरा सिमटता गया. आम लोगों के मन में इसके प्रति उस तरह की जगह नहीं रही. जब 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में एनडीए की सरकार बनी, तब केंद्र सरकार ने खादी का कायाकल्प करने की ठानी. प्रधानमंत्री ने खुद 'मन की बात' कार्यक्रम के शुरुआती एपिसोड में ज्यादा से ज्यादा खादी उत्पादों को खरीदने के लिए देशवासियों से अपील की.
खादी को लेकर लोगों की बढ़ी रुचि
सरकारी प्रयासों का ही नतीजा है कि नौ साल पहले खादी और ग्रामोद्योग का कारोबार महज़ 25-30 हजार करोड़ रुपये थाय आज ये आंकड़ा एक लाख तीस हजार करोड़ रुपये से भी अधिक हो गया है. इस दौरान गांवों और जनजातीय इलाकों में हथकरघा क्षेत्र से जुड़े लोगों तक अतिरिक्त 1 लाख करोड़ रुपये पहुंचे हैं. पिछले 9 वर्ष में खादी के उत्पादन में 3 गुना से भी ज्यादा का इजाफा आया है. सबसे बड़ी बात है कि खादी कपड़ों की बिक्री में 5 गुना इजाफा हुआ है. विदेशों में भी खादी के कपड़ों का क्रेज बढ़ा है. विदेशों में खादी के कपड़ों की मांग तेजी से बढ़ी है.
'वोकल फॉर लोकल' अभियान से मदद
हैंडलूम सेक्टर को बढ़ावा तभी मिलेगा, जब इसकी पहले घरेलू मांग बढ़ेगी. 'वोकल फॉर लोकल' अभियान से इसमें मदद मिल रही है. देश में मनाए जाने वाले पर्व-त्योहारों में अब लोग स्वदेशी हैंडलूम के कपड़े और सामान खूब खरीद रहे हैं. हालांकि इस दिशा में अभी भी एक लंबा सफर तय करना बाकी है. उसका कारण ये है कि हैंडलूम से कपड़े या सामान में परिश्रम ज्यादा है तो उसकी कीमत भी बढ़ जाती है. इस मोर्चे पर कैसे बुनकरों या हैंडलूम उद्यमियों को मदद पहुंचाया जा सकता है, सरकारी नीतियों में इस पर प्राथमिकता से काम करना होगा.
बुनकरों के ट्रेनिंग पर ख़ास ध्यान
हथकरघा उद्योग से जुड़े लोगों की शिक्षा, ट्रेनिंग और आय पर फोकस करना होगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा है कि सरकार इन पहलुओं पर जोर दे रही है. इस दिशा में कारगर कदम से बुनकरों और हस्तशिल्पियों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा के हिसाब से तैयार करने में मदद मिलेगी. सरकार चाहती है कि बुनकरों के बच्चों को भी पर्याप्त ट्रेनिंग मिले. इसके लिए सरकार बुनकरों के बच्चों के कौशल प्रशिक्षण के लिए कपड़ा संस्थानों में 2 लाख रुपये तक की छात्रवृत्ति की सुविधा भी उपलब्ध करा रही है. हथकरघा क्लस्टर विकसित करके बुनकरों को ट्रेनिंग दी जी रही है. पिछले 9 साल में 600 से ज्यादा हथकरघा क्लस्टर विकसित किए गए है. इसके तहत हजारों बुनकर ट्रेनिंग हासिल कर रहे हैं.
गुणवत्ता और डिजाइन में सुधार पर ज़ोर
सरकार का फोकस बुनकरों के काम को आसान बनाने, उनकी उत्पादकता बढ़ाने के साथ ही गुणवत्ता और डिजाइन में सुधार पर भी है.इसके लिए बुनकरों को कंप्यूटर संचालित पंचिंग मशीन भी मुहैया कराई जा रही है. इससे बुनकर तेज गति से नए डिजाइन बना सकते हैं. साथ ही सरकार का फोकस ऐसी मशीनें उपलब्ध कराने पर भी है, जो तकनीक के लिहाज से बदलते वक्त की जरूरत है.
निजी क्षेत्र को भी करनी होगी मदद
देश का हथकरघा, खादी और वस्त्र क्षेत्र विश्व चैंपियन बने, इसके लिए सरकार के साथ ही निजी क्षेत्र को भी आगे आना होगा. साथ ही इस उद्योग और बड़े-बड़े डिजाइनर को अपने साथ स्थानीय बुनकरों को जोड़ने पर ध्यान देना होगा. आज भी गांव-देहातों से लेकर छोटे-छोटे कस्बों में कुशलमंद बुनकरों की भरमार है. हालांकि उनकी पहुंच बड़े शहरों और बाजारों तक नहीं है. इस काम में हथकरघा उद्योग से जुड़े बड़े-बड़े लोगों और डिजाइनरों को सहयोग करना होगा.
राष्ट्रीय हथकरघा दिवस की शुरुआत
भारत सरकार ने हर साल 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाने का फैसला किया और इसके तहत 7 अगस्त 2015 को पहला उत्सव मनाया गया. इस दिन को चुनने के पीछे भी बड़ा कारण था. आजादी की लड़ाई में 7 अगस्त 1905 को स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत हुई थी. इसका मकसद स्वदेशी उद्योगों, ख़ास तौर से हथकरघा बुनकरों को प्रोत्साहित करना था. यहीं वजह है कि नरेंद्र मोदी सरकार ने राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के लिए 7 अगस्त का चयन किया.
अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए जरूरी
आत्मनिर्भर भारत और मेक इन इंडिया जैसे अभियानों के लिए हथकरघा उद्योग या बुनकरों की काफी अहमियत है. हम 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने के लक्ष्य को लेकर आगे बढ़ रहे हैं, तो उसमें स्वदेशी उत्पादों की महत्ता सबसे ज्यादा है. इस लिहाज से भी देश के हथकरघा उद्योग और बुनकरों को बढ़ावा देना भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए जरूरी हो जाता है.
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