बीते हफ्ते 22 नवंबर को ऑस्ट्रेलिया की संसद ने भारत-ऑस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौते- आईए-ईसीटीए (IA-ECTA) पर मुहर लगा दी है. दोनों देशों को बीच ये ऐतिहासिक व्यापार संवर्धन द्विपक्षीय समझौता नवंबर 2022 अप्रैल में किया गया था. इसे लागू करने के लिए ऑस्ट्रेलिया की संसद की मंजूरी बेहद जरूरी थी. इसी तरह भारत में इसके लिए कैबिनेट की सहमति लेती होती है. दोनों देशों की संसद से इस समझौते को हरी झंडी दिखाने के बाद अब बस इसे लागू करने की तारीख भर तय करनी रह गई है.


एक बार तारीख तय होने के बाद दोनों देशों के बीच व्यापारिक रिश्ते कामयाबी की नई इबारत लिखेंगे. इसके साथ ही दुनिया के दो लोकतंत्रों के बीच रणनीतिक साझेदारी में एक बड़ा खालीपन अब भर गया है. हाल के वर्षों में भारत और ऑस्ट्रेलिया ने क्वाड (QUAD) मालाबार नौसेना समूह, त्रिपक्षीय आपूर्ति श्रृंखला में लचीलापन लाने की पहल (SCRI), इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क जैसे अंतरराष्ट्रीय गठबंधनों के साथ हाथ मिलाया है. ये दोनों देशों की द्विपक्षीय रणनीतिक संबंधों को आगे बढ़ाने की दिशा में की गई शानदार कोशिशें हैं. 






दरअसल दोनों देश पहले से ही पूर्व ब्रिटिश उपनिवेशों के संगठन राष्ट्रमंडल (Commonwealth) के सदस्य हैं. इस तरह का ये गहरा आर्थिक और व्यापारिक रिश्ता पक्के तौर पर द्विपक्षीय रणनीतिक साझेदारी को एक नई गति देगा, क्योंकि दोनों देशों की एक-दूसरे की सुरक्षा, स्थिरता और समृद्धि में हिस्सेदारी होगी. इतने कम वक्त में दोनों देशों के बीच इस समझौते पर राजी होना बताता है कि ये देश एक-दूसरे पर यकीन रखते हैं. जैसा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक ट्वीट में कहा, "ये व्यापार सौदा भारत-ऑस्ट्रेलिया की व्यापक रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करेगा और आगे बढ़ाएगा. यह वास्तव में हमारे द्विपक्षीय रिश्तों लिए एक ऐतिहासिक पल है”






आईए-ईसीटीए पर 8 महीने पहले हुए दस्तखत


आईए-ईसीटीए पर ऑस्ट्रेलिया और भारत ने  इस साल  8 महीने पहले 2 अप्रैल को दस्तखत किए थे. ये करीब एक दशक बाद ऐसा मौका था जब भारत ने किसी विकसित देश के साथ व्यापार समझौता किया. भारत ने ऑस्‍ट्रेलिया और जापान के अलावा अधिकांश विकासशील देशों से एफटीए किया है. इनमें  साल 2005 में सिंगापुर,  2010 में दक्षिण कोरिया, आसियान, 2011 में मलेशिया और 2022 में यूएई के साथ एफटीए किए हैं. 






भारत- ऑस्ट्रेलिया की बीच से समझौता स्कॉट मॉरिसन की अध्यक्षता वाली पिछली लिबरल पार्टी सरकार ने किया था. इस तय किए गए सौदे को लेबर पार्टी की नई एंथनी अल्बनीज सरकार का संसद के समक्ष रखने का कदम बहुत कुछ कहता है. ये बताता है कि ऑस्ट्रेलिया के राजनीतिक दल भले ही देश के अंदर राब्ता न रखते हों, लेकिन भारत को लेकर उनमें एकजुटता है. भारत के साथ मजबूत आर्थिक और रणनीतिक साझेदारी विकसित करने के लिए ऑस्ट्रेलिया में अब साफ तौर पर द्विदलीय सहमति है.


गौरतलब है कि ऑस्ट्रेलिया भारत के परमाणु कार्यक्रम का एक मजबूत आलोचक और विरोधी हुआ करता था, लेकिन बाद में उसने भारत के साथ असैन्य परमाणु सहयोग समझौते पर बातचीत करना जरूरी समझा. ऑस्ट्रेलिया के इस कदम ने भारतीय परमाणु ऊर्जा संयंत्रों को परमाणु ईंधन यूरेनियम की आपूर्ति के में आने वाली रुकावटों को दूर कर दिया है.  इन वर्षों में, दोनों देशों ने एक दूसरे के देशों में आयोजित संयुक्त सैन्य अभ्यासों में शिरकत की है और धीरे-धीरे हिंद महासागर में शांति और स्थिरता के संयुक्त संरक्षक के तौर पर उभरे हैं. इन दोनों देशों की यहां सशक्त मौजूदगी ड्रैगन को डराने लगी है. 






ऑस्ट्रेलियाई व्यापार चीन से भारत की तरफ


ऑस्ट्रेलिया और चीन के बीच बढ़ते तनाव के मद्देनजर ईसीटीए पर ऑस्ट्रेलिया की संसद की मंजूरी मिलना काफी अहम है. गौरतलब है कि चीन ऑस्ट्रेलिया का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है, लेकिन हाल ही में कोविड-19 महामारी के मद्देनजर दोनों देशों के बीच हुए विवाद और ऑस्ट्रेलिया के यूनाइटेड किंगडम और यूएसए के साथ 3 देशों के सैन्य गठबंधन में शामिल होने के बाद ऑस्ट्रेलिया और चीन के रिश्ते खराब हो गए हैं.


इस वजह से ऑस्ट्रेलिया एक नई रणनीति के तहत व्यापारिक  रिश्तों में विविधता लाना चाहता है और वो चीन की जगह भारत को  व्यापार के लिए एक स्वाभाविक वैकल्पिक भागीदार पाता है. यह दोनों देशों के लिए फायदे का सौदा है. ऑस्ट्रेलिया अपने कई उत्पादों के लिए भारत में एक बड़े बाजार की संभावना देखता है.


मोटे तौर पर ऑस्ट्रेलिया अपने उत्पादों का एक तिहाई निर्यात चीन को करता है, जबकि वहां से 27 फीसदी उत्पादों का आयात करता है. जबकि भारत में ऑस्ट्रेलिया के निर्यात का हिस्सा मामूली 3.7 फीसदी है जबकि आयात का हिस्सा केवल 2.4 फीसदी है. उम्मीद की जाती है कि IA-ECTA के लागू होने के बाद ऑस्ट्रेलिया का बहुत सारा निवेश और व्यापार चीन से भारत की तरफ मोड़ दिया जाएगा. 


नए व्यापार समझौते के साथ, दोनों देशों ने अगले 5 साल में  व्यापार को दोगुना करके 25 बिलियन अमेरिकी डॉलर करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है. हालांकि साझेदारी के मामले में ये दोनों देश यहीं नहीं थमने वाले है.  दोनों देशों का नेतृत्व इस व्यापार समझौते से आगे भी साझेदारी को एक अहम स्तर पर ले जाने की कोशिशों में हैं. दोनों देश एक बड़े और व्यापक स्तर के व्यापारिक समझौते के इंतजार में है. इसके लिए जनवरी 2023 में बातचीत शुरू होने के पूरे  आसार नजर आ रहे हैं. ऑस्‍ट्रेलिया के साथ भारत के एफटीए से आने वाले 5 साल में गुड्स एंड सर्विसेज का एक्‍सपोर्ट दोगुना होने की उम्मीद जताई जा रही है.


जैसा कि भारत यूके जैसे विकसित देशों और यूरोपीय संघ के उन हिस्सों के साथ मुक्त व्यापार समझौतों पर बातचीत करता है. ऑस्ट्रेलिया पहले विकसित देश के रूप में उभरा है जिसके साथ भारत ने इस तरह के एक ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. वास्तव में भारत-ऑस्ट्रेलिया व्यापार सौदे को अन्य विकसित देशों के साथ व्यापार सौदों के लिए एक नमूने के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है. 


इसका सारा श्रेय भारतीय वार्ताकारों को जाता है जिन्होंने डेयरी और कृषि क्षेत्र को द्विपक्षीय व्यापार समझौते के दायरे से बाहर करने में ऑस्ट्रेलियाई समकक्षों को प्रभावित किया. दरअसल इस  व्यापार सौदे के दायरे में डेयरी और कृषि को शामिल करने का मुद्दा लंबे वक्त से दोनों देशों के बीच विवाद का विषय रहा है.


गौरतलब है कि ये दोनों क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सबसे संवेदनशील माने जाते हैं. इन दोनों क्षेत्रों पर भारतीय  ग्रामीण आबादी के आधे से अधिक लोगों की आजीविका निर्भर करती है. कपड़ा और परिधान, चमड़े के जूते- चप्पल और फर्नीचर, कई इंजीनियरिंग उत्पाद, आभूषण, खेल के सामान आदि जैसे श्रम प्रधान क्षेत्रों को  इस समझौते से सबसे अधिक फायदा होने की उम्मीद है. 


कुल मिलाकर देखा जाए तो ये समझौता ऑस्ट्रेलियाई बाजार में भारतीय उत्पादों की 6,000 से अधिक व्यापक श्रेणियों को शुल्क-मुक्त पहुंच की सुविधा देगा और इस सौदे से देश को अधिकतम फायदा पहुंचेगा. दरअसल ऑस्ट्रेलिया 100 फीसदी मूल्यों की सूची (Tariff Lines) पर शुल्क खत्म करने को राजी हो गया. इससे भारत के श्रम प्रधान क्षेत्रों को फायदा होगा.


कुल मिलाकर देखा जाए तो ये समझौता ऑस्ट्रेलियाई बाजार में भारतीय उत्पादों की 6,000 से अधिक व्यापक श्रेणियों को शुल्क-मुक्त पहुंच की सुविधा देगा और इस सौदे से देश को अधिकतम फायदा पहुंचेगा. दरअसल ऑस्ट्रेलिया 100 फीसदी निर्यात (मूल्य के आधार पर) पर शुल्क खत्म करने को राजी हो गया. इससे भारत के श्रम प्रधान क्षेत्रों को फायदा होगा. निर्यात किए जाने वाले कई उत्पाद पर ऑस्ट्रेलिया में अभी  4-5 फीसदी का शुल्क लगता है. 


भारतीय फार्मास्युटिकल सेक्टर को भी फायदा होगा क्योंकि अन्य विकसित देशों में स्वीकृत दवाओं को ऑस्ट्रेलिया में तेजी से स्वीकृति मिलेगी. सर्विस या जॉब सेक्टर के व्यापार की बात है तो ऑस्ट्रेलिया में योग शिक्षकों और भारतीय रसोइयों के लिए 1800 का सालाना कोटा निर्धारित किया गया है. साथ ही पढ़ाई के बाद के वर्क वीजा की समय सीमा के लिए 18 महीने से 4 साल तक की मंजूरी दी गई है.


मौजूदा वक्त में भारत से ऑस्ट्रेलिया को निर्यात किए जाने वाले अधिकांश निर्मित उत्पाद हैं. इनमें पेट्रोलियम प्रोडक्‍ट्स, दवाइयां हीरे, आभूषण, रेलवे कोच और वाहन, मिल्ड चावल, शाकनाशी शामिल हैं. इस तरह के सामान ऑस्ट्रेलिया में भारत के निर्यात का 72 फीसदी हिस्सा हैं. ऑस्ट्रेलिया से भारत के 82 फीसदी आयात में कोयला, सोना, तांबा अयस्क, फिटकरी शामिल हैं.