India-Italy Relationship: भारत आज दुनिया में एक निर्णायक भूमिका निभाना चाहता है. इसके साथ हर देश अपने संबंधों को नई ऊंचाई पर ले जाना चाहता है. प्रधानमंत्री मोदी अभी ब्रिक्स समिट में हिस्सा लेने जोहानिसबर्ग गए थे और लगे हाथों उन्होंने ग्रीस की भी यात्रा की थी. उसके पहले वह अमेरिका की बेहद सफल यात्रा करके आए थे, जहां जी-7 देशों की मीटिंग भी हुई थी. दुनिया के विस्ति देशों में से एक इटली के साथ भी भारत के संबंध अच्छे होने लगे हैं. ऑगस्टा वेस्टलैंड में जिस तरह का विवाद और पैसों के लेनदेन के आरोप लगे थे, दोनों देश अब उस दौर से उबर चुके हैं और रक्षा व सुरक्षा क्षेत्र में पड़ी झांई को हटाने के लिए सहमत हो गए हैं. भारत और इटली दोनों ही देश अब भारत-प्रशांत प्रारूप (फ्रेमवर्क) के तहत एक-दूसरे की मदद कर बहुआयामी और विस्तार वाले समझौते पर हस्ताक्षर करना चाह रहे हैं. अपने संबंधों को थोड़ा और ऊंचा पहुंचाना चाह रहे हैं. एक खास बात यह है कि भारत और इटली इस साल अपने द्विपक्षीय संबंधों की 75वीं वर्षगांठ मना रहे हैं. अभी मार्च के महीने में इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी भी आयी थीं और उन्होंने जमकर प्रधानमंत्री मोदी की सराहना भी की थी. हैदारबाद हाउस में विस्तृत चर्चा के बाद भारत और इटली की साझेदारी को रणनीतिक साझीदार का दर्जा दिया गया. इसमें अच्छी बात यह है कि सारे उपक्रम 'मेड इन इंडिया' के तहत बनेंगे यानी कि हमारी तकनीकी महारत भी बढ़ेगी.


  


 


डिफेंस पर बड़ी डील


भारत और इटली के बीच प्रतिरक्षा की बड़ी डील मई-जून में इसी साल ही हो जानी थी. उसमें थोड़ी देर हुई है, लेकिन दोनों देशों को उम्मीद है कि वे नवंबर तक सैन्य एंगेजमेंट को लेकर समझौता कर लेंगे, जबकि अभ्यास बढ़ता ही जा रहा है. भारतीय नौसेना युद्धपोत बनाने का काम बड़े पैमाने पर कर रही है. इटली इसी क्षेत्र में भारत के साथ उतरना चाहता है. अभी 10 से 14 अगस्त तक इटली का नौसैनिक जहाज आइटीएस मोरोसिनी भी मुंबई में था. उसको हिंद-प्रशांत क्षेत्र में इटली ने लगाया हुआ है और इसी दौरान वह मुंबई भी आया था. पिछले पांच वर्षों में भारत के युद्धपोत बनाने के काम में बहुत ज्यादा इजाफा हुआ है. इटली की प्रधानमंत्री ज्यॉर्जिया मेलोनी ने भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जमकर तारीफ की थी, जब वह मार्च में भारत की यात्रा पर आई थीं.



उन्होंने पीएम मोदी को  'दुनियाभर में सबसे चहेते नेता' के रूप में संबोधित किया था. मार्च में ही दोनों देशों के बीच डिफेंस सेक्टर को लेकर भी वार्ता हुई और डील भी साइन होनी थी, जो अब हो रही है. इटैलियन युद्धपोत अपने वर्ग में बेहतरीन माने जाते हैं और भारत-इटली के बीच नए समझौते के मुताबिक इटली इसकी तकनीक भी भारत के साथ सह-विकास और सह-उत्पादन के लिए देने को तैयार है. मार्च में हुए समझौतों के अनुसार नयी दिल्ली ने इटैलियन डिफेंस कंपनियों के लिए अपने दरवाजे खोल दिए हैं. ऑगस्टा कांड के समय भारत ने कुछ कंपनियों पर रोक लगायी थी, कई को ब्लैकलिस्ट किया था. अब इटली की कंपनियां मेक इन इंडिया के तहत भी उत्पादन कर सकती हैं. 


दोनों को एक-दूसरे की जरूरत


भारत और इटली दोनों ही के हित कई जगहों पर समान होते हैं और दोनों ही देश एक-दूसरे के विश्वसनीय साझीदार हो सकते हैं. हिंद महासागर तो इटली के 'वाइडर मेडिटेरेनियन' से जुड़ा है. यह ऐसा क्षेत्र है जहां से मध्य-पूर्व, अफ्रीका, एशिया, यूरोप और अंटार्कटिका, कहीं भी जा सकते हैं. यह दुनिया की धुरी है और इस क्षेत्र में अगर स्थिरता और शांति नहीं रही, तो फिर दिक्कत दुनिया की शांति को भी हो जाएगी. इस इलाके पर चीन की बुरी नजर भी है और भारत को जहां से भी मदद और साझीदारी मिलेगी, वह लेगा. दोनों देश रिमोट सेंसिंग, उपग्रह संचार, अंतरिक्ष विज्ञान, चंद्रमा से जुड़े शोध आदि में साझा प्रोजेक्ट पर भी काम करेंगे. भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो और इटली की अंतरिक्ष एजेंसी एएसआईके बीच विचारों का आदान-प्रदान पहले ही जारी है. दोनों ही देश भारत और यूरोपीय संघ की रणनीतिक साझेदारी को बढ़ाने पर भी सहमत हैं. आतंकवाद और अलगाववाद के खिलाफ लड़ाई में भारत और इटली कंधे से कंधा मिला कर चल रहे हैं. भारत और इटली, वर्चुअल एसेट्स और नई वित्तीय तकनीकों से जुड़े संभावित जोखिमों का आकलन और पता लगाने के लिए भी मिल कर काम कर रहे हैं. भारत और इटली के साथ मिलकर चलने से पूरब और पश्चिम की दो बड़ी ताकतें मिल रही हैं. इटली भी फासीवाद के अपने जख्मों को भरने में लगा है और भारत भी पिछले छह दशकों से युद्ध के दौरान छलनी हुए अपने शरीर को स्वस्थ कर रहा है और दुनिया के रंगमंच पर अपनी दस्तक देने का इंतजार कर रहा है.