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India At 2047: अमीर देशों के कोविड -19 वैक्सीन राष्ट्रवाद को भारत करारा जवाब

Looking Ahead, India@2047: महामारी के चरम दौर में भारत ने दुनिया के 101 देशों और संयुक्त राष्ट्र (UN) की संस्थाओं को 23.9 करोड़ रुपये की मुफ्त वैक्सीन की खुराक भेजी तो अपने यहां भी वैक्सीनेशन किया.

India Covid-19 Vaccine Diplomacy: बीते 30 महीनों ने दुनिया को कोविड -19 ( Covid-19) से तबाह होते देखा है. भारत को भी नुकसान उठाना पड़ा, लेकिन हमने दुनिया (World ) भर के कई शक्तिशाली देशों की तुलना में महामारी (Pandemic) को बहुत बेहतर तरीके से संभाला, जिसे दुनिया ने स्वीकार और सराहा भी है. यह ऐसी बात है जिस पर हमें गर्व होना चाहिए. इतना ही नहीं, भारत ने कई अन्य देशों की मदद भी की और अभी भी वैक्सीन मैत्री (Vaccine Maitri) के जरिए ये काम जारी रखा है. भारत ने स्वतंत्रता के बाद के 75 वर्षों में और खासकर कोविड -19 महामारी के दौरान ने एक के बाद आई विपरीत परिस्थितियों को आपदा से अवसर में बदल डाला. 

भारत को विश्व नहीं कर सकता नजरअंदाज

आज विश्व स्तर पर भारत (India) की भूमिका को कोई भी नजरअंदाज नहीं कर सकता है. इससे पहले कि कि कोविड -19 महामारी अपना असर दिखाती उससे पहले ही भारत की जेनेरिक दवाएं (Generic Medicine) और वैक्सीन बनाने की क्षमता वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा में एक अहम स्थान हासिल कर चुकी थी. दुनिया भर में एचआईवी (HIV) से ग्रस्त 92 फीसदी से अधिक लोग भारत की बनाई जीवन रक्षक एंटीरेट्रोवायरल (Antiretroviral) दवाएं ले रहे थे. ये दवाएं भारतीय जेनेरिक दवा निर्माताओं (Generic Pharmaceutical Manufacturers) ने तैयार की थीं. भारत के बनाई सैकड़ों अन्य जीवन रक्षक (Life-Saving) दवाओं और वैक्सीन के मामले में भी यही सच लागू होता है.

जानलेवा संक्रामक रोगों की रोकथाम के लिए वैश्विक स्तर पर उपभोग की जाने वाली वैक्सीन की 80 फीसदी से अधिक खुराकें (Doses) भारत में बनाई गई और विश्व में इसकी आपूर्ति की गई है.उदाहरण के लिए, सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया-एसआईआई (Serum Institute of India -SII) को दुनिया के सबसे बड़े वैक्सीन निर्माता के तौर पर पहचाना गया. हाल ही में जॉन्स हॉपकिन्स ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ (Johns Hopkins Bloomberg School of Public Health) ने एसआईआई के चीफ साइरस पूनावाला (Cyrus Poonawalla) को डीन के पदक नवाजा. उन्हें खसरे के टीके (Measles Vaccines) के योगदान देने के लिए ये सम्मान दिया गया. इसी टीके ने साल 1990 और 2016 में विश्व स्तर पर 22 मिलियन लोगों की जान बचाने में मदद की थी.

निम्न और मध्यम आय वाले देशों को मदद

भारत ने अन्य देशों को एचआईवी, तपेदिक (Tuberculosis) और अन्य संक्रामक रोगों के इलाज के लिए दवाएं की मदद की दी तो उधर दूसरी तरफ इन देशों को सैकड़ों अन्य दवाओं तक पहुंच बढ़ाने में भी मदद की. जबकि अपनी सीमाओं के अंदर भी भारत इन बीमारियों से निपट रहा था. एचआईवी के इलाज को ही लें. आज भारत में एचआईवी-पीएलएचआईवी (HIV PLHIV)) के साथ रहने वाले लगभग 15 लाख लोग है. भारत इन लोगों को दवाओं की आजीवन मुफ्त आपूर्ति कर रहा है. यहीं नहीं दुनिया भर में एचआईवी से ग्रस्त हर 10 में से 9 व्यक्ति भारत में बनी इन दवाओं का सेवन से स्वस्थ जीवन जी रहे हैं. 

महामारी की वजह से आए सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल (Public Health Emergency) और मानवीय संकट के बाद भी भारत के फार्मास्यूटिकल्स और वैक्सीन निर्माताओं ने हार नहीं मानी. यहां तक कि अक्सर शक्तिशाली बहुराष्ट्रीय फार्मा (multinational pharma) लॉबी भारत की फार्मास्यूटिकल्स कंपनियों पर कॉपी-कैट का लेबल चस्पा करती रहीं, लेकिन अमीर देशों की लंबी आलोचना के बावजूद भी वो डटे रहे.जब ग्लोबल नॉर्थ के अमीर देश अपनी आबादी से कई गुना अधिक कोविड -19 टीकों का भंडार और जमाखोरी कर रहे थे. उस वक्त भारत ने न केवल देश के अंदर सबसे बड़े वैक्सीन ड्राइव में से एक का नेतृत्व किया, बल्कि दुनिया भर में निम्न और मध्यम आय वाले देशों यानी एलएमआईसी (Middle-Income Countries-LMICs) के साथ वैक्सीन की खुराक भी शेयर की.

कोविड महामारी में दिखाई इंसानियत

भारत ने कोविड महामारी के चरम दौर में दुनिया भर के 101 देशों और संयुक्त राष्ट्र की संस्थाओं को 23.9 करोड़ मुफ्त वैक्सीन खुराक की आपूर्ति की. इसके साथ ही साथ अपने देशवासियों का भी वैक्सीनेशन भी किया. इसके अलावा वैश्विक स्तर पर भारतीय कंपनियों ने सस्ती कीमत पर वैक्सीन की आपूर्ति भी की. ऐसा कर भारत ने घायल की गति घायल जाने कहावत को सच साबित कर दिया. भारत ने दक्षिण एशियाई (South Asian) पड़ोसी देशों को भारतीय वैक्सीन की आपूर्ति ऐसे वक्त में की थी,जब अमीर राष्ट्र वैक्सीन के विशाल भंडार दबाए बैठे थे. हालांकि इसे लेकर अमीर देशों को खासी आलोचना हुई थी. यही वजह रही कि बाद में इन देशों ने एक्सपायरी डेट के नजदीक पहुंच गई वैक्सीन को डंप करना शुरू कर दिया था. यह मानवता के खिलाफ एक अपराध था.

इन देशों ने अपने लोगों को तीसरी और चौथी बार वैक्सीन देने के बाद लाखों वैक्सीन की डोज एक्सपायरी के नजदीक आने पर फेंक दीं. क्या ये डोज समय रहते उन लोगों के पास नहीं पहुंच सकती थीं, जिन्हें इसकी पहली डोज (First Dose) भी नसीब नहीं हो पाई थी ? इससे बार-बार इन देशों ने यही साबित करने की कोशिश की कि उनकी जिंदगी गरीब देशों के लोगों की तुलना में अधिक कीमती है. कनाडा (Canada) की आबादी 3.6 करोड़ है. लेकिन बीते महीने यहां से खबर आई थी कि उसने 1.36 करोड़ कोविड -19 वैक्सीन डोज नष्ट कर दी है, लेकिन इन्हें मध्य और दक्षिण अमेरिका (South America) के उन देशों को मुहैया कराना जरूरी नहीं समझा, जहां वैक्सीनेशन की दर अमेरिका (America) और कनाडा की तुलना में बहुत कम है. 

अमीर देशों का वैक्सीन राष्ट्रवाद

कोविड -19 महामारी (Covid-19 Pandemic) के शुरुआती दिनों से ही ये साफ हो गया था कि इस महामारी से बाहर निकलने का एकमात्र संभव हो सकने वाला तरीका दुनिया में इस टीके (vaccine) को लेने लायक हर शख्स के टीकाकरण (Vaccination) को पक्का करना. इस टीके को लगाने के लिए समयबद्ध तरीके से पूर्ण टीकाकरण सुनिश्चित किया जाना सबसे जरूरी था, ताकि गंभीर कोविड बीमारी की वजह से अस्पताल में भर्ती होने, आईसीयू में जाने, वेंटिलेटर पर रहने और असमय होने वाली मौतों जैसी स्थितियों से बचा जा सके. 

अमीर देशों ने अपनी टीका लगाने लायक आबादी को तीन से पांच बार तक कई बार टीका लगाया है. वहीं अभी भी दुनिया के कई कम आय वाले देश ऐसे हैं, जहां अभी तक पूरी तरह से  40 फीसदी वैक्सीनेशन का लक्ष्य भी पूरा नहीं हो पाया है. जबकि दुनिया के अमीर देशों के लिए वैक्सीनेशन का यह एक ऐसा लक्ष्य था जो उन्होंने अपने वैक्सीनेशन के शुरुआती दौर में एक ही महीने के अंदर पूरा कर लिया था. विडंबना यह है कि कम आय वाले देशों की तुलना में अमीर देशों के लोगों को कोविड -19 (Covid-19) के खिलाफ दस गुना तेजी से टीका लगाया गया है.

दुनिया में कोविड वैक्सीन के मामले में हुआ अत्यधिक पक्षपात वैक्सीन के असमान वितरण में साफ देखा जा सकता है. सात अरब से अधिक लोगों वाली इस दुनिया में अब तक कोविड वैक्सीन की 12 अरब  खुराकें (Dose) दी जा चुकी है. दुनिया भर में प्रति 100 लोगों के लिए लगभग 152 शॉट्स का इंतजाम था.

लेकिन मई 2022 तक पहली COVID-19 वैक्सीन दिए जाने के बाद नजर आने वाले हालात अमीर और गरीब की खाई को साफ दिखाते हैं. पहली वैक्सीन दिए जाने के लगभग 18 महीने बाद भी 68 देश ऐसे है जो अभी भी 40 फीसदी कवरेज हासिल नहीं कर पाएं. कम आय वाले देशों में केवल 16 फीसदी लोगों को वैक्सीन की पहली डोज लगी है.

वैश्विक स्तर पर देखा जाए तो औसतन लगभग तीन-चौथाई स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और 60 वर्ष से अधिक आयु के लोगों को टीका लगाया जा चुका है, लेकिन कम आय वाले देशों (Low-Income Countries) में स्थिति बिल्कुल उलट है. वहां कोविड वैक्सीन लगाने की दर बेहद कम है. 

 एक्सपायरी डेट के करीब पहुंची वैक्सीन काम न आईं

निम्न और मध्यम आय वाले देशों के लोगों को न केवल वैक्सीन की कम डोज मिली हैं. या फिर अगर उन्हें  वैक्सीन की पूरी डोज लगी भी है तो वो बहुत देर से लगी. कई बार तो ऐसा हुआ की इन देशों में टीका पहुंचा भी तो वह अपने खत्म होने की तारीख (Expiry Date) के करीब पहुंचा था. उदाहरण के लिए, ब्रिटिश मेडिकल जर्नल- बीएमजे (British Medical Journal-BMJ) ने हाल ही में रिपोर्ट किया था कि 2021 के अंत तक डब्ल्यूएचओ (WHO) की कोवैक्स (Covax) सुविधा के तहत नाइजीरिया (Nigeria) को कोविड-19 वैक्सीन की 2.6 मिलियन डोज मिलना तय हुआ था.

गौरतलब है कि कोवैक्स सुविधा दुनिया में वैक्सीन के समान वितरण के लिए संयुक्त राष्ट्र(UN)-डब्ल्यूएचओ की पहल है. लेकिन अधिकांश यूरोप (Europe) से भेजी गई ये वैक्सीन अपनी एक्सपायरी डेट के करीब थी. इस वजह से नाइजीरिया इनकी एक्सपायरी से पहले 1.53 मिलियन डोज ही दे पाया. बाकि बची 1.07 मिलियन डोज एक्सपायर हो जाने की वजह से फेंक दी गईं.  बीएमजे के मुताबिक, "नाइजीरिया, रवांडा, केन्या और इंडोनेशिया ने यूरोप और उत्तरी अमेरिका से मिली वैक्सीन को नष्ट कर दिया था, क्योंकि वे एक्सपायरी डेट के नजदीक थीं."

हमने 2021 में यह साफ देखा कि इसराइल (Israel) जैसे देश जो पूरी तरह से अपनी आबादी का टीकाकरण करने में आगे रहे थे, वहां इस महामारी पर काबू पा लिया गया था. यहां कोरोना वायरस से संक्रमित  बहुत कम लोगों के अस्पताल में भर्ती और आईसीयू जाने की नौबत आई. फिर भी दुनिया में टीकाकरण (Vaccination) को समान रूप से बढ़ाने में नाकामयाब रहे. नतीजतन जब कोरोनवायरस के ओमिक्रॉन (Omicron) वैरिएंट ने हमला बोला तो यह बैगर वैक्सीनेशन वाले लोगों की महामारी के तौर पर सामने आया.

इस वैरिएंट की चपेट में आकर अस्पताल में भर्ती होने, आईसीयू या वेंटिलेटर पहुंच जाने वाले या फिर मरने वाले लोगों में 90 फीसदी से अधिक का टीकाकरण नहीं हुआ था. इस महामारी से होने वाले इंसानी दुख और पीड़ा से बचा जा सकता था. इससे होने वाली असमय मौतों पर लगाम लगाई जा सकती थी, लेकिन इन सबके लिए क्या अमीर देशों का वैक्सीन राष्ट्रवाद जवाबदेह नहीं है. इसमें भारत के बगैर के परिदृश्य के बारे में सोचें! अगर भारत वैक्सीन मैत्री (Vaccine Maitri) के तहत जरूरतमंद देशों के लिए वैक्सीन भेजने की पहल नहीं करता तो क्या महामारी से होने वाली मौतों के आंकड़ों में बढ़ोतरी होने से कोई रोक सकता था. 

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