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India At 2047: इसरो के भविष्य के अंतरिक्ष मिशन, जानिए अंतरिक्ष में कैसे छा जाएगा भारत

Looking Ahead, India at 2047: इसरो (ISRO) भविष्य के उपग्रह मिशन आदित्य एल -1, चंद्रयान -3 मिशन, गगनयान मिशन, वीनस ऑर्बिटर मिशन और निसार पर काम कर रहा है. इसके जरिए वह अंतरिक्ष मिशन की अमिट गाथा लिखने जा रहा है.

India’s Space Odyssey: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन-इसरो (The Indian Space Research Organisation-ISRO) ने 1960 के दशक की शुरुआत में भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम (Indian Space Programme) की शुरुआत के बाद से ही कई खास उपलब्धियां हासिल की हैं. एक तरह से इसरो अंतरिक्ष मिशन में लंबी और अमिट गाथा (Odyssey) लिखने की तैयारी में है. 

जब अमेरिकी उपग्रह सिंकॉम-3 (Syncom-3) ने 1964 के टोक्यो ओलंपिक का सीधा प्रसारण किया तो उसे देखकर भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक डॉ विक्रम साराभाई (Dr Vikram Sarabhai) ने भारत के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी (Space Technologies) के फायदों को पहचाना.डॉ साराभाई का मानना था कि अंतरिक्ष के संसाधनों में समाज की वास्तविक परेशानियों को सुलझाने की क्षमता है.

इसी कड़ी में साल 1962 में अंतरिक्ष अनुसंधान गतिविधियों के नेतृत्व के लिए परमाणु ऊर्जा विभाग (Department Of Atomic Energy) के तहत अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए भारतीय राष्ट्रीय समिति (National Committee for Space Research- INCOSPAR) बनाई गई थी. बाद में अगस्त 1969 में इसकी जगह पर  भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation) की स्थापना की गई. बस फिर क्या था भारतीय उपग्रह कार्यक्रम का आगाज भारत के पहले प्रायोगिक उपग्रह आर्यभट्ट (Aryabhatta) के प्रक्षेपण के साथ 19 अप्रैल, 1975 को हो गया. 

इसके बाद इसरो ने पलट कर नहीं देखा. इसके अंतरिक्ष मिशन की लंबी फेहरिस्त है. इसमें सैटेलाइट इंस्ट्रक्शनल टेलीविजन एक्सपेरिमेंट-साइट (Satellite Instructional Television Experiment -SITE), रोहिणी सीरीज, इनसैट (INSAT) और जीसैट सीरीज, एडुसैट (EDUSAT) भास्कर-1(Bhaskara-1) अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट (Earth Observation Satellite Series), स्पेस रिकवरी एक्सपेरिमेंट सैटेलाइट, सरल, चंद्रयान -1, मार्स ऑर्बिटर मिशन (MOM), एस्ट्रोसैट और चंद्रयान -2 (Chandrayaan-2) जैसी सीरीज शामिल हैं. यहां जानिए इन सीरीज के जरिए इसरो कैसे अंतरिक्ष में नया इतिहास लिखने की जोरशोर से तैयारी कर रहा है. 

इसरो के भविष्य के मिशन

इसरो भविष्य के उपग्रह मिशन जैसे आदित्य एल -1 ( Aditya L-1), चंद्रयान -3 मिशन (Chandrayaan-3 mission), गगनयान मिशन (Gaganyaan mission), वीनस ऑर्बिटर मिशन और निसार ( NISAR ) मिशन पर काम कर रहा है.आदित्य एल-1 सौर वातावरण का अध्ययन करने के लिए एक नियोजित कोरोनोग्राफी अंतरिक्ष (Coronagraphy Spacecraft) यान है. तो चंद्रयान -3 इसरो का तीसरा चंद्र अन्वेषण मिशन है. यह चंद्रयान -2 मिशन का दोहराव होगा. हालांकि, इसमें ऑर्बिटर (Orbiter) नहीं होगा.

वहीं गगनयान कार्यक्रम का उद्देश्य पृथ्वी की निचली कक्षा में मानव अंतरिक्ष यान (Human Spaceflight) मिशन शुरू करने की स्वदेशी क्षमता का प्रदर्शन करना है.गगनयान कार्यक्रम के तहत तीन उड़ानें पृथ्वी की निचली कक्षा में भेजी जाएंगी. इनमें दो मानव रहित उड़ानें होंगी तो एक मानव अंतरिक्ष उड़ान होगी. मतलब इसमें स्पेसक्राफ्ट के साथ इंसान भी उड़ान भरेगा.

इसरो के ये आने वाले मिशन राष्ट्र की तकनीकी क्षमताओं को बढ़ाएंगे और वैज्ञानिक अनुसंधान और विकास में महत्वपूर्ण योगदान देंगे. इसरो मौसम विज्ञान, संचार, टेली-एजुकेशन और टेलीमेडिसिन जैसे अलग-अलग क्षेत्रों में मानव जाति की बेहतरी के लिए पुरजोर कोशिश कर रहा है. यहां इसरो के कुछ ऐसे ही प्लान किए गए मिशन्स के बारे में हम आपको बताने जा रहें हैं. 

आदित्य एल1 मिशन

आदित्य एल1 सूर्य का अध्ययन करने वाला पहला भारतीय मिशन बनने जा रहा है. 400 किलोग्राम के उपग्रह को सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के लग्रांगियन (Lagrangian) प्वाइंट 1 (L1) के चारों ओर एक प्रभामंडल कक्षा में प्रक्षेपित किया जाएगा. लैंग्रांगियन बिंदु अंतरिक्ष में ऐसे बिंदु होते हैं, जहां पर वहां भेजी गई वस्तुएं वैसे ही वहीं रहती हैं. ऐसे प्वाइंट में एल-1 सबसे अहम है. L1 पृथ्वी से 1.5 मिलियन किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.

इसरो के इस आदित्य L1 को लग्रांगियन प्वाइंट L1 के आसपास ही रखा जाएगा. इससे यह लगातार सूर्य को देख सकता है. उपग्रह कुल सात पेलोड से लैस होगा, जिसमें विजिबल एमिशन लाइन कोरोनग्राफ भी होगा. पेलोड वह वस्तु है जो प्रक्षेपण यान ले जाता है. इस मिशन का मुख्य उद्देश्य सूर्य के कोरोना (Corona) यानि प्रभामंडल का निरीक्षण करना है. प्रभामंडल से मतलब सूर्य के चारों तरफ दिखाई देने वाले प्रकाश से है. इस प्रोजेक्ट का मकसद सूर्य के अंदर होने वाली गतिशील प्रक्रियाओं को समझना भी है. मिशन के 2022 के अंत में लॉन्च होने की उम्मीद है.

चंद्रयान-3

चंद्रयान -3 इसरो का प्लान किया गया तीसरा चंद्र अन्वेषण मिशन है. इसमें  चंद्रयान -2 के मिशन को ही दोहराया जाएगा. हालांकि, चंद्रयान-3 में ऑर्बिटर नहीं होगा. चंद्रयान -3 को सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (Satish Dhawan Space Centre), श्रीहरिकोटा से लॉन्च किया जाएगा. इसे जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (Geosynchronous Satellite Launch Vehicle -GSLV) मार्क III रॉकेट के ऊपर लॉन्च किया जाएगा.

इस मिशन का चंद्र रोवर, लैंडर और प्रोपल्शन मॉड्यूल भी चंद्रमा के दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र पर चंद्रयान -2 की ही लैंडिंग साइट पर लॉन्च किया जाएगा. गौरतलब है कि साल 2019 में भी चंद्रयान -2 के विक्रम लैंडर (Vikram lander) को चंद्रमा की इसी लैंडिंग साइट पर लॉन्च करने की कोशिश की गई थी. मिशन के अगस्त 2022 में लॉन्च होने की उम्मीद जताई जा रही है.

गगनयान 1

गगनयान प्रोग्राम भारत का पहला मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम है. इसरो का लक्ष्य इसके तहत मनुष्यों को पृथ्वी की निचली कक्षा में भेजना है. इस प्रोग्राम में दो मानव रहित मिशन और एक मानवयुक्त मिशन शामिल होंगे. गगनयान 1 दो परीक्षण उड़ानों में से पहला है. तीन व्यक्तियों को अंतरिक्ष में ले जाने की क्षमता वाला एक मानव रहित अंतरिक्ष यान 2022 के अंत में अंतरिक्ष में लॉन्च होने की उम्मीद की जा रही है.

गगनयान 2

गगनयान का दूसरा मानव रहित मिशन 2022 के अंत में अमल में लाया जाएगा. गगनयान 2 का अंतरिक्ष यान मानव-रोबोट व्योमित्र (Vyommitra) को अंतरिक्ष में ले जाएगा. इसरो के मुताबिक, मानव रहित मिशन्स का मकसद टेक्नोलॉजी की सुरक्षा, विश्वसनीयता को परखना है. इस मिशन का उद्देश्य अंतरिक्ष यान में मानव को भेजने से पहले सुरक्षा के मद्देनजर अंतरिक्ष यान प्रणालियों का अध्ययन करना है.

गगनयान 3

गगनयान 3 यानी  पहले चालक दल वाला गगनयान मिशन 2023 में लॉन्च किया जाएगा. इसमें अंतरिक्ष ट्रेनीज को ही टेस्ट पायलट्स के पूल के लिए चुना जाएगा. इसके लिए उन्हें फिटनेस टेस्ट, मनोवैज्ञानिक और एयरोमेडिकल (Aeromedical) मूल्यांकन से गुजरना होगा. यदि गगनयान 3 सफल होता है, तो सोवियत संघ, संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बाद भारत स्वतंत्र रूप से मनुष्यों को अंतरिक्ष में भेजने वाले चौथे देश की श्रेणी में आ जाएगा. इसके बाद भारत का अगला फोकस अंतरिक्ष में लगातार मानव मौजूदगी हासिल करने पर होगा.

शुक्रयान-1

शुक्रयान -1 भी इसरो एक योजनाबद्ध मिशन है. इसका उद्देश्य शुक्र की सतह और वातावरण का अध्ययन करना है. इसके लिए सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से जीएसएलवी मार्क III (GSLV Mark III) रॉकेट के ऊपर शुक्र के लिए एक ऑर्बिटर लॉन्च किया जाएगा. मिशन की अवधि चार साल है. इस मिशन का उद्देश्य सतही स्ट्रैटिग्राफी (Stratigraphy) यानि चट्टान की परतों के अध्ययन से संबंधित वैज्ञानिक पद्धति के जरिए वायुमंडल का विश्लेषण करना है. इसके साथ ही यह शुक्र (Venus) के आयनमंडल और सौर हवा के एक-दूसरे पर प्रभाव का अध्ययन भी करेगा. शुक्रयान-1 के दिसंबर 2024 में लॉन्च होने की उम्मीद है.

मंगलयान-2

मंगलयान -2 या मार्स ऑर्बिटर मिशन 2 (MOM 2) इसरो का ग्रहों के बीच (Interplanetary) का दूसरा मिशन है. इसके 2025 में लॉन्च होने की उम्मीद है. यह मिशन मंगलयान -1 ( Mangalyaan-1) के बाद का मिशन है. इस मिशन की अवधि एक साल रखी गई है. टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मंगलयान-2 मिशन में सिर्फ एक ऑर्बिटर होगा. मंगलयान -2 को सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से जीएसएलवी मार्क III रॉकेट के ऊपर लॉन्च किया जाएगा. 

एस्ट्रोसैट-2

एस्ट्रोसैट-2 भी  एस्ट्रोसैट (AstroSat) के बाद का मिशन है. यह खगोल विज्ञान (Astronomy) के अध्ययन के लिए पूरी तरह से समर्पित पहला भारतीय उपग्रह है. भारत के अंतरिक्ष दूरबीन एस्ट्रोसैट को 28 सितंबर, 2015 को लॉन्च किया गया था. एस्ट्रोसैट-2 भारत का दूसरा अंतरिक्ष वेधशाला (Observatory) मिशन है. इस मिशन के लॉन्च की तारीख अभी घोषित नहीं की गई है.

चंद्र ध्रुवीय अन्वेषण मिशन

लूनर पोलर मिशन ( Lunar Polar Exploration Mission -LUPEX) जापानी एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी (Japanese Aerospace Exploration Agency-JAXA) और इसरो का एक संयुक्त रोबोटिक चंद्र अन्वेषण मिशन है. पिछले अध्ययनों ने चंद्रमा पर ध्रुवीय क्षेत्रों में पानी होने का पता चला है. इस वजह से इस लूनर पोलर मिशन का उद्देश्य चंद्रमा पर मौजूद जल संसाधनों की मात्रा, गुणों और रूपों के बारे में जानकारी हासिल करना है.

इसके जरिए भविष्य में स्थायी अंतरिक्ष अन्वेषण गतिविधियों के लिए चंद्रमा के जल संसाधनों को वास्तविकता में इस्तेमाल करने में मदद मिलेगी. जापानी एयरोस्पेस एजेंसी की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक, मिशन का उद्देश्य चंद्रमा के जल संसाधनों के वितरण, स्थितियों, रूपों और अन्य मापदंडों को समझना है. इसके जरिए इसरो और जापानी एयरोस्पेस एजेंसी (JAXA) निम्न-गुरुत्वाकर्षण आकाशीय पिंडों की सतह का पता लगाने के लिए आवश्यक तकनीक में सुधार करना चाहते हैं. मिशन की अवधि छह माह की होगी. इसके 2025 में लॉन्च होने की उम्मीद है.

निसार

नासा (NASA)-इसरो सिंथेटिक एपर्चर रडार-  निसार (ISRO Synthetic Aperture Radar-NISAR) नासा और इसरो के बीच पृथ्वी के अवलोकन का एक संयुक्त मिशन है. इसका मकसद उन्नत रडार इमेजिंग का इस्तेमाल कर भूमि की सतह में आने वाले परिवर्तनों के कारणों और परिणामों को वैश्विक तौर से मापना है. इसके लिए दोनों अंतरिक्ष एजेंसियां ​​​​दो रडार दे रही हैं. ये रडार निसार (NISAR) मिशन को धरती की सतह पर होने वाले परिवर्तनों को बड़े स्तर पर मापने और निरीक्षण करने के लिए पूरी मदद करेंगे. ये रडार इस काम के लिए पूरी तरह से सक्षम हैं. 

नासा के मुताबिक निसार (NISAR) अंतरिक्ष में अपनी तरह का पहला रडार होगा, जो पृथ्वी को व्यवस्थित रूप से मैप करेगा. इसके लिए ये रडार एल-बैंड और एस-बैंड की दो अलग-अलग आवृत्तियों का इस्तेमाल करेंगे. निसार का डेटा उपयोगी होगा, क्योंकि यह दुनिया भर में लोगों को प्राकृतिक संसाधनों और खतरों के बेहतर प्रबंधन में मदद करेगा.

इसके अलावा, वैज्ञानिक जलवायु परिवर्तन के प्रभावों और गति को बेहतर ढंग से समझने में सक्षम हो पाएंगे. ये मिशन पृथ्वी की पपड़ी (Crust) के बारे में हमारी समझ को भी बढ़ाएगा. निसार (NISAR) हमारे ग्रह के बदलते पारिस्थितिकी तंत्र  (Ecosystems), बर्फ के द्रव्यमान और गतिशील सतहों को मापेगा. मिशन बायोमास, प्राकृतिक खतरों, भूजल और समुद्र के स्तर में बढ़ोतरी के बारे में भी जानकारी देगा. इस मिशन के 2023 में लॉन्च होने की उम्मीद है और इसे तीन साल की योजनाबद्ध अवधि में पूरा किया जाना है.

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