अमेरिकी ऊर्जा मंत्रालय की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत 2047 तक ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल कर सकता है. इसी साल भारत स्वतंत्रता की 100वीं वर्षगांठ मनाएगा. ‘लॉरेंस बर्कले नेशनल लेबोरेटरी’ ने यह अध्ययन किया है. आत्मनिर्भर भारत की राह- शीर्षक वाले अध्ययन के अनुसार, भारत के ऊर्जा बुनियादी ढांचे को आने वाले दशकों में तीन हजार अरब डॉलर के निवेश की जरूरत होगी. अगले कुछ वर्षों में भारत को महत्वपूर्ण आर्थिक, पर्यावरणीय एवं ऊर्जा लाभ हासिल होंगे, जिससे 2047 तक 2500 अरब डॉलर की उपभोक्ता बचत होगी. वैश्विक स्तर पर भारत की औद्योगिक प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और वह निर्धारित समय से पहले भी अपना लक्ष्य हासिल कर सकता है. 


भारत अभी है एनर्जी पूअर


ऊर्जा के क्षेत्र में भारत 2047 तक आत्मनिर्भर हो सकता है, ऐसे दावे किए जा रहे हैं. इन दावों का सच जानने से पहले एक बार आज की स्थिति का आकलन करना होगा. भारतीय  अर्थव्यवस्था फिलहाल कोयले और तेल पर बहुत अधिक निर्भर है. भारत अपनी बिजली का 68 फीसदी कोयले से बनाता है. परिवहन में भी भारत अभी तक डीजल, पेट्रोल, जेट फ्यूल वगैरह पर ही निर्भर है. वैकल्पिक ऊर्जा खासकर सौर ऊर्जा का भाग पिछले कुछ साल में बहुत बढ़ा है, बल्कि कहा जा सकता है कि भारत में सौर ऊर्जा के क्षेत्र में क्रांति हुई है. भारत की आबादी आज दुनिया में सबसे अधिक है. 1 अरब 40 करोड़ लोगों के देश में हम कह सकते हैं कि 30 फीसदी आबादी के पास ऊर्जा के साधन पर्याप्त मात्रा में हैं, लेकिन अभी भी 70 फीसदी आबादी एनर्जी-पूअर है, यानी उनके पास कम संसाधन है. उनकी क्रयशक्ति कम होने की वजह से ही वह कम ऊर्जा का उपभोग करते हैं. यानी, उनके पास वाहन की उपलब्धता है, लेकिन वह खरीद नहीं सकते. उनके पास ऊर्जा के स्रोत पहुंचे हैं, लेकिन परचेजिंग पावर नहीं होने की वजह से वह खरीद नहीं पाते हैं. भारत को इस लिहाज से एनर्जी पोवर्टी वाला देश कह सकते हैं. 


सरकार का ये प्रयास है कि जब भारत अपनी आजादी का सौवां साल मनाए तो देश ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो. आज की तारीख में भारत 86 फीसदी तेल आयात करता है, 56 फीसदी गैस आयात करता है. कोयला भी थोड़ा-बहुत आयात होता है. सौर ऊर्जा के उपकरणों का भी आयात होता है, यानी आयात पर देश की बहुत निर्भरता है. सरकार की यही कोशिश है कि वह निर्भरता कम कर दी जाए. सौर ऊर्जा के निर्यातक होने, पावर इक्विपमेंट के निर्यातक होने का लक्ष्य लेकर यह सरकार चल रही है. जैसी गति से काम चल रहा है, जो देखा जा रहा है तो कोई अचरज नहीं कि देश यह लक्ष्य तय कर ले. इसके लिए जरूरी बस ये है कि काम होता रहे, तेल और गैस से हम सौर ऊर्जा की ओर बढ़ते रहें. यह तभी होगा, जब हम अर्जुन की तरह नजर गड़ाए रखें और लक्ष्य प्राप्ति के लिए सारी सरकारें चाहे वह किसी भी पार्टी की हो, एक साथ मिलकर इस दिशा में काम करें. 2047 तक जिस किसी भी पार्टी की सरकार आए, वह अगर एक रोडमैप और माइलस्टोन बनाकर चलेंगे तो यह लक्ष्य प्राप्त करना बिल्कुल संभव है. 


इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत होगा, तभी वैकल्पिक ऊर्जा मिलेगी 


2030 तक डीजल की गाड़ियों को बंद करने का सुझाव सरकारी कमेटीज ने दिया है. इलेक्ट्रिक वेहिकल्स की तरफ भारत सरकार 2030 तक शिफ्ट करना चाह रही है औऱ इसके लिए जरूरी इनफ्रास्ट्रक्चर भी बनाया जा रहा है. सरकार उसके लिए पूरा इकोसिस्टम बना रही है. लोगों को इनसेंटिव देकर इन वाहनों की तरफ आकर्षित करने का काम है. कुछ काम हुआ है, लेकिन चौतरफा करना है. बिजली के पूरे स्ट्रक्चर को भी सरकार समझ रही है. एक जो चुनौती है, वह बिजली के उत्पादन की है. हमारे देश में 68 फीसदी बिजली कोयले से बनती है. इसके अलावा प्राकृतिक गैस से बनती है. तो, ईवी (इलेक्ट्रिक वेहिकल) चलाने का फायदा भी तभी है, जब जो बिजली बन रही है, वह भी वैकल्पिक ऊर्जा से बने. इस दिशा में कुछ काम हुआ है, बहुत काम बनना है. इस मसले में एक काम ये हो सकता है कि वैज्ञानिक और उद्योगपति अपने हिसाब से एक रोडमैप और लक्ष्य तय करें, फिर उसे आम जनता से साझा करें. 


प्रधानमंत्री मोदी ने 2030 तक 500 गीगावाट रीन्यूएबल एनर्जी का लक्ष्य रखा था और इसे बहुत आसानी से हासिल किया जा सकता है. सरकार की जो नीतियां हैं, उसके मुताबिक कुछ राज्य सरकारें बहुत आगे बढ़कर कार्य कर रही हैं. इसके साथ ही देश के अंदर जो उपकरण बनाने की बात है, कई उद्योग समूहों ने कहा है कि वे उसके निर्माण में सहयोग देंगे. मुझे लगता है कि उसको हासिल किया जा सकता है. भारत चूंकि घनी आबादी वाला देश है और हमें 6 प्रतिशत, 7 प्रतिशत की दर से विकास दर भी हासिल करनी है, तो पूरी तरह तेल और कोयले से हासिल ऊर्जा पर रोक भी नहीं लगाई जा सकती है, लेकिन रीन्यूएबल एनर्जी का काम लगातार होता रहे, इस दिशा में सरकार काम कर रही है. सरकार वैकल्पिक ऊर्जा को इनसेंटिवाइज करे, लेकिन ऊर्जा के बाकी स्रोतों को भी रोकेगी नहीं. ऐसा करने के पीछे कारण यही है कि भारत में ऊर्जा-गरीबी बहुत अधिक है. 


विदेशों में तमाम संस्थाएं हैं, जो आकलन करती हैं और अमेरिका के ऊर्जा मंत्रालय की मर्केल रिपोर्ट में भी इस बात से सहमति जताई गई है कि 2047 तक भारत ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो सकते हैं. भारत की चुनौतियां और मौके भी अपने प्रकार की अनूठी हैं. मिजोरम की समस्या अनूठी है, कश्मीर की अलग समस्या है, राजस्थान की अलग है, उत्तराखंड की अलग है. इसलिए, सरकार हरेक तरह से अपनी नीतियों को विकेंद्रीकृत कर चलना चाहेगी. स्टडी से लेकर नीति-निर्माण तक हम इसी मंत्र को अपनाएंगे, ऊर्जा-सक्षम बनेंगे.