India China Border Dispute: सीमा विवाद सुलझाने को लेकर चीन कितना गंभीर है, अब ये चर्चा बेमानी होते जा रही है. चीन कहता कुछ है और करता कुछ है. भारत भी इस बात को बेहद अच्छे से समझने लगा है. इसी का नतीजा है कि भारत भी पिछले कुछ सालों से सीमा से सटे इलाकों में बुनियादी ढांचे के विकास पर ज्यादा ध्यान दे रहा है. 


चीन के किसी भी नापाक मंसूबे से निपटने के लिए भारत ने भी सीमा पर पर्याप्त संख्या में सैनिकों की तैनाती की है. थलसेनाध्यक्ष जनरल मनोज पांडे ने 12 जनवरी को इस बात की पुष्टि भी की है. सेना दिवस से पहले दिल्ली में मीडिया से मुखातिब होते हुए जनरल मनोज पांडे ने कहा कि चीन से लगी सीमा पर हालात स्थिर हैं, लेकिन चीन के पुराने रवैये को देखते हुए कुछ कहा नहीं जा सकता. उन्होंने आश्वस्त किया कि भारत किसी भी आकस्मिक स्थिति से निपटने के लिए पूरी तरह से तैयार है और इसी को ख्याल में रखते हुए वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) से लगे हर इलाके में पर्याप्त संख्या में भारतीय सैनिकों की तैनाती की गई है. 


उत्तरी सीमा पर चीन सैनिकों की संख्या बढ़ा रहा है


उत्तरी सीमा पर चीन की ओर से सैनिकों की तैनाती पहले की भांति ही जारी है. इस वजह से उन इलाकों में भारत भी अपने सैनिकों की संख्या उसी तरह से बनाए हुए है. वहीं पूर्वी कमान (Eastern Sector) में चीनी सैनिकों की संख्या में मामूली इजाफा देखा गया है. भारत इस पर कड़ी नजर रखे हुए है. खुद सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे ने ये बात कही है. सेना की पूर्वी कमान का मुख्यालय कोलकाता में है. अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम में चीन से लगी सीमा की सुरक्षा का दायित्व इसी कमान पर है. डोकलाम क्षेत्र में भी भारत चीन की हर गतिविधि पर कड़ी नजर रख रहा है.


खतरों के हिसाब से हर क्षेत्र में सैनिकों की तैनाती


मई 2020 में चीन ने एलएसी पर बड़े पैमाने पर अपने सैनिकों को तैनात किया था. उसके बाद ही भारत ने भी खतरों के आकलन के हिसाब से वास्तविक नियंत्रण रेखा के अलग-अलग क्षेत्रों में भारतीय सैनिकों की संख्या में इजाफा किया. चीन की ओर से खतरे के हिसाब से सैनिकों के स्ट्रैटजिक रिबैलेंसिंग का काम अब पूरा हो गया है. ये दिखाता है कि सीमा पर अब भारत चीन के किसी भी रणनीति का उसी की भाषा में जवाब देने को पूरी तरह से तैयार है. मई 2020 में चीनी सैनिकों की हरकतें बढ़ने लगी थी. उसी का नतीजा था कि पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में 15 जून 2020 को भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई थी. इसमें भारतीय सेना के एक कर्नल समेत 20 सैनिक शहीद हो गए थे. चीन के भी काफी सैनिक इसमें मारे गए थे.   


सीमा पर शांति बहाली के लिए जारी है बातचीत


ये भी सच्चाई है कि सीमा पर शांति बहाली  के उपाय ढूंढने की कोशिशें भी जारी है. भारत तो हमेशा से इसके पक्षधर रहा है, लेकिन चीन ही बीच-बीच में LAC पर उकसावे की कार्रवाई करते रहता है. 9 दिसंबर 2022 को भी चीन की सेना (PLA) ने अरुणाचल प्रदेश में तवांग सेक्टर के यांग्त्से क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर घुसपैठ करने और एकतरफा तरीके से यथास्थिति को बदलने की कोशिश की.  हालांकि भारतीय सैनिकों ने इसका माकूल जवाब दिया और चीनी सैनिकों को उनकी चौकियों पर लौटने को मजबूर कर दिया. इस घटना के बाद दोनों देशों के बीच तनाव काफी बढ़ गया था. सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे ने  जानकारी दी है कि शांति बहाली के लिए राजनयिक और सैन्य दोनों स्तरों से बातचीत जारी है. उन्होंने ये भी कहा कि सात में से पांच मुद्दों को हल कर लिया गया है. पूर्वी लद्दाख में भारतीय और चीनी सेनाओं के बीच 32 महीने से जारी सैन्य गतिरोध के बीच सेना प्रमुख का ये बयान सुकून देने वाला है. 


LAC से लगे सीमावर्ती क्षेत्रों में बुनियादी ढांचा


भारत अब एलएसी पर बहुत मजबूत रक्षात्मक स्थिति बनाए रखने में पूरी तरह से सक्षम है. हालात पहले जैसे नहीं हैं. भारत सीमा पर यथास्थिति को एकतरफा तरीके से बदलने के चीन के किसी भी प्रयास को पूरी मजबूती और जवाबी कार्रवाई से रोकने की नीति पर चल रहा है. इसके लिए भारत भी LAC से लगे इलाकों में बुनियादी ढांचे को मजबूत कर रहा है. 


सीमावर्ती क्षेत्रों में सड़कों और पुलों का विस्तार


भारतीय सेना अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगे इलाकों में सड़कों का जाल बनाने और पुलों को दुरुस्त करने पर भी ज्यादा जोर दे रही है. इसके तहत चीन की लगी सीमा के साथ ही बाकी देशों से लगी सीमावर्ती क्षेत्रों में भी सड़कों का तेजी से निर्माण किया जा रहा है. बीते 5 साल में  सीमा सड़क संगठन (BRO) ने  पूरे भारत में करीब 6 हजार किलोमीटर सड़क का निर्माण किया है. इनमें से 2100 किलोमीटर सड़कें उत्तरी सीमाओं से सटे इलाकों में बनाई गई हैं. पुलों को आधुनिक बनाने का काम भी तेजी से किया जा रहा है. बीते 5 साल में करीब साढ़े सात किलोमीटर लंबाई के पुलों का निर्माण किया गया है. अरुणाचल प्रदेश के अलग-अलग घाटियों को जोड़ने के लिए 1800 किलोमीटर लंबी सीमांत सड़कों (frontier road) को बनाने का काम शुरू हो गया है.


सीमावर्ती इलाकों में बुनियादी ढांचे पर फोकस


सीमावर्ती इलाकों में जरुरत पड़ने पर सैनिकों और बाकी सुरक्षा के साजो-सामान पहुंचाने के नजरिए से सड़कों और पुलों का सामरिक महत्व है. अक्टूबर 2022 में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सीमा सड़क संगठन की 75 बुनियादी परियोजनाओं को राष्ट्र को समर्पित किया था. लद्दाख के श्योक गांव में हुए समारोह में राजनाथ सिंह ने 45 पुलों, 27 सड़कों, दो हेलीपैड और एक कार्बन न्यूट्रल आवास का उद्घाटन किया था. इनमें से 20 परियाजनाएं जम्मू-कश्मीर और 18 परियोजनाएं लद्दाख से जुड़े थे. वहीं अरुणाचल प्रदेश में 18, उत्तराखंड में 5 और 14 परियोजनाएं बाकी सीमावर्ती राज्यों सिक्किम, पश्चिम बंगाल, हिमाचल प्रदेश, पंजाब और राजस्थान में हैं. लद्दाख, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश के प्रोजेक्ट वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के नजरिए से बेहद महत्वपूर्ण हैं.   


पुलों और टनल पर तेजी से काम


लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश के क्षेत्रों में हर मौसम में कनेक्टिविटी बरकरार रखने के मिशन पर भी भारतीय सेना तेजी से काम कर रही है. पूर्वी सेक्टर सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में काम जोरों पर है. बीआरओ ने अरुणाचल प्रदेश में अलॉन्ग-यिंकिओनग रोड पर सियोम नदी की सहायक नदी पर 30 मीटर स्पैन पीएससी बॉक्स गर्डर लाई ब्रिज बनाया है. ये सिर्फ 8 महीने में बनकर तैयार हो गया. अरुणाचल प्रदेश में मिगिंग-टुटिंग रोड पर 45 मीटर स्पैन का पीएससी बॉक्स गर्डर सिमरब्र बनाने का काम भी जारी है. बीआरओ 2.535 किलोमीटर लंबी सेला (Sela Tunnel) और 0.5 किलोमीटर लंबी नेचिपु सुरंग (Nechiphu Tunnel) को बनाने में जोर-शोर से जुटी है.  सेला ट्विन सुरंग 13000 फीट की ऊंचाई पर दुनिया की सबसे लंबी सुरंगों में से एक होगी. अरुणाचल प्रदेश में सेला-चब्रेला रोड पर 105 मीटर लंबी सुरंग का काम भी जारी है. तवांग या कामेंग सेक्टर के लिए हर मौसम में बेहतर कनेक्टिविटी हो जाएगी. सेला और बोमडिला के पास नेचिपु सुरंग के 2023 के जून-जुलाई तक शुरु होने की उम्मीद है. इन सुरंगों के बन जाने से अरुणाचल प्रदेश में पड़ने वाले एलएसी से लगे इलाकों में हर मौसम में पहुंचना और भी ज्यादा आसान हो जाएगा. 


लद्दाख में भी हर मौसम में कनेक्टिविटी


वहीं लद्दाख में ज़ोजिला सुरंग (Zojila tunnel) के साथ-साथ Z-Morh tunnel कश्मीर घाटी को लद्दाख से जोड़ेगा. इसके 2023 के आखिर तक चालू हो जाने की उम्मीद है. ऐसा होने से उस तरफ से हर मौसम में कनेक्टिविटी रहेगी. लेह- मनाली के लिए अटल टनल से तो कनेक्टिविटी है ही. इसके अलावा  लद्दाख और हिमाचल प्रदेश को जोड़ने वाली नेमू-पदम-दारचा के साथ शिंकू ला सुरंग (Shinku la tunnel)भी मंजूरी के अंतिम चरण में है. इसके बन जाने के बाद दोनों तरफ से लद्दाख में हर मौसम में पहुंचना आसान हो जाएगा. इसके अलावा, भारतीय सेना की लद्दाख में सासेर ला (Saser la) के जरिए   Darbuk–Shyok– Daulat Beg Oldi के लिए वैकल्पिक कनेक्टिविटी बनाने की भी योजना है.    


लद्दाख में तीन साल  में 1300 करोड़ रुपये खर्च


लद्दाख में बुनियादी ढांचे और आवास को ध्यान में रखते हुए बीते 3 साल में 1300 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं. स्थानीय रूप से बने Solar Heated Insulated Ladakhi shelters (SHILA) पर ज़ोर है. इसके अलावा सेना ऊर्जा जरुरतों को पूरा करने के लिए fuel cells जैसे पर्यावरण अनुकूल उपायों पर भी काम कर रही है. पूर्वी लद्दाख में करीब 55,000 सैनिकों के लिए आवास बनाने का काम पूरा हो गया है. इसके अलावा 400  odd guns और 500A वाहनों के लिए गर्म आवास (heated accommodation) की  व्यवस्था कर ली गई है.  500A टैंक और पैदल सेना के वाहन हैं. इन बुनियादी ढांचों के जरिए वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अब भारतीय सेना हर परिस्थिति से निपटने में पूरी तरह से सक्षम है.


भारत-चीन के बीच सीमा वाले राज्य


भारत और चीन 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करते हैं. भारत की चीन के साथ सीमा केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के साथ ही हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणालच प्रदेश से लगी है. 


भारत-चीन सीमा को तीन सेक्टर में बांट सकते हैं:


1. पश्चिमी सेक्टर - इसमें लद्दाख का इलाका है. इन इलाके में चीन के साथ 1,597 किलोमीटर लंबी सीमा लगती है. 


2. मध्य या मिडिल सेक्टर - इसमें हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड से लगी सीमा है. इन इलाकों में चीन के साथ 545 किलोमीटर की सीमा लगती है. इसमें उत्तराखंड से 345 किमी और हिमाचल से 200 किमी सीमा है.


3. पूर्वी सेक्टर - इसमें सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश से लगे इलाके आते हैं. इन इलाकों में 1346 किलोमीटर की सीमा लगती है. इसमें सिक्किम से 220 किमी और अरुणाचल से 1126 किमी की सीमा है.


लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC)


विवाद की जड़ का मूल कारण है कि भारत और चीन के बीच अब तक पूरी तरह से सीमांकन नहीं हुआ है. कई इलाकों को लेकर दोनों देशों के बीच मतभेद है.  भारत का हमेशा से यही कहना है कि दोनों देशों के बीच की सीमाएं ब्रिटिश राज में तय हो गई थी और भारत इसे मानता भी रहा है. हालांकि चीन ब्रिटिश राज में हुए फैसलों को मानने से इंकार करते रहा है.  विवाद की वजह से भारत-चीन के बीच सही तरीके से कभी भी सीमा का निर्धारण नहीं हो पाया. यथास्थिति बनाए रखने के लिए Line of Actual Control टर्म का इस्तेमाल होने लगा. हालांकि दोनों देश अपने-अपने हिसाब से इस लाइन को बताते रहे हैं.


दोनों देशों के बीच लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर ही झड़प की घटनाएं होती रहती हैं. लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर कई ग्लेशियर, पहाड़ और नदियां होने की वजह से सीमा का रेखांकन बेहद मुश्किल है. 1962 के युद्ध के बाद वास्तविक नियंत्रण लाइन (LAC) अनौपचारिक रूप से बनाई गई थी. 2 मार्च 1963 को हुए समझौते में पाकिस्तान ने पीओके की 5,180 वर्ग किलोमीटर जमीन चीन को दे दी. ये भी भारत का ही हिस्सा है. 


अक्साई चिन से जुड़ा विवाद


भारत पश्चिमी सेक्टर में अक्साई चिन पर अपना दावा करता है, अभी ये इलाका चीन के कब्जे में है. 1962 के युद्ध में चीन ने इस इलाके पर कब्जा कर लिया था. इसके कुछ हिस्से पर चीन ने 1957 से 59 के बीच भी कब्जा किया था. अक्साई चीन में करीब 38 हजार वर्ग किलोमीटर का हिस्सा आता है. अक्साई चीन लद्दाख का उत्तर-पूर्वी हिस्सा है. ब्रिटिस राज में 1865 में बनाई गई जॉनसन लाइन के मुताबिक अक्साई चिन को भारत का हिस्सा बताया गया था. वहीं 1893 में बनाई गई मैकडॉनल्ड्स लाइन में इसे चीन के हिस्से के तौर पर दिखाया गया था. भारत जॉनसन लाइन को सही मानता है और चीन मैकडॉनल्ड्स लाइन को.


अरुणाचल प्रदेश से जुड़ा विवाद


पूर्वी सेक्टर में अरुणाचल प्रदेश को लेकर विवाद रहा है. चीन इस पर अपना दावा करता है और वो अरुणाचल को भारत के हिस्से के तौर पर मान्यता देने से इंकार करते रहा है. चीन अरुणाचल के 90 हजार वर्ग किलोमीटर एरिया पर अपना दावा करता है. चीन इसे दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताते रहा है. यहीं वजह है कि वो अरुणाचल प्रदेश में मैकमोहन रेखा को नहीं मानता है. 


मैकमोहन लाइन (McMahon Line) की कहानी


मैकमोहन लाइन अरुणाचल प्रदेश में भारत-चीन सीमा का निर्धारण करता है. दरअसल 1914 में भारत और तिब्बत के बीच स्पष्ट सीमा बनाने के लिए शिमला में एक संधि हुई. उस संधि के जरिए मैकमोहन लाइन अस्तित्व में आया. 1914 के वक्त तिब्बत एक आज़ाद मुल्क था. इस संधि में ब्रिटिश इंडिया, तिब्बत और चीन के प्रतिनिधि शामिल हुए. मैकमोहन लाइन के जरिए ब्रिटिश इंडिया और तिब्बत के बीच 890 किमी लंबी सीमा खींची गई.  इस लाइन के जरिए ही अरुणाचल प्रदेश में भारत-चीन के बीच सीमा तय होती है. शिमला संधि करवाने में उस वक्त के ब्रिटिश इंडिया के विदेश सचिव  हेनरी मैकमहोन ( Henry McMahon) की महत्वपूर्ण भूमिका थी. उन्होंने ही ब्रिटिश इंडिया और तिब्बत के बीच सीमा का निर्धारण किया. इसी वजह से इसे मैकमोहन लाइन के नाम से जाना जाने लगा. 


मैकमोहन लाइन के तहत अरुणाचल भारत का हिस्सा


इस लाइन के मुताबिक अरुणाचल भारत का हिस्सा बताया गया. आजादी के बाद भारत ने इस लाइन को माना, लेकिन चीन ने इससे इंकार कर दिया. चीन दावा करने लगा कि अरुणाचल तिब्बत का हिस्सा है और 1950 में चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया था. चीन ये भी कहता है कि 2014 की संधि के वक्त उसे मैकमोहन लाइन के बारे में जानकारी नहीं दी गई और  तिब्बत के प्रतिनिधि लोनचेन शातरा और हेनरी मैकमहोन के साथ गुपचुप तरीके से बातचीत कर इस लाइन को तय कर दिया गया.  भारतीय सर्वेक्षण विभाग के एक मानचित्र में 1937 में  मैकमोहन रेखा को आधिकारिक तौर से अरुणाचल में भारत-चीन सीमा  के तौर पर दिखाया गया. 


अरुणाचल प्रदेश के तवांग से जुड़ा विवाद


अरुणाचल प्रदेश का तवांग इलाका भारत-चीन सीमा के पूर्वी सेक्टर का हिस्सा है. इस इलाके पर चीन की बुरी नजर हमेशा बनी रहती है. चीन दावा करते रहता है कि तवांग तिब्बत का हिस्सा है. तवांग के जरिए चीन तिब्बत पर पकड़ मजबूत बनाने की मंशा रखता है. तवांग बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण  धर्मस्थल है.  चीन दोहरी नीति के तहत तवांग पर अपना दावा करता रहा है. इसमें तिब्बत और बौद्ध धर्मस्थलों पर पर पकड़ शामिल हैं. 9 दिसंबर 2022 को यहीं चीनी सेना ने अतिक्रमण करने की कोशिश की थी.


पैंगोंग झील से जुड़ा विवाद


लद्दाख की पैंगोंग झील दुनिया की सबसे खूबसूरत झीलों में से एक है. ये हिमालय में लगभग 14 हजार फीट से ज्यादा की ऊंचाई पर है. इस झील का 45 किलोमीटर हिस्सा भारत में पड़ता है और 90 किलोमीटर हिस्सा चीन में पड़ता है. लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल इस झील के बीच से गुजरती है. पश्चिम सेक्टर में चीन सैनिकों की ओर से घुसपैठ की कोशिशों का एक तिहाई मामला पैंगोंग झील  के आस-पास ही होता रहा है. इसकी वजह है कि दोनों ही देश अपने-अपने हिसाब से लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल मानते हैं. चीन इस झील के अपनी ओर सड़क बनाने की कोशिश करते रहा है, जिसका भारत ने लगातार विरोध किया है.


गलवान घाटी का विवाद


गलवान घाटी का इलाका भी अक्साई चिन में आता है. ये घाटी चीन के दक्षिणी शिनजियांग और भारत के लद्दाख तक फैली है. ये इलाका सामरिक नजरिए से भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. 1962 के युद्ध में यही इलाका प्रमुख केंद्र था. गलवान घाटी में भी चीन निर्माण कार्य करने की कोशिश करते रहता है. भारत इसे गैर-कानूनी बताता है. भारत का कहना है कि दोनों देशों के बीच एलएसी के आस-पास नए निर्माण कार्य नहीं करने को लेकर समझौता हो रखा है, लेकिन चीन इस समझौते का पालन नहीं कर रहा है. तवांग से पहले पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में 15 जून 2020 को भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई थी.  गलवान की घटना पिछले 6 दशक में भारत-चीन के बीच सीमा पर संघर्ष की सबसे बड़ी घटनाओं में से एक थी. 



डोकलाम से जुड़ा विवाद


2017 में हम डोकलाम विवाद के बारे में सुन चुके हैं. डोकलाम चीन और भूटान के बीच का मसला है. ये इलाका सिक्किम बॉर्डर के करीब है.  एक तरह से ये भारत, चीन और सिक्किम के लिए ट्राई-जंक्शन प्वाइंट है. इस वजह से ये इलाका भारत के सामरिक नजरिए से बेहद संवेदनशील है. अगर यहां चीन सड़क बना लेता है, तो ये भारत के 'चिकन नेक' इलाके के नजरिए से सही नहीं होगा. 'चिकन नेक' इलाके की चौड़ाई 20 किलोमीटर है और ये दक्षिण में बांग्लादेश और उत्तर भूटान की सीमा के बीच का इलाका है. यही इलाका भारत के पश्चिमी हिस्से को पूर्वोत्तर के राज्यों से जोड़ता है. 2017 में भारत-चीन के बीच डोकलाम विवाद काफी लंबा चला था. उस वक्त चीन इस पठारी इलाके में सड़क बनाने की कोशिश कर रहा था. भारत ने इसका विरोध किया. रक्षा मामलों के जानकारों का मानना है कि ये हिमालय में ऐसी जगह है जिससे भारतीय सेना भलीभांति परिचित है. भारत को यहां ऊंचाई का फायदा मिलता है. भारत के लिए ये सामरिक फायदे वाली जगह है.


चीन शांति बहाली का करता है दिखावा


वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शांति बहाली के उपायों को विकसित करने में हमेशा ही भारत पहल करते रहा है, लेकिन चीन की ओर से लगातार घुसपैठ की कोशिश होते रही है. चीन के नापाक मंसूबो को केंद्र सरकार की ओर से नवंबर 2019 में संसद में दिए गए आंकड़ों से समझा जा सकता है. इसके मुताबिक चीन की सेना ने 2016 से 2018 के बीच 1,025 बार भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ की कोशिश की. चीन की सेना ने 2016 में 273 बार, 2017 में 426 और 2018 में 326 बार घुसपैठ की कोशिश की. भारत को अब ये अच्छी तरह से पता है कि चीन की कथनी के बजाय उसकी हरकतों पर नजर रखकर ही उसे सीमा पर करारा जवाब दिया जा सकता है और भारतीय सेना अब इसी नीति के मुताबिक अपनी रणनीति बनाती है. भारतीय सेना सीमावर्ती क्षेत्रों में सर्दियों के मौसम के अनुकूल जरूरी सुविधाओं का भी तेजी से विकास कर रही है.


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