वैश्विक नजरिए से भारत का दर्जा तेजी से बढ़ रहा है. भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे तेज गति से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है. हर देश भारत से अपनी साझेदारी को और मजबूत करना चाह रहा है. इसमें फ्रांस और संयुक्त अरब अमीरात (United Arab Emirates) भी शामिल हैं.


कूटनीति के नए तरीकों के तहत भारत दुनिया की बड़ी ताकतों के साथ द्विपक्षीय साझेदारी को तो मजबूत कर ही रहा है, इसके साथ ही छोटे-छोटे समूहों में सामूहिक भागीदारी को भी तरजीह दे रहा है. इस कड़ी में अंतरराष्ट्रीय पटल पर एक मजबूत त्रिपक्षीय मंच का अस्तित्व सामने आया है, इसमें भारत के साथ फ्रांस और संयुक्त अरब अमीरात यानी UAE शामिल हैं. त्रिपक्षीय ढांचे के तहत ये तीनों ही देश आपसी साझेदारी को नया आयाम देने पर राजी हो गए हैं.


मजबूत त्रिपक्षीय ढांचे के तहत सहयोग


भारत, फ्रांस और संयुक्त अरब अमीरात के रूप में एक मजबूत त्रिपक्षीय सहयोग का ढांचा बन चुका है. शनिवार (4) फरवरी को इन तीनों देशों ने इस ढांचे के भीतर सहयोग के प्रमुख क्षेत्रों की पहचान कर उनकी रूपरेखा दुनिया के सामने रखी. भारत, फ्रांस और यूएई के बीच गठजोड़ को Trilateral Cooperation Initiative (त्रिपक्षीय सहयोग पहल) नाम दिया गया है. तीनों देशों ने रक्षा, परमाणु ऊर्जा और प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में सहयोग को लेकर महत्वाकांक्षी रोडमैप पेश किया. विदेश मंत्री एस जयशंकर, फ्रांस के विदेश मंत्री कैथरीन कोलोना और यूएई के विदेश मंत्री शेख अब्दुल्ला बिन जायद अल नाहयान के बीच 4 फरवरी को फोन पर बातचीत हुई. इस दौरान तीनों देश सहयोग के क्षेत्रों की पहचान करते हुए त्रिपक्षीय सहयोग के ढांचे को और मजबूत करने पर सहमत हुए.


रक्षा क्षेत्र में त्रिपक्षीय सहयोग


तीनों देशों के विदेश मंत्रियों की बातचीत के बाद साझा बयान जारी किया गया. इसमें माना गया कि रक्षा वो आयाम है जिसमें तीनों देशों का सहयोग बढ़ना चाहिए. इसके लिए तीनों देशों के रक्षा बलों के बीच सहयोग और प्रशिक्षण के लिए रास्ते तलाशे जाएंगे. इसके साथ ही रक्षा क्षेत्र में साझा विकास और सह-उत्पादन (joint development & co-production) को बढ़ावा देने की कोशिश की जाएगी.


ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग परियोजना


त्रिपक्षीय सहयोग पहल के जरिए तीनों देश ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग बढाएंगे. सौर और परमाणु ऊर्जा पर फोकस करते हुए ऊर्जा से जुड़े प्रोजेक्ट को मिलकर पूरा करने की दिशा में आगे बढ़ेंगे. साझा बयान में कहा गया है कि त्रिपक्षीय सहयोग पहल के तहत सौर और परमाणु ऊर्जा में सहयोग से जुड़े प्रोजेक्ट का डिजाइन तैयार किए जाएंगे. इसके साथ ही जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने और जैव विधिधता के संरक्षण को लेकर भी साझा प्रोजेक्ट तैयार किया जाएगा. इस मकसद के लिए तीनों देश हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA) के साथ काम करने की संभावना तलाशेंगे. तीनों देश स्वच्छ ऊर्जा, पर्यावरण और जैव विविधता पर ठोस, कार्रवाई योग्य प्रोजेक्ट की तलाश कर उनमें सहयोग करेंगे. तीनों देश पेरिस समझौते के उद्देश्यों के साथ अपनी संबंधित आर्थिक, तकनीकी और सामाजिक नीतियों को ध्यान में रखते हुए भागीदारी को बढ़ाएंगे.


तकनीकी सहयोग के लिए बैठक और सम्मेलन


तकनीक के क्षेत्र में त्रिपक्षीय सहयोग बढ़ाने पर भी सहमति बनी है. इसके लिए  शैक्षणिक और अनुसंधान संस्थानों के बीच तीनों देश सहयोग बढ़ाएंगे. ऐसे सहयोग की संभावनाओं को बढ़ाने के लिए Vivatech, बेंगलुरु टेक समिट और GITEX जैसे उच्च-स्तरीय प्रौद्योगिकी कार्यक्रमों के साथ-साथ त्रिपक्षीय सम्मेलनों और बैठकों का भी आयोजन किया जाएगा.


तीनों देशों के विदेश मंत्रियों की फोन पर बातचीत


तीनों देशों ने फैसला किया है कि त्रिपक्षीय सहयोग पहल स्थायी परियोजनाओं पर उनके देशों की विकास एजेंसियों के बीच सहयोग का विस्तार करने के लिए एक मंच के रूप में काम करेगी. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ट्वीट कर ये जानकारी दी. उन्होंने ट्वीट किया कि फ्रांसीसी विदेश मंत्री कोलोना और संयुक्त अरब अमीरात के विदेश मंत्री जायद अल नाहयान के साथ सार्थक बातचीत हुई और इस बातचीत में क्षेत्र को फायदा पहुंचाने वाली व्यावहारिक परियोजनाओं को लेकर न्यूयार्क की चर्चाओं को आगे बढ़ाया गया. 






त्रिपक्षीय सहयोग का ढांचा


भारत, फ्रांस और संयुक्त अरब अमीरात के विदेश मंत्रियों के बीच पिछले साल 19 सितंबर को त्रिपक्षीय प्रारूप के तहत पहली बार बैठक हुई थी. ये बैठक संयुक्त राष्ट्र महासभा की सालाना बैठक के दौरान अलग से न्यूयॉर्क में हुई थी. इसमें तीनों देश आपसी हितों से जुड़े क्षेत्रों में सहयोग के लिए औपचारिक त्रिपक्षीय सहयोग पहल को लेकर सहमत हुए थे. इसके जरिए अंतरराष्ट्रीय स्थिरता और समृद्धि को बढ़ावा देना भी मकसद है. साथ ही तीन देशों के बीच मौजूद रचनात्मक और सहयोगात्मक संबंधों को आगे बढ़ाने की साझा इच्छा को वास्तविक रूप  देने के मकसद से भी ये पहल की गई. इसी पहल के तहत 4 फरवरी को तीनों देशों के विदेश मंत्रियों की फोन पर बातचीत हुई.


महामारी से निपटने में सहयोग


भारत, फ्रांस और यूएई संक्रामक रोगों और भविष्य में महामारियों के उभरते खतरों से मुकाबले करने के तरीकों को लेकर भी आपसी अनुभव साझा करेंगे. इसके लिए  विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), गावी-द वैक्सीन एलायंस ( Gavi-the Vaccine Alliance), द ग्लोबल फंड और यूनीटेड (Unitaid ) जैसे बहुपक्षीय संगठनों में सहयोग को प्रोत्साहित किया जाएगा.  इसके अलावा, तीनों देश 'एक स्वास्थ्य' (One Health) दृष्टिकोण को अपनाएंगे और इसे लागू करने के ठोस तरीकों पर काम करेंगे. साथ ही विकासशील देशों के भीतर बायोमेडिकल नवाचार ( biomedical innovation) और उत्पादन में स्थानीय क्षमताओं के विकास को समर्थन देंगे.


सांस्कृतिक सहयोग को बढ़ावा


तीनों देशों ने स्वीकार किया है कि साझेदारी को मजबूत बनाने में सामाजिक और मानवीय जुड़ाव की महत्वपूर्ण भूमिका है. इस नजरिए से त्रिपक्षीय पहल को सांस्कृतिक सहयोग को बढ़ावा देने के लिए एक मंच के रूप में उपयोग किया जाएगा, जिसमें विरासत को बढ़ावा और संरक्षण से जुड़े कई साझा प्रोजेक्ट भी शामिल हैं.


इसके अलावा जिन मुद्दों पर सहमति बनी है, वे हैं:


1. खाद्य सुरक्षा और अर्थव्यवस्था में सहयोग को बढ़ावा (इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स 2023 को ध्यान में रखकर)
2. एकल उपयोग (Single use) वाले प्लास्टिक के प्रदूषण को कम करने पर सहयोग
3. मरुस्थलीकरण की चुनौती से निपटने में सहयोग


2023 में कई त्रिपक्षीय कार्यक्रमों का आयोजन


इन प्रयासों को अमली जामा पहनाए जाने के मकसद से जी 20 की भारत की अध्यक्षता और 2023 में संयुक्त अरब अमीरात की ओर से COP-28 की मेजबानी के तहत त्रिपक्षीय कार्यक्रमों की एक सीरीज़ का आयोजन किया जाएगा. तीनों देश संयुक्त अरब अमीरात के नेतृत्व में मैंग्रोव एलायंस फॉर क्लाइमेट के साथ ही भारत और फ्रांस के नेतृत्व में इंडो-पैसिफिक पार्क्स पार्टनरशिप जैसी पहल के माध्यम से त्रिपक्षीय सहयोग का विस्तार करेंगे. तीनों देशों ने भारत के मिशन LiFE के तहत सर्कुलर अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में सहयोग करने की इच्छा को भी जाहिर किया है.


जुलाई 2022 में भी हुई थी त्रिपक्षीय बैठक


पिछले कुछ सालों में भारत का फ्रांस और संयुक्त अरब अमीरात के साथ द्विपक्षीय संबंध लगातार व्यापक होते गए हैं. न्यूयॉर्क में बैठक से पहले पिछले साल 28 जुलाई को तीनों देशों ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र (Indo-Pacific region) में सहयोग बढ़ाने को लेकर ज्वाइंट सेक्रेटरी लेवल की एक बैठक की थी. उसमें तीनों पक्षों ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर अपने-अपने नजरियों का आदान-प्रदान किया था और त्रिपक्षीय सहयोग के संभावित क्षेत्रों को टटोलने की कोशिश की थी. इनमें समुद्री सुरक्षा, मानवीय सहायता और आपदा राहत, ब्लू अर्थव्यवस्था, क्षेत्रीय संपर्क, बहुपक्षीय मंचों में सहयोग, ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा, नवाचार और स्टार्टअप, आपूर्ति श्रृंखला लचीलापन जैसे क्षेत्र शामिल थे. इसके साथ ही सांस्कृतिक जुड़ाव और नागरिकों के बीच संपर्क को भी सहयोग बढ़ाने के नजरिए से महत्वपूर्ण माना गया था. इसी बैठक में तीनों पक्षों ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में त्रिपक्षीय सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए उठाए जाने वाले भावी कदमों पर भी चर्चा की थी.


त्रिपक्षीय सहयोग पहल का महत्व


भारत, फ्रांस और संयुक्त अरब अमीरात, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सामरिक हितों को साझा करते हैं. हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते वर्चस्व को देखते हुए भारत, फ्रांस और यूएई का आपसी तालमेल बढ़ना बेहद अहम हो जाता है. तीनों देश अलग-अलग हैं और एक-दूसरे के रणनीतिक साझेदार हैं. तीनों देश एक-दूसरे के साथ सहज भी हैं. इनके बीच कई ऐसे क्षेत्र हैं, जिसमें तीनों देशों का सहयोग आपसी हितों को भी पूरा करने में मदद कर सकता है. ये त्रिपक्षीय ढांचा क्वाड ( भारत, जापान, अमेरिका, और ऑस्ट्रेलिया) और I2U2 ( भारत, इजरायल, यूएई और अमेरिका) के तर्ज पर साझा एजेंडें को पूरा करने के लिहाज से मजबूत मंच साबित हो सकता है. इस तरह का त्रिकोणीय गठजोड़ कूटनीति के नए और समकालीन तरीकों के लिहाज से कारगर भी साबित हो रहे हैं.


छोटे-छोटे समूहों का बढ़ता कूटनीतिक महत्व


बीते कुछ सालों में भारत I2U2(भारत, इजरायल, यूएई और अमेरिका) के साथ-साथ भारत-जापान-यू.एस. और भारत-जापान-इटली त्रिपक्षीय फोरम का सदस्य रहा है. ऐसे मंच आपसी हितों के साथ ही भारत के क्षेत्रीय और वैश्विक हितों को पूरा करने में फायदेमंद रहे हैं.  पारंपरिक तौर से भारत ऐसे छोटे विशेष ग्रुप से दूर रहता था, लेकिन चीन के साथ बिगड़ते संबंधों और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बदलते हालात को देखते हुए भारत के लिए समान विचारधारा वाले सामरिक भागीदारों के साथ कूटनीति के नए तरीकों पर बढ़ते हुए छोटे-छोटे समूह का हिस्सा बनना वक्त की जरूरत भी है. कूटनीति अब बदल रही है. ऐसे देश जो पड़ोसी नहीं हैं या एक क्षेत्र में एक-दूसरे के अगल-बगल में नहीं हैं, लेकिन जिनके कुछ आपसी हित हैं, वे अब एक-दूसरे के साथ मिलकर काम कर रहे हैं.


फ्रांस के साथ मजबूत होते संबंध


फ्रांस भारत के सबसे करीबी रणनीतिक साझेदारों में से एक है. हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आपसी हितों का होना, भारत और यूएई के साथ त्रिपक्षीय ढांचे के लिए नींव का काम करता है. अतीत में जिस तरह से रूस (सोवियत संघ) भारत के साथ कंधे से कंधे मिलाकर खड़ा रहता था, हाल के वर्षों में फ्रांस ने भारत के साथ वैसा ही रुख दिखाया है. दोनों देश समुद्री शक्तियां हैं. दोनों ही देशों का हिंद-प्रशांत जल में विशाल अनन्य आर्थिक क्षेत्र (exclusive economic zones)है. दोनों की समुद्री अर्थव्यवस्था जैसे ब्लू इकोनॉमी, समुद्री प्रौद्योगिकी, मत्स्य पालन, बंदरगाह और शिपिंग में भी रुचि बढ़ रही है. इससे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक स्वतंत्र और सुरक्षित समुद्री व्यवस्था सुनिश्चित दोनों देशों के हित में है. रक्षा, अंतरिक्ष और परमाणु डोमेन समेत कई  क्षेत्र हैं, जिसमें फ्रांस-भारत संबंधों का विस्तार हो रहा है.


यूएई से प्रगाढ़ हो रहे हैं संबंध


पिछले कुछ वर्षों में भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच संबंधों का भी विस्तार हुआ है. पिछले 8 साल में दोनों देशों के बीच उच्च स्तरीय यात्राओं की संख्या में तेजी से इजाफा गहरे होते संबंधों का प्रमाण है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले 8 साल में 4 बार यूएई की यात्रा कर चुके हैं. पीएम मोदी अगस्त 2015, फरवरी 2018, अगस्त 2019 और जून 2022 में वहां जा चुके हैं.  दोनों देशों के साझा आयोग की बैठक 14 बार हो चुकी है. पिछले साल विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी यूएई का दौरा किया था.  


यूएई 2022 में पहली बार भारत और फ्रांस के सालाना वरुण समुद्री अभ्यास में शामिल हुआ. सामरिक हितों की समानता और मजबूत द्विपक्षीय संबंधों को देखते हुए, आने वाले वक्त में भारत-फ्रांस-यूएई त्रिपक्षीय गठजोड़ हिंद प्रशांत क्षेत्र में रणनीतिक गतिशीलता को आकार देने वाले एक मजबूत स्तंभ के रूप में उभरेगा, इसकी पूरी संभावना है.


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