जर्मनी से भारत के रिश्ते सदियों पुराने हैं. इसका एक शानदार सबूत रवींद्रनाथ टैगोर हैं. इस देश में अभी भी टैगोर याद किए जाते हैं. टैगोर 3 बार 1921, 1926 और 1930 में यहां गए थे. साल 1921 बर्लिन की यात्रा में उन्होंने फ्रीडरिष विल्हेम यूनिवर्सिटी में "द मैसेज ऑफ द फॉरेस्ट" शीर्षक से एक तकरीर भी दी थी.
अब ये हुम्बोल्ट यूनिवर्सिटी के नाम से मशहूर है और इसके साउंड आर्काइव में टैगोर की ये याद आज भी महफूज है. इस देश ने हमेशा से ही भारत के लोगों का इस्तिकबाल किया है फिर चाहे वो संस्कृति हो, शिक्षा हो या रोजगार हो. इस देश में भारत की हुनरमंद युवा आबादी को रोजगार देने की अपार संभावनाएं हैं.
इसका पूरा फायदा भारत की युवाशक्ति उठा सके. इसके लिए भारत-जर्मन संयुक्त कार्य समूह की 12वीं बैठक में भारतीय युवाओं को जर्मनी में रोजगार के लिए तैयार करने के लिए ब्रिज कोर्स शुरू करने का फैसला लिया गया है. भारत के युवाओं को बेहतरीन रोजगार के अवसर मिलने से देश के आर्थिक विकास को भी बढ़ावा मिलेगा.
ब्रिज कोर्स बनाएगा हुनरमंद
साल 2015 में जर्मन चांसलर एंगेला मर्केल के भारत दौरे के दौरान 18 सहमति पत्रों पर साइन हुए थे. इनमें अतिरिक्त विदेशी भाषा के तौर पर स्कूलों में जर्मन पढ़ाना भी शामिल रहा था. ये देश के युवाओं के लिए एक अहम कदम रहा था. माना जाता है कि भारत के युवाओं के लिए जर्मनी के आईटी सेक्टर में अपार संभावनाएं हैं बशर्ते उन्हें जर्मन आती हो.
अब युवाओं को इसी तरह के सही कौशल के साथ सशक्त बनाकर सही अवसरों तक पहुंच प्रदान करने के लिए भारत-जर्मन संयुक्त कार्य समूह की 12वीं बैठक हुई. इसके तहत जर्मन मानकों के मुताबिक युवाओं को रोजगार के लिए तैयार करने और जर्मनी में प्राथमिकता वाले रोजगार क्षेत्रों की जरूरतों के मुताबिक उनके कौशल को बढ़ाने पर जोर दिया गया.
इसमें व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण (वीईटी) को बढ़ावा देने के लिए मानक तंत्र (Standard Mechanism) तैयार करने का फैसला लिया गया. इस दौरान स्किल गैप का आकलन करने के लिए एक खाका तैयार किया जाएगा. स्किल गैप से मतलब भारत की वर्कफोर्स में जर्मनी में काम करने के लिए किस तरह का कौशल नहीं है उस पर फोकस किया जाना है. इसी के आधार पर भारतीय वर्कर्स के कौशल प्रशिक्षण के लिए ब्रिज कोर्स और अपस्किलिंग कार्यक्रम तैयार किए जाएंगे.
जर्मनी में संभावनाएं हैं अपार
जर्मनी में निर्माण क्षेत्र, स्वास्थ्य, होलसेल और रिटेल सेक्टर, विज्ञान एवं सूचना प्रौद्योगिकी में कुशल कामगारों की जबरदस्त मांग है. इन क्षेत्रों में रोजगार पाने के लिए इनसे संबंधित हुनर के साथ ही जर्मन भाषा जानना भी एक प्लस प्वाइंट होगा. इसी को ध्यान में रखकर भारत सरकार ब्रिज कोर्स शुरू करने जा रही है.
ब्रिज कोर्स से फर्स्ट लर्निंग कोर्स है. इसमें कम वक्त में ही जर्मनी के मानकों को मुताबिक स्किल सीखने का मौका युवाओं को मिलेगा और उन्हें वहां रोजगार पाने में सहूलियत होगी. अक्सर भारतीय युवा अमेरिका और इंग्लैंड में रोजगार के लिए फोकस करते हैं, जबकि जर्मन भाषा जानने भर से उन्हें जर्मनी में रोजगार के बेहतर मौके मिल सकते हैं.
यहां का आईटी सेक्टर बांहें पसार कर भारत के युवाओं का इंतजार कर रहा है. भारतीय इंजीनियरिंग और आईटी कंपनियों के लिए ये देश एक बड़ा बाजार है. भारत को जर्मनी की इंजीनियरिंग और मशीनों की दरकार है तो जर्मनी को भारत की आईटी में महारत की, लेकिन जर्मन भाषा न जानने वाले हुनरमंद लोगों की कमी है. इससे रोजगार के इस बड़े बाजार पर भारतीयों की पहुंच उतनी नहीं है जितनी की होनी चाहिए.
अभी 1700 से अधिक जर्मन कंपनियां भारत में हैं. यहां भी हिंदी और जर्मन दोनों भाषा के बेहतर स्किल वर्कर की कमी खलती है. इसके बाद भी दोनों देशों के बीच अरबों का कारोबार होता है. एशिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था भारत है तो यूरोप में की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी है. जर्मनी यूरोप में भारत का सबसे बड़ा कारोबारी भागीदार है. देश के प्रधानमंत्री मोदी कह चुके हैं कि भारत के आर्थिक विकास में जर्मनी का अहम योगदान है.
भारत-जर्मनी की हुई फ्रेमवर्क पर बात
भारत- जर्मनी दोनों देशों ने रोजगार देने वालों से जुड़ने के लिए फ्रेम वर्क तैयार करने पर भी बातचीत की. इसमें ये भी जाना जाएगा कि कैसे स्किल्ड सर्टिफाइड वर्कर्स आर्थिक विकास में योगदान दे सकते हैं और कहां स्किल ट्रेनिंग की जरूरत है. इसके लिए दोनों देश प्रशिक्षण देने वालों को पारस्परिक मान्यता देने के लिए ऐसे संस्थानों से टाईअप करेंगे जो अंतरराष्ट्रीय मानकों के मुताबिक प्रशिक्षण, मूल्यांकन और प्रमाणन कर पाएं.
गौरतलब है कि भारत के कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय ने हाल ही में जर्मनी के साथ एक सहमति पत्र (एमओयू) पर दस्तखत किए हैं. मंत्रालय के संयुक्त सचिव डॉ. केके द्विवेदी के मुताबिक भारत की वर्कफोर्स के लिए जर्मनी में काफी संभावनाएं हैं. उनका कहना कि 2021 में जर्मनी के ब्लू कार्ड लेने वालों में से लगभग एक-तिहाई भारत से हैं. ये साबित करता है कि जर्मनी को भारत के कौशल और प्रतिभा की जरूरत है.
देश में युवा, शिक्षित और कुशल व्यक्तियों की ये मौजूदगी जर्मनी के साथ देश के बहुआयामी सहयोग में सकारात्मक योगदान दे सकती है. दरअसल ईयू ब्लू कार्ड हुनरमंद वर्कर्स के लिए जर्मनी में रहने का परमिट है. ये गैर-ईयू देश के ऐसे लोगों को दिया जाता है, जिनके पास विश्वविद्यालय की डिग्री है. इसमें जर्मन औसत से कम से कम 1.5 गुना वेतन के साथ एक योग्य पद की पेशकश की जाती है.
संयुक्त सचिव द्विवेदी ने कहा, "प्रशिक्षुता (Apprenticeship) कौशल विकास के सबसे टिकाऊ मॉडल में से एक है, भारत प्रशिक्षुता प्रशिक्षण पर केंद्रित अकादमिक और व्यावसायिक डोमेन में आभासी/भौतिक आदान-प्रदान कार्यक्रमों का प्रस्ताव करता है जहां छात्र दोनों देशों में नौकरी परियोजनाओं के माध्यम से कमाई करने में सक्षम होंगे."
जर्मनी के सामने चुनौती
नेशनल स्किल डेवलपमेंट काउंसिल (NSDC) ने हाल ही में 16 देशों (2022-2027) में वर्कफोर्स की मांग का विश्लेषण करने के लिए एक स्टडी की. इसमें पाया गया कि स्किल्ड वर्कफोर्स की भारी कमी निकट भविष्य में जर्मनी के लिए अहम चुनौती बनकर उभर रही है. ये कई उद्योगों में उभरते रुझानों की मांग को पूरा करने के लिए वैश्विक तौर पर स्किल मैपिंग की जरूरत पर बल देता है.
स्किल मैपिंग का मतलब हुनरमंद वर्कफोर्स की पहचान से है, क्योंकि मैन्युफैक्चरिंग, हेल्थकेयर, होलसेल और रिटेल, साइंस और इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी और कंस्ट्रक्शन में स्किल्ड वर्कफोर्स की डिमांड सबसे ज्यादा होगी.जर्मनी के संघीय शिक्षा और अनुसंधान मंत्रालय (बीएमबीएफ) के डिवीजन 222 के सीनियर नीति अधिकारीअलेक्जेंडर होचराडेल ने कहा कि भारत के पास बड़े युवा प्रतिभा पूल होने का अतिरिक्त फायदा है, जिनमें हमारे देश में विभिन्न ट्रेडों के लिए कुशल जनशक्ति की जरूरतों को पूरा करने की काबिलियत है.
उन्होंने आगे कहा कि निस्संदेह व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण (वीईटी) आज के गतिशील पारिस्थितिकी तंत्र में सर्वोपरि हो गया है, जिसने महामारी के बाद जबरदस्त बदलाव देखा है. ऐसे में कुशल जनशक्ति यानी स्किल्ड वर्कफोर्स ही आज की काम की दुनिया में इस बदलाव का माकूल जवाब है.
हाल ही में जर्मनी ने जर्मन आप्रवासन अधिनियम का ऐलान किया है. इसके तहत पेशेवर योग्यता की समानता की मान्यता दो देशों के बीच तालमेल बैठाने के लिए महत्वपूर्ण है. स्किल्ड इमिग्रेशन एक्ट एक नया कानून है जो योग्य पेशेवरों के लिए जर्मनी में काम करने के अवसरों की संख्या को बढ़ाता है.अब, गैर-यूरोपीय संघ के देशों से व्यावसायिक, गैर-शैक्षणिक प्रशिक्षण वाले वर्कर्स का काम करने के लिए जर्मनी में रहना आसान हो गया है.
जर्मनी दुनिया की 5 वीं बड़ी अर्थव्यवस्था है और इसे स्किल्ड प्रवासियों की तलाश है. गौरतलब है कि जर्मनी की विदेश मंत्री एनालेना बेयरबॉक ने भी अपने भारत दौरे में हुए समग्र प्रवासन एवं आवाजाही साझेदारी समझौते के बाद जर्मनी के वीजा नियमों को सरल बनाने का इशारा किया था.