हमने 20 जुलाई को ग्लोबल सस्टेनेबल समिट 2023 का आयोजन किया औऱ इसमें पृथ्वी के बहुतेरे देश शामिल हुए. इसका विषयवस्तु भी सामयिक था- सतत विकास और डी-कार्बनाइजेशन. भारत इन दोनों ही मसलों में नेतृत्व की भूमिका अपना चुका है. हमारी आजादी को 75 साल हो चुके हैं और हम इसका जश्न मना रहे हैं. भारतीय सतत विकास संस्थान (आईआईएसडी) और कार्बन माइनस इंडिया, जो कि इसी की एक विशेष शाखा है, उसके भी 15 साल पूरे हुए हैं और इस अवदान को, इस लीडरशिप को सेलिब्रेट करने के लिए ही यह समारोह आयोजित किया गया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोप-26, ग्लासगो में पंचामृत की घोषणा कर चुके हैं. यानी, पांच चीजें जो भारत की तरफ से पृथ्वी के लिए प्रतिबद्धता है. हमारा कार्बन उत्सर्जन कम होना है, गैर-जीवाश्म ईंधन की तरफ हमें 40 से 50 फीसदी तक बढ़ना है, इसमें सौर, जल से लेकर वायु ऊर्जा तक होगी यानी नवीकरणीय ऊर्जा होगी. हरित कवच को बढ़ाना है. भारत ने पहले ही एथेनॉल का उत्पादन बढ़ाने पर जोर दिया है. डी-कार्बनाइजेशन की प्रक्रिया में सतत जीवशैली अपनाना और नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोतों को बढ़ाने पर जोर दिया गया है. पीएम ने इसके लिए एक लाइफ मिशन को भी लांच किया है, जिसमें ग्रीन क्रेडिट की भी बात है.


भारत के सामने बड़ी हैं चुनौतियां


इस रास्ते में चुनौतियां बहुत हैं. हमारे बहुतेरे छोटे-मोटे प्लान हैं औऱ डेडलाइन के अनुसार उसको पाने के लिए उस टाइमलाइन पर और भी काम करना होगा. अंतरमंत्रीय परिषद को भी इसमें शामिल करना होगा. यह केवल सरकार के बस की नहीं है, इसलिए इसमें गैर-सरकारी संगठन, राजनीतिक दलों, कॉरपोरेट हाउसेज, आम आदमी, शोधकर्ता, अकादमिक संस्थान, औद्योगिक नेतृत्व को भी काम करना होगा. उन सभी को एक साथ मिलकर काम करना होगा. केवल सरकार चाहे तो यह काम नहीं हो पाएगा. सरकार का चाहे जितना प्रोजेक्शन है, उसमें 2070 तक नेट जीरो का लक्ष्य रखा गया है, यानी उस समय तक हमारा कार्बन उत्सर्जन शून्य तक हो जाएगा. उसके पहले के भी कई छोटे-छोटे लक्ष्य रखे गए हैं. अभी जो पेट्रोल, डीजल, सीएनजी या नेचुरल गैस जो भी हो, वह अधिक परिमाण में है नहीं. पृथ्वी के पास इतना न तो डीजल है, न गैस.



अगर हम पृथ्वी के समग्र कोष को देखें, तो भी वह 20 साल के लिए काफी नहीं है. इसके साथ ही उनके इस्तेमाल से जो विषैली गैसें निकलती हैं, उनसे कई तरह का प्रदूषण होता है, हमारी जीवनशैली प्रभावित हो रही है, हमारे समुद्रों का स्तर बढ़ रहा है, उत्पादन घट रहा है, पानी की कमी हो रही है, बीमारियां बढ़ रही हैं, ग्लोबल वार्मिग हो रही है. इसलिए, हमें गैस और पेट्रोल की खपत कम करनी होगी और ऱीन्यूएबल एनर्जी को बढ़ावा देना होगा. इसीलिए, हम एथेनॉल के उत्पादन पर जोर दे रहे हैं. इसीलिए, हम हाइड्रोजन पर जोर दे रहे हैं, कम्प्लीट इलेक्ट्रिफिकेशन की बात भी इसीलिए हो रही है. कोयला से जो बिजली का उत्पादन हो रहा है, उसे धीरे-धीरे कम कर के पूरा शून्य कर देना है. जब बिजली से वाहन चलने लगेंगे तो ऊर्जा के कई मसले हल हो जाएंगे.



विकास और जीरो-एमिशन, साथ लेकर चलना है चुनौती


भारत में बहुत गरीबी है, सबकी आर्थिक अवस्था समान नहीं है. गरीबी बहुत बड़ी चुनौती है, आजीविका मसला है, असमानता मुद्दा है. सतत विकास के लिए सबको शिक्षा चाहिए, बिजली चाहिए, स्वास्थ्य चाहिए. भारत जैसे विकासशील देश के लिए सतत विकास के साथ डी-कार्बनाइजेशन हासिल करने के लिए जो क्लाइमेट-फाइनांस चाहिए, वह उसी मात्रा में हासिल नहीं है. हमें नयी तकनीक चाहिए, जो हमारे देश में अधिक रिसर्च का विषय नहीं है. इसलिए, इसमें हमें जो उनके पेटेंट राइट्स हैं या कॉपीराइट हैं, उसके लिए बहुत अधिक पैसा देना होगा, जितना हमारा बजट नहीं है, इसीलिए जब क्लाइमेट-निगोशिएशन होते हैं, तो भारत का कहना है कि विकासशील देशों को सस्ते दर पर तकनीक मुहैया करायी जाए. हमें 2050 तक डी-कार्बनाइज होने के लिए 100 ट्रिलियन डॉलर चाहिए, जो अभी हमारे पास है नहीं. एक और मुद्दा जो है, वो है- क्लाइमेट जस्टिस. विकासशील देश बोल रहे हैं कि पृथ्वी तो बहुत सुंदर थी और विकसित देशों ने जो कार्बन स्पेस ले लिया है, वह तो हमारा भी अधिकार है. वे विकसित हो चुके हैं, हमारा विकास होना अभी बाकी है. जो मिडिल क्लास की इच्छाएं हैं, जैसे लोग सोचते हैं कि आज मैं पैदल चल रहा हूं, कल साइकिल पर जाऊंगा, परसों कार पर जाऊंगा और कार्बन उत्सर्जन के नाम पर जो रोक लगाई जा रही है, वह ठीक नहीं है. कुछ मात्रा में यह अधिकार हमें भी मिलना चाहिए.


पहले भी पा सकते हैं लक्ष्य


भारत ने जो कमिटमेंट 2030 तक के लिए किया है, 2045 तक किया है, उसी तरह 2070 तक जीरो कार्बन का हमारा लक्ष्य है, हालांकि जिस तरह से काम चल रहा है और अगर हमने अपने वेहिकल और गाड़ियां 2030 तक इलेक्ट्रिक कर लीं, हाईब्रिड मोड में आ गए तो भारत बहुत पहले ही अपना लक्ष्य पा सकता है. इसमें नवीकरणीय ऊर्जा का काफी योगदान रहेगा. हम गैर-जीवाश्म ईंधन को बढ़ावा दे रहे हैं, तो यह काफी उम्मीद की जानी चाहिए कि सब कुछ सही चलता रहा तो 2047 तक ही हम बहुतेरे लक्ष्य पा सकेंगे. तभी शायद हम एक क्लीन, ग्रीन और समृद्ध भारत का सपना पूरा कर सकेंगे.