COP-26 के दौरान 'पंचामृत' घोषणा ( Panchamrit Declaration) के माध्यम से, भारत ने 2030 तक 500 GW की गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता प्राप्त करने और 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा से अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं का 50 प्रतिशत पूरा करने के लिए लक्ष्य निर्धारित किया है. 'ग्लासगो क्लाइमेट पैक्ट' के अनुरूप, भारत ने स्वच्छ ऊर्जा को हासिल करने के लिए अपनी प्रतिबद्ध है; भारत स्वच्छ ऊर्जा के लक्ष्यों को प्राप्त करने की गति को राष्ट्रीय परिस्थितियों के दृष्टिकोण से भी देखा जा रहा है. वहीं, 'ग्लासगो क्लाइमेट पैक्ट के अनुरूप भारत को अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करने के लिए जलवायु वित्त के हस्तांतरण और कम लागत वाली जलवायु प्रौद्योगिकियों को हासिल करने पर भी बहुत कुछ निर्भर है. केंद्रीय कोयला, खान और संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने सोमवार को राज्यसभा में कहा कि क्लीन एनर्जी के लक्ष्यों को प्राप्त करने साथ-साथ कोयला के भंडार ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए निकट भविष्य में एक किफायती स्रोत बना रहेगा. इसलिए फिलहाल कोयला खनन में शामिल श्रमिकों के प्रभावित होने का कोई खतरा नहीं है.


क्या है पंचामृत डिक्लेरेशन?


दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2021 के नवंबर माह में स्कॉटलैंड के ग्लासगो में आयोजित COP-26 सम्मेलन में 'राष्ट्रीय वक्तव्य' देते हुए क्लाइमेट चेंज की समस्या से निपटने के लिए पांच सूत्रीय एजेंडा प्रस्तुत किया था, जिसे उन्होंने पांच 'अमृत तत्व' (पंचामृत) कहा था. वैश्विक मंच पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पहली बार भारत की तरफ से जलवायु परिवर्तन निपटने के लिए प्रतिबद्धताओं की घोषणा की थी. इनमें से सबसे प्रमुख घोषणा है भारत 2070 तक कार्बन उत्सर्जन के नेट जीरो के लक्ष्य को हासिल करने का प्रयास करेगा. उन्होंने कहा था कि देश की आधी ऊर्जा आवश्यकताओं को 2030 तक नवीकरणीय स्रोतों का उपयोग करके पूरा किया जाएगा. इसके अलावा 2022 से 2030 तक की अवधि में कार्बन उत्सर्जन में एक बिलियन टन की कमी करेंगे. चौथे प्वाइंट के रूप में भारत ने 2030 तक कार्बन उत्सर्जन की तीव्रता को 45% से कम करने का लक्ष्य रखा है. पंचामृत योजना आर्थिक विकास के लिए अधिक लचीला, टिकाऊ, समावेशी स्वरूप प्रदान करेगा. गरीब लोगों को, महिलाओं को नए अवसर प्रदान करता है. यह निश्चित रूप से जलवायु परिवर्तन के लिए किए जा रहे प्रयासों में ऐतिहासिक भूमिका निभाएगा.


स्वच्छ ऊर्जा के लिए भारत में किए जा रहे प्रयास


भारत ने स्वच्छ उर्जा के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए कई पहल शुरू किए हैं, ताकि हम अपनी निर्भरता पारंपरिक उर्जा  के स्रोतों पर कम कर सकें. इसके लिए मोदी सरकार ने  ‘ ग्रे-हाइड्रोजन और ‘ग्रीन हाइड्रोजन’ के उपयोग को बढ़ावा देने के लिये हाइड्रोजन ऊर्जा अभियान (Hydrogen Energy Mission) की घोषणा की है. हमें ऊर्जा दक्षता के लिए‘कार्य-निष्पादन, उपलब्धि और व्यापार’ (Perform, Achieve and Trade यानी PAT) की बाज़ार-आधारित योजना ने पहले और दूसरे चरण के दौरान 92 मिलियन टन तक कार्बन के उत्सर्जन को कम करने में सफलता मिली है.


परिवहन क्षेत्र में सुधार 


भारत सरकार ने FAME योजना (Faster Adoption and Manufacturing of (Hybrid & Electric Vehicles Scheme] के साथ अपने ई-मोबिलिटी को गति दे रही है.  भारत में भारत स्टेज- IV (BS-IV) से आगे बढ़ते हुए भारत स्टेज-VI (BS-VI) उत्सर्जन मानदंड को 1 अप्रैल, 2020 से ही लागू कर दी है. पहले इसे मूल रूप से वर्ष 2024 तक अपनाया जाना था. वहीं, सरकार ने पुराने और अयोग्य वाहनों को चरणबद्ध रूप से हटाने के लिए एक स्वैच्छिक‘व्हीकल स्क्रैपिंग पॉलिसी’ लाई है. भारतीय रेलवे भी कार्बन उत्सर्जन व जलवायु परिवर्तन से निपटने की दिशा में आगे बढ़ी है. 2023 तक सभी ब्रॉड गेज रूट्स के पूर्णरूपेण विद्युतीकरण का लक्ष्य निर्धारित किया गया है.


इलेक्ट्रिक वाहनों को मिल रहा समर्थन 


भारत उन गिने-चुने देशों में शामिल हो गया है जो वैश्विक EV30@30 अभियान का समर्थन करते रहे हैं. जिसका लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि वर्ष 2030 तक बिक्री किये जाने वाले नए वाहनों के कम-से-कम 30 प्रतिशत कारें इलेक्ट्रिक संचालित हों और हाल ही में प्रकाशित एक अमेरिकी रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2035 तक भारत में 100 प्रतिशत वाहन इलेक्ट्रिक आधारित होने का अनुमान जताया है.. पूर्व में लाई गई FAME योजना में सुधार किया गया है. बाद में उसे ‘FAME-II’ का नाम दिया गया है. इस योजना का कार्यान्वयन आपूर्तिकर्त्ता के लिए उन्नत रसायन सेल (ACC) के लिये उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माताओं के लिये हाल ही में शुरू की गई है.


जलवायु परिवर्तन से निपटने में सरकारी योजनाओं की भूमिका


वर्तमान में प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना ने देश के 88 करोड़ परिवारों को कोयला-आधारित रसोई ईंधन से LPG गैस कनेक्शन की ओर आगे बढ़ने में अहम भूमिका निभाई है. वहीं, उजाला योजना के तहत देश भर में 367 मिलियन से अधिक LED बल्ब वितरित किये गए हैं, जिससे प्रतिवर्ष 38.6 मिलियन टन कार्बन उत्सर्जन की कमी होगी.  इन दो और ऐसी अन्य पहलों ने भारत को वर्ष 2005 और वर्ष 2016 के बीच अपने सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता में 24% की कमी लाने में मदद की है.


कार्बन उत्सर्जन को कम करने में उद्योगों की भूमिका


भारत में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र पहले से ही जलवायु चुनौती से निपटने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, जहाँ ग्राहकों और निवेशकों की बढ़ती जागरूकता के साथ-साथ बढ़ती नियामक और प्रकटीकरण आवश्यकताओं से सहायता मिल रही है. उदाहरण के लिये, भारतीय सीमेंट उद्योग ने कई अग्रणी उपाय किये हैं और विश्व स्तर पर सर्वाधिक क्षेत्र वार निम्न-कार्बन स्तर तक पहुंचने में अभूतपूर्व उपलब्धि हासिल की है. भारत की जलवायु नीति को निजी क्षेत्र के कार्यों और प्रतिबद्धताओं के साथ अधिक तालमेल के मुताबिक बनाया गया है.


इलेक्ट्रिक वाहनों और अनुशंधान और विकास को देना होगा बढ़ावा


भारतीय बाज़ार को स्वदेशी प्रौद्योगिकियों के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, जो रणनीतिक और आर्थिक दोनों दृष्टिकोण से भारत के अनुकूल हों. चूंकि कीमतों को कम करने के लिए स्थानीय अनुसंधान एवं विकास में सार्वजनिक और निजी दोनों तरह के निवेश आवश्यक हैं. इसलिये स्थानीय विश्वविद्यालयों और मौजूदा औद्योगिक केंद्रों का सहयोग लेना उपयुक्त होगा. हमें यूनाइटेड किंगडम जैसे देशों के साथ मिलकर कार्य करने की आवश्यकता है और इलेक्ट्रिक वाहनों के विकास को सुसंगत बनाने पर जो देना होगा.