India as Semiconductor hub: पूरी दुनिया में फिलहाल सेमीकंडक्टर की सबसे अधिक मांग है. हमारी कार से लेकर मोबाइल तक, घड़ी से लेकर बड़े हथियार तक, सभी को चिप चाहिए, सबको सेमीकंडक्टर चाहिए. वर्ष 2030 तक सेमीकंडक्टर का बाजार एक ट्रिलियन डॉलर का हो जाएगा और भारत अगले 20 साल को ध्यान में रखते हुए इसकी तैयारी कर रहा है. भारत अगले पांच वर्षों में दुनिया का सबसे बड़ा सेमीकंडक्टर निर्माता देश बनने का लक्ष्य लेकर चल रहा है. केंद्र सरकार इसके लिए सही इकोसिस्टम बना रही है और फिलहाल भारत में उत्पादन की लागत पूरी दुनिया में सबसे कम है. 2021 के दिसंबर में केंद्र सरकार ने 10 बिलियन डॉलर के सेमीकंडक्टर उत्पादन प्लांट की घोषणा की थी और उसके साथ ही एक फैब्रिकेशन प्लांट भी लगने वाला है. इनको जल्द ही अप्रूवल मिलने वाला है. रेलवे और आइटी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने हाल ही में एक मीडिया हाउस के कार्यक्रम में कहा, 'हम निश्चित तौर पर यह जानते हैं कि अगर हमने सही इकोसिस्टम बना लिया तो अगले 4-5 वर्षों में भारत दुनिया का सबसे बड़ा सेमीकंडक्टर निर्माता बनकर उभरेगा. हम उसी इकोसिस्टम को बनाने मे लगे हैं.' वैष्णव का जोर इकोसिस्टम बनाने पर इसलिए था क्योंकि सेमीकंडक्टर निर्माण और उससे जुड़ा तंत्र बेहद जटिल है. लगभग 250 के करीब खास रसायनों और गैसों का इस्तेमाल इसमें होता है, साथ ही बिजली का तनिक भी उतार-चढ़ाव, यहां तक कि 3 सेकेंड का भी होने पर पूरे दिन का उत्पादन प्रबावित हो सकता है. वैसे भी, कुछ चुनौतियां हैं जिनको पूरा करने के बाद ही भारत सेमीकंडक्टर निर्माण को शुरू कर सकता है, स्थायी बना सकता है. 


भारत कर रहा है इकोसिस्टम तैयार



वैश्विक स्तर पर सेमीकंडक्टर सप्लाई चेन का बड़ा हिस्सा बनने के लिए भारत एक इकोसिस्टम तैयार कर रहा है. इसके लिए सबसे जरूरी है वर्कफोर्स और इसी दिशा में भारत सबसे पहले काम कर रहा है. देश में सेमीकंडक्टर निर्माण के लिए जरूरी वर्कफोर्स तैयार किया जा रहा है. यही वर्कफोर्स दुनिया भर की जरूरतों को पूरा करेगा. आइटी मिनिस्टर अश्विनी वैष्णव ने एक मीडिया हाउस से बातचीत में जानकारी दी है कि देश के 100 से अधिक विश्वविद्यालयों में सेमीकंडक्टर निर्माण से जुड़ी पढ़ाई शुरू होगी. सेमीकंडक्टर निर्माण के कामगारी बल को तैयार करने के लिए सरकार ने अमेरिका के विश्वविद्यालय के साथ भी समझौता किया है. वहां के पड्यू विश्वविद्यालय के साथ यह समझौता किया गया है. इसके अलावा पिछले साल सितंबर में गुजरात के गांधीनगर में वेदांता-फॉक्सकॉन और सरकार के बीच एक MoU भी साइन हुआ था. ये गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र रजनीकांत पटेल व रेल, संचार और इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव की उपस्थिति में हुआ था. 


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी काफी समय से 'आत्मनिर्भर भारत' और 'मेक इन इंडिया' को प्रमोट कर रहे हैं. इसकी वजह से ही छोटे कस्बों और शहरों में नए–नए स्टार्टअप्स उग रहे हैं. इनकी वजह से रोजगार के नए साधन पैदा हो रहे हैं. यही नहीं, पिछले कुछ ही वर्षों में ही भारत ने 100 से अधिक यूनिकॉर्न स्टार्टअप देकर विश्व का ध्यान अपनी ओर खींचा है. बहुत सारी कंपनियां तो बाहर से पार्ट्स मँगाकर डिवाइस असेम्बल करके बेच रही थी, लेकिन कोई भी कंपनी उसके पार्ट्स नहीं बना पा रही थी. शुरू में भारत में बड़े पैमाने पर मोबाइल फोन व अन्य इलेक्ट्रॉनिक आइटम के निर्माण को लेकर कई दुविधाएं थीं, लेकिन अब भारत में एप्पल का भी मोबाइल फोन बन रहा है. इन सभी आंकड़ों के लगातार बढ़ने की ही संभावना है. भारत में सेमीकंडक्टर निर्माण में ग्रीन फ्यूल का इस्तेमाल होगा और 20,000 मेगावाट ग्रीन फ्यूल इस निर्माण के लिए सुरक्षित रखा जा सकता है. 


चीन के साथ शिखर की दावेदारी


चीन इस समय इलेक्ट्रॉनिक मनुफैक्टरिंग में टॉप पर है और इस मामले में पूरी दुनिया चीन पर ही निर्भर है. ताइवान का पूरा झंझट ही इस बात को लेकर है कि ताइवान का उपयोग चीन इस मामले में शीर्ष पर बने रहने के लिए करता है. भारत ने अगर अपना इकोसिस्टम तैयार कर लिया तो सेमीकंडक्टर प्लांट लगने के बाद देश धीरे-धीरे चिप बनाने के मामले में आत्मनिर्भर हो जाएगा. इसके बाद आयात की जगह भारत दूसरे देशों को निर्यात कर सकेगा और इसकी पूरी पहचान बदल जाएगी. 2021 में भारत की सेमीकंडक्टर वैल्यू 2.16 लाख करोड़ रुपए थी और 2026 में 5.09 लाख करोड़ रुपये तक हो जाने की पूरी संभावना है. 


सीधा सा मतलब इसका यह है कि भारत में ही इसकी काफी डिमांड है. दूसरे, हमारे पास इतनी क्षमता है कि हम बाकी देशों की आपूर्ति को भी पूरा कर सकते है. दुनिया की भू-राजनैतिक परिस्थिति बहुत तेजी से बदल रही है. इसे हम जी7 बैठक और क्वाड शिखर सम्मेलन के दौरान देख चुके हैं. अमेरिका की बिगड़ती हालत, पाकिस्तान का दिवालिया होने के कगार पर पहुंचना और चीन की विस्तारवादी नीति के बीच भारत के पास चुनौतियां भी बेशुमार हैं और मौके भी. पूरी दुनिया जहां चिप की कमी के कारण जूझ रही है वहीँ भारत देश का पहला सेमीकंडक्टर प्लांट लगाने के लिए पूरी तरीके से तैयार है. वेदांता ग्रुप इसमें 1.54 लाख करोड़ का निवेश कर रहा है और इससे 1 लाख रोजगार भी उत्पन्न होंगे. इसके साथ ही पड्यू विश्वविद्यालय सेमीकंडक्टर पर रिसर्च के साथ चिप डिजायनिंग, मैन्यूफैक्चरिंग से जुड़े ऑनलाइन और हाइब्रिड प्रोग्राम की शुरुआत कर सकता है. वह भारत में अपना परिसर स्थापित कर सकता है. 


2030 तक सेमीकंडक्टर का बाजार एक ट्रिलियन डॉलर का हो जाएगा और भारत अगले 20 साल को ध्यान में रखते हुए इसकी तैयारी कर रहा है. भारत इसमें आनेवाली चुनौतियों को जानता है और उससे निबटते हुए आगे का रास्ता तैयार कर रहा है. अगर भारत सेमीकंडक्टर बाजार में अपना परचम लहरा देता है, तो वह पूरी दुनिया को भी मुट्ठी में कर सकता है.