चीन से हमारे रिश्ते खराब हैं, यह कोई छिपी हुई बात नहीं है. आज यानी 14 अगस्त को फिर से भारत और चीन के बीच कोर कमांडर स्तर की वार्ता हो रही है. यह बैठकों का 19वां दौर है. इसके बावजूद सरहद पर दोनों ही राष्ट्रों के सैनिक आमने-सामने हैं. 18 बैठकें भी कोई परिणाम न निकाल सकीं. चीन की विस्तारवादी नीति और शासन का अधिनायकशाही तरीका भारत के लोकतंत्र और सर्वे भवन्तु सुखिनः के आड़े आ जाता है. चीन अरुणाचल में लगातार कुछ हरकत करता रहा है, कश्मीर के मसले पर अपनी टांग अड़ाता है, पाकिस्तान को और अंतरराष्ट्रीय जिहादियों को बचाता है और भारत के लिए हर वक्त कोई न कोई खाई तैयार करता रहता है. स्टैपल वीजा और कश्मीर पर बयानबाजी के अलावा चीन अरुणाचल में 'हाइड्रो वॉर' भी करने की सोचता रहता है.
हर पल के लिए तैयार भारत
भारत चीन के शैतानी मंसूबों से पूरी तरह वाकिफ है. वह जानता है कि चीन काफी लंबे अरसे से भारत के साथ जलयुद्ध की तैयारी में जुटा है. भारत भी देर लेकिन दुरुस्त आया है. अब दर्जन भर नए प्रोजेक्ट के साथ चीन को करारा जवाब देने की भारत ने तैयारी कर ली है. चीन अक्सर ही सीमा के पास कुछ न कुछ गड़बड़ करता रहता है. अभी तिब्बत की तरफ से और भारतीय सीमा से लगे ही ब्रह्मपुत्र के जल प्रवाह में चीन कुछ तब्दीली करना चाहता है. इसके लिए वह बहुत विशालकाय बांध बना रहा है. ब्रह्मपुत्र केवल भारत के ही नहीं, बांगलादेश के लिए भी बेहद अहम है. चीन के बांध से या तो उत्तर-पूर्व भारत में पानी ही पानी हो जाएगा या फिर एक साथ सूखे की चपेट में आएगा. बांग्लादेश भी साथ में जाएगा. भारत इसके जवाब में दर्जन भर प्रोजेक्ट के साथ शुरुआत कर रहा है. NHPC, SJVN और NTPC की सहायक कंपनी NEEPCO जैसी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों औऱ अरुणाचल सरकार के बीच समझौता हुआ है. इनसे कुल 11, 517 मेगावॉट बिजली का प्रोडक्शन होना है.
भारत ने इस इलाके में अपना बजटीय प्रावधान बढ़ाया है और पिछले साल के 300-400 करोड़ के मुकाबले 21 हजार करोड़ के खर्च को मंजूरी दी है. पिछली कई सरकारों ने यह माना है कि चीन हमारा दुश्मन नंबर वन है. चीन से जुड़ी सीमाओं पर इसीलिए काफी चौकसी बरती गयी, इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ाया गया. यह सिलसिला अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के समय कुछ अधिक हुआ. उन्होंने यह कहा था कि चीन से जुड़ी सीमाओं पर आधारभूत ढांचा बढ़े, सड़कें दुरुस्त हों और सामरिक क्षमता बेहतर हो. इन हाइड्रो प्रोजेक्ट से एक साथ कई निशाने लगेंगे. भारत ने तीन कंपनियों को काम में लगाकर जलविद्युत परियोजनाओं में तेजी लाने को कहा है. ये 12 लंबित परियोजनाएं हैं.
अरुणाचल बनेगा पूर्वाेत्तर के विकास की धुरी
भारत ने अपनी उत्तर-पूर्व सीमा के पास अरुणाचल प्रदेश में 2,000 मेगावाट की ऊपरी सुबनसिरी परियोजना सहित 12 लंबित जल विद्युत परियोजनाओं को तेजी से पूरा करने के लिए कई स्तरों पर फैसले लिए हैं. इसके लिए सार्वजनिक क्षेत्र की 3 जल विद्युत कंपनियों को जिम्मेदारी सौंपी गयी है. इससे पहले यह भी खबर आई थी कि बिजली मंत्रालय 30,000 मेगावाट की कुल क्षमता वाली रुकी हुई जलविद्युत परियोजनाओं को संभालने के लिए जलविद्युत कंपनियों की जिम्मेदारी भी उठाएगा.
इन दर्जनों प्रोजेक्ट में सुबानिसरी डैम भी है, जो रणननीतिक रूप से बेहद अहम है. अगर हम अरुणाचल प्रदेश की बात करें तो वहां रेल परियोजनाएं बन रही हैं, बड़े-बड़े टनल बन रहे हैं, 8 लेन के हाईवे बनाए जा रहे हैं और उत्तर पूर्व पर पूरा ध्यान दिया जा रहा है. भारत ने वाइब्रैंट विलेज नामक कार्यक्रम की शुरुआत की है, जिसके जरिए सीमा से सटे गांवों को जीवंत करना है. हालांकि, सुबनसिरी प्रोजेक्ट का 90 प्रतिशत से अधिक काम पहले ही पूरा हो चुका है. 2023 के आखिरी तक यहां से बिजली उत्पादन शुरू होने की उम्मीद है. इस डैम से भारत बिजली का उत्पादन भी करेगा और चीन पर नजर भी रखेगा, उसका पानी भी उतारेगा.
भारत इस साल जी20 का अध्यक्ष है. भारत के लिए एक अहम मुद्दा पर्यावरण और ग्लोबल वार्मिंग है. अंतरराष्ट्रीय संधियों का हस्ताक्षरकर्ता होने के साथ अपनी जिम्मेदारी को भी भारत समझता है. वह 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से 50% से अधिक बिजली हासिल कर लेना चाहता है. अरुणाचल का यह कदम इसके लिए भी उठाया गया है. साथ ही, भारत तेजी से खुद को कॉर्बन उत्सर्जन में ‘नेट जीरो’ बनाने की ओर मेहनत कर रहा है. क्लाइमेट एक्शन स्ट्रेटेजी के हिस्से के रूप में जल विद्युत परियोजनाओं पर सरकार जोर दे रही है और इसे पूरी दुनिया को दिखा भी रही है. चीन से तनाव के मद्देनजर भारत ने लगभग 60 हजार सैनिकों को उस इलाके में उतार दिया है. पिछले पांच से दस साल के दौरान सीमावर्ती इलाकों में सड़क, पुल और दूसरे निर्माण कार्यों में काफ़ी पैसा लगाया गया है. इन सब के साथ ही, अपने नौ वर्षों में दर्जनों बार प्रधानमंत्री मोदी भी उत्तर-पूर्व जा चुके हैं. इस बार लाल किले के संबोधन में भी शायद उत्तर पूर्व पर मरहम लगाएं प्रधानमंत्री जी!