भारत फिलहाल दुनिया की 20 बड़ी अर्थव्यवस्थाओं वाले समूह जी-20 की अध्यक्षता कर रहा है. भारत ने इसी साल इंडोनेशिया से इसकी अध्यक्षता हासिल की है. वैसे, भारत के पास इस संगठन की अध्यक्षता तब आयी है, जब पूरी दुनिया दो धड़ों में बंट गयी है. इस बंटवारे की वजह रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध है. जुलाई 26 को दिल्ली के आइटीपीओ (इंडिया ट्रेड प्रमोशन ऑर्गैनाइजेशन) का उद्घाटन होनेवाला है और उसके पहले इसे शानदार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है. इसे प्रगति मैदान कॉम्प्लेक्स के नाम से भी जाना जाता है, जो लगभग 123 एकड़ में फैला हुआ है. विश्वस्तरीय इंटीरियर से लैस इस कॉम्प्लेक्स में ही भारत जी20 नेताओं की सितंबर में बैठक की मेजबानी करेगा और इसका उद्घाटन प्रधानमंत्री मोदी करेंगे.


इसे भारत का सबसे बड़ा मीटिंग, कॉन्फ्रेंस और प्रदर्शनी वाला इलाका भी कह सकते हैं. जहां तक स्थान का सवाल है, तो इसके तीसरे तल पर कन्वेंशन सेंटर में बैठने की क्षमता 7 हजार की है, जबकि विश्वप्रसिद्ध सिडनी ओपेरा हाउस में 5500 लोग ही बैठ सकते हैं. दुनिया के 10 बेहतरीन प्रदर्शनी और सम्मेलन स्थलों में एक इसका भी नाम है. इसे शंघाई के नेशनल एक्जिबिशन एंड कन्वेंशन सेंटर और जर्मनी के हनोवर एक्जिबिशन सेंटर के साथ ही रखा जाता है. यहां एक साथ दुनिया के बेहतरीन उत्पादों, विचारों को प्रदर्शित कर सकते हैं, नवोन्मेष को दिखा सकते हैं. भारत सरकार ने खास तौर पर जी20 सम्मलेन के लिए 5500 गाड़ियों की पार्किंग और सिग्नल या जाम फ्री यातायात का भी इंतजाम किया है. 


जी20 की अध्यक्षता और भारत


हम सभी जानते हैं कि भारत को जी20 की अध्यक्षता वैश्विक राजनीति के बेहद जटिल और कुटिल समय में मिली है. अभी पूरी दुनिया रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर दो धड़ों में बंटी है. इसके साथ ही भारत को चीन की आक्रामक और विस्तारवादी नीति का भी जवाब देना है, तो पड़ोस के आतंकी देश पाकिस्तान से भी निबटना है. पाकिस्तान की खराब अर्थव्यवस्था ने कोढ़ में खाज वाली हाल ही पैदा की है. ऐसे हालात में एक बहुपक्षीय संगठन की अध्यक्षता कराना और उसमें सर्व-सहमति से कोई प्रस्ताव पारित करवा लेना टेढ़ी खीर ही है. भारत अपनी कूटनीतिक चतुराई से अब तक रूस और अमरीका (जो यूक्रेन के साथ है) दोनों ही गुटों को साध रहा है. प्रधानमंत्री मोदी ने रूस के राष्ट्रपति पुतिन को आमने-सामने भले कहा हो कि यह युद्ध का वक्त नहीं, लेकिन भारत ने राजनयिक तौर पर रूस का विरोध या निंदा नहीं की है. उसने रूस और यूक्रेन दोनों को ही अपने मसले आपसी बातचीत से सुलझाने और शांति कायम करने की सलाह दी है.



रूस और चीन की बढ़ती जुगलबंदी


भारत के लिए इस बीच बुरी खबर यह है कि रूस और चीन एक-दूसरे के करीब आ रहे हैं. कुछ दिनों पहले रूस के विदेश मंत्री ने खुले तौर पर क्वाड को चीन-विरोधी अभियान बताकर असहज स्थिति पैदा कर दी थी. अभी पिछले हफ्ते गोआ में जी20 देशों की बैठक में भी एक ऐसी ही स्थिति आई जब रूस ने सउदी अरब का साथ दिया और जीवाश्म ईंधन के सीमित इस्तेमाल को लेकर बैठक में आम सहमति नहीं बन पाई. भारत हमेशा ही वैश्विक कल्याण का पक्षधर देश रहा है. हमने जीवाश्म ईंधन में कटौती और गैर-जीवाश्म ईंधन की क्षमता को लेकर जो लक्ष्य 2030 के लिए तय किया था, वह नौ साल पहले ही पा लिया. इसलिए, भारत का जोर है कि जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को कम किया जाए. सउदी अरब के नेतृत्व में कई देशों ने जी20 देशों के इस कदम का प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर विरोध किया है. इसके पीछे का कारण बड़ा साफ है कि सउदी अरब की पूरी रईसी ही तेल पर टिकी है. वहीं रूस भी तेल का बड़ा निर्यातक देश है. सउदी अरब औऱ रूस दोनों ही से भारत बड़ी मात्रा में तेल खरीदता है.



चीन हरेक उस देश से अपनी नजदीकी बढ़ा रहा है, जो वैश्विक पटल पर उसकी विस्तारवादी महत्वाकांक्षा को विस्तार दे सके. रूस और सउदी अरब के साथ मिलकर चीन एक ऐसा त्रिकोण बनाना चाह रहा है, जो विश्व में उसकी भूमिका को और मजबूत करे. यूक्रेन युद्ध की वजह से रूस को भी फिलहाल मजबूत देशों की मित्र के तौर पर जरूरत है, जो उसका साथ दे सकें. चीन ने सउदी अरब और ईरान के बीच समझौता करवाकर वैसे भी विश्व में अपनी भूमिका साबित की है. भले ही वह इजरायल और फिलिस्तीन के बीच समझौता न करवा पाया, लेकिन उसकी उद्दाम महत्वाकांक्षा पर तो कोई लगाम नहीं है. 


भारत के लिए संतुलन साधने की घड़ी


यह भारत के लिए बहुत ही नाजुक और संतुलन साधने की घड़ी है. आर्थिक मोर्चे पर चूंकि हम अभी ठीक स्थिति में हैं, इसलिए दुनिया हमें गंभीरता से भी ले रही है. इसके अलावा हमारा इतिहास, दूसरों को मदद करने का वर्तमान और कभी हमलावर न होने की मानसिकता भी वैश्विक पटल पर हमें सम्मान दिला रही है. इसके बावजूद हमें अभी बहुत लंबा सफर तय करना है. इकोनॉमी में हम अभी पांचवें स्थान पर हैं, हमारे यहां की समस्याएं चाहे वह गरीबी हो, महंगाई हो या फिर सामाजिक-धार्मिक मसले, ये सभी एक स्थिर देश के रास्ते के रोड़े हैं. ऐसे में चाहे एससीओ हो या जी20, जटिल वैश्विक व्यवस्था में भारत को अपनी बात कहनी भी है, मनवानी भी है और दूसरों को साथ लेकर चलना भी है. ग्लोबल साउथ (वैश्विक गोलार्द्ध में दक्षिण के विकासशील देश) की सरपरस्ती भी करनी है, उनके मसलों को भी सुलझाना है. भारत की राजधानी दिल्ली सितंबर के लिए तैयार हो रही है और तब तक वैश्विक रंगमंच पर बहुत कुछ बदलाव आएगा भी और भारत की भूमिका भी बढ़ेगी. फिलहाल, तो वक्ती मांग यही है कि भारत अभी जिस तरह से अपनी विदेश नीति संचालित कर रहा है, वह जारी रहे और भारत अपने हितों को सर्वाधिक प्रमुखता दे.