(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
ग्लोबल साउथ की बुलंद आवाज बनने को तैयार है भारत, भरोसे और आपसी विश्वास से बनेगी ये नयी दुनिया
भारत ने कभी किसी देश पर आक्रमण नहीं किया, कभी औपनिवेशिक चरित्र नहीं अपनाया, इसलिए दुनिया में हमारा ब्रांड भरोसेमंद है. पाकिस्तान हो या तुर्की, जहां भी तबाही आयी, भारत सबसे पहले पहुंचा.
भारत अब विश्व-रंगमंच पर खुलकर और हौसले के साथ खेल रहा है. प्रधानमंत्री मोदी ने जिस तरह एक बार कहा था कि भारत अब न आंखें नीचे कर, न आंखें दिखाकर, बल्कि आंखों में आंखें डालकर बात करेगा, ठीक वही अभी विदेश नीति का मंत्र बना हुआ है. भारत में एक स्थिर राजनीतिक सत्ता और अर्थव्यवस्था की प्रगति ने यह हालात बनाने में योगदान दिया है, साथ ही मौजूदा विदेश मंत्री और प्रधानमंत्री की जुगलबंदी भी इसके पीछे का अहम कारण है. पीएम मोदी ने जाहिर तौर पर विदेश मंत्री एस जयशंकर को खुला हाथ दे रखा है, इसलिए वह अपने हिसाब से नए प्रतिमान रच रहे हैं, पुरानी लीकों को बदल रहे हैं. जयशंकर चूंकि विदेश नीति के सबसे प्राथमिक स्तर से उच्चतम स्तर तक पहुंचे हैं, तो वह इस पेशे की तमाम ऊंचनीच को अच्छी तरह समझते हैं. भारत वैसे भी दुनिया के हरेक देश की जरूरत के समय उसके पास खड़ा है क्योंकि 'वसुधैव कुटुंबकम्' की नीति उसके पास है.
दुनिया है एक परिवार
ग्लोबलाइजेशन या भूमंडलीकरण के आमफहम शब्द बनने से पहले भी भारत 'वसुधैव कुटंबकम्' यानी एक परिवार है पूरी दुनिया, के सिद्धांत पर काम करता रहा है. भारत ने कभी किसी देश पर आक्रमण नहीं किया, कभी औपनिवेशिक चरित्र नहीं अपनाया, इसलिए दुनिया में हमारा ब्रांड भरोसेमंद है. पाकिस्तान हो या तुर्की, जहां भी तबाही आयी, भारत सबसे पहले पहुंचा. अभी हमास-इजरायल संघर्ष के बीच भी भारत ने प्रभावित इलाकों में मानवीय सहायता पहुंचाई, साथ ही हमास के आतंकी हमले की पुरजोर निंदा भी की और इजरायल को भी संकट में समर्थन और सहानुभूति दी. ग्लोबल साउथ यानी दुनिया के विकासशील देश भी भारत के बारे में निश्चिंत हैं और वे भारत को अपने जोरदार प्रतिनिधि के रूप में देख रहे हैं.
ग्लोबल साउथ को आत्मनिर्भरता की दिशा में काम करने की जरूरत है. कोविड-19 हमें याद दिलाता है कि सप्लाई-चेन के बाधित होने से कैसे पूरी दुनिया घुटने पर आ गयी थी. यह दौर गवाही देता है कि बुनियादी जरूरतों के लिए दूर-दराज के देशों पर निर्भरता के खतरे भी बहुत हैं. इससे बचने के लिए देशों को प्रोडक्शन में लोकतंत्रीकरण और विविधता लाने की जरूरत है, बल्कि सप्लाई चेन के स्थायी समाधानों को भी बढ़ावा देना होगा. तभी ये सारे देश एक साथ मिलकर काम कर सकेंगे और विकसित बनने की दिशा में काम कर सकेंगे. भारत तो ग्लोबल साउथ के विकास के लिए प्रतिबद्ध है. भारत ने 6 दर्जन से अधिक देशों के लिए विभिन्न तरह के डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स चलाए हैं. इसके पैमाने और दायरे में भविष्य में और भी अधिक विस्तार होगा.
विदेश मंत्री की दो-टूक
भारत के वर्तमान विदेशमंत्री एस जयशंकर भी अपने काम का पूरा मजा ले रहे हैं और जो लोग अपने काम को पूरे मजे से करते हैं, उनके नतीजे तो शानदार होंगे ही. कभी वह यूरोप की आंखों में आंकें डाल, उसे आईना दिखाकर आते हैं, तो कभी रूस और यूक्रेन के मुद्दे पर बेलाक-दोटूक बयान देते हैं. अभी हाल ही में वह इंग्लैंड के दौरे पर थे और वहां भी उन्होंने फ्रंटफुट पर ही खेला है. कनाडा को चुनौती देते हुए उन्होंने कहा कि अगर निज्जर हत्याकांड पर प्रधानमंत्री ट्रूडो ने इतनी अनुचित बयानबाजी की है, तो उनको सबूत भी देने चाहिए. भारत तो लगातार कनाडा को सबूत दे रहा है कि वहां भारत के हितों के खिलाफ काम करनेवाले लोग और संगठन खुलेआम काम कर रहे हैं, भारतीय राजनयिकों को धमकी दे रहे हैं और धमकियां दे रहे हैं. जब एस जयशंकर विदेशों में भारत को 'हार्ड सेल' करते हैं तो उनकी कथनी में कहीं भी बनावट नहीं झलकती. वे जो बोलते हैं, उसमें यकीन करते हैं. इसलिए, कई लोगों को उनका रवैया 'हॉकिश' यानी आक्रामक लगता है, लेकिन वह खालिस सच बोल रहे होते हैं.
चीन की है बड़ी चुनौती
भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और जनसंख्या के मामले में पहले स्थान पर है. चीन की चाहत है कि वह भारत को एशिया मात्र में फंसाकर रखे, क्योंकि भारत अगर बाहर निकला तो भारत के ट्रैक रिकॉर्ड और अहिंसक व्यवहार और भरोसे को देखते हुए चीन के लिए दिक्कत हो जाएगी, क्योंकि चीन के विस्तारवादी, स्वार्थपरक एजेंडे का खुशनुमा नकाब खिसक चुका है. सारे देश समझ चुके हैं कि चीन अगर घुसा है, तो फिर बर्बादी ही होनी है. इटली से लेकर श्रीलंका तक को यह पता है. वहीं कोविड हो या भूकंप, मानवीय सहायता हो या नीतिगत फैसले, भारत दुनिया के लिए बेहद भरोसेमंद है, इसलिए चीन समय-समय पर कुछ न कुछ करता रहता है.
चाहे वह सीमा पर झड़प हो या अरुणाचल-कश्मीर पर बेवजह बयानबाजी. हालांकि, भारत भी अमेरिका के साथ अपने प्रगाढ़ करते संबंधों, अरब में बढ़ती पकड़ और दुनिया के रंगमंच पर, जल, थल और नभ पर भी चीन के मुकाबले खड़ा हो रहा है, धीरे-धीरे ही सही. सैन्य संतुलन भी भारत के पक्ष में भले न हुआ हो, लेकिन अब वह उतना कमजोर भी नहीं है. शोध और विकास में बढ़ते हमारे कदम वैश्विक रंगमंच पर हमारी दावेदारी को और मजबूत करते हैं.