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ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेट चेंज के मौसम में भारत दिखा रहा दुनिया को राह, सौर ऊर्जा में हम जल्द ही पा लेंगे अव्वल नंबर

भारत की ऊर्जा जरूरतें चूंकि बहुत अधिक है, इसलिए इसका बिजली क्षेत्र वायु प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन में काफी योगदान देता है, यह ऊर्जा से संबंधित कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन में आधा हिस्सेदारी रखता है.

भारत एक तेजी से बढ़ता हुआ देश है. हम दुनिया में पहली पायदान पर हैं जनसंख्या के मामले में, हमारे यहां अभी भी औद्योगिक क्रांति नहीं हुई है बल्कि हम पीछे ही हैं, तो लगातार उद्योगों का लगना है और उसी अनुपात में हमारी ऊर्जा जरूरतें भी हैं. इन सब के बीच हमें पर्यावरण का भी ध्यान रखना है. जी20 हो या जी7 की बैठक हो, आजकल द्विपक्षीय या बहुपक्षीय बैठकों में एक मुद्दा ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेट-चेंज का रहता ही है. जी20 की बैठक में भी यह मुद्दा छाया रहा. इसके साथ ही तेल महंगा होता जा रहा है, कोयला महंगा हो रहा है, नितिन गडकरी हाइड्रोजन चालित वाहनों की बात कर रहे हैं. भारत हाइड्रोचालित बांध बनाने में निवेश कर रहा है, परमाणु चालित ऊर्जा खोज रहा है, लेकिन ये सब महंगे और कम प्रचलित तरीके हैं, फिलहाल सौर ऊर्जा यानी सोलर एनर्जी ही सबसे मुफीद लगता है. 

सौर ऊर्जा में ही है भविष्य

भारत की ऊर्जा जरूरतें चूंकि बहुत अधिक है, इसलिए इसका बिजली क्षेत्र वायु प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन में काफी योगदान देता है, यह देश की कुल ऊर्जा से संबंधित कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन में लगभग आधा हिस्सेदारी रखता है. अक्षय ऊर्जा के उपयोग में उल्लेखनीय वृद्धि करके बिजली क्षेत्र को डी-कार्बनाइज करना अनिवार्य है. 2030 तक अपनी ऊर्जा जरूरतों का 50 प्रतिशत हिस्सा अक्षय स्रोतों से प्राप्त करने का भारत ने लक्ष्य भी रखा है. भारत की सरकार ने इसके साथ ही 2030 तक देश की कुल अक्षय ऊर्जा स्थापित क्षमता क 500 मेगावाट तक विस्तार देने का भी लक्ष्य रखा है. अक्षय ऊर्जा में पवन, सौर, जल इत्यादि सभी तरह के नवीकरणीय ऊर्जाओं का प्रबंधन आ जाता है.

भारत ने इसके साथ ही 2030 तक ही देश के कार्बन उत्सर्जन को भी 1 बिलियन टन कम करने और इस दशक के अंत तक देश में कार्बन-तीव्रता को 45 फीसदी घटाने का लक्ष्य रखा है, ताकि 2070 तक हम नेट-जीरो कार्बन उत्सर्जन प्राप्ति का लक्ष्य प्राप्त कर सकें. फिलहाल, भारत वार्षिक सौर ऊर्जा उत्पादन के मामले में दुनिया में पांचवें स्थान पर है. सरकार देश में रूफटॉप सोलर क्षमता बढ़ाने पर जोर दे रही है, क्योंकि जमीन पर लगनेवाली सौर ऊर्जा परियोजनाओं के लिए काफी जमीन की जरूरत होगी. भारत में जनसंख्या के घनत्व को देखते हुए सरकार विकल्पों को भी आजमा रही है.

भारत तेजी से बढ़ रहा है आगे

भारत की इस मामले में विश्व बैंक 2017 से ही सहायता कर रहा है. ग्रिड कनेक्टेड रूफटॉप (घर की छत) सौर कार्यक्रम के लिए विश्व बैंक लगभग 65 करोड़ डॉलर का अनुदान दे रहा है. यह पूरा कार्यक्रम कमर्शियल और घरेलू रूफटॉप पीवी सिस्टम पर आधारित है. इसके साथ उपयोगकर्ता खुद के उपयोग के लिए तो बिजली पाते ही हैं, साथ ही बची हुई बिजली को राष्ट्रीय ग्रिड में भी दे सकते हैं. इससे उपभोक्ताओं की बचत तो होती ही है, साथ ही देश में भी सरप्लस बिजली मिलती है. सरकार का लक्ष्य है कि वह 40 गीगावाट बिजली सौर रूफटॉप के माध्यम से ही पाए. भारत में रूफटॉप सोलर के विकास को बढ़ाने के लिए सरकार कई तरह की योजनाओं पर काम कर रही है. अभी सबसे बड़ी समस्या है कि बिजली की तुलना में सौर ऊर्जा महंगी पड़ती है और लोगों को यह आकर्षित नहीं कर पा रही है. अधिकांश आवासीय उपभोक्ता बिजली के लिए कम पैसा देते हैं और इसलिए ही रूफटॉप सोलर में स्थानांतरित नहीं होते.

चुनौतियां भी, अवसर भी

आज भारत में 70 मेगावाट सौर ऊर्जा बनाने की इनस्टॉल्ड क्षमता है और भारत अब दुनिया में चौथा सबसे बड़ा सोलर क्षमता वाला देश है. बात अगर चुनौतियों की करें तो हम सौर ऊर्जा का इतनी बड़ी मात्रा में प्रयोग करते हैं, लेकिन इसमें इस्तेमाल होने वाले मुख्य उपकरण जैसे Solar panels, PV Cells, PV Encapsulants – EVA & POE, and PV back sheets इत्यादि भारत में कम बनते थे, इनमें से लगभग 95 फीसदी उपकरण चीन से आयात किए जाते थे. इसका सीधा सा मतलब ये है कि हमारी सौर ऊर्जा की क्षमता जैसे ही बढ़ती थी, तो उसी अनुपात में चीन से उपकरणों का आयात भी बढ़ता जा रहा है. ये भी एक कारण है कि भारत और चीन व्यापार का घाटा बढ़ता जा रहा है. हम लगातार आयात कर रहे हैं, निर्यात की हमारी मात्रा बढ़ती जा रही है.

हालांकि, मेक इन इंडिया से अब हालात बदल रहे हैं. 2023 के पूर्वार्द्ध में भारत में चीन से आयातित किए जाने वाले सौर उपकरणों को 76 प्रतिशत तक कम कर दिया है. इसी साल सौर ऊर्जा के लिए सरकार ने 4500 करोड़ का पीएलआई स्कीम भी लागू किया है. इसके बाद ही स्थानीय स्तर पर निर्माण बढ़ गया है और आज की हालत में भारतीय कंपनियां इतनी सबल बन गयी है कि वे 50 से अधिक देशों को अलग-अलग सौर ऊर्जा के उपकरण भी निर्यात कर रहे हैं. हमारे पास दुनिया का सबसे बड़ा सौर ऊर्जा प्लांट भारत में है, शीर्ष 10 में से 4 प्लांट भारत में है. अच्छी बात यह है कि ये सब अभी ही हो रहा है जबकि हम बिल्कुल शुरुआती दौर में हैं. अभी यह कम से कम सैकड़ों गुणा अगले आनेवाले वर्षों में बढ़ेगा. यह भी हो सकता है कि भारत आनेवाले दिनों में ऊर्जा का शुद्ध निर्यातक बन जाए.

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