भारत का पड़ोसी देश चीन बार-बार सैन्य ताकत के प्रदर्शन के जरिए दुनिया को दिखा रहा है कि जंग के मोर्चे पर वो क्या कर सकता है. ऐसे में भारत भी चीन को पटखनी देने के लिए पूरी तैयारी कर रहा है.


भारत चीन और अमेरिका जैसे देशों से मुकाबला करने के लिए रूस के साथ मिलकर अपनी ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल को हाइपरसोनिक बनाने की पूरी तैयारी में है. रूस और भारत के हाइपरसोनिक प्रोजेक्ट से अब चीन और पश्चिमी देशों के हैरान होने की बारी है.


देश ने अपनी सुपरसोनिक मिसाइल के निर्यात का पहला सौदा भी कर लिया है भारत की इसी बढ़ती सैन्य क्षमता से चीन परेशान है. इसके जरिए भारत चीन ही नहीं बल्कि अमेरिका और पश्चिमी देशों की अर्थव्यवस्था के प्रमुख स्त्रोत सैन्य उपकरण बाजार में भी सेंध लगाने के लिए तैयार हैं.


इससे पहले भी भारत रूस के साथ हथियारों की साझेदारी करता रहा है. अब सुपरसोनिक और हाइपरसोनिक मिसाइलों में रूस का साथ भारत को दुनिया में एक अलग मुकाम दिला रहा है. यह प्रोजेक्ट ऐसे समय शुरू होने वाला है जब अमेरिका और रूस के बीच तनाव चरम पर है.


क्या है ब्रह्मोस एयरोस्पेस लिमिटेड


ब्रह्मोस एयरोस्पेस भारत के रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) और रूस के एनपीओ मशीनोस्ट्रोयेनिया (NPO Mashinostroyenia) का एक संयुक्त उद्यम है जो ब्रह्मोस सीरीज की मिसाइलों का विकास और उत्पादन करता है. भारत की ब्रह्मोस क्रूज मिसाइल के हाइपरसोनिक वर्जन ब्रह्मोस-2 के रूस की सिर्कोन - जिरकॉन (Tsirkon-Zircon) मिसाइल की तरह खासियतें होने की संभावना है. 


ब्रह्मोस एयरोस्पेस के सीईओ अतुल राणे ने 1 अगस्त 2022 को रूस की सरकारी स्वामित्व वाली समाचार एजेंसी टास (TASS)  को बताया था कि ब्रह्मोस-II हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल भारतीय नौसेना की ब्रह्मोस सुपरसोनिक एंटी-शिप क्रूज मिसाइल के लिए मुफीद साबित होगी. राणे के मुताबिक, ब्रह्मोस-2 का पहला उड़ान परीक्षण शुरू होने में 5 या 6 साल तक का वक्त  लगेगा. 


बीते साल अगस्त 2020 में भारत ने डीआरडीओ (DRDO) का विकसित किया अपना पहले स्वदेशी हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर व्हीकल (HSTDV) का टेस्ट किया था. इसके जरिए देश ने दुनिया के देशों को अपने हाइपरसोनिक ताकत को दिखाया था.


 कैसे बनी ब्रह्मोस मिसाइल


ब्रह्मोस का नाम भारत की ब्रह्मपुत्र और रूस की मस्कवा नदी को मिलाकर रखा गया है. रूस की एनपीओ मशीनोस्ट्रोयेनिया और भारत के डीआरडीओ ने इसे मिलकर बनाया है.


रूस ने इसके लिए मिसाइल तकनीक मुहैया करवाई है तो उड़ान के दौरान लक्ष्य साधने की क्षमता भारत ने विकसित की है. भारत के रक्षा बल यानी सैन्य शक्ति वर्तमान में ब्रह्मोस सतह से सतह से मार करने वाली सुपरसोनिक मिसाइल का इस्तेमाल करते हैं.


ये एक एक कम दूरी की रैमजेट सुपरसॉनिक क्रूज मिसाइल है. इसे पनडुब्बी, पानी के जहाज, विमान या जमीन कहीं से भी छोड़ा जा सकता है. ये रूस की पी-800 ओंकिस क्रूज मिसाइल तकनीक का इस्तेमाल कर बनाई गई है.


ब्रह्मोस के समुद्री और जमीनी संस्करणों का पहले ही सफलतापूर्वक टेस्ट किया जा चुका है. इसे टेस्ट के बाद भारतीय सेना और नौसेना को सौंपा जा चुका है. ये भारत और रूस का बनाया अब तक का सबसे आधुनिक मिसाइल सिस्टम है और इसने भारत को मिसाइल तकनीक में अगुवा देश बना दिया है.


क्रूज़ मिसाइल की खूबियां


ब्रह्मोस एक क्रूज़ मिसाइल है. कम ऊंचाई पर तेजी से उड़ान भरने वाली मिसाइल को क्रूज़ मिसाइल कहा जाता है. इसकी यही खूबी इसे रडार की नजर से बचाती  है. रडार ही नहीं किसी भी अन्य मिसाइल पहचान सिस्टम को धोखा देने में ये माहिर है. इसे पकड़ना लगभग नामुमकिन है. आम मिसाइलों से अलग यह मिसाइल हवा को खींच कर रेमजेट तकनीक से एनर्जी लेती है और 1200 यूनिट एनर्जी  पैदा कर अपने लक्ष्य नेस्तानाबूद कर देती है.


अभी की बात की जाए तो मिसाइल तकनीक की दुनिया की कोई भी मिसाइल तेजी से हमले के मामले में ब्रह्मोस का मुकाबला नहीं कर सकती है. इस तेज मारक क्षमता वाली मिसाइल के आगे अमरीका की टॉम हॉक मिसाइल भी फेल है.


इसकी मेनुवरेबल तकनीक यानी कि दागे जाने के बाद अपने लक्ष्य तक पहुंचने से पहले ही रास्ता बदलने की क्षमता इसमें हैं. मतलब ये हवा में रास्ता बदलकर चलते फिरते टारगेट को मार गिराने में नायाब है.  उदाहरण के लिए टैंक से छोड़े जाने वाले गोलों और अन्य मिसाइलों का टारगेट पहले से ही तय होता है और ये ये वहीं जाकर हमला करते हैं. 



मेक-इन-इंडिया कार्यक्रम में फिट


ब्रह्मोस एयरोस्पेस लिमिटेड के चेयरमैन अतुल राणे के मुताबिक, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2025 तक 5 अरब डॉलर (रक्षा निर्यात में) हासिल करने का लक्ष्य रखा है. मुझे उम्मीद है कि ब्रह्मोस खुद 2025 तक 5 अरब डॉलर का लक्ष्य हासिल कर लेगा."


उनका कहना है कि 50.5 फीसदी भारतीय और 49.5 फीसदी रूसी साझेदारी के साथ ये संयुक्त उद्यम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के महत्वपूर्ण मेक-इन-इंडिया कार्यक्रम में फिट बैठता है. दरअसल भारत-रूस मिलकर सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल पहले से ही बना रहे हैं.


ब्रह्मोस एयरोस्पेस लिमिटेड चेयरमैन राणे का कहना है कि साल 2025 तक भारत को इसके 5 बिलियन डॉलर के ऑर्डर मिलने की उम्मीद है. राणे ने 18 अक्टूबर मंगलवार को फिलीपींस के साथ इस साल 375 डॉलर मिलियन के अपने पहले निर्यात सौदे पर साइन किए. चेयरमैन राणे का कहना है कि ब्रह्मोस एयरोस्पेस नए ऑर्डर के लिए इंडोनेशिया, मलेशिया और वियतनाम के साथ बात कर रहा है.


गौरतलब है कि पहले से ही रूस परंपरागत तौर पर भारत का प्रमुख हथियार आपूर्तिकर्ता भी रहा है. भारत ने लाइसेंस के तहत रूसी मिग लड़ाकू विमान और एसयू -30  जेट बनाए हैं और दोनों ने भारत में ब्रह्मोस मिसाइल बनाने के लिए सहयोग किया है. बीते साल ही अप्रैल में रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा था कि दोनों देश भारत में रूसी सैन्य साजो-सामान के अतिरिक्त उत्पादन करने पर बात कर रहे हैं.


ब्रह्मोस II और सिर्कोन कर सकते हैं टेक्नॉलोजी साझा


ब्रह्मोस एयरोस्पेस के सीईओ अतुल राणे के मुताबिक कि भारतीय और रूसी दोनों पक्ष हाइपरसोनिक मिसाइल वर्जन के डिजाइन पर काम कर रहे हैं. ब्रह्मोस-II रूस की सिर्कोन (Tsirkon) मिसाइल के साथ कुछ विशेषताओं को साझा करने की बात पर राणे ने कहा कि ये संभव हो सकता है.


राणे ने कहा, “पूरी दुनिया एक हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल पर काम कर रही है. अमेरिका और चीन अपनी क्रूज मिसाइलों के हाइपरसोनिक वर्जन विकसित कर रहे हैं, लेकिन उनके पास अभी तक ये नहीं है. मैंने दुनिया में किसी के पास भी हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल नहीं देखी है.”


पिछले साल भी सिर्कोन की तर्ज पर भारत की ब्रह्मोस II हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल के बनाए जाने की संभावनाओं पर चर्चाएं हुई थीं. ब्रह्मोस II के 6 मैक से अधिक रफ्तार के साथ विकसित किए जाने उम्मीद है. 


ये रफ्तार बढ़कर संभवतः मैक 8 तक पहुंच सकती है. ये 600 किलोमीटर के दायरे तक मार कर सकेगी और इसे बढ़ाकर 1,000 किलोमीटर किया सकता है. सिर्कोन मिसाइल पारंपरिक और परमाणु दोनों प्रकार के वारहेड ले जा सकती है. ब्रह्मोस II भी परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम होगी या नहीं अभी इस बारे में कोई कुछ साफ नहींं है. 


हाइपरसोनिक सिर्कोन की खासियत


ब्रह्मोस एयरोस्पेस के सीईओ के मुताबिक रूस का कहना है कि उसने  एनपीओ मशीनोस्ट्रोयेनिया (NPO Mashinostroyenia) की बनाई गई सिर्कोन (Tsirkon) हाइपरसोनिक एंटीशिप क्रूज मिसाइल का परीक्षण किया.


राष्ट्रपति पुतिन के दावों के मुताबिक सिर्कोन मिसाइल लगभग 9 मैक की रफ्तार से इसकी अधिकतम मारक क्षमता 1,000 किलोमीटर  की सीमा से अधिक हो सकती है. किसी माध्यम में किसी पिंड की चाल और ध्वनि पर पड़ने वाले दाब व ताप के असर के बाद ध्वनि की चाल के अनुपात को मैक संख्या कहते है.


सिर्कोन मिसाइल  तौर पर सबसे परिष्कृत अमेरिकी वायु रक्षा प्रणालियों से बच सकती है. इसकी जबरदस्त तेज  रफ्तार की वजह से मिसाइल के सामने हवा का दबाव एक प्लाज्मा क्लाउड बना देता है जो रेडियो तरंगों को फंसाता है, जिससे यह रडार सिस्टम के लिए अदृश्य हो जाता है.


ऐसा माना जाता है कि सिर्कोन मिसाइल सबसे एडवांस अमेरिकी विमानवाहक पोतों को भी डुबो सकती है विशेषज्ञों के अनुसार यह अमेरिका के एजिस कॉम्बैट सिस्टम (Aegis Combat System) को आसानी से हरा सकने का दम रखती है. 


केवल सिर्कोन के विमान और समुद्र वाले वर्जन मौजूद हैं. हालांकि, मई में यूरेशियन टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, रूस सिर्कोन मिसाइल लॉन्च करने के लिए एक नई तटीय मिसाइल प्रणाली भी विकसित कर रहा है, जो जमीन और समुद्र दोनों लक्ष्यों भेद सकती है.
 
ब्रह्मोस II मिसाइल का नहीं होगा निर्यात


ब्रह्मोस एयरोस्पेस के सीईओ राणे ने यह भी कहा कि ब्रह्मोस मिसाइल का हाइपरसोनिक वर्जन महंगा होगा और जनवरी में फिलीपींस को बेचे गए सुपरसोनिक वर्जन की तरह इसका  निर्यात नहीं किया जाएगा. इसके अलावा, भारत अपने युद्धपोतों के लिए क्रूज मिसाइल के जहाज वाले वर्जन के लिए इंडोनेशिया के साथ बातचीत कर रहा है. 


राणे ने टास को बताया, “हम ब्रह्मोस हाइपरसोनिक वर्जन का निर्यात नहीं कर पाएंगे. इसका उत्पादन केवल रूस और भारत के लिए किया जाएगा.” उन्होंने समझाया कि भारत मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था-एमटीसीआर (Missile Technology Control Regime-MTCR) की एक दल है. 


एमटीसीआर देश को 300 किलोमीटर (186 मील) से अधिक की रेंज और 500 किलोग्राम से अधिक वजन वाली मिसाइल विकसित करने की मंजूरी तो देता है, लेकिन इसे अन्य देशों को निर्यात नहीं करता है. 


सुपरसोनिक ब्रह्मोस मिसाइल के मामले में भी यह सच है, जिसके लेटेस्ट वर्जन की मारक क्षमता 500 किलोमीटर है. 300 किलोमीटर के एमटीसीआर प्रतिबंधों का पालन करने के लिए निर्यात वर्जन 290 किलोमीटर तक ही रखा गया है.


क्या होगा रूस पर लगे प्रतिबंधों का असर


चीन ने पहली बार अपने J-20 स्टील्थ फाइटर्स को 'एक्शन मोड' में रखा. पीपुल्स लिबरेशन आर्मी वायु सेना (PLAAF) ने दर्जनों युद्धक विमान ताइवान वायु रक्षा पहचान क्षेत्र ( ADIZ) में भेजे हैं. उधर अमेरिकी जासूसी उपग्रह पर जासूसी के संदेह के चलते रूस ने 'इंस्पेक्टर' उपग्रह लॉन्च किया.


मसला ये है कि पश्चिमी देशों और अमेरिका के दबाव के बाद भी भारत ने अभी तक साफ तौर पर रूस के यूक्रेन पर हमले की निंदा नहीं की है. उलटा चीन के बाद वो मास्को के दूसरे सबसे बड़े तेल ग्राहक के तौर पर सामने आया है, क्योंकि भारतीय रिफाइनरियों ने कुछ पश्चिमी खरीदारों के छोड़े गए रियायती दरों के रूसी तेल को खरीद लिया.


गौरतलब है कि रूस के कैलिनिनग्राद इलाक़े की सीमाएं नेटो के सदस्य देशों पोलैंड और लिथुआनिया से लगती है. यहां रूस ने हाइपरसोनिक किंझल मिसाइलों से लैस मिग-31 लड़ाकू विमान तैनात कर नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइज़ेशन (NATO) को एक तरह से चुनौती दी है. इसे लेकर रूस पर और अधिक प्रतिबंध लगने से इंकार नहीं किया जा सकता है.


ऐसे में भारत और रूस के सैन्य तकनीक साझेदारी पर एक तरह से प्रतिबंध लगने का खतरा भी है. इन वाले प्रतिबंधों का असर भारत की हाइपरसोनिक मिसाइल की विकास के काम पर भी पड़ सकता है.


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