भारत सरकार देश को रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए लगातार प्रयास कर रही है. सरकार ने इसके लिए घरेलू रक्षा विनिर्माण को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ स्वदेशी हथियारों को छोटे मित्र देशों को भी बेच रही है. हालांकि अब भी हम अपनी रक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिए बड़े देशों जैसे रूस अमेरिका, फ्रांस पर इजरायल निर्भर हैं. लेकिन अब हम मेक इन इंडिया के तहत कुछ हद तक रक्षा उपकरणों का उत्पादन घरेलू स्तर पर कर भी रहे हैं और उसके निर्यात को बढ़ावा दे रहे हैं.  पिछले वित्त वर्ष यानी 2022 में हमने कुल 15,920 करोड़ रुपये के रक्षा उपकरण निर्यात का रिकॉर्ड हासिल किया है. हम अपने आप को अंतरराष्ट्रीय हथियार बाजार में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी के तौर पर अपने को स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं. 


हथियार बेचने के मामले में हम अभी 24वें स्थान पर पहुंच चुके हैं. चूंकि इस दिशा में पूर्व से हमारा ट्रैक रिकॉर्ड बहुत अच्छा नहीं रहा है लेकिन बीते आठ सालों में लगभग 16000 करोड़ रूपये के रक्षा उत्पादों का लक्ष्य हासिल कर पाना हमें अपनी क्षमता को लेकर उत्साहित करने के लिए काफी है. हालांकि, हाल ही में आए (SIPRI) रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक हथियार बाजार में हुए लेनदेन का यह महज 0.2 प्रतिशत रहा है. लेकिन फिर भी हम इस आंकड़े से भी समक्ष सकते हैं. वर्ष 2014 में देश में मोदी सरकार सत्ता में आई. उस वक्त हमारा रक्षा निर्यात महज 1941 करोड़ रुपये था. लेकिन सरकार ने देश के रक्षा विनिर्माण क्षमता को विकसित करने की अपनी महत्वाकांक्षा न सिर्फ जाहिर की बल्कि उसके लिए कई नियमों को भी उदार बनाया.


रक्षा उत्पादों के निर्यात करने वाली 100 फर्मों के साथ करार


केंद्र सरकार द्वारा किये गए सकारात्मक प्रयासों का सकारात्मक नतीजा मिलने शुरू हो गए हैं. भारत ने अगले पांच वर्षों में 5 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक के रक्षा उपकरणों का वार्षिक निर्यात करने का लक्ष्य निर्धारित किया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने हाल ही में अपने एक ट्वीट में कहा था "हमारी सरकार भारत को रक्षा उत्पादन केंद्र बनाने के प्रयासों का समर्थन करती रहेगी." उन्होंने AERO India-2023 के उद्घाटन के मौके पर भी बेंगलुरु में कहा कि हम अपने मौजूदा 1.5 बिलियन डॉलर के रक्षा निर्यात को  2024-25 तक पांच गुना बढ़ाकर 5 बिलियन डॉलर के लक्ष्य को हासिल करने करने का इरादा रखते हैं. रक्षा मंत्रालय के अनुसार, भारत अब 85 से अधिक देशों को अपने देश में बने रक्षा उपकरणों का निर्यात कर रहा है. रक्षा मंत्रालय ने हाल ही में अपने एक बयान में कहा है कि "भारतीय उद्योग ने वर्तमान में रक्षा उत्पादों का निर्यात करने वाली 100 फर्मों के साथ दुनिया को रक्षा उपकरणों का डिजाइन और उन्हें विकास की अपनी क्षमता दिखाई है." अभी हम जिन हथियारों कानिर्यात कर रहे हैं उसमें सुपरसोनिक ब्रह्मोस क्रूज मिसाइल, एडवांस्ड लाइट हेलीकॉप्टर (तेजस), पिनाका रॉकेट लांचर, आकाश अस्त्र और नाग मिसाइल, हल्के हथियार, अर्जुन टैंक, गोला-बारूद आदि शामिल हैं.


रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने रक्षा क्षेत्र में भारत की प्रतिभा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'मेक इन इंडिया' के विजन की सराहना करते हुए कहा कि विगत आठ वर्षों में देश ने रक्षा निर्यात के लक्ष्यों को आठ गुणा बढ़ाने में सफलता हासिल की है. यह अपने आप में उत्साहित करने वाला है. उन्होंने यह भी कहा कि यह दर्शाता है कि हमने जो पिछले कुछ वर्षों में इस क्षेत्र में सुधार किये हैं उसके अच्छे परिणाम मिल रहे हैं. यह देश के लिए एक उल्लेखनीय उपलब्धि है. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि भारतीय रक्षा क्षेत्र वैश्विक बाजार में एक प्रमुख निर्माता के रूप में उभरा है. उन्होंने यह भी कहा हमें अगले 5-10 साल में 100 अरब डॉलर से ज्यादा के ऑर्डर मिलने की उम्मीद है.'


बीते पांच सालों में भारत का रक्षा निर्यात के आंकड़े


वित्तीय वर्ष 2017-2018- 4682.36 करोड़ रु


वित्तीय वर्ष 2018-2019- 10745.77 करोड़ रु


वित्तीय वर्ष 2019-2020- 9115.55 करोड़ रु


वित्तीय वर्ष 2020-2021- 8434.84 करोड़ रु


वित्तीय वर्ष 2021-2022-15920 करोड़ रु





अभी हम जिन देशों को अपने रक्षा उपकर बेच रहे उनमें वियतनाम, भूटान, बांग्लादेश, श्रीलंका, म्यांमार, मालदीव, मॉरीशस समेत अन्य कई देश शामिल हैं. वियतनाम के साथ हमने सुपरसोनिक क्रूज ब्रह्मोस मिसाइल बिक्री करने की डील की है. पिनाक रॉकेट लांचर को खरीदने के लिए आर्मेनिया आगे आया है. आकाश मिसाइल की खरीदारी के लिए फिलीपींस, वियतनाम और सऊदी अरब ने अपने कदम आगे बढ़ाए हैं. म्यांमार और फिलीपींस ने ध्रुव हेलीकॉप्टर को खरीदने में अपनी रुचि दिखाई है. मलेशिया 15 तेजस लड़ाकू विमानों को अपनाने को तैयार हुआ है. ये सभी देश अपनी रक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिए भारत की तरफ देख रहे हैं जोकि हमारे लिए अच्छी बात है.


देश ने अतीत में निर्यात-आधारित रक्षा उद्योगों के विकास पर आधे-अधूरे मन से ध्यान केंद्रित किया था. हालांकि हमने अपने सार्वजनिक क्षेत्र के इकाईयों में रक्षा उपकरणों के डिजाइन और उत्पादन के लिए विशाल बुनियादी ढांचे का निर्माण कर रखा है. वर्तमान में हमारे पास 40 से अधिक डीआरडीओ की प्रयोगशालाएं, आठ रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयां कार्यरत हैं. इसके अलावा देश में 40 से अधिक आयुध कारखाने भी हैं. पहले इनका इस्तेमाल रक्षा निर्यात को प्रोत्साहित न करके केवल भारतीय सशस्त्र बलों की जरूरतों को पूरा करने के लिए किया जा रहा था. नई सदी के शुरू होने से पहले, पूर्व की सरकारों ने नीतिगत मामलों का हवाला देते हुए एक तरफ तो उन्होंने रक्षा उद्योग में निजी क्षेत्र को निवेश करने की अनुमति नहीं दी. वहीं, दूसरी ओर सार्वजनिक क्षेत्र की रक्षा कंपनियों को अपने उत्पादों के निर्यात के लिए भी प्रोत्साहित नहीं किया. हालांकि अब यह पूरी तरह से बदल गया है. इसमें सुधार की प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हुए शुरुआत में निजी निवेशकों को केवल 26% तक ही निवेश करने की अनुमति थी, लेकिन अब कुछ क्षेत्रों में 100 प्रतिशत स्वामित्व की अनुमति दे दी गई है.


रूस-यूक्रेन युद्ध से आधुनिकीकरण की नई लहर


पिछले साल यूक्रेन पर हुए रूसी सैन्य आक्रमण ने वैश्विक रक्षा उद्योगों में हथियारों की मांग को बढ़ाया है और यह न केवल यूरोपीय देशों में हुआ है बल्कि इससे एशिया के कई देशों में भी असुरक्षा की भावना हुई है. चूंकि यूक्रेन पर रूसी आक्रमण ने पूरी दुनिया की भू-राजनीति को बदल दिया है. इसलिए राष्ट्रों के बीच नए रक्षा समीकरण और अपने क्षेत्रों और सामरिक हितों की रक्षा के लिए नई आक्रामक सुरक्षा नीति बनाने पर मजबूर कर दिया है. फ़िनलैंड से लेकर यूरोप में पोलैंड तक, दक्षिण पूर्व और दक्षिण एशिया और अरब खाड़ी क्षेत्र से लेकर अफ्रीका तक, सैन्यीकरण की एक नई लहर शुरू हो गई है. जापान और दक्षिण कोरिया जैसे धनी देश अपने रक्षा अधिग्रहण बजट में भारी वृद्धि करने की योजना पर काम कर रहे हैं. सुरक्षा को लेकर बढ़ते खतरों के बीच वे अपने सशस्त्र बलों को नवीनीकृत करने की ओर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. भारत भी अपने सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण की आवश्यकता को पूरा करने के लिए 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर की सशस्त्र बलों की आवश्यकता का आकलन किया है.


क्या हम वैश्विक मांग को पूरा कर पाएंगे


यदि वर्तमान परिस्थितियों और वैश्विक बाजार की मांग को देखें तो हम कह सकते हैं कि अभी हम इसे पूरा नहीं कर पाएंगे. इसके लिए कम से कम हमें आगामी एक दशक तक अपने आप को तैयार करने में देना होगा. सवाल यह भी है कि क्या हम युद्ध के दौरान भारत निर्मित रक्षा प्रणालियों के साथ अपने दुश्मन को काबू में कर सकते हैं? इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए भारतीय रक्षा अनुसंधान संस्थाओं  (DRDO) ने अपनी बहुत सारी ऊर्जा और समय खपाया है. भारतीय सशस्त्र बलों को अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलों (ICBM) की अग्नि श्रृंखला, नौसैनिक बैलिस्टिक मिसाइलों और सुपरसोनिक ब्रह्मोस क्रूज मिसाइलों (Supersonic BrahMos cruise missiles) जैसी विश्व स्तरीय प्रणालियों से लैस करने में सक्षम रहा हैं, जिसे हम प्रतिबंधों के कारण शुरुआती दौर में हासिल नहीं कर सकते. हम कई अन्य बड़े रक्षा उपकरणों जैसे नवीनतम पीढ़ी के लड़ाकू विमान, पनडुब्बी, लड़ाकू ड्रोन आदि को विकसित करने के लिए प्रयास कर रहे हैं. हालांकि हमें चीन-पाकिस्तान से साझा सुरक्षा खतरे को देखते हुए उससे प्रभावी ढंग से मुकाबला करने के लिए आधुनिक पीढ़ी के लड़ाकू विमानों को तत्काल अपने बेडे़ में शामिल करने की आवश्यकता है.


इसके लिए भारतीय रक्षा मंत्रालय इन नई पीढ़ी के लड़ाकू विमानों का उत्पादन विदेशी साझेदारी के साथ भारत में करने पर जोर दे रहा है. लेकिन अभी इस दिशा में कोई सार्थक परिणाम सामने नहीं आया है. इसी तरह हम छह डीजल पनडुब्बियों की जरूरत को एक विदेशी विनिर्माता के साथ रणनीतिक साझेदारी में पूरा करने पर जोर रहे हैं ताकि इन लड़ाकू विमानों और पनडुब्बियों को मेड इन इंडिया का उत्पाद कहा जाएगा, जिसका निर्यात के लिए भी उत्पादन किया जा सकता है.


जैसा कि पीएम मोदी ने कहा है, भारत रक्षा उपकरणों का उत्पादन केंद्र बन सकता है. इसके लिए हम जापान, इजराइल, कोरिया, खाड़ी देशों आदि जैसे देशों को आकर्षित करने के प्रयास किए जा रहे हैं ताकि भारत को उनके सशस्त्र बलों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उत्पादन केंद्र बनाया जा सके. भारत अपने सक्षम श्रमिकों के बल पर और उनकी उन्नत तकनीकों की मदद से न केवल अपनी सैन्य आवश्यकता को पूरा कर सकता है बल्कि अपने उत्पादों को अंतर्राष्ट्रीय हथियारों के बाजार में भी बेच सकता है. रक्षा मंत्रालय ने अब तक दो रक्षा गलियारों की स्थापना की है, एक तमिलनाडु में और दूसरा उत्तर प्रदेश में है.