घुटनों के बल आया मालदीव, लगातार अनुरोध के बाद भारत ने शुरू किया व्यापार
समझौते के तहत भारत ने मालदीव के साथ फिर से व्यापारिक गतिविधि को शुरू किया है. इसके साथ ये उम्मीद जताई जा रही है कि अब मालदीव ऐसी हरकतें करने से पहले सौ बार सोचेगा.
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भारत के खिलाफ बयान देकर मालदीव ने खुद की अर्थव्यवस्था का खासा नुकसान कर लिया है. हालांकि, अब वह घुटने के बल आ गया है और लगातार भारत से व्यापार करने का अनुरोध कर रहा था. लगातार अनुरोध के बाद भारत ने मालदीव से व्यापार करने पर सहमति जतायी है. मालदीव के लिए आवश्यक वस्तुओं की कुछ मात्रा के निर्यात की अनुमति भारत ने दी है. मालदीव ने भारत को धन्यवाद भी दिया है. भारतीय उच्चायोग के मुताबिक मालदीव सरकार की ओर से लगातार अनुरोध के बाद वर्ष 2024-25 के लिए एक निश्चित मात्रा में वस्तुओं को निर्यात करने की अनुमति दे दी गयी. मालदीव के विदेश मंत्री मूसा जमीर ने इसकी सूचना देते हुए भारत को आभार दिया. भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पड़ोसी को प्राथमिकता की भारतीय नीति को दोहराया.
भारत और मालदीव का विवाद
भारत और मालदीव के बीच पिछले साल विवाद बढ़ा था, जब नवंबर से दोनों देशों के बीच एक राजनयिक विवाद के बीच तनाव की स्थिति बनी. मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू ने मालदीव में सहायता के लिए तैनात 88 सैन्य कर्मियों को वापस बुलाने को कहा था. मोइज्जू को वैसे भी चीन के का समर्थक माना जाता है. उसके बाद विवाद बढ़ा था. हालांकि, वो सैन्यकर्मी मालदीव की सुरक्षा करने के साथ-साथ समुद्री क्षेत्र में सुरक्षा की दृष्टि से तैनात थे. उसके बाद विवाद और तब बढ़ा जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लक्षद्वीप की यात्रा की और वहां से सोशल मीडिया पर तस्वीरें साझा की. उन्होंने भारत के प्राकृतिक सौन्दर्य को देखकर उसे और आगे विकासित करने और वहां पर टूरिज्म के केंद्र के रूप में आगे बढ़ाने के साथ स्थानीयता को बढ़ावा देने की बात कही. उसके बाद मालदीव के तीन मंत्रियों ने अधिकारियों रूप से प्रधानमंत्री और भारत के लिए भद्दी टिप्पणी की. इसके बाद देश के विदेश मंत्रालय के साथ-साथ कई मशहूर हस्तियों ने इसका विरोध किया और भारतीयों ने काफी प्रतिक्रिया भी दी. उसके बाद सोशल मीडिया पर मालदीव के बायकॉट की भी लहर चली. बायकॉट के अलावा भारत सरकार ने मालदीव के साथ व्यापारिक रिश्तों को भी तोड़ दिया. उसके बाद मालदीव में जाने वाले भारतीय पर्यटकों में काफी कमी आ गई. भारत और मालदीव के बीच कुछ समय से सीमा पर समस्या थी.
चीन के समर्थन पर ऐंठा मालदीव
चीन के समर्थन के कारण मालदीव ने ऐसी गलती की. इस समस्या का मुख्य कारण मालदीव के कुछ क्षेत्रों में भारतीय नागरिकों की आवासीय रूप से अपस्थिति थी, जिस पर मालदीव सरकार की नजरें थीं. भारत से संबंध बिगड़ने के बाद मालदीव ने अपने कुछ सीमावर्ती क्षेत्रों में भारतीय कंपनियों के प्रोजेक्ट्स पर रोक लगाई और भारतीय सैन्य नौकायन कंपनियों को वहां काम नहीं करने दिया. इससे दोनों देशों के बीच व्यापारिक और रक्षा संबंधों में विवाद उत्पन्न हुआ था. इस विवाद को राजनीतिक स्तर पर उठाया गया, जिससे दोनों देशों के बीच संबंधों में तनाव बढ़ गया. यह विवाद सीमा सुधार और दूतावास के मामले में भी एक महत्वपूर्ण पहलू रखता था. इस विवाद ने दोनों देशों के बीच संबंधों को तनावपूर्ण बना दिया था, जिसे बाद में समाधान करने के लिए कई संवाद सत्रों का आयोजन भी किया गया. हालांकि, जब मालदीव की आर्थिक स्थिति खराब हुई तो अब वो पूरी तरह से हालात को स्वीकार चुका है. भारत से विवाद और तनाव का कोई सकारात्मक परिणाम भले न हुआ हो, मालदीव में अर्थव्यवस्था पर इसका सीधे तौर पर असर देखने को मिलने लगा. उसके बाद अब मालदीव काबू में आ गया है. कई बार मालदीव सरकार ने भारत से संबंधों में सुधार की कोशिश की और गुहार लगाई. अब भारत ने बड़ा दिल दिखाते हुए व्यापार को शुरू करने पर हामी भरी है.
काफी पहले से है समझौता
भारत और मालदीव का व्यापारिक समझौता काफी पहले से है. भारत और मालदीव व्यापार समझौता 1981 में हुआ था, जिसके अंतर्गत आवश्यक वस्तुओं के निर्यात करने का प्रावधान किया गया. भारतीय उच्चायोग के एक रिकार्ड के मुताबिक दुनिया भर में प्रतिबंध के बावजूद भारत ने मालदीव को चावल, चीनी और प्याज का निर्यात किया. उसमें भारत का कहना था कि भारत अपनी 'पड़ोसी प्रथम नीति' के तहत मालदीव में मानव-केंद्रित विकास का समर्थन करने के लिए दृढ़ता से प्रतिबद्ध है और ये वो करेगा. उसी समझौते के तहत भारत अपने रिश्ते को सुधार कर मालदीव के साथ फिर से व्यापारिक गतिविधि को शुरू किया है. इसके साथ ये उम्मीद जताई जा रही है कि अब मालदीव ऐसी हरकत करने से पहले सौ बार सोचेगा.
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