भारत 12-13 जनवरी को डिजिटल माध्यम से ‘वॉयस आफ गलोबल साउथ’ शिखर सम्मेलन की मेजबानी करेगा जिसमें वैश्विक दक्षिण सहित विकासशील देशों को अपने मुद्दों, चिंताओं और प्राथमिकताओं को रखने का मौका मिलेगा. विदेश सचिव विनय क्वात्रा ने शुक्रवार को यह जानकारी दी. क्वात्रा ने संवाददाताओं को बताया, ‘‘इस शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिये 120 देशों को आमंत्रित किया गया है. इस सम्मेलन का मुख्य विषय ‘यूनिटी आफ वॉयस, यूनिटी आफ पर्पज’ है.’’


उन्होंने कहा कि इस शिखर सम्मेलन की संकल्पना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘‘सबका साथ, सबका विकास, सबका प्रयास’’ तथा भारत के ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ के मंत्र से प्रेरित है. उन्होंने कहा कि भारत विकासशील विश्व की आवाज एवं चिंताओं को वैश्विक मंच पर रखने में सबसे आगे रहा है. पिछले समय में कोविड-19 महामारी और यूक्रेन संघर्ष का दुनिया के देशों पर प्रभाव पड़ा है. इससे खाद्य, ईंधन और उर्वरकों तक पहुंच प्रभावित हुई है.


क्वात्रा ने कहा कि कर्ज और मुद्रास्फीति का दबाव भी अर्थव्यवस्थाओं के ढांचागत मानदंडों पर दिखायी दिया है. उन्होंने कहा कि ऐसे में इस सम्मेलन में वैश्विक दक्षिण सहित विकासशील देशों को अपने मुद्दों, चिंताओं और प्राथमिकताओं को रखने का मौका मिलेगा. यह पूछे जाने पर कि इस सम्मेलन में भारत के किन किन पड़ोसी देशों को आमंत्रित किया गया है, क्वात्रा ने कोई स्पष्ट उत्तर नहीं दिया.


उन्होंने बताया कि इस डिजिटल शिखर बैठक में 10 सत्र होंगे जिसमें दो सत्र शासनाध्यक्ष स्तरीय होंगे जबकि आठ सत्र मंत्री स्तरीय होंगे. शासनाध्यक्षों के स्तर के सत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शामिल रहेंगे. शिखर बैठक में आठ मंत्री स्तरीय सत्र में सहयोगी देशों के मंत्री भी हिस्सा लेंगे. प्रत्येक सत्र 10-20 सदस्यों का समूह होगा.


समझा जाता है कि वैश्विक दक्षिण (ग्लोबल साउथ) देशों में अफ्रीका, लैटिन अमेरिका, कैरिबियाई, प्रशांत द्विपीय एवं एशियाई देश शामिल हैं हालांकि इसमें इजराइल, जापान, दक्षिण कोरिया शामिल नहीं है. राष्ट्राध्यक्ष स्तरीय सत्र की शुरूआत 12 जनवरी को होगी. इसका विषय ‘‘मानव केंद्रित विश्व के लिये वैश्विक दक्षिण की आवाज’ होगा.


मंत्री स्तरीय सत्र के तहत वित्त मंत्री स्तरीय सत्र का विषय ‘‘ लोक केंद्रित विकास का वित्त पोषण’ होगा. क्वात्रा ने कहा कि वित्त मंत्री स्तर के सत्र में विकास एवं वित्त पोषण से जुड़े आयाम शामिल होंगे. उन्होंने कहा कि विकास की यात्रा का मुख्य बिन्दू यह है कि विकास का वित्त पोषण कैसे किया जाए, विकास का वित्त पोषण कैसे हो, कैसे कर्ज के जाल से बचें तथा अपनी विकास सहायता का ढांचा किस प्रकार से तैयार करें और वित्तीय समावेशन कैसे सुनिश्चित करें.


उन्होंने कहा, ‘‘ स्वाभाविक है कि हर देश चाहेगा कि विकास की वित्तीय जरूरतों की पूर्ति में वह ऋण के बोझ के तले नहीं दबे. ऐसे में विकासशील देश विकास की क्षमताओं, परिप्रेक्ष्य और अपने अनुभवों को शिखर बैठक में रखेंगे.’’ उन्होंने कहा कि ये देश विकास की यात्रा में पेश आने वाली समस्याओं को रखेंगे और ऋण के जाल का आशय इन्हीं विषयों तक सीमित है तथा इसे किसी देश विशेष के संदर्भ में नहीं देखा जाना चाहिए.


विदेश सचिव ने कहा कि हाल के वर्षो में प्रौद्योगिकी का वित्त संबंधी आयामों से जुड़ाव सामने आया है और वित्त मंत्री स्तरीय सत्र में इन्हीं विषयों के इर्द गिर्द चर्चा हो सकती है. पर्यावरण मंत्री स्तरीय सत्र का विषय ‘‘पर्यावरण अनुकूल जीवन शैली के साथ वृद्धि का संतुलन’ होगा जबकि विदेश मंत्री स्तरीय सत्र का विषय ‘वैश्विक दक्षिण को प्रोत्साहित करने के लिये उपयुक्त महौल’ होगा.


‘वॉयस आफ गलोबल साउथ’ शिखर सम्मेलन के दूसरे दिन 13 जनवरी को पांच सत्रों का आयोजन होगा. इसमें ऊर्जा मंत्री स्तरीय सत्र का विषय ‘ऊर्जा सुरक्षा एवं विकास : समृद्धि की रूपरेखा’ होगा. स्वास्थ्य मंत्री स्तरीय सत्र का विषय ‘टिकाऊ स्वास्थ्य ढांचा तैयार करने के लिये सहयोग’ है. शिक्षा मंत्रियों के सत्र का विषय ‘वैश्विक दक्षिण के परिपेक्ष्य में मानव केंद्रित विकास एवं क्षमता निर्माण’ है.


वहीं, वाणिज्य एवं कारोबार मंत्री स्तरीय सत्र का विषय ‘ वैश्विक दक्षिण में सुरक्षा विकास : कारोबार, पर्यटन, प्रौद्योगिकी एवं संसाधन’ होगा. विदेश सचिव ने बताया कि इस शिखर सम्मेलन की बैठकों में हिस्सा लेने वाले देशों की राय, विचारों चिंताओं एवं सुझाव का संकलन प्रस्तुत किया जायेगा. इन देशों की बातें जी-20 समूह की भारत की अध्यक्षता के दौरान महत्वपूर्ण विचार के रूप में ली जाएंगी.


नरेश