India USA Relation: विदेश नीति के तहत कूटनीति यही कहती है कि जिस देश की हैसियत तेज़ी से बढ़ रही हो और भविष्य में भी जिसमें अपार संभावनाएं हों, उस देश के साथ संबंधों को लगातार मजबूत करना चाहिए. आज वैश्विक परिदृश्य में भारत की कुछ ऐसी ही हैसियत बन गई है. यहीं वजह है कि दुनिया की बड़ी से बड़ी ताकत भी भारत से अपने संबंधों को और बेहतर करना चाहती है. इस कड़ी में दुनिया का सुपरपॉवर कहा जाना वाला अमेरिका भी शामिल है.
हाल फिलहाल में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन प्रशासन की ओर से ऐसे कई बयान सामने आए हैं, जिनसे जाहिर है कि अमेरिका, भारत से रिश्तों की जड़ों को और गहरा करना चाहता है.
अमेरिका के लिए भारत की बढ़ती अहमियत
अमेरिकी प्रशासन की ओर से आए ताजा बयान में कहा गया है कि भारत, अमेरिकी हितों के नजरिए से बहुज ज्यादा अहमियत रखता है. अमेरिकी विदेश मंत्रालय के मुख्य उप प्रवक्ता वेदांत पटेल (Vedant Patel) ने कहा है कि भारत कई क्षेत्रों में अमेरिका के लिए एक महत्वपूर्ण साझेदार है. उनके मुताबिक व्यापार, सुरक्षा सहयोग और तकनीकी सहयोग वैसे क्षेत्र हैं, जिनके नजरिए से भारत की अहमियत अमेरिका के लिए और बढ़ जाती है.
ICET से संबंधों को मिलेगा नया आयाम
बाइडेन प्रशासन की ओर से ये बयान ऐसे वक्त में आया है, जब भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल अगले हफ्ते अमेरिका की महत्वपूर्ण यात्रा करने वाले हैं. अजित डोभाल अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन (Jake Sullivan) के साथ 31 जनवरी को वॉशिंगटन डीसी में हाई लेवल डायलॉग के तहत ICET (इनीशिएटिव ऑन क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी) फ्रेमवर्क की पहली बातचीत में शामिल होंगे. भारत-अमेरिका के बीच ये एक नई पहल है. इस पहल पर दोनों देशों के बीच सहमति बीते साल जापान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की बातचीत के दौरान बनी थी. मई 2022 में टोक्यो में क्वाड लीडर्स समिट के इतर दोनों नेताओं की मुलाकात हुई थी. ICET के जरिए एआई, क्वांटम कंप्यूटिंग, 5जी-6जी, बायोटेक, अंतरिक्ष और सेमीकंडक्टर्स जैसे क्षेत्रों में दोनों देशों की सरकार, शिक्षा और उद्योग के बीच मजबूत संबंध स्थापित होगा. एडवांस टेक्नोलॉजी के मुद्दे पर सहयोग बढ़ेगा और हार्डवेयर कैपेबिलिटी में निवेश की संभावनाएं बेहतर होंगी. क्वांटम तकनीक पर चर्चा होंगी, जिससे आने वाले दिनों में शिक्षा के क्षेत्र में बड़ा बदलाव सामने आ सकता है. सेमीकंडक्टर्स उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए संयुक्त रोडमैप बनाने को लेकर सहमति बनने की उम्मीद है. इस पहल के जरिए स्पेस टेक्नोलॉजी में भी दोनों देश एक-दूसरे के अनुभवों को साझा कर सहयोग को बढ़ाएंगे.
चीन से सीमा विवाद में भी साथ है अमेरिका
हाल-फिलहाल में कई बार अमेरिका ने साफ किया है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर वो चीन के किसी भी उकसावे वाली कार्रवाई के खिलाफ है. दिसंबर 2022 में अरुणाचल के तवांग सेक्टर में एलएसी पर चीनी सेना की यथास्थिति बदलने की कोशिशों को भी अमेरिका ने ग़लत करार दिया था. एलएसी पर चीनी सेना से वहां के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात की खबरें आने के बाद अब अमेरिकी विदेश मंत्रालय के उप प्रवक्ता वेदांत पटेल ने एक बार फिर से कहा है कि अमेरिका सीमा पार या वास्तविक नियंत्रण रेखा पर घुसपैठ, सैन्य या नागरिकों की ओर से क्षेत्रीय दावों को आगे बढ़ाने के किसी भी एकतरफा प्रयास का कड़ा विरोध करता है. अब तो अमेरिका खुलकर ये भी कहने से गुरेज नहीं कर रहा कि अगर चीन के तरफ से एकतरफा प्रयास किया जाता है तो भारत को उसका माकूल जवाब देना चाहिए.
भारत से क्यों मजबूत करना चाहता है संबंध?
एक वक्त था जब शीत युद्ध के दौर में अमेरिका और भारत के संबंधों में शिथिलता के साथ ही तनातनी भी देखने को मिलती थी. लेकिन अब हालात वैसे नहीं रहे. इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह ये है कि वैश्विक मंच पर भारत की हैसियत लगातार बढ़ रही है. भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुकी है और आने वाले कुछ सालों में तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगी. मानव संसाधन के मामले में भारत जल्द ही चीन को भी पीछे छोड़ने वाला है. इस नजरिए से भारत के पास बड़ा घरेलू बाज़ार है, जिसका फायदा अमेरिका जैसा ताकतवर देश भी उठाना चाहता है. भारत के पास दक्ष मानव संसाधन की एक बड़ी ताकत है, जो किसी भी देश में जाकर वहां की अर्थव्यवस्था को विकास की गति दे सकते हैं और अमेरिका में तो दे ही रहे हैं. चीन के साथ अमेरिका का व्यापार समेत कई मुद्दों पर बीते कुछ सालों से टकराव बढ़ते ही गया है. हिंद-प्रशात क्षेत्र में चीन के वर्चस्व को साधने के नजरिए से भी भारत, अमेरिका के लिए बेहद अहमियत वाला देश बन जाता है. भारत अभी दुनिया के ताकतवर अंतरराष्ट्रीय मंचों जी20 और शंघाई सहयोग सगंठन (SCO) की भी अध्यक्षता कर रहा है. हर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत विकसित और अल्प विकसित देशों की बुलंद आवाज़ के तौर पर उभर रहा है. किसी भी अंतरराष्ट्रीय मंच से भारत की बातों को नज़रअंदाज करना अब संभव नहीं है. भारत की इस मजबूत स्थिति का फायदा अमेरिका भी अपने वैश्विक हितों को पूरा करने में उठाना चाहता है.
द्विपक्षीय सहयोग के बढ़ते आयाम
अमेरिका चाहता है कि व्यापार, रक्षा और तकनीक के क्षेत्रों में भारत के साथ सहयोग और बढ़े. भारत-अमेरिका की आर्थिक नीतियों में एक दूसरे को प्राथमिकता दी जा रही है. वहीं मज़बूत होते सैन्य संबंध एक-दूसरे पर विश्वास को और प्रगाढ़ करते दिखाई दे रहे हैं. संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत ने व्यापार, निवेश और कनेक्टिविटी के माध्यम से वैश्विक सुरक्षा, स्थिरता और आर्थिक समृद्धि को बढ़ावा देने में हमेशा रुचि साझा की है. हाल के दिनों में इनमें और तेज़ी आई है.
2022 में संबंधों को मिली नई ऊंचाई
भारत-अमेरिका संबंधों के लिहाज से 2022 का साल ऐतिहासिक रहा. दोनों देशों के राजनयिक संबंधों के 75 साल भी हो गए है. 2022 में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन दो बार मिले. पहली बार मई 2022 में टोक्यो में क्वाड देशों के शिखर सम्मेलन के दौरान दोनों नेताओं के बीच मुलाकात हुई. वहीं दूसरी बार नवंबर 2022 में इंडोनेशिया के बाली में हुए जी 20 शिखर सम्मेलन में दोनों नेता मिले. इसके अलावा वॉशिंगटन डीसी में टू प्लस टू मंत्रिस्तरीय बैठकें भी हुईं. पहली बार 2022 में किसी अमेरिकी नेवल शिप का मेंटेनेंस भारत में किया गया. इस साल कुछ पुराने बाजार पहुंच से जुड़े मुद्दों को भी सलझा लिया गया. निवेश प्रोत्साहन समझौते (Investment Incentive Agreement) पर हस्ताक्षर किए गए. संबंधित विज्ञान एजेंसियों के सहयोग से प्रौद्योगिकी और नवाचार हब की शुरुआत हुई. आर्थिक मोर्चे पर ये साल बेहद अच्छा रहा. दोनों ही देशों के बीच व्यापार और निवेश अपने उच्चचम स्तर पर पहुंच गया. उम्मीद है कि 2023 में भी दुनिया के सबसे पुराने और सबसे बड़े लोकतंत्रों बीच संबंधों में और प्रगाढ़ता आएगी, जिससे पूरी दुनिया के लिए प्रौद्योगिकी और नवाचार (technology and innovation) का भविष्य तय होगा.
व्यापारिक लिहाज से साझेदारी महत्वपूर्ण
भारत और अमेरिका के बीच आर्थिक संबंध भी हर साल और मजबूत हुए हैं. अमेरिका भारत से एक विस्तारित व्यापार संबंध चाहता है जो पारस्परिक और निष्पक्ष हो. फिलहाल अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बना हुआ है. वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक 2019- 20 में अमेरिका और भारत के बीच 88.75 अरब डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार हुआ. इससे पिछले वर्ष 2018-19 में यह 87.96 अरब डॉलर रहा था. 2020-21 में आपसी व्यापार 80.51 अरब डॉलर था. 2021-22 में अमेरिका ने भारत के शीर्ष व्यापारिक भागीदार बनने के मामले में चीन को पीछे छोड़ दिया. ये भारत-अमेरिका के मजबूत होते कारोबारी रिश्ते को दिखाता है. इस साल दोनों देशों के बीच 119.42 अरब डॉलर का व्यापार हुआ. ये भारत के कुल व्यापार का 11.5 प्रतिशत है. गौर करने वाली बात है कि भारत के शीर्ष 10 व्यापारिक साझेदारों में, अमेरिका एकमात्र ऐसा देश है जिसके साथ भारत का व्यापार संतुलन सकारात्मक है. 2021-22 में, भारत का अमेरिका के साथ 32.8 अरब डॉलर का व्यापार अधिशेष (trade surplus) था. अगर इसमें सेवा या सर्विसेज को भी जोड़ दिया जाए तो कुल व्यापार रिकॉर्ड 157 अरब डॉलर तक पहुंच गया. 2013-14 और 2017-18 के बीच चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार था. 2020-21 में भी यहीं हालात थे. चीन के पहले संयुक्त अरब अमीरात भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार था. और अब अमेरिका ने वो जगह ले ली है. अमेरिका की पहल इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क (IPEF) में भारत के जुड़ने से दोनों देशों के बीच व्यापार संबंध तेजी से बढ़े हैं. उम्मीद है कि 2022-23 के दौरान दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंध सभी रिकॉर्ड तोड़ देंगे. इस दौरान पहली छमाही में ही व्यापार 67 अरब डॉलर का रहा है. भारत-अमेरिका व्यापार नीति फोरम से भी आपसी व्यापार और निवेश बढ़ रहा है. भारत ने अमेरिका से व्यापार वीजा जारी करने में तेजी लाने की अपील की है.
अंतरर्राष्ट्रीय मंचों पर बढ़ता सहयोग
मौजूदा वक्त में संयुक्त राष्ट्र, जी 20, दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संगठन (ASEAN) क्षेत्रीय मंच, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक समेत कई बहुपक्षीय संगठनों में भारत और अमेरिका करीबी सहयोगी के तौर पर काम कर रहे हैं. इसके अलावा क्वाड के जरिए जापान और ऑस्ट्रलिया के साथ मिलकर भारत-अमेरिका हिंद प्रशांत क्षेत्र में शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए मिलकर काम कर रहे हैं. भारत, इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन (IORA) का सदस्य है, वहीं अमेरिका इसका डयलॉग पार्टनर है. अमेरिका भारत के पहल अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन में भी 2021 में शामिल हो चुका है. अमेरिका संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत के स्थायी सदस्य के तौर पर दावेदारी का भी समर्थन करता है.
टू प्लस टू डायलॉग से संबंधों को नया आयाम
भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच पहला टू प्लस टू डायलॉग सितंबर 2018 में नई दिल्ली में आयोजित किया गया. इसके बाद से हर साल आयोजित होने वालेइस संवाद से दोनों देशों के बीच साझेदारी बढ़ाने में और मदद मिल रही है. इस डायलॉग में सामरिक, रक्षा और सुरक्षा संबंधों को प्राथमिकता दी जाती है. इस डायलॉग के तहत दोनों देशों के रक्षा और विदेश मंत्रियों की बातचीत होती है. ये डायलॉग अमेरिका की पहल पर शुरू हुआ था. 2017 में जब अमेरिका ने इसके लिए भारत को राजी किया था तो, उस वक्त अमेरिका सिर्फ ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ ही इस तरह की वार्ता करता था. लेकिन भारत के साथ रिश्ते को मजबूत बनाने के लिए उसने नई दिल्ली के साथ ये वार्ता शुरू करने की पहल की. people-to-people diplomacy के जरिए भी रिश्ते लगातार मजबूत हो रहे हैं.
वैश्विक व्यापक रणनीतिक साझेदारी
भारत और अमेरिका के बीच वैश्विक व्यापक रणनीतिक साझेदारी (global strategic partnership) की जड़ें लगातार गहरी होती जा रही हैं. सबसे ख़ास बात है कि दोनों देशों के संबंधों में मानवीय उद्यम के करीब-करीब सभी क्षेत्रों को शामिल किया गया है. आपसी संबंध साझा लोकतांत्रिक मूल्यों, परस्पर हितों और महत्वपूर्ण मुद्दों पर आधारित पर हैं. दोनों देश स्वास्थ्य सेवा, स्वच्छ ऊर्जा, सुरक्षा, शिक्षा, प्रौद्योगिकी समेत सभी क्षेत्रों में आपसी आदान-प्रदान से एक-दूसरे को लाभ पहुंचा रहे हैं. भारत और अमेरिका दोनों ही आर्थिक संबंधों और रणनीतिक साझेदारी को मजबूत बनाना चाहते हैं. अमेरिका भारत की ऊर्जा सुरक्षा में भी बड़ा साझेदार बनना चाहता है. भारत दुनिया भर के देशों के साथ अपने अंतरराष्ट्रीय संबंधों को विस्तार कर रहा है, उस लिहाज से अमेरिका का महत्व और बढ़ जाता है.
भारत-अमेरिका राजनयिक संबंधों के 75 साल
भारत और अमेरिका दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश हैं जिनमें काफी समानताएं भी हैं. भारत और अमेरिका के राजनयिक संबंधों की स्थापना के 75 साल हो गए हैं. दोनों देशों के लंबे राजनीतिक और कूटनीतिक रिश्तों में कई बार उतार-चढ़ाव भी आए, लेकिन पिछले कुछ सालों में भारत और अमेरिका के रिश्ते में काफी मज़बूती आई है. दोनों देशों ने कई बार वैश्विक मंचों पर एक साथ आकर दुनिया को ये दिखा दिया कि उनके आपसी रिश्ते कितने मज़बूत हुए हैं. अमेरिका में राष्ट्रपति की कुर्सी पर चाहे रिपब्लिक पार्टी के शख्स बैठे हों या डेमोक्रेटिक पार्टी के शख्स, 21वीं सदी में भारत और अमेरिका के रक्षा, रणनीतिक और सुरक्षा संबंध लगातार मजबूत हो रहे हैं.
द्विपक्षीय संबंधों में रहा है उतार-चढ़ाव
भारत और अमरीका दो ऐसे राष्ट्र हैं, जिन्होंने अपने संबंधों में काफ़ी उतार-चढ़ाव देखे हैं. शीत युद्ध के दौरान जब दुनिया अमेरिका और सोवियत संघ के रूप में 2 गुटों में बंट गई थी, तब भारत का झुकाव अपनी समाजवादी विचारधारा के चलते सोवियत संघ की तरफ दिखाई दिया. वहीं 90 के दशक में जब भारत एक उभरती अर्थव्यवस्था के रूप में तेज़ी से विकसित हो रहा था, तब अमेरिका को शायद ये उतना रास नहीं आ रहा था. इसीलिए भारत ने जब 1998 में अपना परमाणु परीक्षण किया, तब अमेरिका इसके विरोध में नज़र आया. पर भारत एक ज़बरदस्त उभरती हुई अर्थव्यवस्था है, दुनिया के अग्रिम देशों में शुमार है और एक बड़ी शक्ति है. ये बात अब दुनिया से छिपी नहीं है. इसीलिए वक्त के साथ तेज़ी से हालात बदले हैं. भारत और अमेरिका के संबंधों में भी वक्त के साथ एक कमाल की मज़बूती देखने को मिली है. दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों की बार- बार औपचारिक और अनौपचारिक मुलाकात इस बात का संदेश देती है कि भारत और अमेरिका के रिश्ते ना सिर्फ व्यापारिक बल्कि सांस्कृतिक और वैचारिक रूप से भी करीबी नजर आते हैं.
21वीं सदी में स्थायी वैश्विक भागीदार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तत्कालीन अमेरिका राष्ट्रपति बराक ओबामा ने सितंबर 2014 और जनवरी 2015 में भारत और अमेरिका के संबंधों को इन दो motto"चलें साथ-साथ और सांझा प्रयास सबका विकास" के तहत आगे बढ़ाने का फैसला किया था. जून 2016 में दोनों देशों ने आपसी संबंधों को 21वीं सदी में स्थायी वैश्विक भागीदार के तौर पर परिभाषित किया. रक्षा उपकरणों और प्रौद्योगिकी को भारत तक पहुंचाने में आसान करने के लिए अमेरिका ने 2016 में भारत को एक प्रमुख रक्षा भागीदार के रूप में मान्यता दी.
ट्रम्प के दौरान भारत की अहमियत बढ़ी
2017 में डॉनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद दोनों देशों में विश्वास की डोर और पक्की होती दिखाई दी. इस दौरान भारत और अमेरिका के मजबूत होते रिश्ते को एक नई ऊंचाई मिली. 2017 में राष्ट्रपति बनने के बाद ट्रम्प ने कहा कि अमेरिका भारत को एक सच्चा मित्र और दुनिया भर की चुनौतियों का सामना करने में एक साझीदार के रूप में देखता है. ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर उन्हें बधाई दी और द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत बनाने के लिए आगे आने वाले दिनों में घनिष्ठतापूर्वक काम करने पर सहमति जताई. इसके साथ ही दोनों नेताओं की समय-समय पर बातचीत ने रिपब्लिकन प्रशासन के राज में भारत-अमेरिका संबंधों के भविष्य का माहौल तैयार कर दिया था.
बार-बार मिले नरेंद्र मोदी और डॉनल्ड ट्रम्प
भारत और अमेरिका के संबंधों को और नजदीक लाने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प की लगातार मुलाकात ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. दोनों नेताओं के बीच पहली मुलाकात 2017 में ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के कुछ महीने बाद ही हुई. इस पहली मुलाकात ने ही दोनों देशों के बीच एक नए रिश्ते की बुनियाद रख दी. इसके बाद दोनों नेता कई बार मिले. फरवरी 2020 में तत्कालिन राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प ने भारत का दौरा किया. इस दौरान दोनों देशों ने भारत-अमेरिकी संबंधों को व्यापक वैश्विक साझेदारी के स्तर तक ले जाने का फैसला किया. ट्रम्प के कार्यकाल के दौरान दोनों देशों के रिश्तों में मजबूती दिखी.
शीत युद्ध के दौरान संबंधों में तनातनी
यह भी सच है कि अमेरिका के जेहन में भारत काफ़ी पहले से था. ऐसे तो भारत और अमेरिका के बीच अंतरराष्ट्रीय संबंधों की शुरूआत अमेरिकी राष्ट्रपति हेनरी ट्रूमैन के समय 1949 में हुई थी, लेकिन भारत की आजादी की लड़ाई के दौरान ही अमेरिका ने ब्रिटेन पर उपनिवेशवाद खत्म करने पर दबाव बनाया था. लेकिन आजादी के बाद लंबे वक्त तक भारत और अमेरिका के संबंधों में वैसी गर्मजोशी नहीं दिखी. दोनों देशों के अपने अपने रणनीतिक नक्शे थे. उस समय नेहरू और अमेरिका के वैश्विक दृष्टिकोण में काफी फर्क था. अमेरिका तेल की अर्थव्यवस्था और मध्य पूर्व एशिया में पकड बनाने के लिए पाकिस्तान के करीब जाना चाह रहा था. वहीं नए राष्ट्र के रूप में भारत, उपनिवेशवाद से बाहर निकले देशों के साथ मिलकर गुटनिरपेक्ष नीति पर चलकर आत्मनिर्भर विकास की बुनियाद बनाने का पक्षधर था. शीत युद्ध के कारण 1946 से लेकर 1989 के तक पूरी दुनिया दो गुटों में बटी रही. हालांकि भारत गुटनिरपेक्ष की नीति पर चलकर आगे बढ़ता रहा. 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध के दौरान अमेरिका गलतफहमी का शिकार रहा. अमेरिका की ओर से भारत पर दबाव बनाने की भी कोशिश हुई, लेकिन भारत पर इनका कोई असर नहीं हुआ.
प्रतिबंध लगाते रहा है अमेरिका
भारत ने 1974 में पहली बार परमाणु परीक्षण कर दुनिया को चौंका दिया. हालांकि भारत ने इसे शांतिपूर्ण परीक्षण का नाम दिया. लेकिन अमेरिका ने इस परीक्षण के बाद भारत को परमाणु सामग्री और ईंधन आपूर्ति पर रोक लगा दी, साथ ही भारत पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिये. इससे भारत और अमेरिका के संबंध में कड़वाहट आ गई. 1998 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पोखरण में एक बार फ़िर परमाणु परीक्षण करके पूरे देश की ताकत से पूरी दुनिया को परिचित कराया. इस परीक्षण के बाद भी अमेरिका ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध भी लगा दिए. इसके बाद कुछ समय तक दोनों देशों के बीच तनातनी रही.
जसवंत–तालबोट वार्ता से सुधरे रिश्ते
सोवियत संघ के विखंडन के बाद भारत-अमेरिका रिश्ते को नए तरीके से पुनर्स्थापित करने के लिए प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में जसवंत–तालबोट वार्ता हुई थी जिसमें भारत-अमेरिका संबंधों से जुड़े सभी आयामों पर विस्तार से चर्चा हुई और यही वार्ता भविष्य में द्विपक्षीय संबंधों को बेहतर बनाने का आधार बना. मार्च, 2000 में बिल क्लिटंन 22 साल के अंतराल के बाद भारत आने वाले पहले अमेरिकी डेमोक्रेट राष्ट्रपति थे और उन्होंने एक ऐसी प्रक्रिया शुरू की, जिसे बाद में अटल बिहारी वाजपेयी ने स्वाभाविक साझेदारी करार दिया था. 2000 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अमेरिकी संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित कर भारत और अमेरिका के बीच नए संबंधो की नींव रखी. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समय भारत और अमेरिका के बीच संबंधों में काफी सुधार आया.
2008 से मजबूत होते गए रिश्ते
2008 में भारत और अमेरिका के बीच सिविल न्यूक्लियर डील ने भारत और अमेरिका के बीच संबंधों में एक नई उछाल ला दी. दोनों देशों के बीच बेहतर होते संबंधों का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि अमेरिका ने भारत को परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह यानि न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप का हिस्सा बनने के लिए वकालत की थी. 11 सितंबर 2001 में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर आतंकी हमले के बाद से ही दोनों देश आतंकवाद के खिलाफ संयुक्त रणनीति के साथ लड़ाई आगे बढ़ाने के पक्षधर रहे हैं. जब-जब भारत ने पाकिस्तान के आंतकियों को वैश्विक आतंकी घोषित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र में प्रस्ताव रखा तो अमेरिका ने इसका पुरजोर समर्थन किया. भारत में हुए आंतकी हमले खासतौर से पुंछ और पुलवामा में हुए आंतकी हमले को लेकर अमेरिका ने पाकिस्तान को आड़े हाथों लिया था. यहां तक कि बालाकोट एयर स्ट्राइक और सर्जिकल स्ट्राइक का भी अमेरिका ने भरपूर समर्थन किया. यही नहीं पाकिस्तान के आतंकवादी मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र में वैश्विक आतंकी घोषित करवाने में भी अमेरिका ने भारत का साथ दिया.
रणनीतिक और रक्षा क्षेत्र में सहयोग
लेकिन पिछले कुछ वर्षों में भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक और रक्षा क्षेत्र में सहयोग में काफी वृद्धि हुई है. दोनों देशों ने बेका, लेमोवा और COMCASA नामक समझौते पर हस्ताक्षर किये थे, इसके बाद भारतीय सेनाओं को अमेरिका से मिलिट्री-ग्रेड संचार उपकरण प्राप्त करने का रास्ता साफ हुआ. वहीं डिफेंस ट्रेड में भारत और अमेरिका अहम साझेदार के तौर पर काम कर रहे हैं... जुलाई, 2018 में अमेरिका ने भारत को STA-1 (Strategic Trade Authorisation-1) देश का स्टेटस प्रदान करने की घोषणा की थी. भारत यह स्टेटस पाने वाला दक्षिण एशिया का पहला देश है. यह स्टेटस दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और जापान जैसे देशों को मिला हुआ है. इस स्टेटस से भारत को अमेरिका से महत्वपूर्ण रक्षा टेक्नोलॉजी प्राप्त करने में आसानी होती है.
भारतीय पेशेवरों से अमेरिका को फायदा
भारत-अमेरिका की आर्थिक नीतियों में एक दूसरे को प्राथमिकता दी जा रही है. वहीं मज़बूत होते सैन्य संबंध एक दूसरे पर विश्वास को और प्रगाढ़ करते दिखाई दे रहे हैं. अमेरिका और भारत ने व्यापार, निवेश और कनेक्टिविटी के माध्यम से वैश्विक सुरक्षा, स्थिरता और आर्थिक समृद्धि को बढ़ावा देने में हमेशा रुचि साझा की है. भारत और अमेरिका के बीच आर्थिक संबंध भी हर साल और मजबूत हुए हैं. भारतीय पेशेवरों ने अमेरिका के विकास गाथा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. भारतीय प्रवासियों ने अमेरिका में उस मुकाम को हासिल किया जिसकी बदौलत अमेरिका की अर्थव्यवस्था को भी लाभ हो रहा है. अमेरिका में मौजूद हर 6 अप्रवासी में 1 भारतीय है. अमेरिका में बड़ी संख्या में भारतीय आईटी सेक्टर से जुड़े हैं. अमेरिका में भारतीय मूल के लोगों की आबादी साल 2010 से 2017 के बीच 7 वर्षों में 38 प्रतिशत तक बढ़ गई. अमेरिका में 27 लाख से ज्यादा भारतीय रहते हैं.
अमेरिकी राष्ट्रपतियों का भारत दौरा
जनवरी 2021 में डॉनल्ट ट्रम्प की जगह अमेरिका का 46वां राष्ट्रपति बनने के बाद से जो बाइडेन अभी तक भारत की यात्रा पर नहीं आए हैं. लेकिन इसके पहले के अमेरिकी राष्ट्रपति के भारत दौरे से भी दोनों देशों के रिश्ते लगातार मजबूत होते रहे हैं. डॉनल्ड ट्रम्प को लेकर सात अमेरिकी राष्ट्रपति भारत आ चुके हैं. अमेरिका के राष्ट्रपति ड्वाइट डेविड आइज़नहावर साल 1959 में भारत की यात्रा पर आए थे. ये किसी अमेरिकी राष्ट्रपति की पहली भारत यात्रा थी. रिचर्ड निक्सन भारत के दौरे पर आने वाले दूसरे अमेरिकी राष्ट्रपति थे. रिचर्ड निक्सन 1969 में भारत आए. निक्सन के दौरे लगभग नौ साल बाद 1978 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जिम्मी कार्टर भारत आए. 22 साल के अंतराल के बाद बिल क्लिंटन साल 2000 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में भारत की यात्रा पर आए. जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने 2006 में भारत का दौरा किया था. इस समय भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह थे. इसी दौरान भारत अमेरिका परमाणु करार की रूपरेखा को अंतिम रूप दिया गया और भारत के लिए कई नए रास्ते खुले. लगातार दो बार अमेरिका के राष्ट्रपति रहे बराक ओबामा ने दो बार भारत की यात्रा की. पहली बार वे 2010 में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में भारत आए थे. दूसरी बार, 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बुलावे पर बराक ओबामा गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए थे. वहीं डॉनल्ड ट्रम्प ने फरवरी 2020 में भारत का दौरा किया था.
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