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क्यों द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत करना चाहता है बाइडेन प्रशासन, अमेरिका है भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार

India US Trade: वैश्विक नजरिए से अमेरिका के लिए भारत बेहद मायने रखता है. इसमें व्यापार की भूमिका बहुत बड़ी है. यही वजह है कि दो साल में आपसी व्यापार में 48 अरब डॉलर की वृद्धि हुई है.

India US Relations: भारत और अमेरिका के बीच आपसी संबंध लगातार मजबूत हो रहे हैं और बीते कुछ सालों में इसमें व्यापार मुख्य आधार बन कर उभरा है. व्हाइट हाउस आपसी रिश्तों को और मजबूत करने में जुटा है.

2022-23 के लिए वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़े सामने आए हैं. इससे पता चलता है कि 2022-23 में अमेरिका हमारा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया है. इस दौरान भारत-अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार 128.55 अरब डॉलर तक पहुंच गया. ये आंकड़े बताने के लिए काफी है कि दोनों देशों में आर्थिक संबंध लगातार मजबूत हो रहे हैं.

दो साल में व्यापार में  48 अरब डॉलर का इजाफा

वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान भारत-अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार में 7.65% प्रतिशत की वृद्धि हुई है. इससे पिछले वित्त वर्ष यानी 2021-22 में आपसी व्यापार 119.5 अरब डॉलर था. वहीं 2020-21 में ये आंकड़ा  महज़  80.51 अरब डॉलर था. जैसा कि इन आंकड़ों से साथ है पिछले दो साल में भारत और अमेरिका के बीच आर्थिक रिश्ते जिस तरह से मजबूत हुए हैं, वैसा पहले कभी नहीं देखा गया है. पिछले दो साल में आपसी व्यापार में  48 अरब डॉलर का इजाफा हुआ है. 

व्यापार संतुलन भारत के पक्ष में

पिछले साल के मुकाबले 2022-23 के दौरान भारत से अमेरिका में निर्यात में 2.81% की वृद्धि हुई है. निर्यात का आंकड़ा 78.31 अरब डॉलर रहा.  इस दौरान अमेरिका से भारत में आयात भी 16% बढ़ा है. आयात का आंकड़ा 50.24 अरब डॉलर रहा. इन आंकड़ों पर गौर फरमाएं तो पता चलता है कि व्यापारिक संबंध भारत के पक्ष में है क्योंकि हम  आयात से ज्यादा अमेरिका को निर्यात करते हैं.

चीन भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार

भारत के साथ व्यापारिक साझेदारी में अमेरिका, चीन से आगे निकल गया. चीन, भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है. जहां अमेरिका के साथ व्यापारिक संबंध 2020-23 में मजबूत हुए हैं, वहीं इस दौरान भारत-चीन व्यापार में 1.5% की गिरावट दर्ज की गई है. वित्त वर्ष  2022-23 में भारत-चीन में व्यापार 113.83 अरब डॉलर का रह गया. पिछले वर्ष यानी 2021-22 में ये आंकड़ा 115.42 अरब डॉलर था. व्यापार संतुलन की बात करें, तो 2022-23 में भारत से चीन के लिए निर्यात 15.32 अरब डॉलर रहा. निर्यात में 28% की गिरावट दर्ज की गई. जबकि चीन से आयात  4.16% बढ़कर  98.51 अरब डॉलर हो गया. इन आंकड़ों में हम देख सकते हैं कि भारत का चीन के साथ व्यापार घाटा 2022-23 में बढ़कर 83.2 अरब डॉलर हो गया, जो इससे पिछले साल 72.91 अरब डॉलर था. 2013-14 और 2017-18 के बीच चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार था. 2020-21 में भी यहीं हालात थे. हालांकि 2021-22 में अमेरिका ही भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार था और यही स्थिति  2022-23 में भी बनी रही.

सामरिक नजरिए से व्यापारिक संबंध अहम

भारत के लिए अमेरिका से व्यापारिक संबंध बढ़ना सामरिक नजरिए से भी जरूरी है. जैसा कि हम सब जानते है कि सीमा विवाद की वजह से चीन के साथ हमारे रिश्ते पिछले तीन-चार साल से लगातार खराब होते गए हैं. हालांकि कारोबारी रिश्तों पर उतना असर नहीं पड़ा था. जब हम व्यापार से जुड़े आंकड़ों का विश्लेषण करते हैं, तो भारत-चीन व्यापार में चीन का पक्ष ज्यादा मजबूत दिखता है. आपसी व्यापार के तहत भारत, चीन को बहुत ही कम निर्यात करता है और चीन से आयात बहुत ज्यादा होता है. इस लिहाज से चीन का पक्ष ज्यादा मजबूत है. उसके विपरीत सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार होते हुए भारत, अमेरिका को आयात से ज्यादा निर्यात करता है. यानी अमेरिका से व्यापार के मामले में भारत का पक्ष ज्यादा मजबूत है. भारत का चीन के साथ व्यापार घाटा लगातार बढ़ते जा रहा है. बिगड़ते संबंधों को देखते हुए इस खाई को पाटने की जरूरत है और ये अमेरिका के साथ व्यापारिक संबंधों को और बढ़ाकर संभव हो सकता है. इंडो पैसिफिक क्षेत्र में चीन के वर्चस्व को कम करने और संतुलन बनाने के लिहाज से भी भारत अमेरिका के बीच दोस्ती ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाती है. उधर व्यापार के मसले पर पिछले कुछ सालों में अमेरिका का चीन के साथ भी टकराव बढ़ा है. इसलिए भी अमेरिका के पक्ष में ये बात जाती है कि उसके संबंध ऐसे देश से और मजबूत हो, जिसके पास चीन की तरह ही एक बड़ा बाजार है.

मजबूत, शांतिपूर्ण वैश्विक समुदाय की नींव रख रहे

द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत बनाने के लिए दोनों ही देश लगातार कोशिश कर रहे हैं. अमेरिका के दौरे पर गई केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी इस बात को दोहराया है. वाशिंगटन में 15 अप्रैल को भारतीय दूतावास की ओर से आयोजित  समारोह में निर्मला सीतारमण ने कहा है कि भारत और अमेरिका मजबूत, शांतिपूर्ण और सामंजस्यपूर्ण वैश्विक समुदाय की नींव रखने के लिए मिलकर काम कर रहे हैं. आगे उन्होंने कहा कि एकजुटता की भावना से भारत और अमेरिका के संबंध नियंत्रित होते हैं. ये दो लोकतांत्रिक देशों का सकारात्मक सोच वाला रिश्ता है, जिसकी अपनी अलग चुनौतियां और अंदरूनी समस्याएं हैं, लेकिन हम उन्हें अपने पर हावी नहीं होने देते.  इस दौरान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने द्विपक्षीय संबंधों के लिहाज से अमेरिका में भारतीय समुदाय, भारतीय मूल के लोगों के योगदान को महत्वपूर्ण बताया. उन्होंने कहा कि अमेरिका और भारत के बीच संबंध और मजबूत हों, ऐसी उनकी इच्छा है. अमेरिका में भारत के राजदूत तरणजीत सिंह संधू ने इस बात पर ज़ोर दिया कि भारत-अमेरिका के बीच साझेदारी से सिर्फ दोनों देशों को ही फायदा नहीं होगा, बल्कि यह दुनियाभर के लिए महत्वपूर्ण है.

भविष्य में आपसी संबंध और बेहतर होंगे

वैश्विक हितों और कूटनीतिक जरूरतों को साधने के नजरिए से अमेरिका के लिए भारत की अहमियत लगातार बढ़ती जा रही है. यही वजह है कि अमेरिका की ओर से भारत के साथ संबंधों की मजबूती को लेकर लगातार बयान आ रहे हैं. रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध के बाद से इसमें और तेजी से इजाफा हुआ है. भारत की तरफ से भी अमेरिका के साथ संबंधों को बढ़ाने की लगातार कोशिश दिख रही है.

इसी तरह का एक और बयान व्हाइट हाउस की तरफ से शनिवार (15 अप्रैल) की रात आई है. व्हाइट हाउस के एक शीर्ष अधिकारी  और अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के हिंद प्रशांत समन्वयक कर्ट कैंपबेल (Kurt Campbell) ने कहा है कि बीते कुछ सालों में दोनों देशों ने मजबूत रिश्ते बनाए हैं. उन्होंने भरोसा जताया है कि भविष्य में आपसी संबंध और बेहतर होंगे.

लोगों के बीच के आपसी संबंधों को बढ़ाने पर ज़ोर

वाशिंगटन डीसी में भारतीय दूतावास की ओर से आयोजित कार्यक्रम के दौरान भारतीय-अमेरिकियों को संबोधित करते हुए कर्ट कैंपबेल ने ये भी कहा है कि दोनों देशों के लोगों के बीच आपसी संबंध जितने मजबूत हैं, उतने किसी और देश के लोगों के बीच नहीं है. कर्ट कैंपबेल ने इस बात पर ज़ोर दिया कि भारत और अमेरिका के संबंध सिर्फ प्रौद्योगिकी या सुरक्षा मुद्दों को लेकर नहीं है. यह एक ऐसा रिश्ता है, जो लोगों के बीच के आपसी संबंधों पर आधारित है. उन्होंने आगे कहा कि कई ऐसे मामले हैं, जिसमें सरकारों के तौर पर बीच से हटने की जरूरत है. इससे दोनों देशों के लोगों को अलग-अलग तरीकों से साथ काम करने का मौका मिलेगा. उन्होंने माना कि दुनिया में इतनी सारी चुनौतियां और कठिनाइयां हैं, इसके बावजूद भारत-अमेरिका संबंधों को बढ़ते और फलते-फूलते देखना अद्भुत है.

संबंधों को और नई ऊंचाई देने पर काम

दरअसल कर्ट कैंपबेल के इस बयान का मतलब ही यही है कि मौजूदा वक्त में अमेरिका के लिए भारत बेहद महत्वपूर्ण साझेदार है. कर्ट कैंपबेल अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद में इंडो पैसिफिक अफेयर्स के लिए कोऑर्डिनेटर है. हम जानते हैं कि अमेरिका की विदेश नीति और सुरक्षा मामलों के लिए वहां की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की राष्ट्रपति को सलाह बेहद मायने रखती है. आम भाषा में कहें तो यहीं परिषद जो भी निर्णय करती है, उसके आधार पर अमेरिका की विदेश नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दे आगे बढ़ते हैं. ऐसे में अगर वहां की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद चाह रही है कि भारत और अमेरिका के लोगों के बीच आपसी रिश्ते और बढ़ें, तो इसका साफ इशारा है कि बाइडेन प्रशासन भारत के साथ संबंधों को और नई ऊंचाई देना चाहता है.

अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का बढ़ता रुतबा

अभी भारत दुनिया के सबसे ताकतवर आर्थिक समूह जी-20 की अध्यक्षता कर रहा है. उसके साथ ही जियो पॉलिटिकल लिहाज से एक और मजबूत मंच शंघाई सहयोग संगठन यानी SCO की अध्यक्षता की जिम्मेदारी भी भारत निभा रहा है. हर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत विकसित और अल्पविकसित देशों की बुलंद आवाज़ के तौर पर उभर रहा है. किसी भी अंतरराष्ट्रीय मंच से भारत की बातों को नज़रअंदाज करना अब संभव नहीं है. भारत की इस मजबूत स्थिति का फायदा अमेरिका भी अपने वैश्विक हितों को पूरा करने में उठाना चाहता है. भारत अपनी क्षमता और कामयाबी को दुनिया के साथ साझा करने को तैयार है और व्हाइट हाउस भी चाहता है कि इसका लाभ अमेरिका भी उठाए. चाहे व्यापार के लिए मार्केट के तौर पर हो या फिर इंडो पैसिफिक में अमेरिकी हितों को बनाए रखने का मसला हो, भारत से अच्छे और मजबूत संबंध की भूमिका बहुत बढ़ जाती है. यूक्रेन युद्ध की वजह से रूस के साथ अमेरिका के संबंधों में तल्खियां बढ़ी है. शीत युद्ध के बाद फिर से एक बार दुनिया दो धुरी में बंटती नज़र आ रही है. रूस के साथ भारत के रिश्ते काफी अच्छे रहे हैं और यूक्रेन युद्ध के बावजूद भी रूस के साथ संबंधों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है. ऐसे में बाइडेन प्रशासन की कोशिश है कि भारत, अमेरिका को लेकर हमेशा ही सकारात्मक रुख बनाए रहे. 

वैश्विक व्यापक रणनीतिक साझेदारी

भारत और अमेरिका के बीच वैश्विक व्यापक रणनीतिक साझेदारी है और इसकी जड़ें लगातार गहरी होती जा रही हैं. जून 2016 में दोनों देशों ने आपसी संबंधों को 21वीं सदी में स्थायी वैश्विक भागीदार के तौर पर परिभाषित किया. रक्षा उपकरणों और प्रौद्योगिकी को भारत तक पहुंचाने में आसान करने के लिए अमेरिका ने 2016 में भारत को एक प्रमुख रक्षा भागीदार के रूप में मान्यता दी.जुलाई, 2018 में अमेरिका ने भारत को STA-1 (Strategic Trade Authorisation-1) देश का स्टेटस प्रदान करने की घोषणा की थी. भारत यह स्टेटस पाने वाला दक्षिण एशिया का पहला देश है. यह स्टेटस दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और जापान जैसे देशों को मिला हुआ है. इस स्टेटस से भारत को अमेरिका से महत्वपूर्ण रक्षा टेक्नोलॉजी हासिल करने में आसानी होती है. फरवरी 2020 में तत्कालिन राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प ने भारत का दौरा किया. इस दौरान दोनों देशों ने भारत-अमेरिकी संबंधों को व्यापक वैश्विक साझेदारी के स्तर तक ले जाने का फैसला किया.

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