इंडो-पैसिफिक रीजन में यूरोपीय संघ की बड़ी भूमिका चाहता है भारत, चीन के आक्रामक रुख के लिहाज से है जरूरी
India EU Relations: 2004 के बाद से भारत और यूरोपीय संघ के बीच रणनीतिक साझेदारी है. इंडो पैसिफिक रीजन में शांति और स्थिरता के साथ ही वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिहाज से भी इस साझेदारी का काफी महत्व है.
EU Indo Pacific Ministerial Forum: यूरोपीय संघ के अस्तित्व के साथ ही भारत का उसके साथ प्रगाढ़ संबंध रहा है. दोनों के बीच संबंधों के लिहाज से ईयू इंडो-पैसिफिक मिनिस्ट्रियल फोरम (EIPMF) की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है. भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में ईयू इंडो-पैसिफिक मिनिस्ट्रियल फोरम को संबोधित करते हुए इस बात पर बल दिया.
बतौर विदेश मंत्री एस जयशंकर दूसरे ईयू इंडो-पैसिफिक मिनिस्ट्रियल फोरम में हिस्सा लेने के लिए स्वीडन की अपनी पहली यात्रा पर 13 अप्रैल को स्टॉकहोम पहुंचे थे. इस बैठक को संबोधित करते हुए एस जयशंकर ने भारत का पक्ष रखते हुए कहा कि इंडो पैसिफिक वैश्विक राजनीति की दिशा में तेजी से केंद्रीय भूमिका में पहुंच रहा है. यह जिन मुद्दों को उठाता है उनमें वैश्वीकरण के स्थापित मॉडल में निहित समस्याएं हैं.
ईयू इंडो-पैसिफिक मिनिस्ट्रियल फोरम
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इस दौरान भारत और यूरोपीय संघ के बीच के जुड़ाव पर विस्तार से प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि यूरोपीय संघ बहुध्रुवीय दुनिया को पसंद करता है और ये बहुध्रुवीय एशिया के जरिए ही मुमकिन है. उन्होंने आगे कहा कि यूरोपीय संघ इंडो-पैसिफिक के साथ जुड़ाव बढ़ाने के लिए समान विचारधारा वाले साझेदारों की तलाश करेगा. एस जयशंकर का कहना है कि भारत निश्चित तौर से उनमें से एक भागीदार है.
भारत का नियमित बातचीत पर ज़ोर
भारत का हमेशा से मानना रहा है कि इंडो-पैसिफिक एक जटिल और अलग परिदृश्य है. इस बात को रेखांकित करते हुए एस जयशंकर ने कहा कि इसे मजबूत जुड़ाव के जरिए ही बेहतर तरीके से समझा जा सकता है. भारत चाहता है कि सिर्फ संकट के वक्त ही इंडो पैसिफिक देशों और यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के बीच जुड़ाव न रहे. एस जयशंकर का कहना है कि संबंधों में और मजबूती के लिए इंडो-पैसिफिक और भारत के साथ यूरोपीय संघ का नियमित तौर से बातचीत होनी चाहिए. बातचीत व्यापक और सार्थक हो ये भी जरूरी है.
इस बैठक में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने यूरोपीय संघ और इंडो-पैसिफिक के राष्ट्रों के बीच क्षमताओं, गतिविधियों और प्रयासों को दर्शाते हुए 6 बिंदु रखे.
- इंडो-पैसिफिक विकास में यूरोपीय संघ का हित जुड़ा हुआ है. ख़ास तौर से ये हित प्रौद्योगिकी, कनेक्टिविटी, व्यापार और वित्त से संबंधित हैं. इसके लिए इंडो-पैसिफिक रीजन में अंतरराष्ट्रीय समुद्री कानून UNCLOS का पालन सही तरीके से हो रहा है, इस पर यूरोपीय संघ को भी नज़र रखनी होगी. इस मसले पर अब मुंह फेर लेने का कोई विकल्प नहीं है.
- पिछले दो दशकों के परिणामों से स्थापित सोच की परीक्षा हो रही है. गैर-बाजार अर्थशास्त्र (non-market economics) का जवाब कैसे दिया जाए, यह अपेक्षा से अधिक एक विकट चुनौती साबित हो रही है.
- हाल की घटनाओं ने आर्थिक केंद्रीकरण की समस्याओं के साथ-साथ विविधीकरण की आवश्यकता को भी उजागर किया है. वैश्विक अर्थव्यवस्था को जोखिम मुक्त करने के लिए विश्वसनीय और लचीली सप्लाई चेन तो चाहिए. इसके साथ ही डिजिटल डोमेन में विश्वास और पारदर्शिता को बढ़ावा देने की जरूरत है.
- जितना अधिक यूरोपीय संघ और इंडो-पैसिफिक देश एक-दूसरे के साथ व्यवहार करेंगे, दुनिया में बहुध्रुवीयता (multi-polarity) को उतनी ही मजबूत मिलेगी. एक बहुध्रुवीय विश्व केवल बहुध्रुवीय एशिया के साथ ही संभव है.
- भारत में डिजिटल सार्वजनिक वितरण या हरित विकास की पहल जैसे कई बदलाव हो रहे हैं. इन बदलावों से यूरोपीय संघ का भारत के ध्यान आकर्षित होता है. वैश्विक मंच पर भारत के तेजी से बढ़ते कद की वजह से आने वाले वर्षों में यूरोपीय संघ के साथ जुड़ाव और बढ़ जाएगा.
- इंडो-पैसिफिक के किसी भी तरह के मूल्यांकन में स्वाभाविक तौर से Quad वैश्विक भलाई के नजरिए से एक बड़ा कारक होगा. इंडो-पैसिफिक ओशन इनिशिएटिव (IPOI) एक ऐसी पहल है जिसके साथ यूरोपीय संघ सहज होगा और इसमें भागीदारी करने पर विचार कर सकता है.
इंडो-पैसिफिक के मुद्दों से मुंह नहीं फेर सकता ईयू
इन बिंदुओं को रखते हुए विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि भारत और यूरोपीय संघ को नियमित, व्यापक और सार्थक बातचीत करते रहनी चाहिए. इंडो-पैसिफिक को लेकर इसकी अहमियत और भी बढ़ जाती है. एस जयशंकर ने ईयू इंडो-पैसिफिक मिनिस्ट्रियल फोरम पर जो भी बातें कही, उससे साफ है कि अब भारत इंडो-पैसिफिक रीजन में यूरोपीय संघ की भूमिका को बढ़ाना चाहता है. ख़ास कर इस रीजन में चीन के बढ़ते आक्रामक रुख और अंतरराष्ट्रीय समुद्री कानूनों के उल्लंघन को लेकर भारत चाहता है कि यूरोपीय संघ इस मुद्दे पर ध्यान दे.
एक तरह से भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि धीरे-धीरे हालात ऐसे होते जा रहे हैं कि अब इस मसले का पूरी दुनिया पर असर पड़ेगा और यूरोपीय संघ के सदस्य देशों को वैश्विक हितों को देखते हुए इस मुद्दे पर तटस्थ रुख रखने का वक्त खत्म हो गया है. जब हिंद-प्रशांत क्षेत्र में दक्षिण चीन और पूर्वी चीन सागर में चीन की सेना की आक्रामक कार्रवाई को देखते हुए ईयू इंडो-पैसिफिक मिनिस्ट्रियल फोरम की बैठक और इसमें भारत के पक्ष की अहमियत काफी बढ़ जाती है.
एस जयशंकर बांग्लादेश से सीधे तीन तीन दिवसीय यात्रा पर स्वीडन पहुंचे थे. बांग्लादेश में उन्होंने 12 अप्रैल को छठे हिंद महासागर सम्मेलन में भारत का पक्ष रखा था. स्टॉकहोम में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ईयू इंडो-पैसिफिक मिनिस्ट्रियल फोरम से अलग फ्रांस, ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, बुल्गारिया साइप्रस, लातविया, लिथुआनिया और रोमानिया के अपने समकक्षों के साथ भी बैठक की. इसमें उन्होंने इंडो पैसिफिक से जुड़े मुद्दों के अलावा रूस-यूक्रेन युद्ध समेत तमाम क्षेत्रीय मसलों पर भी चर्चा की.
जुलाई में फ्रांस जाएंगे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
फ्रांस की विदेश मंत्री कैथरीन कोलोना के साथ बैठक पर खुशी जाहिर करते हुए एस जयशंकर ने ट्वीट किया कि बैस्टिल दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा को सफल बनाने को लेकर उनकी तरह उत्साहित हूं. इंडो-पैसिफिक और जी-20 पर विचार विमर्श किया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 14 जुलाई को फ्रांस के बैस्टिल दिवस समारोह में विशिष्ट अतिथि के तौर पर शामिल होंगे. फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के निमंत्रण पर पीएम मोदी पेरिस में होने वाली परेड में शामिल होने फ्रांस जाएंगे. इस परेड में भारतीय सशस्त्र बलों की एक टुकड़ी भी अपने फ्रांसीसी समकक्षों के साथ हिस्सा लेगी. बैस्टिल दिवस फ्रांस का राष्ट्रीय दिवस है जो हर साल 14 जुलाई को मनाया जाता है.
यूरोपीय संघ है दुनिया का सबसे महत्वपूर्ण ब्लॉक
यूरोपीय संघ, यूरोप महाद्वीप के 27 देशों का एक समूह है, जो एक मजबूत आर्थिक और राजनीतिक ब्लॉक के तौर पर काम करता है. पहले इसमें यूनाइटेड किंगडम भी था, जो 2020 में इस समूह से अलग हो गया. ये समूह 1992 के मास्ट्रिच संधि के बाद लगातार मजबूत होते गया है. 2002 में इस समूह ने अपने सदस्य देशों के लिए यूरो नाम से मुद्रा जारी की.
भारत-यूरोपीय संघ की साझेदारी क्यों है जरूरी?
पिछले दो दशक में भारत-यूरोपीय संघ के बीच का संबंध बहुपक्षीय साझेदारी के रूप में मजबूत हुआ है. दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतंत्र, भारत और यूरोपीय संघ के साझा मूल्यों, राजनीतिक आदान-प्रदान और समान आपसी हितों का एक लंबा इतिहास रहा है. दोनों ही पक्ष बदलते वैश्विक हालात के मुताबिक हर तरह के संबंध को और मजबूत करना चाहते हैं. इनमें राजनीतिक, आर्थिक, सुरक्षा, व्यापार और निवेश, पर्यावरण, अनुसंधान और इनोवेशन जैसे सभी आयाम शामिल हैं. इनमें भी व्यापार, सुरक्षा सहयोग और इंडो-पैसिफिक रीजन में साझेदारी सबसे प्रमुख आयाम हैं. भारत चाहता है कि भविष्य में साझेदारी को विस्तार देने की संभावनाओं पर दोनों पक्ष लगातार बातचीत करें.
भारत-ईयू के बीच 2004 में रणनीतिक साझेदारी समझौता
भारत और यूरोपीय संघ के बीच 2004 में रणनीतिक साझेदारी समझौता हुआ. भारत के अलावा यूरोपीय संघ के एशिया में चीन, जापान और दक्षिण कोरिया ही रणनीतिक साझेदार देशों में शामिल हैं. 2004 के समझौते से भारत-यूरोपीय संघ के बीच सहयोग के तमाम क्षेत्रों के लिए आधार तैयार हो गया. हाल के वर्षों में सुरक्षा सहयोग के नजरिए से साझेदारी ज्यादा बढ़ी है. इंडो-पैसिफिक रीजन में स्थिरता के लिए ये जरूरी भी है.
ईयू ने 2021 में इंडो पैसिफिक रणनीति अपनाया
यूरोपीय संघ ने 2021 में इंडो पैसिफिक रणनीति अपनाया था. उसके बाद से ईयू की दिलचस्पी इस रीजन को लेकर बढ़ी है. ऐसे में यूरोपीय संघ के साथ भारत का सुरक्षा सहयोग बढ़ने से इंडो-पैसिफिक रीजन में क्षेत्रीय सुरक्षा को बढ़ावा मिलने के साथ ही पूरे रीजन को स्थिर, शांत और समृद्ध बनाने में भी मदद मिलेगी. भारत के साथ यूरोपीय संघ भी चाहता है कि साझेदारी बढ़े क्योंकि वैश्विक मंच पर भारत लगातार आर्थिक तौर से मजबूत होते जा रहा है और यूरोपीय संघ अपने वैश्विक हितों की पूर्ति के लिए इसे एक मौका बनाना चाहेगा. इसके लिए बेहद जरूरी है कि दोनों ही पक्ष मिलकर काम करें, जिससे इंडो-पैसिफिक रीजन में चीन के एकतरफा वर्चस्व बनाने की नीति को लेकर संतुलन बन सके.
पिछले कुछ सालों से चीन के साथ भारत का संबंध सामान्य नहीं है. सीमा मुद्दे पर विवाद की वजह से और वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन की यथास्थिति को बदलने की लगातार कोशिशों की वजह से दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ा है. ऐसे में यूरोपीय संघ के साथ हमारा मजबूत संबंध सुरक्षा चिंताओं के लिहाज से भी बेहद मायने रखता है.
यूरोपीय संघ के साथ कनेक्टिविटी बढ़ाने पर ज़ोर
2021 में यूरोपीय संघ ने भारत के साथ कनेक्टिविटी साझेदारी को अंतिम रूप दिया था. ये यूरोपीय संघ के ग्लोबल गेटवे स्ट्रैटेजी पर आधारित है. यूरोपीय संघ का ग्लोबल गेटवे स्ट्रैटेजी एक तरह से चीन के बीआरआई प्रोजेक्ट के लिए ईयू की ओर से संतुलन बनाने की कोशिश के तौर पर देखा जाता है. यूरोपीय संघ के साथ भारत के कनेक्टिविटी साझेदारी के तहत भारत का यूरोपीय देशों के साथ डिजिटल, परिवहन और ऊर्जा नेटवर्क को बढ़ावा मिला है.
यूरोपीय संघ, भारत के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदारों में से एक
दोनों के बीच संबंध की सबसे मजबूत कड़ी व्यापार है. यूरोपीय संघ, भारत के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदारों में से एक है. भारत के लिए वो सबसे बड़े निवेशकों में से भी एक है. वो अमेरिका और चीन के बाद भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. भारत के कुल व्यापार में यूरोपीय संघ की हिस्सेदारी करीब 11% है.वहीं भारत, यूरोपीय संघ का 10वां सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. भारत-यूरोपीय संघ के बीच 2021-22 में 43.5 % की वृद्धि के साथ 116.36 बिलियन डॉलर मूल्य का कारोबार हुआ था. यूरो में बात करें, तो द्विपक्षीय व्यापार 95.5 बिलियन यूरो से ऊपर पहुंच चुका है जिसके मुक्त व्यापार समझौता होने के बाद और तेजी से बढ़ने की उम्मीद है.
मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत जारी
आर्थिक संबंधों को और मजबूत बनाने के लिए मुक्त व्यापार समझौता (FTA) एक प्रमुख मसला है, जिस पर दोनों पक्षों के बीच वार्ता जारी है. दोनों पक्षों के बीच 9 साल के अंतराल के बाद FTA पर वार्ता फिर से पिछले साल जून में शुरू हुई थी. उस वक्त दोनों पक्षों के बीच एक निवेश संरक्षण समझौते (IPA) और एक जीआई समझौते के लिए भी वार्ता शुरू की गई थी. अप्रैल 2022 में यूरोपीय संघ की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन की दिल्ली यात्रा और उसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यूरोप यात्रा से मुक्त व्यापार समझौता वार्ता के लिए स्पष्ट रोडमैप को निर्धारित करने में मदद मिली थी, जिसके बाद जून 2022 में FTA पर बातचीत दोबारा शुरू हुई थी.
2023 में FTA पर बन सकती है सहमति
मुक्त व्यापार समझौते को लेकर दोनों पक्षों के बीच पहले दौर की वार्ता 27 जून से 1 जुलाई, 2022 तक नई दिल्ली में हुई थी. इस साल मार्च में बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स में मुक्त व्यापार समझौते को लेकर चौथे राउंड की वार्ता हुई थी. पांचवें राउंड की वार्ता 12 से 16 जून के बीच में ब्रसेल्स में ही होनी है. सबसे पहले यूरोपीय संघ से FTA के लिए बातचीत की शुरुआत 2007 में की थी, लेकिन प्रमुख मुद्दों पर सहमति नहीं बनने के बाद 2013 में बातचीत स्थगित करनी पड़ी थी. अब दोनों पक्ष चाहते हैं कि इस साल के आखिर तक FTA पर सहमति बन जाए.
अगर भविष्य में भारत और यूरोपीय संघ के बीच मुक्त व्यापार समझौता हो जाता है तो ये भारत के लिए सबसे महत्वपूर्ण मुक्त व्यापार समझौतों में से एक होगा. हम जानते हैं कि रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से फिलहाल ग्लोबल सप्लाई चेन पर बहुत ही ज्यादा दबाव है. इस कारण वैश्विक आर्थिक सहयोग और बाजार तक पहुंच के नजरिए से भारत-यूरोपीय संघ के बीच व्यापार का रणनीतिक महत्व और बढ़ जाता है. मुक्त व्यापार समझौते से ई-कॉमर्स के लिए नई व्यवस्था का विकास होगा, जिससे व्यापार में उदारीकरण को और बढ़ावा मिलेगा. मजबूत भारत-यूरोपीय संघ संबंध से वैश्विक अर्थव्यवस्था को भी आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी.
भारत-यूरोपीय संघ कारोबार और प्रौद्योगिकी परिषद
भारत-यूरोपीय संघ कारोबार और प्रौद्योगिकी परिषद (TTC) की पहली मंत्री स्तरीय बैठक 16 मई को ब्रसेल्स में होगी. इसमें विदेश मंत्री एस जयशंकर, वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल के साथ ही रेल और संचार मंत्री अश्विनी वैष्णव शामिल होंगे. इस बैठक से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), क्वांटम कम्प्यूटिंग, सेमीकंडक्टर और साइबर सुरक्षा समेत महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों के आदान-प्रदान के आसान होने की उम्मीद है. टीटीसी की शुरुआत अप्रैल 2022 में हुई थी, जब यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन भारत की यात्रा पर आई थीं. उस वक्त उन्होंने पीएम नरेंद्र मोदी के साथ मिलकर TTC की शुरुआत की थी. भारत के साथ टीटीसी, यूरोपीय संघ की दूसरी ऐसी प्रौद्योगिकी गठबंधन है. यूरोपीय संघ ने ऐसा पहला गठबंधन जून 2021 में अमेरिका के साथ किया था.
विमानन सेक्टर में दोनों पक्षों के बीच सहयोग
भारत, यूरोपीय संघ के साथ विमानन सेक्टर में भी सहयोग बढ़ाना चाहता है. इसी नजरिए से अप्रैल में नई दिल्ली में यूरोपीय संघ-भारत विमानन शिखर सम्मेलन हुआ था, जिसमें यूरोपीय देशों को भारत के विमानन बाजार का हिस्सा बनने के लिए आमंत्रित किया गया था. यूरोपीय संघ का भी मानना है कि विमानन के क्षेत्र में भारत EU का सबसे सफल साझेदार बन सकता है.
विदेश मंत्री एस जयशंकर के स्वीडन और बेल्जियम दौरे से ये स्पष्ट है कि आने वाले वक्त में भारत और यूरोपीय संघ द्विपक्षीय सहयोग को मजबूत करने और गहरे संबंध बनाने के और कदम उठाएंगे, इसमें दोनों पक्षों के आपसी हित शामिल होंगे. दोनों पक्षों के बीच मजबूत साझेदारी का महत्व वैश्विक स्थिरता और आर्थिक विकास के नजरिए से भी है. यहीं वजह है कि भारत का कहना है कि बहुपक्षीय विश्व व्यवस्था को बचाए रखने के लिए भारत-यूरोपीय संघ की दोस्ती फिलहाल सबसे जरूरी है और बतौर G20 अध्यक्ष भारत इसके लिए लगातार कोशिश कर रहा है.
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